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वो यादगार होली और नन्हा सा गुल खिलने की आस-१

सद्गुरुजी
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वो यादगार होली और नन्हा सा गुल खिलने की आस-१
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बहुत दिनों के बाद मैंने आज अपनी पुरानी जीर्ण शीर्ण डायरी के पन्ने फिर खोले हैं.मेरी डायरी में जो यादों के रंग समाये हुए हैं,उसमे होली का रंग भी है.इक्कीस वर्ष की उम्र में अपनी पत्नी अर्पित के संग खेली यादगार होली.डायरी में लिखे आठ मार्च के संस्मरण को पढ़ते हुए मैं पुरानी यादों में खो जाता हूँ.यादें जो भुलाये नहीं भूलती हैं और हमेशा दिल के करीब रहती हैं.यादों के बारे में साहिर लुधियानवी ने कहा है-
साँसों की आँच पाके भड़कता रहेगा ये
सीने में दिल के साथ धड़कता रहेगा ये
वो नक्श क्या हुआ,जो मिटाये से मिट गया
वो दर्द क्या हुआ,जो दबाये से दब गया..

अर्पिता की जिद थी कि सात मार्च को होली के त्यौहार पर मैं उसके साथ रहूँ.मैं होली से दो दिन पहले पांच मार्च को ही उसे बता दिया था कि मैं अब होली के अगले दिन आठ मार्च को ही मैं उससे मिलने आ पाउँगा.उसने होली वाले दिन आने कि जिद पकड़ ली.मैं होली वाले दिन रंग डालने वालों से ज्यादा अपने पिताजी की सख्ती से भयभीत था.मेरे बहुत समझाने पर वो मेरी मज़बूरी समझ इस शर्त पर मानी कि मैं होली के अगले दिन सुबह आठ बजे तक उसके घर पहुँच जाऊं.होली वाले दिन अर्पिता की याद सताती रही.उस दिन रेडियो पर होली के फ़िल्मी गीतों को सुनकर मन में मिलने कि तड़प पैदा होती रही.मैंने अपने परिवार वालो के साथ होली मनाई.रात को सुचित्रा की याद में तड़फते हुए मैंने निश्चय किया कि उसे होली के मौके पर कल एक खूबसूरत साड़ी भेंट करूँगा.बहुत दिनों से मैंने उसे कोई गिफ्ट नहीं दी है.उसी के बारे में सोचते हुए न जाने कब नींद आ गई.
होली के अगले दिन सुबह जल्दी मैं उठा.परन्तु अपने नित्य कर्म से निपटते,कपडे प्रेस करते और नहाते-धोते सुबह के आठ बज गए.मैंने अपने माताजी को एक दिन पहले ही बता दिया था कि कल सुबह आठ बजे मुझे अपने दोस्तों से मिलने जाना है,इसीलिए नाश्ता आठ बजे तक तैयार कर दें.मेरी माताजी ने नाश्ता तैयार करके डाइनिंग टेबल पर लगा दिया था.नाश्ता करने के बाद मैं रसोई घर में गया और अपने माताजी से मैंने कहा-मम्मी..मुझे सौ रूपये चाहिए..मुझे अपने एक दोस्त को होली पर कुछ गिफ्ट देना है..
कौन है वो दोस्त..और क्या गिफ्ट देना है..-माताजी ने पूछा.
बहुत हिम्मत करके मैंने धीरे से कहा-मम्मी..वो एक लड़की है..मुझे उससे प्रेम है..और मुझे उसे एक गिफ्ट देना है..
लड़की के चक्कर में फंसा है,इसीलिए दिनभर घर से गायब रहता है..उसे गिफ्ट देने के लिए मैं तुझे एक रुपया नहीं दूंगीं..मैं अभी जाकर तेरे पिताजी को बताती हूँ..-माताजी ये कहते हुए रसोई घर बाहर निकलने लगीं.
पिताजी का नाम सुनते ही मैं भय से कांपने लगा.अपनी माताजी के सामने खड़ा हो मैं रास्ता रोक लिया और हाथ पैर जोड़ते हुए गिड़गिड़ाकर बोला-ठीक है..रूपये मत दो..लेकिन पिताजी से मत कहो..
वो मानीं नहीं.मुझे एक तरफ धकेल पिताजी से कहने के लिए उनके कमरे में चलीं गईं.मैं भयभीत होकर अपने कमरे में आ गया.मैं पिताजी से भयभीत था,लेकिन अर्पिता को साड़ी देने का मैं दृढ निश्चय कर चूका था.मैं आलमारी खोलकर सबसे नीचे के खाने से अपना मिटटी का गुल्लक निकाला और उसे फर्श पटककर फोड़ दिया.उसमे कुल एक सौ बारह रूपये थे.मैं खुश हो गया कि अर्पिता के लिए साड़ी लेने की और बस से आने जाने भर के रुपयों की पर्याप्त व्यवस्था हो गई थी.मैंने रूपये हेंगर पर टंगी क्रीम कलर वाली पैंट कि जेब में रख लिए.गुल्लक के बड़े टुकड़े में सब छोटे टुकड़े बटोरा और ले जाकर डाइनिंग हॉल के एक कोने में रखी कूड़े की बाल्टी में डाल दिया.
मैं ज्यों ही अपने कमरे में आया,तभी पिताजी ने अपने कमरे से मेरा नाम लेकर आवाज लगाई-ऐ..सुनो..इधर आओ..
मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा और मेरे मन में बहुत घबराहट होने लगी.मैं खुद को मानसिक और शारीरिक रूप से मार खाने के लिए तैयार कर रहा था,जिसकी पूरी सम्भवना थी.मैं अर्पिता के लिए आज पिताजी से मार खाने को भी तैयार था.मैं दृढ निश्चय कर लिया था कि आज अर्पिता के बारे में पिताजी को सबकुछ सच सच बता दूंगा,भले ही मुझे वो मार क्यों डालें.मैं अपने कमरे से बाहर निकल बहुत डरते डरते अपने पिताजी के कमरे में पहुंचा.वो अपने बिस्तर पर बैठकर चाय पी रहे थे.
मुझे देखते ही गुस्से में आ बोले-ये सब मैं क्या सुन रहा हूँ..तुम्हारी मम्मी कह रही हैं कि तुम्हे किसी लड़की से प्रेम हो गया है..और उसे गिफ्ट देने के लिए तुम्हे सौ रूपये चाहिए..फिर उन्होंने बहुत भद्दे तरीके से कुछ स्त्री अंगों का नाम लेते हुए कहा-इन सब के बारे में जानते हो नहीं और प्रेम करने चले हो..कौन है वो लड़की और कहाँ रहती है..
उनके कड़े तेवर देख डर के मारे मेरी घिघ्घी बंध गई.मेज पर रखे उनके मिल्ट्री रूल (एक हाथ भर की बेंत) को मैंने देखा और डर के मारे अर्पिता के बारे में उन्हें कुछ भी नहीं बताया.मैं चुपचाप अपना सिर झुकाकर दायें पैर के अंगूठे और अँगुलियों को सिकोड़कर फर्श पर पैर रगड़ने लगा.
ठीक से खड़े होवो..और सिर उठाकर मेरी तरफ देखो..-वो जोर से चिल्लाये.
मैं सावधान की मुद्रा में सीधा खड़ा हो गया और उनका आदेश सुनने के लिए उनके गुस्से से भरे चेहरे की तरफ देखने लगा.
पिताजी मुझे ध्यान से देखते हुए बोले-तुम्हारे चेहरे की चमक क्यों गायब हो रही है..और तुम्हारे भरे हुए गाल क्यों पिचकते जा रहे है..शरीर से कमजोर क्यों होते जा रहे हो..आजकल किसी गलत संगति में तो नही फंसे हो..या फिर कोई रोग परेशानी हो तो बताओ..
जी..नहीं..कोई परेशनी नहीं..-मैं थूक निगलते हुए बड़ी मुश्किल से बोल पाया.
बीए अच्छे नम्बरों से पास किये हो..और मन लगाकर सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे हो..इसीलिए मैं तुम्हे छोड़ रहा हूँ..अब दुबारा किसी लड़की से प्रेम करने वाली बात मुझे नहीं सुनाई देना चाहिए..नहीं तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा..-पिताजी कुछ शांत होते हुए बोले.
किसी लड़की से उसे प्रेम हो गया है तो इसमें बुराई क्या है..अब वो बालिग हो चूका है..अपना भला बुरा समझता है..-दीदी पिताजी के कमरे में प्रवेश करते हुए बोलीं.
उनकी बात सुनते ही पिताजी क्रोधित होकर बोले-मेरे परिवार में ये सब नहीं चलेगा..तुममे से कोई भी ये सब करेगा तो मैं उसे काट के फेंक दूंगा..तुम इसे शह मत दो और चुपचाप अपने कमरे में जाओ..
दीदी गुस्से के मारे अपने होंठो में कुछ भुनभुनाते हुए अपने कमरे में चलीं गईं.पिताजी मेरी ओर देखते हुए बोले-किसी लड़की को गिफ्ट देने के लिए रूपये नहीं मिलेंगे..अपनी मम्मी से दस बीस रूपये ले लो और होली के मौके पर जाकर अपने दोस्तों से मिलजुल लो..
मैं चुपचाप अपने कमरे में चला आया.सुबह सुबह पिताजी से डांट खा के आँखों में आंसू छलक आये थे.मैं अपने आंसू पोंछा और अर्पिता के पास जाने के लिए तैयार होने लगा.मैं क्रीम कलर वाली नई पैंट कमीज पहन लिया.पेंट कमर से कुछ ढीली थी,इसीलिए मुझे और ऊपर से सफ़ेद रंग की वी शेप गलेवाली हाफ स्वेटर पहन लिया.जेब में रूपये मैं पहले ही रख चूका था.आलमारी से एक सफ़ेद रुमाल निकाल जेब में रख लिया.मोजा और काले रंग का बूट पहना और फिर चलने से पहले मेज से शीशा कंघी उठा बालों को ठीक कर लिया.
मैं अपने कमरे से बाहर निकला तो रसोईघर के पास खड़ी माताजी बोली-दस बीस रुपए चाहिए तो बोल..
नहीं..मुझे रूपये नहीं चाहिए..-ये कहकर मैं घर के मुख्यद्वार की तरफ बढ़ गया.मुख्यद्वार खोलकर मैं घर के बाहर निकल गया.
बस स्टैंड आकर मैंने बस पकड़ी और आधा घंटे बाद सुबह के साढ़े नौ बजे शहर पहुँच गया.मैं साड़ी की दुकान ढूंढ़ने लगा.अधिकतर दुकाने अभी खुली नहीं थीं.बाजार में बहुत दूर तक घूमने पर एक साड़ी की खुली दुकान मिली.दुकान में एक से बढ़कर एक खूबसूरत,परन्तु बहुत महंगी साड़िया थीं.जो मेरे बजट के बाहर थीं.मैंने अपने बजट के अनुसार पीले रंग की फूलोंवाली एक खूबसूरत साड़ी सौ रुपए में खरीदी.दुकानदार सौ रूपये लेकर साड़ी अख़बार के एक पन्ने में लपेटा और एक सफ़ेद पोलिथिन में डालकर मुझे दे दिया.मैं वहाँ से उठकर एक मिठाई की दुकान में गया और ग्यारह रूपये की बर्फी ले लिया.अब मेरे पास घर वापस लौटने के लिए सिर्फ आठ आना शेष बचा था,जो बस में किराया देने के लिए पर्याप्त था.
मैं अर्पिता से मिलने कि बेचैनी लिए उसकी कालोनी की तरफ तेजी से बढ़ा.पंद्रह मिनट पैदल चलने के बाद मैं अर्चना के घर के पास पहुंचा.आसमानी कलर की सलवार कमीज पहने हुए वो अपने छत पर कड़ी दिखी.मुझे देखकर उसने हाथ हिलाया.
मैं कुछ सोचकर उसके गेट के पास रुक गया.मैंने उसे नीचे आने का ईशारा किया.वो कुछ ही क्षणो के बाद नीचे आकर हांफते हुए गेट खोली.वो छत से भागते हुए आई थी.मैंने अपना दायां हाथ बढाकर उसे होली की बधाई दी-होली की बधाई..
उसने भी अपना दायां हाथ आगे बढाकर मुझे हाथ मिलाते हुए मुझे होली की बधाई दी-आपको भी होली की बहुत बहुत बधाई..
मैं चलने लगा तो अर्चना बोली-बस दो मिनट के लिए अंदर चलो..होली का टिका लगवा लो और पापा मम्मी का आशीर्वाद भी ले लो.
वो गेट अंदर से बंद कर दी.मैं सोचा कि होली का मौका है,चलो मिल ही लिया जाये.
मैं हाथ में लिया पोलिथिन के दोनों पैकेट उसे पकड़ा दिया.अपने जूते उतारकर मैं एक तरफ रखा और अर्चना के साथ उसके ड्राइंगरूम की चल पड़ा.
अर्चना के माता पिताजी ड्राइंगरूम में बैठे हुए थे.मैंने मेज पर स्टील की प्लेट में से रखी लाल रंग की अबीर में से थोड़ी सी अबीर ले दोनों को टिका लगाया और दोनों के पैर छुए.उन लोगों ने सोफे से खड़े होकर मुझे टिका लगाया.मैंने अर्चना को टिका लगाया और उसने भी मुझे टिका लगाया.हमदोनों ने हाथ मिलाकर एक दूसरे को बधाई दी.
बैठो बेटा..मैं कुछ खाने को लाती हूँ..-अर्चना के माताजी घर के अंदर जाते हुए बोलीं.
मैं उन्हें मना करते हुए बोला-आंटीजी रहने दीजिये..मैं घर से खाना खा के आ रहा हूँ..
जो अच्छा लगे थोडा सा ले लेना बेटा..हमें ख़ुशी होगी..-अर्चना के पिताजी बोले.
मैं सोफे पर बैठ गया.अर्चना मेरे सामने वाले सोफे पर बैठ गई.वो ख़ामोशी से मुझे देख रही थी.
तुमलोगों की सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कैसी चल रही है..अर्चना के पिताजी ने पूछा.
जी अच्छी तैयारी चल रही है..हमलोग जरुर सफल होंगे..-मैं बोला.
अर्पिता की तबियत अब कैसी है..-अर्चना की माताजी एक प्लेट में घर की बनी मिठाइयाँ और नमकीन ले के आते हुए पूछीं.
जी..अब वो बिल्कुल ठीक है..उसकी सभी दवाएं अब बंद हो चुकी हैं..-मैं बोल.
बेटा..तुमने उस लड़की की किस्मत संवार दी..वो बहुत भाग्यशाली है..-नमकीन और मिठाइयों से भरी प्लेट मेरे सामने रखते हुए अर्चना की माताजी बोलीं.
मुझे अर्पिता के पास पहुँचने की जल्दी थी,इसलिए एक गुझिया और थोडा सा नमकीन खाकर मैंने अर्चना से पानी लाने को कहा.
अर्चना घर के अंदर जाकर एक गिलास पानी ले आई.पानी पीकर मैं सोफे से उठते हुए बोला-अब मैं चलूँगा..अर्पिता मेरा इंतजार कर रही होगी..
ठीक है बेटा..आते जाते रहना..चाहे यहाँ चाहे वहाँ कहीं भी बैठ के तुमलोग सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करते रहो..-अर्चना के पिताजी बोले.
मैं हाथ जोड़कर दोनों को नमस्ते किया और ड्राइंगरूम से बाहर निकल आया.मैं गेट के पास जाकर अपने जूते पहना.अर्चना के हाथ से मिठाई और साड़ी का पोलिथिन बैग मैं ले लिया.
ये अख़बार में लपेटा हुआ क्या है..-अर्चना ने पूछा.
अर्पिता के लिए साड़ी है..-मैं बोला.
मैं देख सकती हूँ..-उसने बड़ी उत्सुक्ता से पूछा.
ठीक है देख लो..-मैं बोला.
वो पोलिथिन बैग से साड़ी का पैकेट निकाल साड़ी पर से लपेटा हुआ अख़बार हटाई और साड़ी खोलकर देखते हुए बोली-बहुत प्यारा कलर है..कितने की ली है..
सौ रूपये की है..मुझे महंगी तो नहीं न दिया है..मैं उससे पूछा.
वो साड़ी थोडा सा खोलकर अपने कंधे पर डालते हुए बोली-नहीं महंगी नहीं दिया है..सौ रूपये में बहुत अच्छी साड़ी दिया है..
वो साड़ी चपतकर अख़बार में लपेटी और पोलिथिन बैग में डाल दी.मैं उसके गेट के पास पहुँच गेट खोलकर बाहर निकलते हुए पूछा-तुम नहीं चलोगी..
तुम चलो..मैं बाद में आउंगी..-अर्चना बोली.
मैं अर्पिता के घर की तरफ चल दिया.अर्पिता के घर के पास पहुँच मैं कालबेल बजा दिया.थोड़ी देर बाद गेट खुला तो सामने पीले रंग साड़ी में लिपटी प्रिया खड़ी थी.
मुझे देखते ही ख़ुशी से चहकते हुए बोली-कितना देर कर दिए साहिब..दीदी सुबह से आपका इंतजार कर रही हैं..आपको देखने के लिए आज सुबह से दस बार वो छत पर जा चुकी हैं..
मैं गेट के अंदर आते हुए बोला-हाँ..मुझे आने में देर तो हो गई है..अब तुम्हारी दीदी की डांट सुननी पड़ेगी..
प्रिया हंसने लगी.वो अंदर से गेट बंदकर मेरे पीछे पीछे आने लगी.फूलों का छोटा सा बगीचा पार कर गैलरी से होते हुए घर के मुख्यद्वार के पास दोनों पहुँच गया.घर के अंदर प्रवेश कर
मैं बोला-लो..ये पैकेट पकड़ो..मैं जूते उतार लूँ..
प्रिया घर के भीतर प्रवेश कर पोलिथिन के दोनों पैकेट मेरे हाथ से ले ली.जूते उतारकर मैं सीढ़ी के नीचे रख दिया.आँगन की तरफ जाते हुए मैं प्रिया से बोल-एक प्लेट में थोडा अबीर मुझे ला के दो..सबको टीका लगाना है..
आँगन के पास जाकर मैं नल से हाथ धोया और तार पर टंगे सफ़ेद तौलिये से हाथ पोंछ लिया.अर्पिता के कमरे से फ़िल्मी गीत बजने की आवाज आ रही थी.प्रिया अर्पिता के पिताजी के कमरे से एक स्टील की प्लेट ले के आई,जिसमे लाल रंग की अबीर रखी हुई थी.
मैं प्लेट हाथ में लेकर एक चुटकी अबीर उठा बोला-आओ..शुरुआत तुम्ही से करता हूँ..
प्रिया हँसते हुए पास आई-साहिब..बस टीका लगाना..
मैं उसके हँसते हुए गोरे माथे पर टीका लगा उसके पैर छूने को झुककर हाथ बढ़ाया.उसने झट से अपने दोनों हाथों से मेरा दायां हाथ पकड़ लिया-नहीं साहिब..मेरे पैर मत छुओ..आप इस घर के दामाद हैं..आप मेरा पैर छुएंगे तो मुझे मुझे दोष लगेगा..
ठीक है..अच्छा लो..मुझे टीका लगा दो..इसमें तो कोई दोष नहीं है न..-मैंने कहा.
ये तो मेरा सौभाग्य है साहिब..-ये कहते हुए वो मुझे टीका लगा दी और झुककर मेरे पांव छू ली.
मैं पीछे हटता हुआ बोला-ये क्या कर रही हो..मुझसे बड़ी हो..
तो क्या हुआ..आप इस घर के दामाद जो ठहरे..आप हमारे लिए पूजनीय हैं..-प्रिया हँसते हुए बोली.
मैं रंगवाली प्लेट हाथ में लिए अर्पिता के माताजी के कमरे में गया.वो बिस्तर पर पैर फैलाकर बैठी थीं और उनके साथ अर्पिता कि बुआ जी बैठीं थीं.दोनों बातें कर रहीं थीं.
मुझे देखकर अर्पिता की माताजी खुश होते हुए बोली-आओ.बेटा..आओ..हमलोग सुबह से तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं..वो अपनी नीले रंगवाली साड़ी का आँचल ठीक करने लगीं.
मैं उन्हें टीका लगाया और उनका पैर छुआ.उन्होंने मुझे टीका लगाकर आशीर्वाद दिया-हमेशा खुश रहो बेटा..
बुआ जी को टीका लगा मैं उनका पैर छुआ.वो मुझे टीका लगा आशीर्वाद देते हुए बोलीं-खूब तरक्की करो बेटा..फिर मुझे ध्यान से देखते हुए बोलीं-शादी के बाद साल भर में ही कितने कमजोर हो गए हो..अर्पिता तुम्हारी सेहत की तरफ ध्यान नहीं देती है क्या..
मैं कुछ न बोल शरमाते हुए आशीष को टीका लगाने लगा,जो अपनी पढाई छोड़कर मेरे पास आ गया था.वो मुझे टीका लगाना चाहता था.मैं सिर नीचे झुकाया तो वो मुझे टीका लगा दिया.
मम्मीजी..अब आपके शारीर का दर्द कैसा है..-मैं अर्पिता के माताजी की तरफ देखते हुए पूछा.
बहुत आराम है बेटा..तुम जो दवा ला के देते हो..वो बहुत काम की है..जुग जुग जियो बेटा..-अर्पिता की माताजी बहुत खुशी के साथ बोलीं.
आप रोज दवा खाते रहिये..दवा ख़त्म होने के दो तीन दिन पहले बता दीजियेगा..मैं दवा ला दूंगा..-मैं बोला.
ठीक है बेटा..दवा ख़त्म होने के दो रोज पहले मैं बता दूंगी..-अर्पिता की माताजी बोली.उन्होंने प्रिया को आवाज दी-प्रिया..दामादजी के लिए चायपानी लाओ..फिर वो आशीष की तरफ देखते हुए बोलीं-आशीष..वो कुर्सी अपने जीजाजी को ला के दे..
मम्मीजी..मैं जरा पापाजी को टीका लगा आऊं..फिर आराम से बैठता हूँ..-मैं बोला.
ठीक है..पर अर्पिता से भी मिल लो..तुमसे नाराज हो गई तो गुस्से के मारे झगड़ना और चिल्लाना शुरू कर देगी..
मैं मुस्कुराते हुए हाथ में अबीर वाली प्लेट लेकर कमरे से बाहर निकल गया.अर्पिता के कमरे से मधुर फ़िल्मी गीत सुनाई दे रहा था.मैं उसके पिताजी के कमरे की तरफ बढ़ गया.
उनके कमरे में प्रवेश किया तो देखा कि अर्पिता के पिताजी बिस्तर पर बैठकर अख़बार पढ़ रहे थे.वो मैरून कलर का गाउन पहने हुए थे.
पापाजी..होली की बधाई..-मैं ये कहते हुए उनके पास पहुंचा और मुस्कुराते हुए प्लेट से अबीर ले उनके माथे पर टीका लगा दिया.मैंने उनके पैर छुए.
खुश रहो बेटा..और जीवन में हमेशा कामयाब होवो..-खुश होकर मुझे आशीर्वाद देते हुए उन्होंने मेरे हाथ में पकड़ी प्लेट से थोडा सा अबीर ले मेरे माथे पर टीका लगा दिया.
बैठो बेटा..-उन्होंने पास पड़ी कुर्सी मेरी तरफ करते हुए कहा.
जी..मैं अर्पिता को टीका लगाकर अभी आता हूँ..फिर आकर आराम से आपके पास बैठता हूँ..-मैं बोला.
हाँ..यही ठीक रहेगा..वो सुबह से ही अपने कमरे में कई तरह का रंग रखकर तुम्हारा इंतजार कर रही है..-अर्पिता के पिताजी हँसते हुए बोले.
उसके कमरे में रंग है तो मैं इस प्लेट को यहीं रख देता हूँ..कोई आएगा तो आपको इसकी जरुरत पड़ेगी..-मैं मेज पर रंगवाली प्लेट रख उनके कमरे से बाहर निकल आया.डाइनिंग हॉल में बने वासवेसिन में साबुन से हाथ धोया.डाइनिंग मेज के पास कुर्सी पा रखे तौलिया से हाथ पोंछा और अर्पिता के कमरे की तरफ बढ़ा,जहाँ से लताजी की मधुर आवाज में ये गीत सुनाई दे रहा था-
पहला मिलन मोसे, नहीं रे सजन का
रहेगा सदा मिलना, धरती गगन का
युग से वो हैं मेरा, मैं उस की रे
खाई हैं रे हम ने कसम संग रहने की
आयेगा रे उड़ के मेरा हंस परदेसी

अर्पिता के कमरे के दरवाजे पर गुलाबी रंग का पर्दा लगा हुआ था और दरवाजा खुला हुआ था.मैं पर्दा हटा अंदर प्रवेश किया.अर्पिता पिंक कलर का नाईटगाउन पहने हुए श्रृंगारदानी के आदमकद आईने के सामने खड़ी होकर अपने खुले हुए बालों में कंघी कर रही थी.मैं उसके पास जाते बोला-अर्पिता हैप्पी होली..होली की बधाई हो..
सारी दुनिया घूमने के बाद बीबी की याद आ रही है..बड़ी जल्दी आ गए..वो चिढ़ते हुए बोली.
मैं मुस्कुराते हुए उसके पीछे खड़ा हो गया.किसी फूल की तरह धीरे से मैंने उसे पकड़ते हुए कहा-सबसे मैं मिल के आ रहा हूँ..ताकि तुमसे इत्मीनान से सारा दिन मिलता रहूँ..
मैं उसके कंधे पर सिर रख दिया.वो वो कुछ बोली नहीं,लेकिन अब भी मुझसे नाराज लग रही थी.उधर टेपरिकॉर्डर पर लता जी की मीठी आवाज गूंज रही थी-
ऐसे तो नहीं उस के रंग में ढली मैं
पीया अंग लग लग के भई सावली मैं
मेरे तन पे छाँव है, उसी की रे
खाई हैं रे हम ने कसम संग रहने की
आयेगा रे उड़ के मेरा हंस परदेसी

मेरी भी यही हालत है..तुम्हारे साथ रह के मैं भी काली होती जा रही हूँ..-अर्पिता मुस्कुराते हुए बोली.
मैं तुम्हे अपने रंग में रंगने के लिए ही तुम्हारे जीवन में आया था..और तुम्हे पूरी तरह से अपने रंग में रंग दिया है..अब तो जैसा भी हूँ तुम्हे स्वीकार करना पड़ेगा..-मैं आईने में उसे निहारते हुए बोला.
अर्पिता घूमकर मेरी तरफ मुंह कर ली.मेरे कंधे पर अपना हाथ रखते हुए बोली-मेरे लिए तो तुम पारस हो..तुमने मुझे छुआ और मैं अपनी वर्षों पुरानी मानसिक बीमारी से छुटकारा पा गई..तुम्हारे साथ नानी के पास गई और एक बहुत बड़ी सम्पत्ति पा गई..और अब माँ बनने का सुख पाने जा रही हूँ..ये कहकर वो मुझसे लिपटकर शरमाते हुए हंसने लगी.
मैं ख़ुशी और आश्चर्य से पूछा-तुम सच में माँ बनने वाली हो..तुम्हे कैसे पता चला..
कुछ दिनों से मेरी माहवारी रुकी हुई थी.पापा अपने हास्पिटल की एक लेडी डॉक्टर को परसों सुबह बुलाये थे..उसी ने चेककर बताया..
इतनी बड़ी खुशखबरी..और आज यहाँ आने पर मुझे किसी ने नहीं बताया..आज मैं मिठाई लाया था..सबको अपने हाथ से खिलाता..मैं बोला.
बुद्धू कहीं के..ये खुशखबरी सबसे पहले पत्नी अपने पति को देती है..अर्पिता हँसते हुए बोली.फिर मेरा हाथ पकड़कर मेज के पास ले जाते हुए बोली-चलो..पहले तुम्हे जी भर के रंग लूँ..सुबह से इंतजार कर रही हूँ..
25-03-holi-155555
वो मुझे मेज के पास ले गई,जहांपर एक ट्रे में लाल .पीला.हरा और नीला अबीर रखा हुआ था.वो ट्रे में से रन बिरंगा अबीर उठा उठाकर देरतक मेरे चेहरे पर पोतती रही और जब मैंने उसके चेहरे पर लाल पीला रंग पोतना शुरू किया तो वो परेशान हो गई और जोर से हँसते खिलखिलाते हुए कमरे से बाहर भाग गई.उसे रंग लगाने की इच्छा अभी मेरी पूरी नहीं हुई थी,इसीलिए रंग की ट्रे लेकर मैं उसके पीछे भी भागा.कमरे से बाहर मैं निकला तो सामने नज़र पड़ते ही ठिठक कर रुक गया.
शेष भाग अगले ब्लॉग में..
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(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)
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