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प्रेम की तलाश एक दार्शनिक के साथ-संस्मरण-भाग ३

सद्गुरुजी
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प्रेम की तलाश एक दार्शनिक के साथ-संस्मरण-भाग ३
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मैं न चाहते हुए भी उसके साथ चल पड़ा.कमरे से बाहर निकलकर हमदोनों बगल वाले कमरे में प्रवेश किये.उसकी माताजी बिस्तर पर बैठी हुईं थीं.उनके पास पहुंचे तो मैं थोडा सा रंग लेकर उनके चरणों में लगा दिया,जो मैं कई होली के अवसर पर किया था.
उसकी माताजी माताजी हमदोनों को लाल पीले रंग से सराबोर देखकर बहुत खुश थीं.उन्होंने पहले मुझे और फिर सुचित्रा को टिका लगाया.
सुचित्रा उन्हें टिका लगा उनके पांव छू ली.वो सुचित्रा को आशीर्वाद देते हुए बोलीं-बेटी..तुम्हारा घर बस जाये..मरने से पहले मैं तुम्हे सुहागिन के रूप में देखना चाहती हूँ..
फिर मेरी तरफ देख हाथ जोड़कर बोलीं-स्वामीजी..मेरा आशीर्वाद तो आजतक फलित हुआ नहीं..अब आप ही कुछ विशेष कृपा कीजिये..
माताजी..मैं तो इन्हे बाईस साल से समझा रहा हूँ कि शादी कर लो..बहुत से अच्छे रिश्ते मिलेंगे..प्रयास करने पर अभी भी अच्छे रिश्ते मिल जायेंगे..ये शादी के लिए तैयार हों तो मैं प्रयास करूँ..मैं सुचित्रा की तरफ देखते हुए बोला.मुझे डर था कि वो मेरी बात सुनकर हमेशा की तरह से आज फिर भड़क जायेगी.जिसका मुझे डर था,वही हुआ.
आप कौन होते हैं मेरी शादी कराने वाले..आप मेरे दोस्त है..इसीलिए दुश्मनी वाली बात मत कीजिये..आपको मालूम है कि अब मेरे जीवन में कोई तीसरा पुरुष कभी नहीं आएगा..फिर भी आप ऐसी बातें करके मेरे साथ चीटिंग करते हैं..अगर मुझे किसी और से शादी करना होता तो मैं कब का शादी कर ली होती..मैं अब अड़तालीस साल की हों चुकी हूँ..मुझे अब शादी करना ही नहीं है..-सुचित्रा जोर से चिल्लाते हुए बोलीं.फिर वो मेरी तरफ गुस्से से देखते हुए बोलीं-अगर आपने दुबारा कभी ऐसी फरेब वाली बातें मुझसे तो की तो फिर इस दुनिया में मुझे ढूंढते रह जायेंगे..मैं कहीं नहीं मिलूंगी और कभी नहीं मिलूंगी..
उसके रौद्ररूप को देख मैं सहम गया.वो गुस्से से विफरते हुए अपने हाथ में ली रंगो की ट्रे फर्श पर पटक दी.स्टील की पलटें एक तेज आवाज के साथ इधर उधर लाल पिला रंग बिखेरते हुए फर्श पर दूर छिटक गईं.मेरे सफ़ेद वस्त्रों और उसकी काली साड़ी पर लाल पीले रंग के ढेरों छींटे पड़ गए.सुचित्रा गुस्से से विफरते हुए कमरे से बाहर चली गई.
उसका ये रौद्ररूप पिछले बाईस साल में मैं कई बार देख चूका था.फिर भी मुझे कुछ घबराहट हो रही थी.मैं मुंह से गहरी साँस छोड़ने लगा.सुचित्रा की माताजी बिस्तर पर से कराहते हुए उठीं और कोने में रखी कुर्सी लाकर मेरे पास रखते हुए बोलीं-स्वामीजी..आप बैठिये..आप तो इसकी आदत जानते ही हैं..गुस्सा ठंडा हो जायेगा तो अपनेआप आ जायेगी..
मैं चुपचाप कुर्सी पर बैठ गया और सोचने लगा कि-सबकुछ तो है मेरे पास..सभी जरुरी सुख सुविधाओं से भरा एक सम्मानित जीवन जी रहा हूँ..फिर मैं यहापर अपमानित होने के लिए क्यों आता हूँ..पुरानी दोस्ती को निभाने की खातिर..पर मैं ही एकतरफा दोस्ती क्यों निभाऊं..मुझे अब यहाँ से चुपचाप उठकर घर चल देना चाहिए..
मैं ये सब सोच ही रहा था कि तभी सुचित्रा कमरे में वापस आई और मुझसे बोली-ये तौलिया लीजिये और अपने कपडे उतारकर मुझे दे दीजिये..मैं नहाने जा रही हूँ..इसे भी धो देती हूँ..राततक सूख जायेगा..मैं प्रेस कर दूंगी..
नहीं..रहने दो..मैं अब घर जा रहा हूँ..मैं घर जाकर धो लूंगा..-मैं कुर्सी से उठते हुए बोला.
ठीक है..मैं भी आप के साथ चलती हूँ..वहीँ जाकर कपडे धो दूंगी और खाना भी बना दूंगी..चाहे यहाँ करूँ या वहाँ..मुझे आज ये सेवा तो करनी ही है..आप मुझे रोक नहीं पाएंगे..-सुचित्रा गम्भीरता से बोली.उसके चेहरे पर मेरे प्रति नाराजगी साफ झलक रही थी.
मैं जानता था कि उसकी जिद के आगे कुछ भी कहना बेकार है.मैं उसके हाथ से तौलिया लेकर कमरे से बाहर निकल गया.सुचित्रा के कमरे में जाकर मैं अपनी जेब से मोबाइल और सफ़ेद रुमाल निकालकर मेज पर रख दिया.दूसरी जेब से रूपये निकालकर मेज पर रख दिया.अपने कुर्ते के हाथ और गले के बटन खोलकर कुर्ता उतार दिया.कुर्ता आगे से कम रंगा हुआ था,लेकिन पीछे से उसकी पूरी पीठ रंगी हुई थी.सुचित्रा के हाथ और अँगुलियों के लाल पीले निशान थे.वो पहन के जाने लायक नहीं रह गया था.मैं पायजामा भी उतार दिया.मैंने भूरे रंग का वार्म इनर वियर पहन रखा था.मैं कमर में पीला तौलिया लपेटने लगा.
आपने इनर पहन रखा है..फिर क्यों परेशान हो रहे हैं..लाइये मुझे सब कपडे दीजिये..-सुचित्रा मेरे पास आकर बोली.वो कुर्ता,पैजामा और तौलिया सब ले ली.
मैं मेज के पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गया और एक ब्लॉग लिखने के बारे में सोचने लगा.
लाइये आपका चेहरा पोंछ दूँ..ढेर सारा रंग लगा है..-ये कहकर सुचित्रा मेरे सफ़ेद कुर्ता से पोंछकर मेरा चेहरा अच्छी तरह से साफ कर दी.
वो जाने लगी तो मैं बोला-तुम्हारा मूड अगर ठीक हो गया हो तो अपना लेपटाप आन कर दो..मुझे लेपटॉप आन करने में दिक्कत होती है..
सुचित्रा कपड़े बिस्तर पर रख दी.मेज के पास आकर लेपटाप खोलकर मेरे सामने कर दी.वो मेज पर झुककर लेपटॉप आन कर दी.उसका चेहरा मेरे चेहरे के समीप था.साफ करने के वावजूद भी लाल पिला रंग उसके चेहरे पर झलक रहा था.थोड़ी देर बाद विंडो सेवन आपरेटिंग सिस्टम खुल गया.वो मेज से मॉडेम उठाकर लेपटॉप में लगाई और इंटरनेट आन कर दी.
सुचित्रा इंटरनेट ब्राउज़र ओपन करते हुए बोली-आज की सब बातें लिखोगे क्या..
हाँ..दुनिया को पता तो चले कि सुचित्रा कितनी महान है..-मैं मुस्कुराते हुए बोला.
ठीक है..सब बातें ईमानदारी से लिख के दिखाओ..मैं मान जाउंगी कि ईमानदार राइटर हो..-सुचित्रा अपना चेहरा मेरी तरफ करते हुए बोली.
तुम मेरे ब्लॉग पढ़ती हो..मैंने पूछा.
और वहाँ पर मैं किसलिये जाती हूँ..दो महीना होने वाला है..संस्मरण की अगली क़िस्त का कोई अता पता ही नहीं है..किसी दिन दीदी से जाकर आगे की कहानी पूछूंगी..-सुचित्रा बोली.
मुझे धमका रही हो क्या..अगर ऐसी बात है तो शौक से जाकर उनसे मिलो..मैंने अपने सभी आवारा दोस्तों के बारे में उन्हें पहले से ही सबकुछ बता रखा है..-मैं उसे छेड़ने के लिए बोला.
आप अपने आवारा दोस्तों के पास जाते क्यों हैं..-सुचित्रा चिढ़कर पूछी.
उनसे पुरानी दोस्ती है..इसीलिए मैं चले जाता हूँ..-मैं उसकी तरफ देख मुस्कुराते हुए बोला.
मैं दीदी की जगह होती तो ये सब बर्दास्त नहीं करती..आपके सारे दोस्तों से मुझे जलन होती है..और सबसे ज्यादा उस अर्पिता से..जो अब इस दुनिया में नहीं है..लेकिन अभी भी आपके दिल में बैठी हुई है..-सुचित्रा बोली.
अर्पिता की याद आते ही मैं असहज हो गया.मैं बातचीत का विषय बदलने के लिए सामने दिवार पर टंगी घडी की ओर देखते हुए बोला-तीन बज रहा है..कब नहाने जाओगी..और कब मेरे कपडे साफ करोगी..मेरे कपडे नहीं सूखे तो मैं घर कैसे जाउंगा..
सुचित्रा के गम्भीर चेहरे पर बहुत देर बाद मुस्कान आई.वो मुस्कुराते हुए बोली-अब तो जबतक मैं नहीं चाहूंगी..आप घर नहीं जा पाएंगे..
ठीक है..मैं खाना खाकर यहीं सो जाउंगा..यहाँ पर और कुछ तो मैं कर भी नहीं पाउँगा..कोई ब्लॉग भी लिख नहीं पाउँगा..तुम्हारे इंटरनेट की स्पीड इतनी स्लो है कि एक ब्लॉग लिखने में सुबह हो जायेगी..-मैं बोला.
इंटरनेट कनेक्शन मैं ब्लॉग पढ़ने के लिए ली हूँ..ब्लॉग लिखने के लिए नहीं..कुछ रूककर वो आगे बोली-वैसे भी मुझे ब्लॉग लिखना और पढ़ना दोनों बोरियत भरा काम लगता है..मुझे ग़ज़ल सुनना और अपनी पसंद के फ़िल्मी गीत सुनना बहुत पसंद है..मेरी पसंद की गज़लें सुनिये..-इतना कहकर वो अपने म्यूजिक सिस्टम को आन कर एक सीडी लगा दी.
कुछ ही पल बाद कमरे में जगजीत सिंह जी की मधुर आवाज गूंजने लगी-
चाँद से फूल से या मेरी जुबां से सुनिए,
हर तरफ आप का किस्सा जहां से सुनिए,
सब को आता है दुनिया को सता कर जीना,
ज़िंदगी क्या मुहब्बत की दुआ से सुनिए,

सुचित्रा मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देखने लगी.साउंड सिस्टम की आवाज धीमी कर मैं बोला-मुझे एक कॉपी और पेन दो..
मेज पर से एक कॉपी और पेन उठाकर सुचित्रा मेरे सामने रख दी और मुझसे पूछी-और कुछ चाहिए तो बता दो..मुझे नहा धोकर लौटने में देर लगेगी..
पीने के लिए पानी लाकर रख दो..-मैं बोला.
सुचित्रा सेण्टर टेबल पर पड़ा स्टील का गिलास उठाकर कमरे से बाहर चली गई.कुछ देर बाद एक जग पानी और स्टील का एक गिलास लेकर लौटी.जग से एक गिलास पानी निकालकर उसने मुझे दिया.मैं पानी पीने लगा.उधर कमरे में जगजीत सिंह जी की आवाज गूंज रही थी,जिसे मैं कापी पेन खोलकर नोट करने लगा-
मेरी आवाज़ पर्दा मेरे चहरे का,
मैं हूँ खामोश जहां मुझको वहां से सुनिए,
क्या ज़रूरी है की हर पर्दा उठाया जाए,
मेरे हालात अपने अपने मकान से सुनिए..

सब मेरी पसंद की ग़ज़लें हैं.मेरा तो यहाँ से जाने का मन नहीं कर रहा है..-सुचित्रा बोली.
पानी पीकर मैं गिलास मेज पर रख दिया और सुचित्रा से बोला-आओ बैठो..थोड़ी देर बाद नहाने चली जाना..
सुचित्रा मेरी बात से खुश होकर गिलास और पानी का जग सेन्टर टेबल पर रखी और कमरे से बाहर चली गई.वो कुछ ही क्षण बाद दूसरे से कमरे से कुर्सी लेकर आ गई और मेरे पास कुर्सी रखकर बैठ गई.हुमदोनो जगजीत सिंह जी और चित्रा सिंह जी की आवाज में ग़ज़लों का आनंद लेने लगे.एक और ग़ज़ल मुझे अच्छी लगी जिसे मैंने नोट किया-
ना मुहब्बत ना दोस्ती के लिए,
वक़्त रुकता नहीं किसी के लिए,
दिल को अपने सज़ा न दे यूं ही,
सोच ले आज दो घडी के लिए,

ग़ज़ल सुनते हुए सुचित्रा के हाथ पैर सब हिल रहे थे.वो ग़ज़ल का आनंद लेने में मग्न थी और मैं अपनी पसंद की कुछ ग़ज़लें नोट करने में व्यस्त था.वो गोरे रंग का सुंदर और स्वस्थ अपना बायां हाथ बार बार कॉपी के ऊपर रख दे रही थी.मैं बार बार उसका हाथ हटाता था और और वो बार बार कापी पर अपना हाथ रखती थी और उसकी अंगुलिया थिरकने लगती थी.वो जानबूझकर ये सब कर रही थी.परेशान होकर मैं अपने बाएं हाथ से उसका बायां हाथ कास के पकड़ लिया और दायें हाथ से लिखने लगा-
हर कोई प्यार ढूढता है यहाँ,
अपनी तन्हा सी ज़िंदगी के लिए,
वक़्त के साथ साथ चलता रहे,
यही बेहतर है आदमी के लिए..

कॉपी में ग़ज़ल नोट करते हुए जब मैंने अपने कंधे पर वजन महसूस किया तो देखा कि सुचित्रा ने अपना सिर मेरे कंधे पर टिका दिया था.उसका बायां हाथ अभी भी मैंने कस के पकड़ा हुआ था.जब ग़ज़ल पूरी हो गई तो अर्पिता अपना दायां हाथ बढाकर साउंड सिस्टम बंद कर दी.मैंने सुचित्रा का पकड़ा हुआ बायां हाथ छोड़ दिया.वो फिर मेरे कंधे पर अपना सिर रख ली और अपनी आँखे बंद कर ली.मैंने अपने कंधे से उसका सिर नहीं हटाया.मेरे लिए इस समय वो न किसी स्त्री का सिर था और न ही किसी पुरुष का,वो सिर्फ और सिर्फ मेरे मित्र का सिर था,जो बाईस वर्ष से तन्हा जीवन जीते जीते थक गई थी.जिसे मेरे प्यार और सहारे की जरुरत थी.
मैंने उसे धीरे से आवाज़ दी-सुचित्रा..
उसने मेरे कंधे पर सिर रखे हुए ही पूछा-क्या आपका कन्धा दर्द कर रहा है..अपना सिर हटा लूँ..
नहीं..वो बात नहीं..तुम्हे अच्छा लग रहा हो तो मेरे कंधे पर अपना सिर रखे रहो..मैं तो एक बात जो मेरे मन में अभी आई है वो तुम्हे बताना चाह रहा था..-मैं बोला.
कौन सी बात..-मेरे कंधे से अपना सिर हटा सुचित्रा आँखे खोली और मेरी ओर देखने लगी.
प्रेम क्या है..ये मेरी समझ में आया है..-मैं उसे देखते हुए बोला.
क्या समझ में आया है..-उसने बहुत उत्सुकता से पूछा.
यही कि प्रेम का अर्थ सानिध्य है..ईश्वर के सानिध्य में रहो तो ईश्वरीय और शाश्वत प्रेम है और किसी अनुरागी मनुष्य के सानिध्य में रहो तो वो सांसारिक और नश्वर प्रेम है..दोनों की ही अपनी अपनी विशेषताएं हैं..और अपने अपने आनंद हैं..परन्तु दोनों ही तरह के प्रेम में प्रेम करने के लिए प्रेमी और प्रेमिका का सानिध्य होना जरुरी है.-मैं सुचित्रा को समझाते हुए बोला.
आपकी बात सही है..परन्तु मेरे विचार से प्रेम न तो नश्वर है और न ही शाश्वत..ईश्वर यदि शाश्वत सत्य है..तो मैं भी शाश्वत सत्य हूँ..आप समाधी लगाकर जितनी देर तक ईश्वर के साथ हैं..वो शाश्वत प्रेम हैं..परन्तु आप जितनी देर तक मेरे साथ रहते हैं तो वो भी शाश्वत प्रेम है..आप हमेशा न तो मेरे पास रहते हैं और न ही ध्यान-समाधी लगाकर हमेशा ईश्वर के पास रहते हैं..इस समय आपका मेरे साथ होना मेरी दृष्टि में शाश्वत प्रेम है..यही बात मैं आपको बार बार समझाने की कोशिश करती हूँ कि हमारे शाश्वत प्रेम को आप स्वीकारिये.. -सुचित्रा मेरी तरफ देखते हुए बोली.
तुम जानती हो कि मेरी पत्नी है और बेटी है..समाज में सम्मानित होने के कारण मेरी सामाजिक जिम्मेदारी भी है..इसीलिए मर्यादा और स्वनियंत्रण के दायरे में रहते हुए मैं इस बात को स्वीकार करता हूँ कि मुझे तुमसे प्रेम है..और तुम्हारे साथ रहना मुझे अच्छा लगता हैं..-मैं धीरे से बोला.
सुचित्रा मेरे कंधे पर अपना सिर रखते हुए बोली-ये मेरा सौभाग्य है..आपके सानिध्य की वजह से मैं बर्बाद होने से बच गई..वषो पहले प्रेम में धोखा खाने के बाद मैंने अपने दिल का दर्द भुलाने के लिए नशे के सहारा लेना चाहा था..जब मैंने जीवन में पहली बार सिगरेट और शराब को अपने होंठों से लगाना चाहा था..तभी आप मेरे कमरे में प्रवेश किये थे..आपने सिगरेट मेरे होंठों से छीनकर खिड़की से बाहर फेंक दी थी..और शराब की बोतल खोलकर पूरी शराब ले जाकर वासवेसिन में उड़ेल दी थी..मैं बहुत देर तक कितना चिल्लाई थी आपके ऊपर..आप ने बहुत शांत स्वर में बस इतना ही कहा था..कि सुचित्रा मैं तुम्हारे साथ हूँ..आपके कंधे पर सिर रखकर मैं पता नहीं कितनी देर तक रोई थी..उस समय मैं बहुत दुखी थी..
नीतेश से तुम्हारी शादी नहीं हो पाई थी..इसीलिए तुम दुखी थी..-मैं बोला.
नहीं..मेरे दुःख का कारण कुछ और था..नीतेश से मेरा सिर्फ भावनात्मक लगाव था..मैंने कभी उसे छुआ तक नहीं था और उसने भी मेरे शरीर को कभी नहीं छुआ था..मेरा अतीत जानने बाद वो मुझसे दूर होने की कोशिश करने लगा था..मेरे माता-पिताजी भी उस लड़के से मेरी शादी करने को तैयार नहीं थे..फिर भी मैं आपके सहयोग से कोशिश कर रही थी कि किसी तरह से मेरी उससे शादी हो जाये..लेकिन एक दिन वो मुझे धोखा देकर शादी कर लिया..शादी करने के बाद मेरी एक सहेली के जरिये वो एक पत्र भेजा था..जिसमे उसने लिखा था कि तुम्हारा अतीत जानने के बाद कोई युवक तुमसे शादी करने को तैयार नहीं होगा..तुम अगर बिना शादी किये पति-पत्नी की तरह मेरे साथ रहना चाहो तो मैं इसके लिए तैयार हूँ..उसका पत्र पढ़कर मेरे तन मन में आग गई थी..उसके घर जाकर उसकी पत्नी और उसके माता-पिता के सामने उसे मैंने इतना जलील किया था कि वो रोने गिड़गिड़ाने लगा था..हाथ जोड़कर मुझसे माफ़ी मांगने लगा था..अपने घर आकर मैं खूब रोई थी..मैं समझ नहीं पा रही थी कि बचपन में मेरा जो दो बार यौन शोषण हुआ..उसमे मेरा क्या दोष है..मैं अपने दिल का दर्द सिगरेट और शराब के नशे से दूर करना चाहती थी..लेकिन आपने उस गलत रास्ते पर जाने से मुझे रोक लिया..मुझे बहुत शांति मिली..जब मैं आप की शरण में आ गई..अब मुझे समझ में आता है कि अपने जीवन में यदि वास्तव में मैंने किसी से प्रेम किया है तो वो आप हैं..नितेश से मुझे सिर्फ भावनात्मक लगाव था..जिसे उस समय मैं प्रेम समझ बैठी थी..
मुझे खुश करने के लिए ये सब कह रही हो..अब मैं तुम्हारी बातों से खुश होने वाला नहीं हूँ..मुझे इस बात का प्रमाण चाहिए कि तुम मुझसे प्रेम करती हो..-मैं उसे चिढ़ाने के लिए बोला.
सुचित्रा मेरे कंधे से सिर हटा ली.उसके सिर के लम्बे घने बालों का बड़ा सा जूड़ा ढीला होके अपनेआप खुल रहा था.वो अपने दोनों हाथों के सहारे अपने सिर के बालो का जूड़ा खोलते हुए बोली-मैं अपने तन,मन और धन से आपके प्रति समर्पित हूँ..आप बताइये कि मैं इनमे से कौन सा प्रमाण दूँ..और कैसे दूँ..
उसके घने और लम्बे बालों को मैं देख रहा था,जिसमे कहीं कहीं पर सफेद बाल भी दिखाई दे रहे थे.मैं उसे परेशान करने के लिए बोला-इनमे से मनवाला प्रमाण ही दे दो..मैं अपने मन में एक रंग सोचूंगा..तुम अपने मन से पता करना कि मैंने कौन सा रंग सोचा था..नहाने के बाद तुम उसी रंग के कपडे पहनना..यदि तुम ऐसा कर सकी तो तो मैं मान लूंगा कि तुम्हारे प्रेम की पहुँच मेरे मन तक है..मैं इसे तुम्हारे प्रेम का प्रमाण मान लूंगा..
सुचित्रा मुस्कुराते हुए बोली-मुझे आपकी ये शर्त मंजूर है..लेकिन मेरी भी दो शर्त है..पहली ये कि आप अपनी पसंद के दो रंग में से ही एक रंग सोचेंगे..और दूसरी शर्त ये है कि यदि मैं शर्त जीत गई तो आज जो भी मैं कहूँगी वो आपको मानना पड़ेगा..यदि आपको मेरी शर्तें मंजूर हों तो अपनी पसंद के दो रंग बताइये..
ठीक है..मुझे तुम्हारी शर्तें मंजूर हैं..मेरी पसंद के दो रंग हैं..हरा और नीला..और मैंने इन दोनों में से अपनी पसंद का एक रंग सोच लिया..-मैं हँसते हुए बोला.
नहीं ऐसे नहीं..ऐसे तो आप मेरे साथ छल कर जायेंगे..बाद में आप कहेंगे कि नहीं मैंने ये नहीं बल्कि ये रंग सोचा था..- ये कहकर सुचित्रा कॉपी से थोडा सा पेज फाड़कर मुझे देते हुए बोली-लीजिये इस पर अपना सोचा हुआ रंग लिखकर और कागज को मोड़ चपतकर मुझे दीजिये..मैं उसे आलमारी में रखूंगी..और कपडे पहनने के बाद में मैं खोल के देखूंगी कि आपने कौन सा रंग सोचा था..
मैं कागज और पेन लेकर खिड़की के पास गया और अपने बाएं हाथ पर कागज के उस टुकड़े को रखकर अपनी पसंद का रंग लिखा और कागज को मोड़ चपतकर सुचित्रा को दे दिया.सुचित्रा कुर्सी से उठकर एक कोने में रखी अपनी लाल रंग की आलमारी के पास गई और आलमारी खोलकर पर्ची उसके भीतर रख दी.
आज मैं ये शर्त जरुर जीतूंगी..और हमेशा आप मेरे साथ जो छल करते हैं..उसका बदला भी जरुर लूंगी..-सुचित्रा आलमारी बंद करते हुए बोली.
मैं मुस्कुराते हुए बोला-पहले शर्त तो जीतो..मुझसे बदला बाद में लेना..
सुचित्रा बिस्तर के पास आकर उसपर रखे कपडे उठाते हुए बोली-आज शर्त तो मैं जीतूंगी ही..मैंने पर्ची भी ऐसी जगह छुपाई है कि पर्ची बदलना भी चाहो तो उसे ढूंढ नहीं पाओगे..
तुम निश्चिन्त रहो..मैं तुम्हारी आलमारी नहीं खोलूंगा..अब तुम जाकर स्नान करो..और फिर शर्त के मुताबिक कपडे पहनकर आओ..-मैं बोला.
आज कोई काम करने की इच्छा नहीं हो रही है..इतने दिनों के बाद तो आज आप आये है..दिल कर रहा है कि बस आप के पास बैठी रहूँ..-सुचित्रा अलसाते हुए बोली.
मैं कुछ बोलने वाला था तभी कालबेल की घंटी बजने लगी और बच्ची के रोने की आवाज भी सुनाई दी.अपने हाथ में कपडे पकडे हुए सुचित्रा कमरे से बाहर निकल गई.
नौकरानी विभा आ चुकी थी,उसकी और सुचित्रा की बातचीत की आवाज सुनाई दे रही थी.बच्ची के रोने की आवाज भी सुनाई दे रही थी.मैं लेपटॉप में बिजी था.इंटरनेट कनेक्ट करने पर कोई वेबसाइट नहीं खुल रही थी.मैं सुचित्रा के लेपटॉप में इधर उधर सर्च करते हुए जब माय पिक्चर में गया तो देखा कि वहाँ पर कुछ तस्वीरें थीं.क़ुछ मेरी क़ुछ उसकी और क़ुछ हमदोनों की.एक तस्वीर देखकर मैं हैरान रह गया.मेरी और उसकी एक साथ एक तस्वीर थी,जिसमे हमदोनों गले में जयमाला डाले हुए थे.वो तस्वीर देखकर मैं हैरान और परेशान हो गया.मैं जानता था की ये तस्वीर झूठी है.लेकिन मैं ये सोचकर परेशान हो गया कि कोई इस तस्वीर को देख ले तो मेरे बारे में क्या सोचेगा.मेरे मन में विचार आया कि इस झूठी तस्वीर को डिलीट कर दूँ,लेकिन फिर मैं सोचने लगा कि इस तस्वीर के बारे में पहले सुचित्रा से मुझे बात करना चाहिए.
सुचित्रा को आवाज देने के लिए मैं पीछे सिर घुमाकर देखा,परन्तु वो दिखाई नहीं दी.उसकी आवाज भी नहीं सुनाई दे रही थी.मैं समझ गया की वो बाथरूम के भीतर नहाने के लिए जा चुकी है.मैं लेपटॉप की तरफ अपना मुंह घुमाकर माय पिक्चर फोल्डर क्लोज किया और लेपटॉप का स्विच ऑफ कर दिया.लेपटॉप को बंद कर मैं उसे मेज पर एक तरफ सरका दिया.मैं दिवारघड़ी की तरफ देखा.शाम के साढ़े चार बज रहे थे.मैं सोचने लगा कि अब क्या करना चाहिए.मैंने फ़िल्मी गीत सुनने का विचार बनाया.
साउंड सिस्टम आन कर उसके अंदर की सीडी मैं निकाला और सुचित्रा के पसंद की हिंदी फ़िल्मी गीत की एक सीडी मैं लगा दिया.कैफी आजमी जी का गीत और जगजीत सिंह जी की मधुर आवाज कमरे में गूंजने लगी-
तुम इतना जो, मुस्कुरा रहे हो
क्या गम है, जिस को छुपा रहे हो

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मुझे ये गीत बहुत अच्छा लगा.अपना दाहिना हाथ आगे बढाकर मैं वॉल्यूम बढ़ा दिया.कालबेल की घंटी बजने की आवाज सुनाई दी.ड्राइंगरूम में बच्ची के पास विभा थी,इसीलिए मैं कालबेल की घंटी पर ध्यान नहीं दिया.मैं कुर्सी के हेंडिल से पीठ टीकाकार आँखे बंद किया और गीत सुनने लगा-
आँखों में नमी, हँसी लबों पर
क्या हाल है, क्या दिखा रहे हो
क्या गम है, जिस को छुपा रहे हो

शेष और अंतिम भाग अगले ब्लॉग में..
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ (सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)
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