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प्रेम की तलाश एक दार्शनिक के साथ-संस्मरण-भाग १
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सुचित्रा मेरी एक पुरानी मित्र हैं,जो दर्शनशास्त्र में शोध की हुई हैं और पिछले कई वर्षों से वो इसी विषय में पढ़ा भी रही हैं.शनिवार को लगभग पूरा दिन मैंने उनके साथ बिताया.मेरा सौभाग्य है कि वो मेरी रचनाओं को बड़े ध्यान से पढ़ती हैं और बातों बातों में ही अपने निराले ढंग से आलोचना भी करती हैं.ऐसी आलोचना जो मेरा सिर चकरा देती है.मैं भी अपनी बात को तर्कसंगत ढंग से उनके सामने रखता हूँ.चार भागों में रचित ये संस्मरण उन्हें ही समर्पित है.
हर साल मेरी श्रीमतीजी होली के अवसर पर अबीर लगते हुए मुझसे शिकायत करती थीं कि-यहाँ पर तो कोई रंग से होली खेलता ही नहीं है..लोग सिर्फ अबीर लगवा लेते हैं..होली तो मेरे मायके में खेली जाती है..एक बार आप होली के अवसर पर ससुराल चलें तो पता चले कि होली कैसे खेले जाती है..
होली के अवसर पर ससुराल जाकर मैं अपनी दुर्दशा नहीं करना चाहता था,इसीलिए होली के अवसर पर आजतक कभी गया नहीं.इस बार मेरी श्रीमतीजी को अपने मायके में होली खेलने का अवसर मिल गया है.उन्होंने मनौती मान रखी थीं,इसीलिए होली से पहले एक देवस्थान पर बिटिया के बाल उतरवाना जरुरी था.मेरी छोटी बहन अपनी बच्ची के साथ होली पर आई हुई हैं.उसने घर का सब काम सम्भाल लिया है,परन्तु माताजी के सामने मेरी पत्नी को रोज एक बार जी भर के कोस लेती हैं-भाभी को भी अभी मायके जाना था..सोचा था कि कुछ दिन मायके जाकर आराम करुँगी,पर यहाँ आकर पता चला कि भाभी मायके चली गईं हैं..यहाँ भी वही चूल्हा चौका..वही सुबह से शाम तक काम में खटते रहो..
कल उन्होंने मुझसे कह ही दिया-भैया..आपने भाभी को मायके क्यों जाने दिया..आपको भी तो बहुत परेशानी हो रही होगी..
मैंने मुस्कुराने के सिवा कोई जबाब नहीं दिया.मन में सोचने लगा कि दोनों के साथ रहने पर जो परेशानी पैदा होती,उस परेशानी को झेलने से तो लाख गुना अच्छा ये परेशानी झेलना है.दोनों की अपने अपने अहम् वाली स्थिति ठीक वही है,जो रहीम साहब ने कही है-कह रहीम कैसे निभे बेर केर को संग..
उनके आने से पहले ही मेरे ससुरजी आये और मेरी पत्नी व् बिटिया को लेकर चलें गए.मेरी पत्नी शायद अपनी ननद का सामना नहीं करना चाहती थीं.दोनों के बीच कई सालो से चला आ रहा वैचारिक मतभेद है.जाते समय जब मेरी पत्नी मेरे पास आईं तो मैंने उनसे कहा कि-इस बार होली आप मायके में खेल के आइये.हर साल होली पर आप को शिकायत रहतीं है कि यहाँ पर कोई रंग नहीं खेलता है.इस बार मायके में खूब जी भरके रंग खेल के आइये..
उन्होंने व्यंग्य से मुस्कुराते हुए पूछा था-आप मेरे और बिटिया के बिना इतने दिन रह लेंगे..
मज़बूरी है..रहना ही पड़ेगा..-मैंने कहा था.
उनके जाने एक दो दिन थोड़ी परेशानी हुई.रसोई में माताजी की मुझे थोड़ी मदद करनी पड़ी.माताजी के मांजे बरतनो को मुझे दोबारा पानी से साफ करना पड़ा,क्योंकि उसमे साबुन लगे हुए थे.सत्तर वर्ष की उम्र में उनकी नजदीक की नज़र कमजोर चुकी है.मैं चाहता तो किसी शिष्य की मदद ले सकता था ,लेकिन मेरी पत्नी मायके जाते जाते मुझसे ये वचन ले गईं कि मेरा कोई शिष्य उनकी रसोई में नहीं घुसेगा.वो अपनी रसोई को मेरी आध्यात्मिक छाया से बचा के रखती हैं कि कहीं मैं शिष्यों को बना खिला के उनकी मनपसंद चीजें ख़त्म न कर दूँ.उनकी अपनी फिलोसॉफी है कि पहले स्वयं का ध्यान रखना चाहिए,फिर किसी दुसरे के बारे में सोचना चाहिए.जबकि इसके ठीक विपरीत मैं सोचता हूँ.मेरी पूरी कोशिुश रहती है कि मेरे प्रयास से पहले दूसरों का दुःख दूर हो.अपना व्यक्तिगत दुःख मैं झेलने का आदि हो चूका हूँ.खैर..जो परेशनी हुई सो हुई..अब छोटी बहन के आ जाने के बाद घर गृहस्थी के दैनिक कार्य सामान्य ढंग से चलने लगे हैं.
शनिवार को दोपहर बारह बजे सुचित्रा ने फोन किया कि आज उसकी छुट्टी है और वो अपनी सहेली के साथ मिलने के लिए आना चाहती है.उसने मुझसे मिलने का समय माँगा.मैं कुछ जबाब देता उससे पहले ही फोन कट गया.उस समय उसके घर से थोड़ी दूर पर चस्मे की एक दुकान में मैं बैठा था.मैंने अपना चश्मा ठीक कराने को दिया था,जो ठीक हो गया था.दुकानदार को रूपये देकर मैं अपने शिष्य विवेक के साथ दुकान से बहार आ गया.
मोबाइल की घंटी फिर बजने लगी.फिर सुचित्रा की आवाज कानो में गूंजने लगी-प्लीज,बहुत जरुरी काम है.मुझे थोडा समय चाहिए.
मैं आज बहुत बीजी हूँ..-इतना कहकर मैंने फोन काट दिया और विवेक से मैंने अपने आफिस जाने को कहा.वो जिद करने लगा कि चलिए मैं आपको आपके घर तक छोड़ दूँ.किसी तरह से समझा बुझाकर मैंने उसे विदा किया.मुझे दो तीन लोगों से मिलना था.मैंने कुछ देर सोचा और फिर सारे कार्यक्रम केंसिल कर दिए,हालाँकि इससे मुझे नुकसान होना निश्चित था,परन्तु मैंने इन सबसे ऊपर उठकर अपनी पुरानी दोस्ती को तरजीह दी और सुचित्रा के घर की तरफ चल पड़ा.
रास्ते में मैंने एक रेडीमेड कपडे की दुकान से सुचित्रा की बिटिया के लिए सफ़ेद रंग का एक फ्रॉक लिया.एक मिठाई की दुकान से आधा किलो बर्फी मैंने ले लिया.सब सामान हाथ में लिए हुए मैं सुचित्रा की कालोनी में प्रवेश किया.गैरेज में सुचित्रा की नीले रंग की कार मौजूद थी.मैं उसके फ़्लैट के दरवाजे के पास पहुंचा.इससे पहले कि मैं कालबेल दबाता,उसके सामने के फ़्लैट से एक अधेड़ महिला निकलीं और आकर अभिवादन करने लगीं.मैं उन्हें पहचान गया.अपनी लड़की की शादी के सिलसिले में वो कई बार आ चुकी थीं.
आपकी लड़की की शादी हो गई..मैंने पूछा.
वो हाथ जोड़कर बोली-जी..बहुत अच्छी जगह हो गई..आपकी कृपा है..मैं बेटी को लेकर आउंगी..आप चलिए हमारे यहाँ चाय पीजिये..
नहीं..आज नहीं फिर कभी सही..आज मैं सुचित्रा की बिटिया को देखने आया हूँ..-मैं बोला.
आप उसे जाकर जरुर आशीर्वाद दीजिये..आपने ही तो उसे वो बच्ची दिलाया है..आप उस बच्ची के धर्मपिता हैं..आपके सिवा और उसकी एक सहेली के सिवा कोई उसके यहाँ आता जाता भी नहीं है..वो किसी से मतलब भी नहीं रखती है..-वो एक साँस में सब बोल गईं और फिर हाथ जोड़कर चलती बनीं.
मैं सुचित्रा के फ़्लैट की कालबेल दबा दिया.मैं सोचने लगा कि बच्ची मैंने दिलाई नहीं..फिर सुचित्रा क्यों सबसे कह रही है कि उसकी बच्ची को मैंने दिलाया है..मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था..
तभी दरवाजा खुला और काली साड़ी में लिपटी सुचित्रा अपने सामने मुझे देख आश्चर्य और ख़ुशी से सराबोर होकर झट से झुककर मेरा पैर छूते हुए बोली-आप..मुझे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा है..
मैं कुछ न बोलकर उसके आटा लगे हाथों को देखकर मुस्कुराते हुए भीतर ड्राइंगरूम में आ गया.पैरों में पहनी चप्पल मैंने दरवाजे के बाई तरफ दिवार से सटाकर उतार दिया.वो दरवाजा बंद करते हुए बोली-मैंने तो सोचा भी नहीं था कि आज आप इतना बड़ा सरप्राइज मुझे देंगे..मैं तो आपको फिर से फोन करने जा रही थी..आज पता नहीं क्यों आपका दर्शन करने की बहुत इच्छा हो रहीं थी..
एक सरप्राइज और है..और वो ये कि आज मैं तुम्हारे हाथों की बनीं दो रोटी भी खाने वाला हूँ..आज घर से मैं खाना खा के नहीं चला हूँ..-मैं बोला.
ये सुनकर सुचित्रा का अधेड़ सुंदर चेहरा ख़ुशी से चमकने लगा.वो मुस्कुराते हुए बोली-ये तो मेरा सौभाग्य है..आज आपको आना था..इसीलिए आटा भी ज्यादा सन गया है..पर मेरे यहाँ खाने से घर जाने पर दीदी नाराज तो नहीं होंगी..
वो बिटिया को लेकर सोमवार को मायके गई हैं..होली के बाद लौटेंगीं..-मैं बोला.
चार दिन से आप बूढी माताजी से खाना बनवा रहे हैं..आप मुझे सिर्फ फोन कऱ दिए होते..खाना मैं पहुंचा देती..-सुचित्रा नाराज होते हुए बोली.
मेरी माताजी के सामने उन्हें बूढी मत कहना..नहीं तो बुरा मान जाएँगी..उन्हें नजदीक की चीजें ठीक से दिखाई नहीं देती हैं..लेकिन चश्मा पहनने को कहो तो उन्हें बुरा लगता है..उनसे ठीक से चला नहीं जाता है..लेकिन छड़ी ले के चलने को कहो तो उन्हें बुरा लगता है..वो सोचती हैं कि वो अभी बूढी नहीं हुई हैं..
सुचित्रा हँसते हुए बोली-मेरी मम्मी का भी यही हाल है..वो कुछ रूककर बोली-मैं खाने के विषय में पूछ रही थी..
कल छोटी बहन आ गई थीं..लेकिन आज वो सुबह खाना बना के अपनी बड़ी बहन से मिलने गई है..वो कल सुबह लौटेंगी..आज रात का खाना मैं यहीं खा के घर जाउंगा..अब उम्मीद है कि कल से कोई समस्या नहीं होगी..आज तुम्हारे यहाँ खाना खाऊंगा..-मैं पालने के करीब पहुँचते हुए बोला.बच्ची पालने में सो रही थी.
सुचित्रा खुश होते हुए बोली-ये मेरा सौभाग्य है कि बहुत दिनों के बाद आज आपको अपने हाथों से बना के खिलाऊँगी..और माताजी के लिए भी आज रात का खाना बना दूंगी..
पालने के पास पड़ी मेज पर मैंने फ्रॉक का पैकेट रखते हुए कहा-ये मेरी तरफ से प्रीति बिटिया के लिए हैं..तुम्हारी कालोनी में आया तो मुझे पता चला कि तुमने इस बच्ची का धर्मपिता मुझे बना दिया हैं..
तो आपको पता चल ही गया..मैं आपसे खुद इस बारे में बात करने वाली थी…मैंने आपको बिना बताये इस बच्ची का धर्मपिता बना दिया और सबसे कह भी दिया..मुझे माफ़ कीजियेगा..मैं भी क्या करती..सबके सवालों से बहुत परेशान हो गई थी..सब यही पूछते थे कि ये बच्ची कहाँ से लाई हो..इसके माँ बाप कौन हैं..किस जाति और धर्म की हैं..मैंने आपको इसका देनहार और धर्मपिता बताकर सबके सवालों से छुट्टी पा लिया..आप से कोई जा के पूछे कि ये बच्ची किस जाति और धर्म की है..आप समर्थ हैं..आपके पास जाकर ये सब सवाल पूछने की हिम्मत किसी में भी नहीं हैं..-सुचित्रा मेरे पास आते हुए बोली.
ठीक हैं..अगर ऐसी बात है तो आज से आजीवन इस बच्ची का धर्मपिता बनकर मैं अपना फ़र्ज़ निभाऊंगा..-सोती हुई मासूम बच्ची के सिर पर अपना हाथ रखते हुए मैं बोला.बच्ची को आशीर्वाद देकर मैंने मिठाई का पैकेट सुचित्रा के हाथों में पकड़ा दिया.
मुझे हमेशा आप पर नाज़ रहा हैं..आप मेरे गुरु भी हैं और सबसे अच्छे दोस्त भी हैं..ये आपकी कृपा है कि मैं आज भी जीवित हूँ..मैंने तो प्रेम में असफल होने के बाद ही संसार छोड़ने का मन बना लिया था..लेकिन आपने मेरे सूने जीवन में दोस्ती का ऐसा रंग भरा कि मैं हँसते हुए जीना सीख गई..-सुचित्रा भावुक होने लगी..उसकी आँखे भर आईं.
बार बार मेरा मोबाइल बज रहा था.मैंने मोबाइल जेब से निकालकर कानो से लगाया.आश्रम के सचिव का फोन था.पूछ रहे थे कि-आप इस समय कहाँ पर हैं..कुछ लोग आपसे मिलना चाहते हैं..आज मैं किसी से नहीं मिल पाउँगा..मुझे लौटने में रात हो जायेगी..आप उन्हें होली के बाद आने को कहियेगा..-मैं इतना कहकर मैंने फोन काट दिया और मोबाइल जेब में रख लिया.
सुचित्रा बहुत भावुक हो गई थी.मैंने उसकी भावुकता को तोडना चाहा-माताजी कहाँ हैं..
वो अपनी आँखे पोछते हुए बोली-अपने घुटने की दवा लेने गई हैं..उनके घुटने का दर्द आजकल बहुत बढ़ गया हैं..मुझे अपनी सहेली को लेकर आपके पास आना था..उसका कुछ जरुरी काम हैं..इसीलिए मैं मम्मी के साथ नहीं गई..
अपनी सहेली को फोन करके यही बुला लो..मैं उनकी समस्या सुनकर अपनी सलाह दे दूंगा..-मैं बोला.
नहीं..मैं उसे अभी नहीं बुलाऊंगी..मैं उसे लेकर किसी दिन आपके पास आउंगी..आज आपने जो समय मुझे दिया है,वो सिर्फ मेरे लिए है.. -सुचित्रा मुस्कुराते हुए बोली.
बहुत स्वार्थी हो..-मैंने उसे चिढ़ाने के लिए कहा.
व्यक्तिगत मामलों में स्वार्थी होना जरुरी है..नहीं तो उनसे मुक्ति कैसे मिलेगी..-सुचित्रा रसोई की तरफ जाते हुए बोली.
मुझे नहीं लगता है कि व्यक्तिगत इच्छाएं कभी समाप्त होती हैं..व्यक्तिगत इच्छाओं से क्या आज तक किसी को मुक्ति मिली है..-मैं उसके पीछे पीछे आते हुए पूछा.
सुचित्रा रसोई के भीतर प्रवेश करते हुए बोली-ओरों की तो मैं नहीं जानती..परन्तु आजकल अपने ऊपर कुछ प्रयोग मैं कर रही हूँ..उसमे सफलता के लिए आपका सहयोग चाहिए.ये कहकर सुचित्रा गैस चूल्हा जलाकर उसपर तवा रख दी और फिर मेरी तरफ देखने लगी.
कैसा सहयोग चाहिए..-मैंने उसे देखते हुए पूछा.
बताउंगी,,पर अभी नहीं..-वो मेरी तरफ देख रहस्यमय् ढंग से मुस्कुराते हुए बोली.
कोई ऐसा प्रयोग मुझपर मत करना कि मुझे गंगाजी में जाकर कूदना पड़े..-मैं बोला.
सुचित्रा रोटी बेलते हुए हंस पड़ी और फिर मेरी तरफ एक नज़र डाल पूछने लगी-आप दीदी से भी ऐसा ही व्यवहार करते हैं..
हाँ..कभी भी आकर देख सकती हो..मेरा व्यवहार हमेशा विनोदपूर्ण और संयमित रहता है..परन्तु उनका व्यवहार हमेशा एक जैसा नहीं रहता है..वो उनके स्वार्थ के अनुसार बदलता रहता है..-मैं जो कुछ सच था,कह दिया.
मेरे बारे में आपकी क्या राय है..-सुचित्रा ने उत्सुकता से पूछा.
तुम्हारी कालोनी के लोग तो तुम्हे घमंडी और मतलबी समझते हैं और तुम्हारे कालेज के लोग तुम्हे बहुत स्ट्रिक्ट और रिज़र्व समझते हैं..-मैं उसे गुस्सा दिलाने के लिए बोला.
वो चिढ़ी नहीं,मुस्कुराते हुए बोली-मैं दूसरों की नहीं,बल्कि आपकी राय जानना चाहती हूँ..
मैं ईमानदारी से बोला-कुछ तो तुममे जरुर विशेष आकर्षण है..जो मुझे यहाँ खिंच लाता है..
मुझे लगता है कि वो विशेष आकर्षण हमारी वर्षो पुरानी गहरी दोस्ती है..
सुचित्रा का चेहरा ख़ुशी से चमकने लगा.वो मेरी तरफ देख मुस्कुराते हुए बोली-मैंने इसी दोस्ती के सहारे बाईस वर्ष बिता दिए..अबतक हर सुखदुख में आपने मेरा साथ दिया है..
मैं कुछ बोलने जा रहा था,लेकिन तभी जेब में रखे मोबाइल की घंटी बजने लगी.मैं मोबाइल जेब से निकाल कानो से लगा लिया.किसी महिला की आवाज था-प्रणाम..मैं आज अपने पति के साथ आपके पास आना चाह रही थी..मुझे कुछ समय दीजिये..
आज नहीं..आप होली के बाद आइये..-मैंने फोन काट दिया.
मोबाइल जेब में रखना चाहा तो फिर घंटी बजने लगी.आज सुबह से मोबाइल का ज्यादा प्रयोग होने से मेरा कान दर्द कर रहा था.मैं स्पीकर का स्विच आन कर फिर मोबाइल कानो से लगा लिया-हेल्लो..गुरूजी प्रणाम..आप पहचान रहे हैं न कि मैं कौन बोल रही हूँ..मुझे भूल गए हैं क्या..अगर भूल गए हैं तो मुझे बहुत दुःख होगा..आपका फोन ही नहीं लगता है..
मैं आवाज से नहीं पहचान पाया कि किसका फोन है.असमंजस में पड गया कि क्या कहूं.उसे दुःख न हो कि मैंने उसे पहचाना नहीं इसीलिए मैंने फोन काट दिया और मोबाइल स्विच आफ कर जेब में रख लिया.
सुचित्रा मेरी तरफ देख हँसते हुए बोली-कौन है ये लड़की..
मैं उसकी आवाज से पहचान नहीं पाया..मैंने कहा.
मुझे अपना सेक्रेटरी बना लीजिये..आपके सभी फोन काल मैं बेहतर ढंग से मैनेज कर लूंगी..-सुचित्रा एक थाली में खाना लगाते हुए बोली.
मैं कुछ बोला नहीं,उसकी बात सुनकर सिर्फ मुस्कुरा दिया.मैं जीभ से अपने होंठ का छाला स्पर्श करते हुए बोला-सब्जी कम निकालना..मेरे होंठ में छाला पड़ा हुआ है..पता नहीं किसका जूठा खा लिया है..
सुचित्रा हंसने लगी-दीदी तो हैं नहीं..फिर आपने किसका जूठा खा लिया..
मैं कुछ बोला नहीं.वो बोल तो गई थी लेकिन उसे अपनी गलती का एहसास हुआ.अपनी जीभ निकाल अपने दांत से दबाने लगी.मुझसे कुछ देर नजर नहीं मिलाई,फिर बोली-चलिए खाना खा लीजिये..
मैं रसोई में हाथ धोकर उसके कमरे में आ गया.मैं बिस्तर पर बैठकर शीशेवाली सेंटर टेबल अपने नजदीक खिंच लिया.सुचित्रा एक गिलास पानी और खाना लाकर टेबल पर रखते हुए बोली-आज रात को मैं अपनी मनपसंद चीजें बना के आपको खिलाऊँगी..कितने दिन बाद आपने ये मौका मुझे दिया है..
बहुत ज्यादा परेशान मत होना..गैस्टिक की वजह से मैं आजकल सादा भोजन कर रहा हूँ..-मैं बोला.फिर मैंने उससे पूछा-तुम अपने लिए भी खाना ले के आओ..साथ बैठ के खाते हैं..
आप खाइये..मैं नहाने के बाद खाऊँगी..-सुचित्रा कुर्सी मेरे नजदीक खींचकर बैठते हुए बोली.
दोपहर का एक बज रहा है और अभी तक नहीं नहाई हो..-मैं आश्चर्य से पूछा.मैं जानता था कि उसे सुबह छे बजे नहाने की आदत है.
आज मैं घर की सफाई कर थी,इसीलिए नहीं नहा पाई-सुचित्रा बोली.
मेरी थाली में चार रोटियां थीं मैं दो रोटिया निकालकर सुचित्रा की तरफ बढ़ा दिया-मैं दो ही रोटियां खाऊंगा..इसे रसोई में रख दो..या फिर एक प्लेट ले के आओ..
सुचित्रा मुस्कुराते हुए बोली-आप खाइये..जो बचेगा मैं खा लूंगी..
नहीं..तुम्हे मालूम है कि अपना जूठा भोजन मैं किसी को भी नहीं खाने देता हूँ..यहाँ तक कि अपनी पत्नी को भी नहीं..फिर भी ऐसी बात कह रही हो..-ये कहकर मैं रोटियां उसके हाथों में रख दिया.उसे अच्छा नहीं लगा,लेकिन खामोश रही.
मैं भगवान को भोग लगाया और खाने लगा.कमरे में ख़ामोशी छाई हुई थी.कुछ देर बाद बच्ची के रोने की आवाज आई.सुचित्रा कुर्सी से उठकर चली गई.वो काफी देर बाद लौटी तबतक मैं खाना खा चूका था.
आपके लिए कुछ और लाऊं..-सुचित्रा जूठी थाली उठाते हुए पूछी.
नहीं..बिटिया क्यों रो रही थी..-मैं बिस्तर से उठते हुए पूछा.
पिशाब की थी..और उसे भूख भी लगी थी..-सुचित्रा बोली.
विभा कहाँ है..-मैं उसकी नौकरानी के बारे में पूछा.
वो अपने घर गई है..शाम को आएगी..-सुचित्रा रसोई की तरफ जाते हुए बोली.
मैं बाथरूम की तरफ चल दिया.थोड़ी देर बाद जब मैं कमरे में वापस लौटा तो देखा कि सुचित्रा लूडो बोर्ड बिस्तर पर फैलाकर बैठी थी.उसने मुस्कुराते हुए मुझे निमंत्रण दिया-आइये लूडो खेलिए..आपके साथ लूडो खेले बहुत दिन हो गए..
मैं जाकर बिस्तर पर उसके सामने बैठ गया.आज बहुत दिनों के बाद सुचित्रा के साथ लूडो खेलने का मौका मिला था.मैंने चार हरी गोटी (टोकन) लिया और उसने चार पीली गोटियां लीं.पांसा (डाइस) सुचित्रा के हाथ में था.
उसने मुस्कुराते हुए कहा-लेडीज फर्स्ट..
मैंने हाँ में सिर हिला दिया.वो पांसा फेंकी तो छे आया.वो पांसा फेंकती गई और तीन बार लगातार छे आता गया.उसकी एक गोटी काफी आगे निकल गई.मेरे पांसा फंकने पर एक दो तीन ही आता रहा.कुछ ही देर में उसकी दो गोटियां सेंटर में पहुँच गईं और मेरी पहली गोटी अभी रास्ते में ही थी.वो मुझे चिढ़ाने के लिए मुस्कुरा रही थी और मुझे बुरा लग रहा था.
कालबेल की घंटी बजी तो सुचित्रा उठते हुए बोली-कोई बेईमानी मत कीजियेगा..मैं अभी आई..अब चलने की बारी मेरी है..मैं पांसा ले जा रही हूँ ताकि आप ये न कहें कि मेरी बारी है..
वो सारी व्यवस्था करके गई कि मैं कोई गड़बड़ी न कर संकू और उसे गुस्सा दिलाने के लिए मैंने लूडो बोर्ड धीरे से खिसकाकर पलट दिया.अब उसकी पीली गोटियां मेरी थीं और मेरी हरी गोटियां उसकी थीं.सुचित्रा मुस्कुराते हुए थोड़ी देर में आई .वो अपने होंठो पर अंगुली रख मुझे चुप रहने का ईशारा कर दरवाजे को अपनी तरफ खींचते हुए बाहर से बंदकर दी.
शेष अगले ब्लॉग में..
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(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)
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