Menu
blogid : 15204 postid : 703764

माँ से ज्यादा महान कोई नहीं-जागरण जंक्शन फोरम

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
  • 534 Posts
  • 5673 Comments

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
941233_538841366155114_61460505_n
माँ से ज्यादा महान कोई नहीं
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

उसको नहीं देखा हम ने कभी
पर इसकी ज़रूरत क्या होगी
ऐ माँ, ऐ माँ तेरी सूरत से अलग
भगवान की सूरत क्या होगी, क्या होगी.
.
कल काशी में मौसम बहुत खराब था.ठंडी हवा चलने के साथ साथ रह रह कर बारिश भी हो रही थी,इसीलिए काफी ठण्ड भी महसूस हो रही थी.मेरे ससुराल से कुछ मेहमान आये हुए थे जो मंदिर में दर्शन करने के साथ साथ बाज़ार में कुछ खरीदारी भी करना चाहते थे.उन्होंने मुझसे चलने को कहा तो मैंने जाने में अपनी असमर्थता प्रकट करते हुए कहा कि -आपलोग जानते ही हैं कि मै मंदिर नहीं जाता हूँ.अब मेरे लिए मेरी ये देह ही मंदिर है.मैंने इसी नर देही में नारायण की अनुभूति कर ली है.
मैंने अपनी पत्नी से कहा-आप इन लोगों को लेकर चले जाइये और मंदिर में दर्शन के साथ साथ इन्हे बाज़ार में खरीदारी भी करा दीजिये.
मुझे बचत करने का शौक है और मेरी पत्नी को खरीदारी करने का बहुत शौक है.वो अपनी शर्त रखते हुए बोलीं-ठीक है चली जाउंगी,मगर मेरी दो शर्ते आपको माननी पड़ेंगी.पहली शर्त ये है कि छह हजार रूपये मुझे चाहिए.मुझे भी कुछ खरीदारी करनी है..और दूसरी शर्त ये है कि बिटिया को मैं नहीं ले जाउंगी.एक तो मौसम ख़राब है दूसरे ये बाज़ार में बहुत परेशान करती है.हाथ छुड़ाकर भागती है.कहीं इधर उधर चली गई तो बहुत दिक्कत होगी.मम्मी की आज तबियत ख़राब है.उन्हें जुकाम और बुखार है.वो रजाई ओढ़ के लेटी हैं.
इसे आपको ही सम्भालना होगा.आप मेरी ये सब बातें मानने को तैयार हों तो ही मैं जाउंगी.
उनकी सब शर्तें मानने के अलावा मेरे पास और कोई विकल्प नहीं था.मैंने आलमारी से निकालकर उन्हें रूपये दिए.पहले मैंने सोचा कि पांच हजार रूपये दूँ ,एक हजार की बचत होगी.लेकिन इस भय से कि रिश्तेदारों के सामने हमदोनों के बीच फिजूलखर्ची रोकने और बचत करने पर एक निरर्थक बहस शुरू हो जायेगी,मैंने चुपचाप उन्हें छह हजार रूपये दे दिए.वो खुश होकर मेरी बड़ाई करने लगीं-आप कितने अच्छे पति हैं.ऐसे ही पत्नी की बात चुपचाप मान लेना चाहिए.इससे घर में हमेशा सुख शांति बनी रहती है.पत्नी का मूड ठीक रहता है और पति को चाय-नाश्ता और भोजन से लेकर धुले और प्रेस किये हुए कपडे तक सबकुछ समय पर मिलता है.
वो बहुत खुश होकर तैयार होने में जुट गईं.उनका उपदेश सुनकर मैं मुस्कुराते हुए कमरे से बहार निकल गया और सोचने लगा कि ये घर गहस्थी भी एक दूसरे से स्वार्थ पूर्ति का कैसा बारीक़ बुना हुआ तानाबाना है,इसमें जरा सी भी छेड़छाड़ कर दो तो सब तानाबाना बिगड़ जाता और घर में कलह और अशांति शुरू हो जाती है.
अपने कालेज के दिनों में ही मुझे घर गृहस्थी चलाने के कई तरह के अच्छे बुरे अनुभव मिल गए थे.जिसे याद करके होंठों पर कभी मुस्कराहट आ जाती है तो कभी आँखों से दर्द पानी की तरह बहने लगता है.
शादी के बाद पत्नियां अपने पतियों पर हमेशा हावी रहने की कोशिश करती हैं.कभी कभी तो उनकी जली कटी बातें सुनकर मन रूपी पंछी खुले आसमान में उड़ने के लिए फड़फड़ाने लगता है.मैं अपने जीवन में सन्यास भी ले चूका हूँ और घर से भाग भी चूका हूँ,इसीलिए ये सब करने की मन में इच्छा नहीं पैदा होती है,बल्कि मेरी तो इच्छा होती है कि खुले असमान में जाकर किसी पेड़ के नीचे कुछ देर बैठूं.
आदमी जिसके बहुत निकट होता है और जिससे बहुत प्रेम करता है उससे मन को ठेस भी बहुत जल्दी लगती है.अधिकतर लोगों के जीवन में पत्नी और बच्चें ही सबसे निकट होते हैं.लगभग हर घर की यही स्थिति है.पौराणिक कथाओं के अनुसार तो हिंदुओं के सर्वोच्च देवता ब्रह्मा,विष्णु और महेश की भी यही स्थिति है.उनके गृहस्थ जीवन में भी कलह होती है और उनकी पत्नियां भी उनपर हावी रहती हैं.
मेरी पत्नी लगभग एक घंटे बाद तैयार होकर अपने कमरे से बाहर निकलीं.सजधजकर वो बहुत अच्छी लग रहीं थीं.घर में इस तरह से सजे संवरे रूप में उन्हें देखने का सौभाग्य कुछ विशेष अवसरों पर ही मिलता है.मैंने एक बार उनसे पूछा भी कि-कहीं बाहर जाना हो तो ओरतें इतनी सज संवरकर जाती हैं.औरतें घर में उस तरह से सज संवर के क्यों नहीं रहती हैं ?
मेरी पत्नी ने बहुत दिलचस्प जबाब दिया था-घर में कैसे भी रहूँ क्या फर्क पड़ता है..बाहर अच्छे ढंग से सजसंवरकर नहीं जाउंगी तो आप की ही बदनामी होगी..लोग सोचेंगे कि इसके पास अच्छे कपड़े नहीं होंगे..
मैंने कहा था कि-लोगों के सोंचने की औरतों को बहुत चिता रहती है,लेकिन पति के चाहने की कोई परवाह नहीं होती है..
उन्होंने मुझे समझाया था कि-औरतों को घर गृहस्थी का काम करना होता है.वो सजसंवरकर घर गृहस्थी के काम करेंगी तो सब अच्छे कपडे खराब हो जायेंगे.
मैंने उन्हें छेड़ने की गरज से कहा था कि-लेकिन आप के मनपसंद टीवी धारावाहिकों में तो चौबीस घंटे सास से लेकर बहू तक सब सजसंवरकर रहती हैं.धारावाहिक में उन्हें सोते-जागते,उठते बैठते और खाते-पीते कभी भी देखिये वो सजींसंवरी ही मिलेंगी.हमेशा सजधज के रहने की शिक्षा आप भी उनसे ग्रहण कीजिये.
मेरी पत्नी नाराज होकर बोली थीं-आप उन्हें ही देख लिया कीजिये.मुझे देखने की क्या जरुरत है..मेरे मनपसंद टीवी धारावाहिक आपको अच्छे तो लगते नहीं हैं..इसीलिए आप उनकी बुराई तो करेंगे ही..
मैं बाहर से तो चुप हो गया था,लेकिन मन ही मन में कहा था कि-आपके टीवी धारावाहिकों की बड़ाई करके मैं मुसीबत क्यों मोल लूँ..उनके कपड़ों और उनके गहनो की तारीफ करके मैं क्यों वैसा ही खरीदने की फरमाइश के जाल में फसूं..
मेरी दो साल की बिटिया बड़े ध्यान से अपनी माँ को देख रही थी.उसे आभास हो गया था कि कहीं जाने कि तैयारी हो रही है.वो खेलना छोड़कर भागकर आई और रोते हुए उनसे लिपटकर नए कपडे पहनाने और साथ ले चलने कि जिद करने लगी.
मेरी पत्नी ने उसे झूठी तसल्ली दी-तुम्हारे कपडे ठीक हैं..तुम्हे ऐसे ही ले चलेंगे..
मेरी पत्नी के ईशारा करने पर मैंने बिटिया को गोद में उठा लिया.वो जोर जोर से चिल्लाने लागी.मेरी पत्नी बिटिया का ध्यान रखने ओर तीन घंट बाद उसे दूध पिलाने की हिदायत देकर जल्दी से अपनी सेंडिल पैरों में पहनीं ओर अपने भाई भाभी के संग घर से बाहर की ओर निकल गईं.
गेट के बाहर टेम्पों के स्टार्ट होने की आवाज़ आई तो बिटिया ओर जोर जोर से चिल्लाने लगी.वो घर के गेट की तरफ चलने के लिए ईशारा करते हुए रोने लगी.उसे लेकर मैं जानबूझकर धीरे धीरे चलते हुए गेट के पास जबतक गया,तबतक टेम्पो जा चूका था.मैंने उसकी आँखों से बहते मोटे मोटे आसुंओ को पोंछते हुए उसे झूठी तसल्ली दिया-मम्मी बहुत गन्दी हैं..बिटिया को छोड़ के चली गईं..आने दो उन्हें तब मैं उन्हें डाँटूंगा..
वो चुप होते हुए हाथ से ईशारा कर बोली-धोईं..धोईं..
हाँ..धोईं..धोईं..करके मारूंगा..-मैं उसे तसल्ली दिया.
घर में रोज दस बार वो रोते हुए मेरे पास अपनी माँ कि शिकायत ले के आती है ओर बस इतना ही बोल पाती है-धोईं..धोईं..
मैं समझ जाता हूँ कि वो अपनी माँ से मार खा के आ रही है.वो अपने नन्हे हाथों से मेरा हाथ पकड़कर घर के अंदर ले जाती है और उसे खुश करने के लिए मुझे अपनी पत्नी को कुछ देरतक झूठमूठ में डांटना पड़ता है.मेरी पत्नी मेरी झूठी डांट सुनकर हंसती रहती हैं और मेरी बिटिया खुश हो जाती है.
मेरी पत्नी को गए अभी दस मिनट नहीं बीते होंगे कि वो उन्हें याद करके रोने लगी.मैंने उसे चुप कराने के लिए उसका नकली खिलौनेवाला मोबाइल दिया.उसने उसे हाथ में लेकर दूर फेंक दिया.मैंने उसे अपना असली मोबाइल दिया तो चुप हो गई.असली और नकली मोबाइल अब छोटे बच्चे आसानी से पहचान लेते हैं.अब तो उन्हें भी असली मोबाइल चाहिए.मैं उसे लेकर अपने कम्प्यूटर के पास आ गया.उसे गोद में लेकर कम्प्यूटर आन किया.वो मेज पर रखा एफएम रेडियों आन कर गाने सुनने लगी.
मुझे बाथरूम जाने की जरुरत महसूस हुई तो मैं घर के भीतर की ओर जाते जाते उसे बोल गया-बिटिया..मेरा कम्प्यूटर मत छूना..ओर यहीं खेलना मैं अभी आता हूँ..
मैं वापस आया तो देखा कि वो मेरी कुर्सी की गद्दी नीचे फर्श पर फेंक दी है और मेरी कुर्सी पर बैठकर कीबोर्ड का बटन दबा रही है.मुझे आते देख वो और तेजी से कीबोर्ड के बटन दबाने लगी.मैं उसे कुर्सी से नीचे उतारा.गद्दी कुर्सी पर रख मैं कुर्सी पर बैठ गया.कम्प्यूटर हैंग कर गया था.माउस काम नहीं कर रहा था.मुझे उसे रिस्टार्ट करना पड़ा.
मैं मना करके गया था न कि कम्प्यूटर मत छूना..फिर क्यों छुआ इसे..-मैं डांटते हुए पूछा.
वो हँसते हुए अपने हाथ से अपनी और ईशारा कर बोली-पापा का बेटा..
वो मुझे खुश करना चाह रही थी.मैं हँसते हुए बोला-पापा का बेटा होने का ये मतलब नहीं कि तुम मेरा कम्प्यूटर ख़राब कर दो और मैं कुछ न बोलूं..
वो जानती थी कि मैं उसे डांट रहा हूँ.मेरा ध्यान दूसरी ओर ले जाने के लिए अपनी उनी टोपी उतारने के लिए खींचने लगी.
आज बहुत ठंडी है बेटा..टोपी पहने रहो..-मैं उसे समझाना चाहा.
वो रोने लगी तो मजबूरन मुझे उसके सिर से उनी टोपी उतारनी पड़ी.मैं कम्प्यूटर वाले मेज पर अपनी डायरी रख सोचा कि अपने संस्मरण की अगली क़िस्त लिखूं.सैकडों ईमेल मेरे ईमेल बॉक्स में उसी से सम्बंधित आये हुए हैं.मैं उनमें से सभी को अभी नहीं पढ़ पाया हूँ.लोगों की उत्सुकता देखकर सोच रहा हूँ कि इसे जल्द से जल्द पूरा कर दूँ.
मैं जैसे ही टाईप करना शरू किया वो मेरी गोद में बैठने के लिए रोने लगी.कीबोर्ड मेज के अंदर कर मैं उसे अपनी गोद में ले लिया.वो मॉनिटर के सामने रखी मेरी दीमक लगी डायरी के पेज फाड़ना शुरू कर दी.बहुत मुश्किल से उससे डायरी लेकर मैं आलमारी में रख पाया.
कुछ पढ़े हुए लेखों पर सोचा कमेंट ही कर दू.उसे गोद में लेकर कीबोर्ड टेढ़ामेढ़ा कर टाईप करने की असफल कोशिश किया.वो मुझसे पहले ही कीबोर्ड के बटन दबा हंसने लगी.मैं खीझकर कीबोर्ड फिर मेज के अंदर कर दिया.वो गुस्सा होकर मेरी गोद से नीचे उतर गई.मुझे परेशान करने के लिए वो गर्म पाजामी नीचे सरकाते हुए बोली-सू..सू..
मैं जानता था कि इसे पिशाब नहीं लगी है.केवल मुझे परेशान करना चाहती है.मैंने सोचा कि हो सकता है कि इसे सचमुच में पिशाब लगी हो.मैं उसकी गर्म पाजामी उतारकर बोला-जा..और जल्दी से सू सू करके आ..
वो घर के भीतर आँगन में भाग गई.घर का आँगन उसकी सू सू और छि छि करने की मनपसंद जगह है.काफी देर हो गई,जब वो नहीं आई तो मैं आँगन में जाकर देखा कि वो बारिश के पानी से खेल रही थी.उसका हाथ पैर पोंछकर पाजामी पहनाने लगा तो वो पहनने से मना करने लगी.काफी देरतक डांटने और मनाने के बाद बड़ी मुश्किल से मैं उसे पाजामी पहना पाया.
तभी कालबेल बजी.मैं गेट खोला तो देखा कि कुछ औरत और आदमी मुझसे मिलने के लिए आये हुए है.मैंने उनके अभिवादन स्वीकार करते हुए कहा कि आपलोग आश्रम वाले कमरे में या फिर सत्संग वाले कमरे में जाकर बैठिये मैं अभी थोड़ी देर में आता हूँ.
मैंने बिटिया से पूछा-बेटा..दूध पियोगी..
वो इंकार में सिर हिलाते हुए अपनी पाजामी नीचे की ओर सरकाने लगी..
अभी तो तुमने सू सू किया था.अब पाजामी क्यों उतार रही हो..-मैंने उसे डांटते हुए पूछा.
छि..छि..-वो हँसते हुए बोली.
मैं ये सोचकर पाजामी उतार दी कि कहीं सचमुच में उसे छि छि न लगी हो.वो दौड़ते हुए आँगन कि ओर भाग गई.
मैं अपने कमरे में जाकर अपने कपडे पहनने लगा.कपडे पहनकर जब मैं तैयार हो गया तो वो मेरे पास आई.मैंने पूछा-बिटिया छि..छि..कर ली..
वो कुछ न बोलकर मेरी अंगुली थामकर ले चलने लगी.जब वो बहुत छोटी थी तो मैं उसकी अंगुली पकड़कर उसे चलना सिखाता था..अब तो वो मेरी अंगुली पकड़कर मुझे खींचते हुए ले चलने लगी है..तबसे लेकर आजतक एक फ़िल्म के गीत के कुछ बोल डबडबाई हुई लेकिन आशान्वित नजरों से उसे देखते हुए उसके लिए अक्सर गुनगुना देता हूँ-
मैं कब से तरस रहा था
मेरे आँगन में कोई खेले
नन्ही सी हँसी के बदले
मेरी सारी दुनिया ले ले
आज उँगली थाम के तेरी
तुझे मैं चलना सिखलाऊँ
कल हाथ पकड़ना मेरा
जब मैं बूढ़ा हो जाऊँ

मेरे मुंह से ये गीत सुनकर सुनकर वो हंसती है,पता नहीं उसकी समझ में आता है कि नहीं.लेकिन वो अभी से मेरा बहुत ख्याल रखती है और मेरी छोटी-मोटी सेवा करती रहती है.
मैंने आँगन में जाकर देखा तो उसने चार जगह पर थोडा थोडा शौच किया था.शौच देख के घिन आ रही थी.मैं सोच रहा था कि अब क्या करूँ.माताजी सो रही हैं.उनकी तबियत ठीक नहीं है,इसीलिए उन्हें जगाना ठीक नहीं है.
मैं कुछ करने के लिए सोच ही रहा था कि मेरी बिटिया खिड़की पर से पुराने अख़बार का टुकड़ा उठा लाई और मुझे हाथ के ईशारे से समझाने लगी कि इसे उठाकर शौचालय में फेंक दो.मैंने अखबार के पन्ने के छोटे छोटे चार टुकड़े किये और चारो जगह का पाखाना उठाकर लैटरिंग में डाल दिया.बिटिया पानी डालने के लिए ईशारे से मुझे समझाती रही.मैं पानी से बहा दिया.
मन में घिन पैदा हो गई थी और मैं सोचने लगा कि-मेरी पत्नी बहुत महान है.वो ये सब रोज करती है,लेकिन उसे कभी घिन नहीं आती है.अक्सर जब वो खाना खाने बैठती है तो मेरी बिटिया उसी समय पाखाना कर रही होती है.मेरी पत्नी को जरा भी नहीं घिन नहीं आती है.वो खाना छोड़कर जाकर बिटिया का पाखाना साफ करती है.उसे पानी से धुलाती है और फिर साबुन से हाथ धोकर फिर खाना खाने बैठ जाती है.बहुत महान है मेरी पत्नी और इस मामले में दुनिया की हर माँ बहुत महान है.अपनी पत्नी के लिए और दुनिया की हर माँ के लिए मेरे मन में असीम श्रद्धा पैदा हो गई थी.
मैं सोचा कि अब बिटिया को पानी से धुला दूँ,मैं उसे पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया पर वो हँसते हुए भाग गई.मैं उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे पीछे भागा.वो कुछ देर तक जोर जोर से हँसते खिलखिलाते हुए घर में इधर से उधर भागती रही.मुझे परेशान करने में उसे बहुत मजा आ रहा था.मैं उसे पकड़कर शौचालय में लाया और पानी से साफ सफाई किया.मैं बिटिया को देखकर सोचने लगा की-बच्चों के नन्हे नन्हे हाथ पैर देखने में बहुत सुंदर लगते हैं.जब बिटिया अपनी छोटी सी मेज कुर्सी पर बैठती है ओर अपने नन्हे हाथ पैर इधर उधर करती है तो कितनी अच्छी लगती है.जब अपने नन्हे हाथ पैरों से तीन पहियों वाली साईकिल चलाती है तो कितनी सुंदर लगती है.बिटिया के शौच की साफ सफाई करके मेरे मन में घिन तो आ रही थी पर अपनी दुलारी बिटिया के लिए ये सब करके ख़ुशी भी हो रही थी.मेरे लिए ये सब एक नया अनुभव था.
मैं साबुन से अच्छी तरह से हाथ धोकर रसोईघर में गया और दूध गर्म करके उसे ठंडा किया.गुनगुने दूध में थोड़ी सी चीनी डाल बोतल में भर लिया.अपनी छोटी सी मेज कुर्सी पर बैठी बिटिया मेरा इंतजार कर रही थी.तीन पहिये वाली अपनी साईकिल अपने हाथ से पकडे हुए थी,ताकि कोई बच्चा आके ले न जाये.बहुत चिरौरी विनती करने के बाद बिटिया आधा बोतल दूध पी.मैं बिटिया को उसकी पसंद के कुछ खिलौने और उसकी चारो गुड़िया दे दिया.मैं उसे समझाया कि-बिटिया यहीं दादी के पास बैठके खेलना और यहाँ से कही जाना मत.
उसे उसकी दादी के पास छोड़कर मैं आश्रम के सत्संग हॉल में आ गया,जहांपर पंद्रह सोलह लोग बैठकर मेरा इंतजार कर रहे थे.लोगों से मिलने जुलने में समय का पता ही नहीं चला.कई घंटे बिट गए थे और मैंने बिटिया की कोई सुध नहीं ली थी कि वो इस समय कहाँ है.बिटिया मेरे ध्यान से उतर चुकी थी.जब बिटिया के रोने की आवाज़ मेरे कानो में आई,तब मुझे उसकी याद आई.मैं दौड़कर माताजी के कमरे गया.वो वहाँ नहीं थी.माताजी रजाई ओढ़कर गहरी नींद में सो रही थीं.मैं बिटिया को आवाज़ लगाते हुए पूरा घर खोज डाला,लेकिन वो कहीं दिखाई नहीं दी.केवल उसके रोने की आवाज सुनाई दे रही थी.मेरे ध्यान में तभी आया कि कहीं वो छतपर तो नहीं गई है.वो सीढ़ियाँ रेलिंग पकड़कर चढ़ जाती है,लेकिन उतर नहीं पाती है.सीढ़ियों के पास मैं पहुंचा तो देखा कि सीढ़ियों का गेट खुला हुआ था और उसके रोने की तेज आवाज सुनाई दे रही थी.मैं समझ गया कि वो ऊपर की सीढयों पर कहीं है.
मैंने बिटिया को आवाज नहीं दी कि कहीं वो मेरी आवाज सुनकर हड़बड़ाकर सीढ़ियों से गिर न जाये.मैं धीरे-धीरे सीढ़ियाँ चढ़ते हुए ऊपर के चबूतरे पर पहुंचा.वहाँ से दायें घुमकर देखा तो कई सीढयों के ऊपर मुंडेर पर खड़ी होके बिटिया रो रही थी.मुझे देखते ही वो और जोर से रोने लगी.
बिटिया वही रुको..उतरना नहीं..मैं आ रहा हूँ..-ये कहते हुए मैं दो दो सीढियाँ चढ़ते हुए तेजी से उसके पास पहुंचा और फुर्ती से लपककर उसे अपनी गोद में उठा लिया.मैं वहीँ सीढयों पर बैठकर गहरी साँस लेने लगा.भावुकता के आवेश में अपनी गीली हो गईं आँखे पोंछते हुए उसे अपने कंधे से चिपका लिया.वो बहुत जोर जोर से रो रही थी.काफी देर बाद वो सामान्य हुई.
मैं उसे अपने सीने से सटाते हुए पूछा-बिटिया तुम क्यों सीढ़ी चढ़ी..
पापा का बेटा..ऊँ..ऊँ..-वो अपना हाथ हिलाकर मुझे समझाने लगी.
मैं तुम्हे रोज मना करता हूँ न..अब तुम गेट भी खोल लेती हो..आज के बाद फिर कभी सीढ़ी मत चढ़ना..पापा के साथ आना..मम्मी के साथ आना..या फिर अपनी दादी के साथ आना..पर आज के बाद अकेले कभी मत आना..
मैं उसे अपनी गोद में लेकर नीचे पहुंचा तो देखा कि मेरी पत्नी और उनके भाई भाभी गेट खोलकर अंदर आ रहे थे.सबलोग हाथों में थैला लिए हुए बड़े खुश नजर आ रहे थे.बिटिया अपनी माँ को देखते ही रोने लगी.मैं पत्नी के साथ घर के अंदर गया.वो सेंडिल उतारकर हमारे कमरे में प्रवेश करते हुए बोलीं-लाओ बिटिया को अब मुझे दे दो..आपको परेशान तो नहीं न की..आप तो महान हैं..इसे सम्भाल सकते हैं..
मैं सोचने लगा कि यदि मैं कहता हूँ कि बिटिया मुझे बहुत परेशान की है तो वो ताना मारना शुरू कर देंगी कि देखा..बच्चों को पालना कितना मुश्किल काम है..ये मर्दों के वश की बात है ही नहीं..कुदरत ने ये कार्य हमें सौपा है..
मैं उनकी बातों के जबाब में कुछ बोला नहीं.बिटिया को उनकी गोद में सौपा और उनके कंधे पर अपना हाथ रख बस इतना ही बोला-इस दुनिया में माँ से ज्यादा महान कोई नहीं..
मैं दुनिया की सभी माताओं को सादर नमन करता हूँ..माता और मातृभूमि दोनों को मेरा कोटि कोटि प्रणाम..
वन्दे मातरम्।
सुजलां सुफलां मलय़जशीतलाम्,
शस्यश्यामलां मातरम्। वन्दे मातरम् ।।

ये संस्मरण बेटी बचाओ अभियान को समर्पित है
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

घर में रोज दस बार वो रोते हुए मेरे पास अपनी माँ की शिकायत ले के आती है ओर बस इतना ही बोल पाती है-धोईं..धोईं..
मैं समझ जाता हूँ कि वो अपनी माँ से मार खा के आ रही है.वो अपने नन्हे हाथों से मेरा हाथ पकड़कर घर के अंदर ले जाती है और उसे खुश करने के लिए मुझे अपनी पत्नी को कुछ देरतक झूठमूठ में डांटना पड़ता है.मेरी पत्नी मेरी झूठी डांट सुनकर हंसती रहती हैं और मेरी बिटिया खुश हो जाती है.

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ वास्तविक जीवन का एक जीवंत संस्मरण=सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६.
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh