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प्रेम की तलाश एक दार्शनिक के साथ-संस्मरण-अंतिम भाग
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गुरूजी..प्रणाम..किसी ने मेरे पैर छुए तो मैं कुछ हड़बड़ाकर आँखे खोला.सामने लाल पिली छींटदार रंगीन साड़ी में लिपटी विभा थी.मैं गर्म इनर भर पहने था,इसीलिए कुछ संकोच करते हुए बोला-हाँ विभा..बोलो क्या बात है..
विभा उदास और रुआंसे स्वर में बोली-गुरूजी..अंजली मैडम आई है हैं..मुझसे झगड़ा कर रही है..और आपसे मिलने की जिद कर रही हैं..कह रही हैं की गुरूजी से मुझे बहुत जरुरी काम है.
मैं अपना हाथ बढाकर साउंड सिस्टम बंद कर दिया.गीत सुनने का मूड डिस्टर्ब हो चूका था.
हो सकता है कि उन्हें कुछ जरुरी काम हो.मैं ये सोचते हुए बोला-ठीक है..पहले एक तौलिया लाओ और फिर उन्हें भेज दो यहांपर..
विभा गम्भीरता से बोली-मैडम मुझे मना करके बाथरूम गई हैं कि किसी को भी मैं आपके पास न आने दूँ..उन्हें पता चलेगा तो मुझपर बरसने लगेंगी..
तुम्हारी मैडम को मैं समझा दूंगी..तुम उसकी चिंता मत करो..पीछे से आवाज आई तो मैं सिर घुमाकर देखा.मैरून कलर की साड़ी पहने हुए और आँखों पर चश्मा लगाये हुए एक गोरे रंग की पतली दुबली अधेड़ उम्र की महिला थीं.मैं उन्हें देखते ही पहचान गया.सुचित्रा के साथ कई बार आश्रम में आ चुकीं थीं.
वो हाथ जोड़कर बोलीं-गुरुदेव को मेरा प्रणाम..आप मुझे क्षमा कीजियेगा..मैंने आपको डिस्टर्ब किया..मैं आपकी तलाश में आज सुबह से भटक रही हूँ..मैं सुचित्रा के पास आई तो पता चला कि आज वो बहुत बिजी है..इसीलिए आज आश्रम नहीं जा पायेगी..मैं अकेली किसी तरह से आप के घर पहुंची तो पता चला की आप वहांपर नहीं हैं..मैं दौड़ते भागते फिर यहाँपर वापस आ गई कि शायद आपके दर्शन हो जाएँ..यहाँ आई तो पड़ोसियों से पता चला कि आप यहीं हैं..वो कुछ रूककर अपना परिचय देते हर बोलीं-मेरा नाम अंजली शर्मा है और मैं सुचित्रा के ही कालेज में हिंदी विषय की प्रवक्ता हूँ..आपके आश्रम में मैं सुचित्रा के साथ कई बार आ चुकी हूँ..आपने मुझे पहचान लिया होगा..
जी.. मैंने आपको पहचान लिया..आप बैठिये..-ये कहते हुए मैं उठकर अपनी पास पड़ी कुर्सी उठाकर उन्हें देना चाहा तो विभा तुरंत कुर्सी उठाकर उनके पास रख दी.अपने वार्म इनर वस्त्रों की तरफ ध्यान गया तो मैं विभा से बोला-विभा..मेरे लिए एक तौलिया लाओ..
मैं संकोच और शर्म महसूस करते हुए उनसे बोला..जी..मुझे क्षमा कीजियेगा..मेरे वस्त्र सुचित्रा धोने के लिए ले गई हैं..
अंजली मैडम बोलीं-गुरुदेव..आप कोई संकोच मत कीजिये..मैं समझ रही हूँ कि होली का मौसम है..कपडे होली खेलने में रंग गए होंगे..आप कैसे भी वस्त्र पहने हों..आपकी महिमा कम नहीं होगी..और फिर आपका गृहस्थ जीवन भी तो है..पति पत्नी के रिश्ते में सुख शांति लाने के लिए उनका एकांत सेवन करना और सभी त्यौहार एक साथ मिल के ख़ुशी ख़ुशी मनाना बहुत जरुरी है..
जी..आप सही कह रही हैं..लेकिन इस समय तो वो बिटिया को लेकर मायके गई हुई हैं..-मैं कुछ शरमाते हुए बोला.
मैं सुचित्रा की बात कर रही हूँ..आपने उससे भी तो विवाह किया है..सभी लोग इस बात को जानते हैं..कि आपदोनो ने मंदिर में विवाह किया है..यहाँ कालोनी में किसी से भी पूछ लीजिये..ये बात सबको मालूम है..मैंने तो इस लेपटॉप में मंदिर में शादी वाली वो फ़ोटो भी देखी है..
वो मुझे समझाते हुए बोलीं- सुचित्रा भी तो आपकी धर्मपत्नी है..उसे भी पर्याप्त समय देना आपकी जिम्मेदारी बनती है..सुचित्रा को आपसे हमेशा ये शिकायत रहती है..कि आप उसे कम समय देते हैं..उसकी ये शिकायत आपको दूर करना चाहिए..
उनकी बात सुनकर मेरे होशोहवाश उड़ गए.मैं सोचने लगा कि-मैंने सुचित्रा से कब मंदिर में शादी की है..उनकी अजीब बातें सुनकर मैं बहुत हैरान और परेशान हो गया था.ये हमदोनों कि शादीवाली नकली फ़ोटो लेपटॉप में कहाँ से आई,ये भी मेरी समझ में नहीं आया.मैं उनसे इस बारे में कुछ पूछना उचित नहीं समझा.मैं सोचा कि सुचित्रा से ही इस बारे में बात करुँ तो ज्यादा अच्छा है.
तभी विभा कमरे में वापस आई.पिंक कलर का एक नया तौलिया उसके हाथ में था.विभा तौलिया मुझे देते हुए बोली-माताजी ने दिया है..नया तौलिया है..
मैं तौलिया कमर में लपेटकर कुर्सी पर बैठ गया.
जी..कहिये क्या बात है..-मैं बोला.
वो अपना काले रंग बैग अपने कंधे उतार उसे अपनी गोद में लेकर खोलते हुए बोलीं-मेरी बहू ने मुझे आपके पास भेजा है..वो दो बार भंडारे के अवसर पर आपके दर्शन कर चुकी है..उसे आपमें बड़ी श्रद्धा है..इस समय वो हास्पिटल में है और बहुत तकलीफ में है..उसे आज बच्चा होने वाला है..वो चाहती है कि आप उसके लिए दुआ करें..ये फोटो है और इस कागज पर नाम पता लिखा है..आपकी बड़ी कृपा होगी..आपने मेरे परिवार के लिए जब जब दुआ की है..वो फलित हुआ है..
वो मुझे एक फोटो और नाम पता लिखा एक कागज दीं.पासपोर्ट साइज फ़ोटो और कागज का पेज उनसे लेकर मैं बोला-मैं अभी दुआ कर देता हूँ..परन्तु मुझे इस कार्य के लिए एकांत चाहिए..
वो अपना बैग हाथ में लेकर उठते हुए बोलीं-जी..मैं ड्राईंगरुम में चली जाती हूँ..आप अपना कार्य कीजिये..
वो कमरे से बाहर चलीं गईं.मैं विभा से बोला-तुम भी बाहर जाओ और दरवाजा बाहर से भिड़ाकर जाना.,.
विभा कमरे से बाहर निकल दरवाजा बाहर से लगा दी.अपने गुरुजनों के बताये अनुसार मैंने प्रार्थना की.इस कार्य में लगभग पंद्रह मिनट लगे.मैं कुर्सी से उठकर अपना तौलिया कमर में ठीक से लपेटा और फ़ोटो व नाम पता लिखा कागज मेज से उठाकर हाथ में ले लिया.मैं दरवाजे की तरफ चल पड़ा.मैं दरवाजा खोलकर ड्राईंगरुम में जाने के लिए आगे बढ़ा.तभी दायीं तरफ बाथरूम की ओर से आवाज आई-प्लीज..जरा सुनिये..
मैं बाथरूम के दरवाजे के पास जाकर पूछा-सुचित्रा..तुमने मुझे बुलाया..क्या बात है..
दरवाजा जरा सा खोलकर सुचित्रा भीतर से झांकते हुए बोली-प्लीज..मेरा एक काम कर दीजिये..मैं अपना गाउन लाना भूल गई हूँ..आलमारी में रखा हुआ है..मुझे लाकर दे दीजिये..
मैं मुस्कुराने लगा.मुझे मेरी पत्नी की याद आ गई.वो भी अक्सर ऐसे ही बाथरूम में कपडे लेकर जाना भूल जाती है.
मैं सुचित्रा के कमरे के भीतर जाकर शृंगारदानी के पास रखी लाल रंग वाली बड़ी आलमारी को खोला.वो रंग बिरंगे कपडे और समानो से भरी हुई थी.ऊपर के खाने में कई रंग की साड़ियाँ हेंगर पर टंगी थीं.दाहिनी तरफ साड़ी टांगने के साथ साथ एक छोटी सी तिजोरी की भी व्यवस्था थी.तिजोरी के ऊपर मंगलसूत्र और शीशी में लिक्विड वाला सिंदूर रखा हुआ था.मैं सोचने लगा कि ये सब क्यों रखी है.मेरी कुछ समझ में नहीं आया.
नीचे के खाने में नजर डाला तो वहांपर कई गाउन रखे हुए थे.मैं उपरवाला पिंक कलर का गाउन उठाया,उसमे से एक छोटी सी पर्ची निकलकर जमीन पर गिर गई.मैं पर्ची उठाकर देखा तो मुस्कुराने लगा.ये शर्त वाली पर्ची थी,जिसे वो अपने गाउन में छिपाकर रखा थी ताकि गाउन बाथरूम में ले जाकर पर्ची पढ़ ले और जान ले कि पर्ची में लिखा मेरा पसंदीदा कलर क्या है.छल करके शर्त जीतने की उसने पूरी व्यवस्था कर रखी थी.
मैं पर्ची अपने पास रख लिया.आलमारी बंदकर मैं कमरे के बाहर निकल आया.सुचित्रा बाथरूम का दरवाजा जरा सा खोलकर मेरा इंतजार कर रही थी.मैंने उसे गाउन पकड़ा दिया.वो मुस्कुराते हुए बोली-थैंक्यू..आपने मेरी बहुत मदद कर दी.
मैं कुछ कहना चाहता था,परन्तु अंजलि को इसी तरफ आते देख मैं उसकी तरफ बढ़ गया.मैं उन्हें उनकी बहू की फ़ोटो और नाम पता लिखा कागज लौटाते हुए कहा-लीजिये..मैंने अपना कार्य कर दिया है..
वो बैग खोलकर फ़ोटो व् कागज रखते हुए बोलीं.-आप बुरा न माने तो मैं कुछ दक्षिणा आपको समर्पित करना चाहती हूँ.
आप जानती हैं कि मैं प्रार्थना करने की दक्षिणा नहीं लेता हूँ..फिर भी आप ऐसा कह रही हैं..-मैं कुछ नाराजगी से बोला.
वो अपना बैग बंद करते हुए बोलीं-मुझे क्षमा कीजियेगा..आज के समय में तो सबको पैसा चाहिए..
मेरा अपना सिद्धांत है..मुझे ओरों से क्या लेना देना..आइये बैठिये..-मैं सोफे पर बैठते हुए बोला.
मेरे सामने वाले सोफे पर वो बैठते हुए बोलीं-आप तो बहुत अच्छा लिखते भी हैं..मैंने सुचित्रा के लेपटॉप पर पढ़ा है..अब तो मैं अपने घर में अपने बेटे के लेपटॉप पर भी आप की रचनाएं पढ़ लेती हूँ..मैं भी कविताएं लिखती हूँ..यदि आपकी आज्ञा हो तो कुछ कविताएं मैं अपनी प्रस्तुत करूँ..
मैं बोला-आपकी कविताओं का स्वागत है..आप सुनाइए..
उन्होंने भूख और बेकारी पर दो बहुत अच्छी कविताएं सुनाईं.मैंने उन्हें बधाई दी.इसी बीच विभा चाय लाकर सेण्टर टेबल पर रख दी.मेरे लिए वो अलग से एक कप गुड की चाय बनाई थी.उसे सुचित्रा ने ऐसा करने के लिए कहा होगा.
मैंने विभा से पूछा-बिटिया कहाँ है..पालने पर नहीं दिख रही है..
जी..वो भीतर माताजी के पास है..उनके पास जा के बहुत खुश रहती है..-विभा बोलीं.
तभी हरे रंग की खूबसूरत साड़ी में लिपटी सुचित्रा मुस्कुराते हुए ड्राईंगरुम में प्रवेश की.उसके खुले हुए घने लम्बे बाल कमर से नीचे तक लहरा रहे थे.मैं ख़ुशी और आश्चर्य से उसे देखते हुए अपने मन में सोच रहा था कि इसे कैसे मालूम पड़ा कि मैंने पर्ची पर हरा रंग लिखा था.
मेरे पास आकर वो हँसते हुए बोलीं-वो पर्ची दो मुझे..
मैंने उसे चिढ़ाते हुए कहा-तुम शर्त हार चुकी हो सुचित्रा..
मेरे हाथ में रखी पर्ची वो छीनकर लेते हुए बोली-मैं बिना पर्ची देखे अपनी हार क्यों मानू ..
पर्ची खोलकर पढ़ते ही उसका चेहरा ख़ुशी से खिल उठा.वो ख़ुशी के मारे बच्चों की तरह हँसते खिलखिलाते हुए बोली-मैं शर्त जीत गई..अब जो कहूँगी आपको मानना पड़ेगा..
मुझे भी अपनी ख़ुशी में शामिल करो सुचित्रा..मैं भी तो जानू कि क्या शर्त थी..अंजलि बोलीं.
सुचित्रा मेरी तरफ देख हँसते हुए बोली-इन्होने शर्त लगाई थी कि यदि मुझसे प्रेम है तो जो कलर मैं सोचूं..तुम आज उसी कलर के कपडे नहाने के बाद पहनना..मेरी शर्त थी की यदि मैं शर्त जीत गई तो मेरा हर कहना इन्हे मानना पड़ेगा.अपना सोचा हुआ कलर इन्होने इस पर्ची पर लिख रखा है..सुचित्रा पर्ची अंजलि को दिखाने लगी.
इसपर तो हरा लिखा है..तुम तो वाकई शर्त जीत गई..अब इन्हे तुम्हारा हर कहना मानना ही पड़ेगा..सुचित्रा अब तुम जाओ..जाके मंगलसूत्र पहनो..मांग में सिंदूर लगाओ..हाथों में हरी कांच की चूड़िया पहनो..और अपने मन की बात मनवाओ..-अंजलि अपनी सहेली का साथ देते हुए बोलीं.
दोनों मेरी तरफ देख मुस्कुरा रही थीं.मैं ये सोचकर परेशान हो रहा था कि न जाने अपनी कौन सी बात आज मुझसे ये मनवाएगी.मुझे घबराहट और बेचैनी महसूस होने लगी थी.
अंजलि के काले बैग में रखा मोबाइल बजने लगा.वो बैग खोलकर मोबाइल से बात कीं और फिर मोबाइल बैग में रख सोफे से उठते हुए बोलीं-मैं चल रही हूँ..मुझे इसी समय हास्पिटल जाना है..
चलिए..सब मंगल हो..आप जल्द ही अच्छी सुचना दें-मैं बोला.
वो हाथ जोड़कर मुझे प्रणाम करते हुए बोलीं-हास्पिटल पहुंचकर जैसी भी स्थिति होगी मैं आपको सूचित करुँगी..
दरवाजे के पास जाकर अंजलि अपनी सेंडिल पहनी और दरवाजा खोलकर हाथ हिलाते हुए बाहर निकल गई.सुचित्रा दरवाजा भिड़ाकर कुण्डी लगा दी.वो मुस्कुराते हुए मेरे पास आकर बोलीं-चलो उठो..और मेरे साथ चलो..मुझे कुछ जरुरी बात करनी है..
मुझे भी तुमसे कुछ जरुरी बात करनी है..-मैं सोफे से उठते हुए बोला.
मैं उसके साथ चलते हुए उसके कमरे में आया और बिस्तर पर बैठ गया.सुचित्रा ने काले रंगवाली बेडशीट हटाकर गुलाबी रंग की फूलोंवाली खूबसूरत बेडशीट बिछा दी थी.सुचित्रा आलमारी खोलकर पर्ची रखते हुए बोलीं-मैं बहुत सम्भालकर ये पर्ची रखूंगी..ये मेरी जीत की निशानी है..
मैं बिस्तर पर बैठते हुए बोला-सुचित्रा..अब हमें गम्भीर हो जाना चाहिए..मुझे तुमसे कुछ जरुरी बात करनी है..ये दरवाजा अंदर से भिड़ा दो..और मेरे पास आकर बैठो..
सुचित्रा आलमारी बंदकर मुस्कुराते हुए दरवाजे के पास गई और दरवाजा अंदर से भिड़ाकर कुण्डी लगा दी.वो मेरे पास आकर अपने चेहरे पर दिलकश मुस्कान बिखेरते हुए बिस्तर पर मेरी बाई तरफ बैठ गई.उसके गोरे रंग के सुंदर शरीर से बहुत अच्छी खुशबु आ रही थी..हरी साड़ी में लिपटी हुई..कानो में झुमके..नाक में लौंग..और गले में सोने की चैन..वो आज बहुत सुंदर लग रही थी.
सुचित्रा..आज तुम बहुत सुंदर लग रही हो..दिल कर रहा है कि बस तुम्हे देखते रहूँ..-मैं बोला.
मैं तो पिछले बीस वर्षों से कह रही हूँ कि मैं तन मन धन से आपकी सेवा में प्रस्तुत हूँ..आपको याद होगा कि आज से तेईस साल पहले मैंने आश्रम में कहा था कि-आप कहिये मत..आदेश दीजिये.आप मेरे गुरु भी हैं और दोस्त भी हैं..आपकी ये सुचित्रा आपके लिए कुछ भी कर सकती है..आज तेईस साल बाद भी आपसे वही बात मैं कह रही हूँ कि आपकी ये सुचित्रा आपके लिए कुछ भी कर सकती है..आप आदेश दीजिये..-सुचित्रा दृढ निश्चय के साथ मेरी ओर देखते हुए बोलीं.
मैं सुचित्रा की खूबसूरत आंखों में झांकते हुए बोला-मैं तुमसे कुछ सवाल पूछना चाहता हूँ..सच सच जबाब देना..ये तुम्हारे लेपटॉप में हमदोनों के शादी की फोटो कैसी है..हमदोनों ने तो आजतक कभी मंदिर में शादी नहीं की है..
सुचित्रा बोली-ये मेरे मनमंदिर की शादी है..ये हमदोनों के शादी की फ़ोटो मैंने कम्प्यूटर की मदद से बनाई है..मैंने इस फ़ोटो को बहुतों को दिखाया है..घर से लेकर कालेज तक मैं सबको ये यक़ीन दिलाने में कामयाब रही कि आज से पंद्रह साल पहले हमदोनों की शादी मंदिर में हो चुकी है..
तुम्हारी आलमारी में मंगलसूत्र और सिंदूर क्यों रखा हुआ है..ये कब से प्रयोग कर रही हो..और ये सब तुम क्यों कर रही हो..-मैं हैरानी से पूछा.
सुचित्रा बोली-मैं तो पिछले पंद्रह साल से गले में मंगलसूत्र पहन रही हूँ..और अपने माथे पर सिंदूर का छोटा सा टीका लगा रही हूँ..हमारी कालोनी से लेकर हमारे कालेज तक सब जानते हैं कि मैं एक शादीशुदा महिला हूँ..इसीलिए कोई मेरी तरफ ध्यान नहीं देता हैं..इससे मुझे एक सुरक्षा मिली हुई है..
उसकी बात सुनकर मैं परेशान और चिंतित होते हुए बोला-सुचित्रा..तुमने आजतक मुझे ये सब बताया क्यों नहीं..तुम झूठ से भरा विवाहिता स्त्री का जो जीवन रही हो..वो तुम्हारे लिए शारीरिक और मानसिक रूप से कष्टप्रद तो है ही..मेरे लिए भी परेशानी और बदनामी का कारण बन सकता है..प्लीज..तुम ये सब गलत कार्य करना बंद कर दो..
मेरी बात सुनते ही सुचित्रा गुस्से से भरकर बोली-मैं जो कर रही हूँ..वो अगर झूठ और गलत है..तो आप दूसरे से शादी करके मेरे साथ जो छल किये..वो गलत नहीं है..मैं ये सब करके आप के छल का जबाब छल से दे रही हूँ..मैं मरते दम तक ऐसे ही जीवन जिउंगी..मैं मानसिक रूप से आपसे विवाह कर चुकीं हूँ..आप मुझे विवाहिता का जीवन जीने से रोक नहीं सकते हैं..
मैं उसे समझाते हुए बोला- तुम विवाहिता स्त्री का जीवन जीना चाहती हो तो जरुर जियो..परन्तु इस तरह झूठवाला नहीं..बल्कि किसी से शादी करके सच में और सही तरीके से विवाहिता स्त्री का जीवन जीवन जियो..तुम ऐसा करोगी तो मुझे भी बहुत ख़ुशी होगी..
सुचित्रा बोली-ठीक है मैं तैयार हूँ..आप मेरे साथ विवाह कीजिये..आप जिस तरह से चाहें मैं आपसे विवाह करने को तैयार हूँ..
मैं नाराज होते हुए बोला-बेवकूफी वाली बात मत करो..मैं तो पहले से ही शादीशुदा हूँ..अब तुमसे शादी कैसे कर सकता हूँ..मै किसी दूसरें व्यक्ति की बात कर रहा था..दुनिया में मुझसे भी बेहतर एक से बढ़कर एक लोग हैं..तुम एक बार उधर निगाह डालकर देखने की तो कोशिश करो..मै तुम्हारी मदद करने को तैयार हूँ..
मेरी बात सुनकर सुचित्रा का चेहरा गुस्से से लाल हो उठा.वो जोर से चिल्लाते हुए बोली-आपने आज दुबारा मझसे ये सब कहने की गलती की है..मै आपको इस बार माफ़ नहीं करुँगी..अब ये सुचित्रा आपको इस दुनिया में कही नहीं दिखाई देगी..मेरी बस आखिरी इच्छा पूरी कर देना..अपने हाथों से मेरे शरीर का अंतिम संस्कार कर देना..इतना कहकर वो बिस्तर से उठ गई और दरवाजे की तरफ भागी.मै बहुत घबराकर उसके पीछे भागा..
सुचित्रा..प्लीज..मेरी बात सुनो..-ये कहते हुए मै उसे पकड़ना चाहा तबतक वो दरवाजे की कुण्डी खोलकर दरवाजा खोली और ड्राइंगरूम की तरफ भाग गई.मैं कमर से बंधी अपनी तौलिया ठीक करते हुए उसके पीछे भागा.वो मुख्य द्वार तक पहुँच गई थी.उसने बंद दरवाजे कि कुण्डी खोलने के लिए अपना दाहिना हाथ बढ़ाया.मैंने अपने दोनों हाथ से उसका हाथ कस के पकड़ लिया.
सुचित्रा अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए चिल्लाई-छोडो मुझे..मुझे अब नहीं जीना है..मैं मरना चाहती हूँ..आपको भी मुझसे छुटकारा मिल जायेगा..
सुचित्रा..प्लीज..मेरी बात सुनो..और मेरे साथ चलो..हमलोग आराम से भीतर बैठकर बात करते हैं..हमदोनों मिल के इस समस्या का कोई समाधान निकालेंगे..-मैं उसे समझाने की कोशिश किया.मैं बहुत घबराया हुआ था.
क्या बात है..दोनों क्यों झगड़ रहे हो..-सुचित्रा की माता जी हांफते हुए हमारे पास आकर बोलीं.वो बुरी तरह से घबड़ाई हुई थीं.उनके साथ विभा भी थी,जो अपने कंधे पर सो रही बच्ची को लिए हुए थी.
मैं अपने दोनों हाथों से सुचित्रा का हाथ अभी भी कस के पकडे हुए था.मेरा दिल घबरा रहा था और मैं गहरी सांसे ले रहा था.
दीदी से क्यों नहीं कहते हैं कि किसी दूसरे से शादी कर लो..हिम्मत है तो ज़रा उनसे ये बात कह के दिखाएँ..-सुचित्रा गुस्से के मरे चिल्लाते हुए बोली.
स्वामीजी..क्या बात है..आप मुझे बताइए..-सुचित्रा की माताजी बोलीं.
जो सच था,वो मैंने उन्हें बता दिया-माताजी..मैं सुचित्रा को समझा रहा था कि किसी से विवाह करके सचमुच में विवाहिता स्त्री का जीवन जिये..मैं शादीशुदा व्यक्ति उसे क्या दे पाउँगा.,
आपने मंदिर में उससे शादी की है..मैंने खुद शादीवाली वो फ़ोटो देखी है..अब आप सच्चाई से दूर मत भागिए..और उसे स्वीकार कीजिये..अब आप उसके पति हैं..आपदोनों पति पत्नी की तरह से वर्षों से एक दुसरे से व्यवहार कर रहे हैं..आप दोनों बंद कमरे में एक दूसरे मिलते हैं..आपलोग आपस में बात करते हैं..या और भी कुछ करते हैं..किसी और को क्या मालूम.. वो ठीक कह रही है कि जैसे आप अपनी पत्नी से अब दूसरी शादी करने के लिए नहीं कह सकते हैं..ठीक उसी तरह से ये बात सुचित्रा से भी आपको नहीं कहना चाहिए-सुचित्रा की माताजी मुझसे बोलीं.
मैं सुचित्रा से पिछले बाईस वर्षों से अकेले में मिल रहा था.मैं कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया कि सुचित्रा के बनाये चक्रव्यूह में मैं फंसता ही जा रहा हूँ.मैं सच बात उसकी माताजी को बताना चाहता था,परन्तु मैं नहीं चाहता था कि सबके सामने मेरे इतने पुराने मित्र का झूठ उजागर हो और उसकी माताजी को दुःख पहुंचे.मैं सोचने लगा कि किसी दिन तो ये झूठ उजागर होगा ही और उस दिन सुचित्रा की क्या हालत होगी.उसके माताजी का तो हार्टफेल ही हो जायेगा.
मैं मन ही मन कुछ निर्णय लिया और सुचित्रा का हाथ कस के पकड़कर बोला-चलो..मेरे साथ..आज मैं एक निर्णय कर चूका हूँ..
मैं उसे खींचते हुए उसके कमरे में ले गया.मैंने दरवाजा अंदर से भिड़ा दिया.सुचित्रा चुपचाप मुझे निहार रही थी.मैं आलमारी के पास जाकर आलमारी खोला और तिजोरी के ऊपर रखी सिंदूर की शीशी अपने हाथ में उठा लिया.शीशी खोलकर मैंने शीशी के ढ़क्कन में लगे सिंदूर लगाने वाले ब्रश से शीशी में से सिंदूर निकाला और सुचित्रा की मांग में थोडा लगा दिया.दुबारा ब्रश में सिंदूर लेकर मैंने उसके दोनों भवों के बीच छोटा सा टिका लगा दिया.आश्चर्य और ख़ुशी के मारे भावविभोर होकर मुझे देखे जा रही थी.सिंदूर की शीशी बंदकर मैं तिजोरी के ऊपर रख दिया और मंगलसूत्र हाथ में उठा लिया.अपने दोनों हाथों से मंगलसूत्र पकड़ मैंने धीरे से सुचित्रा के सिर से डालते हुए उसके गले तक पहुंचा दिया.उसके सीने पर सोने का खूबसूरत मंगलसूत्र चमकने लगा.वो कुछ बोल नहीं रही थी.बस उसकी दोनों आँखों से झर झर आंसू बह रहे थे.
मैं उसका दोनों हाथ अपने हाथों में लेते हुए बोला-सुचित्रा..अब तुम्हे दुनिया से झूठ बोलने की जरुरत नहीं पड़ेगी..मैंने आज तुम्हारे सारे झूठ को सच में बदल दिया है..अब तक तो तुम सिंदूर और मंगलसूत्र का बोझ भर ढ़ो रही थी.. आज से वो बोझ ख़त्म..अब झूठ नहीं बल्कि सच के रूप में मैं स्वयं तुम्हारे सिंदूर में और तुम्हारे मंगलसूत्र में निवास
करूँगा..तुम्हारा सम्मा और तुम्हारी गरिमा रखने के लिए अब मुझे भी किसी के सामने झूठ बोलेने की जरुरत नहीं पड़ेगी..इतना कहते कहते मेरा गला भर आया और मेरी आँखों से आंसू झलकने लगे.
वो रोते हुए बस मुझे देखे जा रही थी.भावावेश में कुछ बोल नहीं पा रही थी.थोड़ी देर बाद जब वो भावनाओं के समुन्द्र से बाहर निकली तो झुकते हुए मेरे पैरों की ओर हाथ बढ़ाना चाही पर मैंने अपने मित्र को अपने पैरों में झुकने नहीं दिया.उसे अपनी मजबूत बाँहों में लेकर सीने से लगा लिया.
उस दिन देर रात को सुचित्रा ने मुझे घर छोड़ने लिए बहुत जिद किया,परन्तु मैंने उसे सख्ती से मना कर दिया,क्योंकि अब वो मेरी सिर्फ मित्र भर ही नहीं थी,बल्कि और भी बहुत कुछ हो गई थी.वो रात को अपनी गाड़ी लेकर घर से निकलती तो मुझे मेरे घर छोड़कर उसके अपने घर लौटने तक मुझे चिंता लगी रहती.मैं घर पहुँचते ही सबसे पहले सुचित्रा को फोन मिलाया और कहा-सुचित्रा..तुम बिलकुल चिंता मत करना..मैं घर पहुंच गया हूँ..स्वादिष्ट रात्रिभोज देने के लिए और देर रात तक पूरे तन,मन और आत्मा से मेरा यादगार साथ देने के लिए धन्यवाद..शुभरात्रि सुचित्रा..
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(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)
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