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बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं की बदतर होती स्थिति

सद्गुरुजी
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बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं की बदतर होती स्थिति
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अभी कुछ दिनों पहले सिलचर (असम) में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी जी ने कहा था कि बांग्लादेश से आए हिन्दू विस्थापितों को देश में शामिल किया जाना चाहिए तथा जैसे ही उनकी पार्टी सत्ता में आई, तो इनके शिविरों (डिटेंशन कैंप) को खत्म कर दिया जाएगा.मोदी ने असम के रामनगर में एक रैली में कहा था कि जैसे ही हम केंद्र में सत्ता में आएंगे, बांग्लादेश से आए हिन्दुओं को रखने के डिटेंशन कैंप को बंद कर दिया जाएगा.
उन्होंने कहा था कि हमारी हिन्दुओं के प्रति जिम्मेदारी है, जिन्हें अन्य देशों में परेशान एवं उत्पीड़त किया गया है. वे कहां जाएंगे, उनके लिए भारत ही एकमात्र देश है.हमारी सरकार उन्हें परेशान करना जारी नहीं रख सकती.हमें उन्हें यहां समायोजित करना ही पड़ेगा.
गुजरात के मुख्यमंत्री ने कहा था कि इसका यह मतलब नहीं होगा कि असम को पूरा बोझ उठाना पड़ेगा.यह उनके साथ अनुचित होगा तथा उन्हें देश भर में बसाया जाएगा.उन्हें नया जीवन शुरू करने की सुविधा दी जाएगी.उन्होंने असम की कांग्रेस नीत सरकार को वोट बैंक राजनीति में शामिल होने के लिए आड़े हाथ लिया.उन्होंने कहा कि राज्य के लोग समस्या में पड़ गए, क्योंकि सरकार बांग्लादेश से घुसपैठ को रोकने में विफल रही है.
बांग्लादेश में ज्यादातर हिन्दू ही हिंसा और आतंकवाद का निशाना बन रहे हैं ? बांग्लादेश में इस साल हुए आम चुनावों के बाद बहुत से हिन्दू हिंसा और आतंकवाद के शिकार हुए.बीबीसी संवाददाता नितिन श्रीवास्तवजी ने गुरुवार, 9 जनवरी, 2014 को बीबीसी को भेजे एक समाचार में बांग्लादेश में हिंसा और आतंक के शिकार हिंदुओं की बदतर स्थिति का समाचार इस प्रकार से दिया है-
“बांग्लादेश में पांच जनवरी को हुए आम चुनावों के बाद से एकाएक अल्पसंख्यक हिन्दू समुदाय के ख़िलाफ़ बढ़ती हिंसा की ख़बरें आ रहीं हैं.उत्तरी बांग्लादेश के कुछ इलाक़े और दक्षिणी हिस्से के कई गांवों में जब इस तरह की वारदातें हुई तब क़रीब सौ से भी ज़्यादा हिन्दू परिवार अपना घर-बार छोड़ कर भाग गए थे.जो इलाक़े सबसे ज़्यादा प्रभावित बताए गए हैं उनमें जेसोर, देबीगंज, राजशाही, मोईदनारहाट, शांतिपुर, प्रोधनपारा और आलमनगर जैसे ज़िले शामिल हैं.बताया जा रहा है कि अल्पसंख्यक समुदाय के जिन लोगों के ख़िलाफ़ हिंसा की कोशिश हुई हैं, वे ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने बहिष्कार और हड़ताल के आह्वाहन के बावजूद आम चुनावों में जाकर मतदान किया था.
हालांकि बांग्लादेश सरकार और ख़ुद प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने उनके ख़िलाफ़ हो रही कथित हिंसा को रोकने और कार्रवाई पर ज़ोर दिया है लेकिन अभी तक सफलता की ख़बर नहीं मिली है.
सवाल यही उठता है कि क्या सिर्फ़ अल्पसंख्यक समुदाय ही बांग्लादेश में हिंसा का शिकार हो रहा है?
बांग्लादेश में कट्टरपंथियों का बोलबाला है.हिन्दुओ के साथ साथं उन्होंने ऐसे तमाम मुसलमानों को भी निशाना बनाया गया है जिन्होंने चुनावी प्रक्रिया में हिस्सा लिया था.शहरयार कबीर बांग्लादेश के जाने-माने लेखक और कार्यकर्ता हैं. उन्होंने बताया, “ये बात सही है कि जब-जब कट्टरपंथियों का बोलबाला हो जाता है तब-तब अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनना पड़ता है. ऐसा आज से नहीं बांग्लादेश की आज़ादी के बाद कई दफ़ा हो चुका है. कई अन्य देशों की तरह यहाँ भी इन्हे राजनीति की भेंट चढ़ना पड़ता है. ऐसा बिल्कुल नहीं होना चाहिए.”
इतिहास के मुताबिक़ 1947 में जब प्रायद्वीप में बंटवारा हुआ था तब लाखों हिन्दू परिवार यहाँ से पश्चिम बंगाल और उत्तर पूर्वी भारत में गए थे.ऐसे ही कई मुसलमान परिवार थे जो उन हिस्सों से आकर बांग्लादेश में भी बस गए थे.इसके बाद 1950 में तब के पूर्वी पाकिस्तान और आज के बांग्लादेश में साम्प्रदायिक दंगे हुए जिनके बाद अल्पसंखयक हिंदुओं की एक और खेप भारत की ओर रवाना हुई थी.
हिंदूओं पर हमले का इतिहास बताता है कि जब-जब कट्टरपंथियों का बोलबाला हो जाता है तब-तब अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनना पड़ता है. ऐसा आज से नहीं बांग्लादेश की आज़ादी के बाद कई दफ़ा हो चुका है.
इसके बाद बांग्लादेश के अल्पसंख्यक समुदाय के ख़िलाफ़ हिंसा का एक दौर 1971 में आया था जब बड़े हिन्दू नेताओं जैसे ज्योतिरमोय गुहा ठाकुरता, गोबिंद चन्द्र देब और धीरेन्द्र नाथ दत्त जैसों की हत्या फ़ौज के साथ हुई मुठभेड़ में हुई थी.हालांकि ब्राक विश्विद्यालय में प्रोफ़ेसर पियाश करीम के मुताबिक़ एक और पहलू भी है.उन्होंने बताया, “देखिए हिंसा का शिकार तो हर कोई होता है जब रजनीतिक उथल-पुथल होती है. हिन्दू भी हुए हैं और मुसलमान बंगाली भी. लेकिन इसमें पडोसी भारत की नीति भी और अनुकूल हो सकती थी, जिससे सीमा पर शरणार्थियों के साथ बेहतर व्यवहार होता”.
आंकड़ों पर ग़ौर करें तो जहाँ बांग्लादेश में 1971 के दौरान लगभग 25 % आबादी हिंदुओं की थी वहीँ अब 10% के आस पास है.बांग्लादेश में घरेलू राजनीति के जानकार बाताते हैं कि पिछले चार दशक में हिंदुओं के मंदिरों समेत घरों और ज़मीनों को नुकसान पहुंचा है.हालांकि आम तौर पर बांग्लादेश में हिंदुओं को आवामी लीग गठबंधन का समर्थक बताया जाता है.
लेकिन अगर ऐसा है तो फिर सवाल भी कई उठते हैं. जब इस समुदाय के लोगों के ख़िलाफ़ कुछ धार्मिक राजनीतिक दलों ने चुनाव से पहले ही उसमे हिस्सा न लेने की धमकी दे दी थी, तब आवामी लीग सरकार ने इस पर गंभीरता से विचार क्यों नहीं किया?बांग्लादेशी नागरिकों की हैसियत से उनके घरों और परिवारों की सुरक्षा व्यवस्था की ज़िम्मेदारी किसकी थी?सवाल कई हैं लेकिन जवाब कम. बहरहाल अभी तो सरकार के सामने अपने रजनीतिक भविष्य के साथ साथ बांग्लादेश के अल्पसंख्यक समुदाय, जिसमें हिन्दू, ईसाई, बौद्ध शामिल हैं, की सुरक्षा की चुनौती है.”
उधर बांग्लादेश में हिंदुओं कि स्थिति बदतर होती जा रही है तो इधर बांग्लादेशी घुसपैठिये भारत में अवैध तरीके से प्रवेश कर हत्या , लूटपाट , डकैती और बलात्कार जैसी संगीन वारदातों को अंजाम देकर लूट के माल सहित वापस अपने देश भाग जाते है.यहां रहकर ये लोग देश के नागरिकों को उपलब्ध कराई जाने वाली सुविधाओं का भरपूर लाभ उठाते है.वो फर्जी तरीके से राशन कार्ड से लेकर वोटर कार्ड तक बनवा ले रहे हैँ.बांग्लादेशी नागरिक देश की राजधानी दिल्ली सहित देश के अनेक शहरों में में अवैध रूप से रह रहे हैं.बांग्लादेशी नागरिकों के मुद्दे पर देश की अदालतें भी सरकार पर कई बार बहुत तीखा कमेंट कर चुकीं हैँ.परन्तु वोट बैंक की गन्दी राजनीती के चलते ये समस्या हल होने की बजाय दिनोदिन और बढ़ती ही जा रही है.भारत में जारी बांग्लादेशियों की घुसपैठ देश की शांन्ति और सुरक्षा के लिए एक बहुत गंभीर खतरा बनती जा रही है.इस तरह की घुसपैठ पर अंकुश लगाने के लिए न केवल राजनैतिक हस्तक्षेप बल्कि सरकार को तत्काल प्रभाव से कड़े कदम भी उठाए जाने की जरूरत है. बांग्लादेशी घुसपैठिओ की पहचान कर उन्हें देश से बार भगाया जाये.बांग्लादेश और पाकिस्तान से आये से आए हिन्दू विस्थापितों को पूरे सम्मान और गरिमा के साथ देश में शामिल किया जाना चाहिए.उनके लिए भारत ही एकमात्र देश है जहाँ उन्हें ठिकाना मिल सकता है.
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आलेख,संकलन और प्रस्तुति=सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६.
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