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दिगम्बर खेलें मसाने में होरी – जागरण जंक्शन फोरम

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बाबा वि‍श्‍वनाथ त्रि‍लोक से न्यारी नगरी काशी में हमेशा विराजते हैं.वो त्रिगुणातीत अवस्था में लीन रहते हुए प्रलय होने के बाद भी अपने गणों के साथ काशी में मौजूद रहते हैं,इसीलिए कहा जाता है कि काशी भगवान शिव के त्रिशूल पर टिकी हुई है.और इसका कभी विनाश नहीं होगा.काशी में भगवान शिव अपने भक्तों के साथ होली खेलते हैं.प्रलय होने के बाद भी वो अपने गणों के साथ होली खेलते हैं.काशी में सब देवी देवता मंदिर में और भगवान शिव श्मशानघाट में निवास करना पसंद करते है,जहाँ पर वो भूत-पिशाचो के संग होली खेलते हैं. एक लोकगीत के माध्यम से इस अनूठी होली का वर्णन प्रस्तुत है.
खेलें मसाने में होरी, दिगम्बर खेलें मसाने में होरी
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खेलें मसाने में होरी, दिगम्बर खेलें मसाने में होरी
भूत पिशाच बटोरी, दिगम्बर खेलें मसाने में होरी

जी हाँ,दिगम्बर भगवान शिव श्मशानघाट में उत्सव और मौजमस्ती मना रहे हैं.भूत-पिशाचो को बटोरकर वो होली खेल रहे हैं.भगवान शिव श्मशान में उत्सव मनाकर हम सबको समझाना चाह रहे हैं कि एक दिन सबको यहीं आना है.वो कहते हैं कि-भस्मातम शरीरम अर्थात सबके शरीर ने एकदिन यहीं आना है और जलकर भस्म हो जाना है.श्मशान और मृत्यु का सामना जब एकदिन निश्चित रूप से करना ही है तो फिर उससे भय क्या करना ?भगवान शिव श्मशान की और मृत्युप्रयन्त भी जारी जीवन की महत्ता दर्शाना चाह रहे हैं,इसीलिए श्मशान में उत्सव मना रहे हैं.
लखि सुन्दर फागुनी छटा के
मन से रंग गुलाल हटा के
चिता भस्म भर झोरी, दिगम्बर खेलें मसाने में होरी
भूत पिशाच बटोरी, दिगम्बर खेलें मसाने में होरी

जिस चिता की भस्म को आदमी छूने से भी डरता है.भगवान शिव और उनके गण उसी चिता भस्म को अपनी झोली में भरकर होली खेल रहे हैं.भगवान शिव के प्रसन्न होकर होली खेलने के कुछ व्यक्तिगत कारण भी हैं.काशी में भगवान शिव को अविनाशी होने के कारण बुढ़वा बाबा भी कहा जाता है.होली के बाद पड़ने वाले मंगल को बुढ़वा मंगल उत्सव का आयोजन होता है.शास्त्रों और पुराणों के अनुसार प्राचीन कल में बसंत पंचमी को बुढ़वा बाबा यानि भगवान शिव का तिलक हुआ था.शिवरात्रि को विवाह हुआ था और फागुन मास की रंग भरी एकादशी को गौना हुआ था.इस दिन माता पार्वती अपनी ससुराल काशी आई थीं.इसी ख़ुशी में हर वर्ष प्रतीक रूप में यानि शिव-पार्वती के विग्रह स्वरुप के साथ ये त्यौहार मनाया जाता है.रंग भरी एकादशी के दिन रंगों और गुलालों से काशी नहा उठती है.ये रंग तब चटकीला हो जाता है,जब रंग बाबा और मां पार्वती के पवित्र विग्रहस्वरुप पर पड़ता है.शास्त्रो और पुराणों के अनुसार अनुसार देव लोक के सारे देवी देवता इस दिन स्वर्गलोक से बाबा के ऊपर गुलाल फेंकते हैं.
गोप न गोपी श्याम न राधा
ना कोई रोक ना कवनो बाधा
अरे ना साजन ना गोरी, दिगम्बर खेलें मसाने में होरी
भूत पिशाच बटोरी, दिगम्बर खेलें मसाने में होरी

श्याम-राधा,गोप-गोपीभाव और पति-पत्नी आदि इन सब भावो से ऊपर उठकर भगवान शिव अपने गणों के साथ होली खेल रहे हैं.यहांपर ये बताने की कोशिश की गई है की समदर्शिता से भी उँचभव समवर्तिता है,जो भगवान शिव के ही दरबार में सम्भव है.ये भावना और कहीं दृष्टिगोचर नहीं होती है.फाल्गुन शुक्ल-एकादशी से काशी में होली का प्रारंभ हो जाता है,जो होली के बाद बुढ़वा मंगल तक जारी रहता है.फाल्गुन शुक्ल-एकादशी को रंगभरी एकादशी कहा जाता है.काशी में इस दिन बाबा विश्वनाथ का विशेष शृंगार होता है.इस दिन अपने पवित्र विग्रह स्वरुप के माध्यम से भगवान शिव खुद अपने भक्तों के साथ होली के रंगों में सराबोर हो जाते हैं.
नाचत गावत डमरूधारी
छोड़े सर्प गरल पिचकारी
पीटें प्रेत थपोरी, दिगम्बर खेलें मसाने में होरी
भूत पिशाच बटोरी, दिगम्बर खेलें मसाने में होरी

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डमरूधारी भगवान शिव नांच गा रहे हैं और उनके दरबार में जहरीले सर्प पिचकारी कीतरह से जहर छोड़ रहे हैं.सब भूत-पिशाच ताली बजाकर अपने मन की ख़ुशी दर्शा कर रहे हैं.भगवान शिव का डमरू काल की चेतावनी है.वो हम सबको चेतावनी दे रहा है की चंद रोज का जीवन है,इसीलिए अपने मन में क्यों किसी के प्रति क्रोध और ईर्ष्या रूपी जहर भरे हो,उसे विष समझकर अपने मन से बाहर निकाल दो.फाल्गुन शुक्ल-एकादशी के पावन दिन पर बाबा की चल प्रतिमा का दर्शन भी श्रद्धालुओं को होता है.बाबा के विग्रह का दर्शन करने के लिए काशी संकरी गलियों में लाखों श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ता है. हर भक्त के मन में बस यही इच्छा रहती है कि रंग भरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ के साथ होली खेली जाये.ऐसी आस्था और विश्वास का अद्भुत संगम देश विदेश में कहीं भी देखने को नहीं मिलता,जहांपर देवो के देव खुद भक्तों के साथ होली खेलते हों.
भूतनाथ की मंगल होरी
देखि सिहायें बिरज की छोरी
धन धन नाथ अघोरी, दिगम्बर खेलें मसाने में होरी
भूत पिशाच बटोरी, दिगम्बर खेलें मसाने में होरी

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भगवान शिव की भेदभाव विहीन होली सारे संसार का मंगल करने वाली है.सदा गोपी भाव में अर्थात अद्वैत भाव में लीन रहने वाली बृज की गोपिया भी भगवान शिव की होली देखकर हैरान हैं.गोपिया कहती हैं सबमे हमारे श्याम को देखो और भगवान शिव कहते हैं की सबमे अपनेआप को देखो.हे अघोरी बाबा,आप धन्य हैं.आप सबका हित करें.जो इस भजन को पढ़े,सुने और इसके समवर्ती सन्देश पर अमल करे,आप उन सबका कल्याण करें.
फाल्गुन शुक्ल-एकादशी के पावन दिन पर बाबा की चल प्रतिमा का दर्शन भी श्रद्धालुओं को होता है.बाबा के विग्रह का दर्शन करने के लिए काशी संकरी गलियों में लाखों श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ता है. हर भक्त के मन में बस यही इच्छा रहती है कि रंग भरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ के साथ होली खेली जाये.ऐसी आस्था और विश्वास का अद्भुत संगम देश विदेश में कहीं भी देखने को नहीं मिलता,जहांपर देवो के देव खुद भक्तों के साथ होली खेलते हों.भले बाबा की कृपा आप सबपर सदैव बनी रहे.आप सब को होली की बहुत बहुत बधाई.
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आलेख,संकलन और प्रस्तुति=सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६.
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