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प्रेम की तलाश एक दार्शनिक के साथ-संस्मरण-भाग २

सद्गुरुजी
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प्रेम की तलाश एक दार्शनिक के साथ-संस्मरण-भाग २
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मुझे उसकी ये हरकत अच्छी नहीं लगी.चुपचाप अकेले बैठकर मैं उसके आने का इंतजार करता रहा.तभी मुझे घर की और माताजी की याद आई.मैं जेब से मोबाइल निकालकर घर पर फोन मिलाया और बहुत धीमे स्वर में अपनी माताजी से बात किया.मैंने उन्हें बता दिया कि मैं दोपहर का खाना खा चूका हूँ.आप भी खाना खा लें.मैं रात को आठ नौ बजे तक घर लौट आउंगा.आप मेरी चिंता न करें.
लगभग एक घंटे के बाद बाहर से बंद दरवाज़ा खुला.सुचित्रा मुस्कुराते हुए कमरे में प्रवेश कर बोली-सॉरी..मेरी सहेली आ गई थी..आज उसे लेकर आपके यहाँ चलना था..वो मेरे फोन का इंतजार करते करते यहाँ आ गई..वो आपके यहाँ चलने के लिए जिद कर रही थी..विभा के न आने का बहाना बनाकर मैंने बड़ी मुश्किल से उससे पीछा छुड़ाया..
तुमने अपनी सहेली से झूठ बोलकर बहुत गलत काम किया..मुझसे मुलाकात करानी चाहिए थी..हो सकता है कि उसे मुझसे कोई जरुरी काम रहा हो..-मैंने अपनी नाराजगी प्रगट की.
सुचित्रा मुझे समझाते हुए बोली-मैं आपको आज पूरा आराम देना चाहती थी..दिनभर आप एक आसान में बैठते हैं..यही वजह है कि आपको सर्वाइकल स्पोंडिलाइटिस की प्राब्लम हो गई है..आप क्यों इतनी मेहनत करते हैं..कोई प्राब्लम हो तो मुझसे कहिये..
उसकी बात सुनकर मेरे ह्रदय को बहुत ठेस लगी.मैं दुखी होकर बोला-तुम मेरे स्वाभिमान पर चोट मत करो..नहीं तो मैं यहाँ पर आना बंद कर दूंगा..अर्पिता ने भी यही गलती की थी..अपनी नानी से बहुत बड़ी सम्पति पा के बौरा गई थी और मेरे स्वाभिमान पर प्रहार करना शुरू कर दी थी..सबसे बड़ी चोट उसने तब किया था,जब अपने गर्भ में पल रहे मेरे तीन माह के बच्चे को उसने गिरवा दिया था.. और मेरा स्वाभिमान टूटकर ऐसा बिखरा कि आज तक पूरी तरह से जुड़ नहीं पाया..
सॉरी..मुझे माफ़ कर दो..मैं आपके साथ अधिक से अधिक समय बिताना चाहती थी..इसीलिए बहाना बनाकर मैंने उसे विदा कर दिया..-सुचित्रा अपनी गलती स्वीकारते हुए बोली.
किसी को समय दिया है तो उससे मुलाकात जरुर करना चाहिए..आज मैंने किसी को भी मिलने का समय नहीं दिया था..इसीलिए तुम्हारे घर पर बैठा हूँ..मैं बोला.
आपने तो बिना मांगे आज मुझे इतना समय दे दिया है..मैं बहुत भाग्यशाली हूँ.. -सुचित्रा बोली.
तुम बहुत करीबी दोस्त हो..कुछ बातें मैं सिर्फ तुम्ही से करता हूँ..तुम्हारी जरुरत जब भी महसूस होती है..मैं चले आता हूँ..-मैं बोला.
ये तो मेरा सौभाग्य है..मैं सदैव आपकी ऋणी रहूंगी..-अपनी साड़ी के आँचल से सुचित्रा अपनी भींगी आँखे पोंछी और हंसने की कोशिश करते हुए बोली-चलिए..हमलोग लूडो खेलते हैं..मैं आज गेम जीत रही हूँ,, वो बिस्तर पर आकर मेरे सामनॆ बैठ गईं.
अब लूडो खेलने का मेरा मूड नहीं था,इसीलिए मैंने कहा-नहीं..अब लूडो खेलने का मेरा मन नहीं कर रहा है..
प्लीज..मेरे लिए खेलिए..आज बहुत दिनों के बाद आपके साथ खेल रही हूँ..मुझे बहुत अच्छा लग रहा है..सुचित्रा के बहुत आग्रह करने पर मैं मान गया.
जब लूडो बोर्ड पर बदली हुई गोटियों पर उसकी नजर पड़ी तो जोर से हंस पड़ी.उसके मोतियो जैसे सफ़ेद दांत चमकने लगे.वो हँसते हुए बोली-मुझे मालूम था कि आप गोटियां बदली करेंगे..आपकी पुरानी आदत है..चलिए कोई बात नहीं..मैं आपको इन गोटियों से भी हरा सकती हूँ..क्योंकि आप मेरे साथ जो हैं..
मेरी तरफ देख उसने पांसा फेंका और संयोग से छे से ही फिर उसकी शुरआत हुई.कुछ ही देर के खेल में वो फिर तेजी से आगे बढ़ने लगी.एक गोटी उसने सेंटर में पहुंचा दिया.मेरी तीसरी पीली गोटी बहुत धीमे धीमे आगे बढ़ रही थी.मैं पांसा उठाने के बहाने लुडोबोर्ड पर अपना दायां हाथ रख तर्जनी अँगुली से अपनी पीली गोटी को सेंटर में पहुँचाने की कोशिश किया.
वो जोर से खिलखिलाकर हँसते हुए अपने दायें हाथ से मेरी तर्जनी अँगुली पकड़कर बोली-नहीं..इतनी बड़ी चीटिंग नहीं..एक चीटिंग आप मेरे साथ कर चुके हैं..
मैं मुस्कुराते हुए बोला-तुम्हारे साथ खेल में चीटिंग करना जरुरी है..नहीं तो ऐसे खुल के हंसोगी कैसे..
आप जब भी मेरे पास आते हैं..ऐसी यादें छोड़ जाते हैं..जो बहुत दिनों तक मुझे हंसाती गुदगुदाती रहती हैं..जो मेरे मुर्दा और नीरस जीवन में वर्षों से जीवन हंस के जीने का रस घोलती चलीं आ रहीं हैं..मेरी मुस्कराहट और मेरी हंसी आपका दिया हुआ उपहार हैं..आपने मुझपर बहुत उपकार किये हैं..-सुचित्रा गम्भीर होने लगी.
तुम्हारा दुःख मैं भलीभांति समझता हूँ..अपनी मर्यादा में रहते हुए तुम्हारी ख़ुशी के लिए मुझसे जो कुछ भी हो सकता हैं..वो सब जरुर करूँगा..-मैं दृढ निश्चय के साथ बोला.
मेरी आँखों में झांकते हुए सुचित्रा बोली-एक बात सच सच बताइयेगा..आपको मेरी कसम हैं..
मैं इस विषय में सोचती हूँ तो बहुत परेशान हो जाती हूँ..आप कहें तो मैं आपसे वो बात पूंछू..
ठीक हैं पूछो..-मैं कुछ परेशान सा होकर गहरी साँस खींचते हुए बोला.
आपने कभी मुझसे प्रेम किया था..ये बात आपने स्वीकार किया हैं..-सुचित्रा नजरे झुककर बोलना शुरू की तो मैं उसकी बात बीच में ही काटते हुए बोला-आपने कभी मुझसे प्रेम किया था..ये तुम क्या कह रही हो..मैं तो आज भी तुमसे उतना ही प्रेम करता हूँ..अंतर बस इतना ही हैं कि उस समय तुम्हारे साथ शादी करके घर गृहस्थी बसाने के बारे में सोचता था..और आज अपनी घर गृहस्थी सम्भालते हुए तुम्हे ख़ुशी और सुख देने के बारे में सोचता हूँ..मेरी पत्नी को मालूम हैं कि तुम मेरी पुरानी मित्र हो..मैं उसे लेकर तुम्हारे घर आ सकता हूँ..तुम जब चाहे मेरे घर आ सकती हो..मेरे ह्रदय में तुम भी निवास करती हो..
हमारी दोस्ती हुए बाईस साल से ज्यादा समय बीत गया..कभी आप की इच्छा नहीं हुई कि सुचित्रा का भोग करूँ..जबकि मैं आपके लिए कल भी पागल थी और आज भी पागल हूँ..परन्तु आपने आजतक न कभी मुझे उस नजर से देखा और न ही कभी उस ढंग से छुआ..
-सुचित्रा इतना कहकर मुझे एकटक निहारने लगी.
मैं उसकी आँखों में झांकते हुए बोला-मेरे लिए सुचित्रा मेरी एक मानसिक जरुरत हैं..वो मेरे लिए भोग का विषय नहीं हैं..
सुचित्रा मेरी अंगुली छोड़ मेरा हाथ पकड़ते हुए बोली-आप सच नहीं बोल रहे हैं..मैं बचपन में दो बार रेप की शिकार हुई,,इस बात को आप जानते हैं..इसीलिए आपकी नजरों में मेरा शरीर अपवित्र और त्याज्य हैं..और इसीलिए आपने मुझसे शादी नहीं की..आपको मुझसे प्रेम नहीं सिर्फ सहानुभूति हैं..और जब आपका मन कहीं नहीं लगता हैं..या फिर दीदी मायके गई होती हैं तो समय बिताने के लिए आप मेरे पास चले आते हैं..आपने ऐसा ही व्यवहार अर्चना के साथ भी किया..उसने आपसे प्रेम किया था ऐसा क्या क्या गुनाह किया था जो आपने उसे इतनी बड़ी सजा दी..अर्पिता ने तो आपसे जबर्दस्ती करके हर सुख हासिल किया था..आपने उसे स्वेच्छा से क्या दिया था..आप महापुरुष हैं इसमें कोई संदेह नहीं..लेकिन प्रेम के मामले में आप दूसरे पुरुषों से भिन्न नहीं हैं..
सुचित्रा की बातें सुनकर मेरा सिर चकराने लगा.जो कुछ भी उसके मन में था आज वो सब बोल गई थी.उसकी बातें सुनकर मेरे ह्रदय को बहुत ठेस लगी थी.मैंने बहुत दुखी स्वर में कहा-मेरा हाथ छोडो..
नहीं छोड़ूंगी..मेरे साथ फिर चीटिंग करोगे..इस खेल में भी और मेरे जीवन में भी..-सुचित्रा मेरा हाथ और कस के पकड़ते हुए बोली.
मैंने तुम्हारे साथ जो प्रेम किया..वो मेरे ह्रदय में समाहित है..उसे मैं दिखा नहीं सकता हूँ..मैं तुम्हारे बारे में सबकुछ जानकर भी तुमसे शादी करने को तैयार था..परंतु उस समय तुम किसी और को चाहती थी..इसीलिए मैं खामोश हो गया था..मेरी बात पर तुम्हे विश्वास नहीं है तो मैं आज भी तुम्हे प्रमाण देने को तैयार हूँ..यदि तुम शादी और शरीर के सम्बन्ध को ही प्रेम समझती हो तो चलो वही कर लो..लेकिन इसके लिए तुम्हे अपनी दीदी की मंजूरी लेनी होगी..मैं अकेले अंतिम फैसला नहीं ले सकता हूँ..-इतना कहकर मैं उठ खड़ा हुआ और उसे खींचकर उठाने लगा.वो बिस्तर पर बैठे हुए आश्चर्य से मुझे एकटक मुझे निहारने लगी.
उठो..अब उठती क्यों नहीं हो..तुम्हारी नज़र में मैं सबका अपराधी हूँ..परन्तु सच तो ये है कि अर्पिता..अर्चना..मेरी पत्नी और तुम..सबने एक खिलौने की तरह बस मुझसे खेला है..और मेरा अपराध बस यही है कि मैंने तुम सबसे प्रेम किया है..और ह्रदय से प्रेम किया है..तुममे से एक ने भी मुझसे सच्चा प्रेम किया होता तो मुझे आज भी प्रेम की तलाश नहीं रहती..तुम चारो का सानिध्य पाकर भी मैं अतृप्त हूँ..तुम चारो में से किसी के पास भी प्रेम नहीं है..जबकि मैं वर्षों तुम सबके साथ रहकर प्रेम की तलाश करता रहा.
ओरों के बारे में मैं दृढ़ता से नहीं कह कह सकती..परन्तु अपने बारे में अपने अनुभव के आधार पर मैं दृढ़ता से कह सकती हूँ कि मुझे आपसे प्रेम है..-सुचित्रा बोली.
वही प्रेम जो शादी और शारीरिक संबंध के सपने देख रहा है..मैं पूछा.
क्या शादी और शारीरिक सम्बन्ध प्रेम का एक जरुरी हिस्सा नहीं है..-सुचित्रा ने प्रश्न किया.
प्रेम का एक हिस्सा हो सकता है..परन्तु ये सम्पूर्ण प्रेम नहीं है..यदि ऐसा होता तो मैंने तो अपने अब तक के जीवन में दो बार शादी किया..पत्नी से शारीरिक सम्बन्ध बनाये..मुझे तो तृप्त हो जाना चाहिए था..अब तुम्हारे पास क्यों प्रेम की तलाश कर रहा हूँ..तुमसे भी शादी करके और शारीरिक सम्बन्ध बना के मेरी ये प्रेम की तलाश पूरी हो जायेगी..मुझे तो ऐसा नहीं लगता है..तुम चाहो तो ये प्रयोग करके देख सकती हो..परन्तु यदि मुझपर ये प्रयोग करना चाहती हो तो तुम्हे इसके लिए मेरी पत्नी से सहमति लेनी पड़ेगी..मैं तुम्हारा साथ देने को तैयार हूँ..
सुचित्रा कुछ देर सोचने के बाद बोली-इसके बारे में मैं बाद में सोचूंगी..पहले आप अपने ऊपर मुझे कुछ प्रयोग करने दें..
शादी और शारीरिक सम्बन्ध को छोड़कर बाकी कोई भी प्रयोग मेरे ऊपर करने के लिए तुम मेरी तरफ से स्वतंत्र हो..-मैं बोला.
आपको इस बात का वचन देना होगा..-सुचित्रा उठते हुए बोली.
ठीक है मैं इस बात का तुम्हे वचन देता हूँ..-मैं दृढ स्वर में बोला.
सुचित्रा मुस्कुराते हुए मेरा हाथ छोड़ दी.हमदोनों बिस्तर से नीचे उतर गए.मैं अपने हाथ की कलाई सहलाने लगा.कलाई इतनी कस के पकड़ी थी कि दर्द हो रहा था.वो मेरी तरफ देखकर मुस्कुराते हुए बोली-आपकी नाजुक कलाई मेरा पहला प्रयोग ही नहीं झेल पा रही है..अभी तो आज मुझे आप पर बहुत से प्रयोग करने है.. मैं कुछ बोलेवाला था कि तभी
कालबेल की घंटी बजी.
मैं सुचित्रा से पूछा-मैं जा के देखूं कि कौन आया है..
सुचित्रा लूडो बोर्ड गोटियां और पांसा समेटकर मेज पर रखते हुए बोली-नहीं..आप मत जाइये..आप यहीं पर बैठिये..मैं देखती हूँ कि कौन आया है..मम्मी दवा लेकर अबतक घर नहीं लौटी हैं..जरुर मम्मी ही होंगी..
मैं जाकर सुचित्रा के कमरे में मेज के पास रखी कुर्सी पर बैठ गया.मेज पर रखे हुए लेपटॉप,म्यूजिक सिस्टम,पुस्तकें,लूडो और अपनी फ्रेम में जड़ी तस्वीर को देखने लगा.मेरी तस्वीर पर लाल और पीले रंग की अबीर लगी हुई थी.
प्रणाम स्वामीजी..-अपने पीछे से आई आवाज सुनकर मैं पीछे सिर घुमाकर देखा तो हल्के पीले रंग की साड़ी में लिपटीं सुचित्रा की माताजी हाथ जोड़े खड़ी थीं.कुर्सी से उठकर मैंने भी अपने हाथ जोड़ दिए.
मैंने पूछा-अब आप की तबियत कैसी है..
तबियत का हाल मत पूछिए..दसो रोग परेशान किये हुए हैं..मुझे तो चिंता लगी है कि मेरे मरने के बाद इसका क्या होगा..-वो मेरे पास आते हुए बोलीं.
मैं कुर्सी उनके करीब रखते हुए बोला-आइये बैठिये..
नहीं..मैं बैठूंगी नहीं..बैठ गई तो फिर उठ नहीं पाऊँगी..फिर हांफते हुए कुछ रूककर बोलीं-आपने मेरी बात का कोई जबाब नहीं दिया..
मैं क्या जबाब दूँ..अपने जीवन का सूनापन आपकी बेटी ने स्वयं निर्मित किया हुआ है..आज से बाईस साल पहले शादी नहीं करने की भीष्म प्रतिज्ञा आपकी बेटी ने किया था..जिसे वो आज भी निभा रही हैं..मैं इस मामले में क्या कर सकता हूँ..मैं केवल आजीवन दोस्ती निभाने का वचन दे सकता हूँ..-मैं सुचित्रा की तरफ देखते हुए गम्भीरता से बोला.
सुचित्रा की माताजी मुझपर अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए बोलीं-आपने इसे बच्चा गोद लेने की सलाह देकर बहुत गलत काम किया है..रात को वो बच्ची रोती है..बहुत परेशान करती है..किसी को भी ठीक से सोने नहीं देती है..हर दूसरे तीसरे दिन बीमार पड़ती है..उसे लेकर बच्चों के डॉक्टर के पास भागना पड़ता है..परेशान होकर इसने विभा को चौबीस घंटे के लिए रख लिया है..अब वो बच्ची को रात दिन संभालती है और इसके बदले में हमें चार हजार रुपया महीना उसे देना पड़ेगा..
वो गुस्से के मारे हांफते हुए आगे बोलीं-आप ले जाइये इस बच्ची को..और ले जा के अपने आश्रम में पालिये..
मम्मी..चुप करो..ये सब क्या बके जा रही हो..-सुचित्रा अपनी माँ को डांटते हुए बोली.
माताजी..यदि आपकी यही इच्छा है तो मैं उस बच्ची को ले जाता हूँ और अपने दोस्त की अमानत समझकर मैं उसे पूरे लाड़ दुलार से पालूंगा..-मैंने दृढ संकल्प के साथ कहा.
वो गुस्से से चीखते हुए बोलीं-अपने दोस्त को मेरे मत्थे क्यों छोड़े जाते हो..इस बोझा को भी साथ ले जाओ तो जानू कि आपके दिल में इसके लिए कोई जगह है..ये तो वर्षों से आपके पीछे पागल है..आज सुबह बहुत देरतक आपकी तस्वीर को लाल पीला रंग लगाकर रो रही थी..
मम्मी ..तुम पागल हो गई हो..ये सब क्या अंटशंट बके जा रही हो..-सुचित्रा अपनी माँ पर जोर से चिल्लाई.
मैं चाकू से क्या अपना सीना चीर के दिखाऊं कि मेरे दिल में अपने दोस्त के लिए क्या जगह है..आपको यदि ये लोग बोझा लगते हैं तो मैं आज और अभी इसी वक़्त इन्हे ले के जा रहा हूँ..मेरे और मेरी पत्नी के दिल में इनके लिए बहुत जगह है..-मैं गुस्से में आकर बोला.
मैं आवेश में आकर आगे बढ़ा और सुचित्रा का बायां हाथ पकड़ बोला-चलो सुचित्रा..बच्ची को पालने से उठाओ और मेरे साथ चलो..तुम दोनों का पालन-पोषण करने में मैं और मेरी पत्नी सहर्ष सक्षम हैं..
सुचित्रा की आँखे आंसुओं से भरी थीं,लेकिन उसके चेहरे पर अपूर्व गर्व और ख़ुशी की चमक थी.उसने रुंधे गले से बस इतना ही कहा-मुझे आप पर और आपकी दोस्ती पर नाज है..
सुचित्रा की माँ अपनी आँखे पोंछते हुए बोलीं-स्वामीजी..अब मुझे मौत की भी परवाह नहीं..जब उसे आना हो आये..आपका पवित्र मन टटोलकर आज मैं निश्चिन्त हुई..इतना कहकर वो मेरे कंधे पर आशीर्वाद भरा अपना दायां हाथ रखीं और धीरे धीरे चलते हुए कमरे से बाहर निकल गईं.
सुचित्रा के द्वारा आज सुबह मेरी तस्वीर से रंग खेलने वाली बात उसके माताजी के मुंह से सुनकर मैं मन ही मन कुछ निर्णय लेते हुए सुचित्रा का हाथ छोड़ बोला-जाओ..तुम्हारे पास जितने रंग हों ले के आओ.. सुचित्रा मेरी और आश्चर्य से देखते हुए चुपचाप खड़ी रही.
मैंने दुबारा वही बात कही-सुचित्रा..जाओ..तुम्हारे पास जितने भी रंग हों ले आओ..
सुचित्रा जाकर धीरे से आलमारी खोली और लाल व् पीले रंग के अबीर की दो छोटी छोटी सफ़ेद पोलिथिन के पैकेट निकाली और आलमारी बंदकर कमरे से बाहर चली गई.
थोड़ी देर बाद वो एक सुंदर सी ट्रे ले के कमरे में वापस आई,जिसमे दो स्टील की छोटी प्लेटों में लाल व् पीला अबीर रखा हुआ था.
ये ट्रे मेज पर रख दो और मुझे जितनी इच्छा हो रंग लगा लो..-मैंने कहा. सुचित्रा मेज पर ट्रे रख चुपचाप खड़ी हो गई.मैं उसकी तरफ देखते हुए बोला-सुचित्रा..हाथ में रंग उठाओ..और लगा दो मुझे…मेरी तस्वीर पर तुम रंग लगा सकती हो तो मुझपर क्यों नहीं..
सुचित्रा ने झिझकते हुए अपने दायें हाथ से थोडा सा पीला अबीर लेकर मेरे माथे पर लगा दिया.वो फिर चुपचाप खड़ी हो गई.
रुक क्यों गई और लगाओ..मैंने मुस्कुराते हुए कहा.
वो हँसते हुए अपने दोनों हाथों में लाल पीला अबीर लेकर मेरे चेहरे पर मल दी और खिलखिलाकर हंसने लगी.
मैं अपने चेहरे पर पुता रंग अपने हाथो से झाड़ते हुए बोला-और लगाना हो तो लगा लो.. नहीं..बस इतना ही सौभाग्य मिलना मेरे लिए बहुत है..लेकिन इसका प्रतिउत्तर मैं आपसे चाहती हूँ..नहीं तो मेरी ख़ुशी अधूरी रह जायेगी..-सुचित्रा ख़ुशी से मुस्कराते हुए बोली.
मैंने अर्पिता के गुजरने के बाद होली खेलना छोड़ दिया..मैं अब होली नहीं खेलता हूँ..मेरे घर के लोग भी सिर्फ मुझे टिका भर लगा देते हैं..मैं तुम्हे टिका भर लगा सकता हूँ..-मैं बोला. रहने दीजिये..मैं समझ गई..मैं आपकी निगाह में अपवित्र और अछूत हूँ..-सुचित्रा गम्भीर स्वर में बोली.वो अपनी गीली हो उठीं आँखे पोछने लगी.
मैं धर्मसंकट में पड़ गया था.कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूँ.मुझे इस धर्मसंकट से उबरने में कुछ देर लगी.मैं अपने एक हाथ में लाल और दूसरे हाथ में पीला अबीर लेकर सुचित्रा के नजदीक गया और उसके चेहरे पर लगाते हुए कहा-ये एक दोस्त की तरफ से..
मैंने फिर हाथों में रंग लेकर उसके चेहरे पर लगाया और कहा-ये मेरी पत्नी की तरफ से.. तीसरी बार मैंने उसे रंग लगाकर कहा-ये मेरी बिटिया की तरफ से..
चौथी बार मैंने अपने दोनों हाथो से उसे रंगते हुए कहा-और ये उस अर्पिता की तरफ से जिसे याद करके मुझे इस धर्मसंकट से उबरने का साहस मिला है..
सुचित्रा ख़ुशी और भावावेश में आकर मुझसे लिपट गई.उसके दोनों हाथ मेरी पीठ पर थे.वो अपनी मजबूत बाँहों के घेरे में मुझे कसते जा रही थी.मेरे कंधे पर अपना सिर रख मेरे चेहरे से अपना चेहरा सटा दी.पता नहीं क्यों उसके शरीर के स्पर्श का सुख मुझे अच्छा नहीं लग रहा था.होली न खेलने का सताइस साल पुराना अपना संकल्प तोडना भी मुझे अच्छा नहीं लग रहा था.मेरे दिल और दिमाग में अर्पिता छाई हुई थी.उसके साथ खेली गई होली याद आने लगी.पता नहीं क्यों मेरी आँखों से आंसू बहने लगे.
मुझे बहुत बेचैनी होने लगी.मैं उसे अपने शरीर से अलग करने की कोशिश करते हुए बोला-सुचित्रा..अब मुझे छोड़ दो..
नहीं,,मैं नहीं छोड़ूंगी..-ये कहकर वो मुझसे और कस के लिपट गई.
वो काफी देर तक मुझसे लिपटी रही.पिछले बाइस सालों में वो अनेक बार होली के मौके पर गले लगी थी,परन्तु इतनी देर तक कभी इस तरह से गले नहीं लगी थी.दरवाजा खुला हुआ था,इसीलिए मैं और परेशान हो रहा था.
सुचित्रा..प्लीज..छोडो मुझे..और अपने ऊपर कंट्रोल करो..दरवाजा खुला हुआ है..माताजी देखेंगी तो क्या सोचेंगी..-मैंने धीरे से उसके कान में कहा.
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सुचित्रा अपनी बाहें ढीली कर मुझसे थोडा दूर हट गई.उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे.अपनी साड़ी के आँचल से वो अपनी आँखे पोंछने लगी.उसकी नजर तभी मेरे चेहरे पर गई.वो मेरी आँखों में आंसू देखी तो झट से अपनी लाल पीले रंग लगी काली साड़ी के आँचल से पोंछते हुए बोली-ख़ुशी और आनंद के मारे मेरी आँखों से आंसू छलक आये..पर आप की आंखों से क्यों आंसू बह रह रहे हैं..
होली नहीं खेलने का वर्षों पुराना मेरा संकल्प आज टूट गया..मुझे अच्छा नहीं लग रहा है..-मैं दुखी स्वर में बोला.
मुझे तो बहुत अच्छा लगा..आपका संकल्प सही नहीं था..वर्षों पहले लिए गए एक गलत संकल्प रूपी भूत से आपका पीछा छूटा..-सुचित्रा बोली.उसके सुंदर चेहरे पर एक विशेष चमक और मुस्कुराहट थी.
वो मेज पर से रंगो वाली ट्रे उठाते हुए बोली-चलिए..माता जी के पास चलते हैं..
शेष अगले ब्लॉग में..
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(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)
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