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वो यादगार होली और नन्हा सा गुल खिलने की आस-३

सद्गुरुजी
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वो यादगार होली और नन्हा सा गुल खिलने की आस-३
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एक दिन जब मैं सुबह ग्यारह बजे के लगभग अर्पिता के घर पहुंचा तो अर्पिता की माताजी और अर्चना मुझे वहाँ मिली.अर्चना ने मुझे बताया कि अर्पिता को रात से ही ब्लीडिंग हो रही है..वो आज सुबह हास्पिटल गई है..प्रिया भी उसके साथ गई हैं..
रात को देखा बुरा सपना मुझे याद आ गया.मैं सपने में देखा था कि अर्पिता के गर्भ में एक नन्हा सा बच्चा जोर जोर से रो रहा है और बेरहम डॉक्टर उसका अंग अंग काट के फेंकते जा रहे हैं..मैं उसे बचाने के लिए चिल्ला रहा हूँ..कोई मेरे बच्चे को बचाओ..
अर्चना की बात सुनकर मैं रोने लगा.अर्चना का हाथ पकड़ बोला-चलो..मुझे उस हॉस्पिटल में ले चलो ,जहांपर अर्पिता भर्ती है..
नहीं बेटे..तुम वहाँ नहीं जाओगे..वो एक दो घंटे बाद आ जायेगी..तुम यहीं रुको..-अर्पिता की माताजी बोली.
मैं उनकी बात नहीं माना.सीढ़ी के नीचे आ अपने जूते पहना.अर्चना ने अपनी सेंडिल पारो में डाल ली.मैं अर्चना को लेकर मेनरोड पर आया और बस पकड़कर आधे घंटे में हास्पिटल पहुँच गया.वहांपर अर्पिता के पिता जी से पता चला कि अर्पिता को गर्भपात हो चूका है और उसके गर्भ की सफाई यन्त्र से हो रही है.रक्तस्राव काफी हुआ है,इसीलिए खून चढ़ रहा है.मैं रोये जा रहा था.आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे.थोड़ी देर बाद पता चला कि उसे और खून की जरुरत है.मैंने अपना खून टेस्ट कराया.वो उसके खून से मैच कर गया.अर्पिता के पिताजी के मना करने पर भी मैं नहीं माना और अपनी पत्नी को उतना खून दिया जितनी उसे जरुरत थी.खून देकर उठा तो मुझे चक्कर आ रहा था.अर्चना मुझे सहारा दी.वो भी रो रही थी.
अर्पिता के पिताजी मुझे अपने केविन में ले गए.एक लड़के को उन्होंने चार गिलास संतरे जूस लाने के लिए भेजा.मैं रो रहा था और वो रोते हुए मुझे समझा रहे थे-बेटे..ईश्वर के आगे किसी का भी बस नहीं चलता है..जो हुआ बहुत बुरा हुआ..लेकिन तुम्हारी अर्पिता सुरक्षित है..और पूरी तरह से होश में है..बारह सप्ताह का बच्चा था..इसीलिए थोड़ी कम परेशानी हुई..इससे ज्यादा सप्ताह का होता तो और दिक्कत होती..
मैं सुबकते हुए बोला-मुझे उसके पास ले चलिए..मुझे उसकी बहुत याद आ रही है..
ले चलूँगा..थोड़ी देर रुको..पहले जूस पियो..-अर्पिता के पिताजी बोले.
एक लड़का एक ट्रे में चार गिलास संतरे का जूस ले के आया.जूस पीने का मेरा मन नहीं था,परन्तु अर्पिता के पिताजी ने प्यार से डांट फटकार कर दो गिलास संतरे का जूस मुझे पिलाया.एक गिलास जूस अर्चना ने और एक गिलास जूस अर्पिता के पिताजी ने पिया.
एक घंटे बाद एक लेडी डॉक्टर सफ़ेद कपड़ों में लिपटी हँसते मुस्कुराते हुए केविन में आईं.
अब मेरी बेटी कैसी है..-अर्पिता के पिताजी ने उन्हें देखते ही पूछा.
वो आकर अर्पिता के पिताजी के सामने बैठते हुए बोलीं-अर्पिता अब बिल्कुल ठीक है सर..
अब वो घर जा सकती हैं..हॉस्पिटल के मेडिकल स्टोर से मंगवाकर मैंने उसे खाने की सभी दवाएं दे दी हैं..और उसे सबकुछ अच्छी तरह से समझा भी दिया है..
अर्पिता के पिताजी ने मेरा परिचय कराया-ये मेरे दामादजी हैं..बहुत इंटेलिजेंट हैं..
मैंने उसे हाथ जोड़कर नमस्ते किया.अधेड़ उम्र की कटे हुए बालों वाली लेडी डॉक्टर अपना सिर हिलाते हुए मेरी तरस देख मुस्कुराई और फिर बोली-सर..ये एबॉर्शन नहीं होता..ये इन बच्चों के बहुत ज्यादा सेक्स में इन्वॉल्व्ड होने के कारण हुआ है..
लेडी डॉक्टर की बात सुनकर मैं दुःख और शर्म के मारे मैं अपना सिर झुका लिया.मैं उस लेडी डॉक्टर से नजरें नहीं मिला पा रहा था.मुझे अर्पिता के साथ साथ मुझे अपने ऊपर भी गुस्सा आ रहा था.मैं सोच रहा था कि अर्पिता के उकसाने पर भी मुझे अपने ऊपर नियंत्रण रखना चाहिए था.जो कुछ भी हुआ है उसके लिए अर्पिता के साथ साथ मैं भी दोषी हूँ.दुःख और पश्चाताप के मारे मेरी आँखों से आंसू बह रह रहे थे.
तभी अर्पिता के पिताजी बोले-मेरी लड़की पागल है..मैंने उसे बहुत समझाया था..पर वो मेरी बात नहीं मानी..ये लड़का बहुत समझदार है..परन्तु उसकी हर बात मानने को मजबूर है..जितना इसने अर्पिता के लिए किया है..दुनिया में कोई पति अपनी पत्नी के लिए नहीं कर सकता है..मुझे आपने दामाद पर गर्व है..
लेडी डॉक्टर मेरे पास आकर बोलीं-जो कुछ भी बुरा हुआ है उसे भूल जाओ बेटे..लेकिन अगली बार ऐसी गलती मत करना..जानवरों को देखो..वो कितने समझदार होते हैं..गर्भ ठहर जाने पर जाने पर जानवर यौन सम्बन्ध से दूर रहते हैं..गर्भवती होने पर कुछ स्त्रियों में हार्मोन्स इफेक्ट की वजह से सेक्स सम्बन्ध की इच्छा बढ़ जाती है..परन्तु उसमे बहुत सावधानी रखनी चाहिए..नहीं तो एबॉर्शन हो सकता है..
वो मेरे सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोलीं-नेक्स्ट टाईम के लिए मेरी तरफ से बेस्ट ऑफ़ लक बेटे..
अर्पिता के पिताजी अपनी कुर्सी से उठते हुए बोले-डॉक्टर प्रभा..आप कुछ देर के लिए जरा हॉस्पिटल संभालिये..मैं इन बच्चो को घर छोड़ के आता हूँ..आप अपने लिए कुछ चाय नाश्ता मंगा लीजियेगा..
ठीक है सर..आप जाइये..मैं देख लूंगी..-डॉक्टर प्रभा बोलीं.
मैंने खड़े होकर डबडबाई नजरों से देखते हुए हाथ जोड़कर डॉक्टर प्रभा को नमस्ते किया और किसी तरह से हिम्मतकर पूछा-मैडम..एबॉर्शन से आगे बच्चा पैदा होने में कोई दिक्कत तो नहीं होगा..
वो मेरे गाल अपने हाथ से थपथपाकर हँसते हुए बोलीं-डोंट वोर्री..सिम्पल एबॉर्शन है..कोई दिक्कत नहीं होगी..परन्तु अभी कम से कम पंद्रह दिन दोनों सेक्स से दूर रहना..
अर्पिता के पिताजी मुझे और अर्चना को साथ लेकर अपने केविन से बाहर निकले और गैलरी में कुछ दूर चलने के बाद एक स्पेशल वार्ड में ले गए.
कमरे में घूसते ही मेरी निगाह बिस्तर पर बैठी अर्पिता पर पड़ी.वो गुलाबी रंग कि सलवार कमीज पहने हुए थी और उसी रंग की गले में चुनरी लपेटे हुए थी.ऑरेंज कलर की साड़ी पहनी प्रिया बिस्तर के नीचे फर्श पर बैठकर लाल रंग के बैग में कपडे रख रही थी.
मुझे देखते ही अर्पिता बिस्तर से उठकर खड़ी हो गई और पास जाते ही मुझसे लिपटकर रोने लगी.वो मेरे कंधे पर अपना सिर रख रोते हुए बोली-मुझे माफ़ कर दो राज..मैं तुम्हारे प्रतीक को..तुम्हारी प्रेरणा को नहीं बचा पाई..
मेरी आँखों से आंसू बहने लगे.मैं उसे अपनी बाँहों में ले बस इतना ही बोल सका-जो कुछ हुआ..उसे भूल जाओ अर्पिता..
अर्पिता जोर जोर से रोते हुए बोली-नहीं..मैं कभी नहीं भूल सकती..जो कुछ भी हुआ है..सब मेरी गलती से हुआ है..मैंने अपने बच्चे को मार डाला..
अर्पिता के पिताजी गुस्से से बोले-अब रो रही हो और पछता रही हो..मैंने तुम्हे कितना समझाया था..कि पहला बच्चा है..संभलकर रहो और बच्चे को चोट न पंहुचे..इस बात से सावधान रहो..तुमने न मेरी बात मानी..न अपनी मम्मी की और न अपने बुआ की..अपने साथ साथ इस मासूम लड़के की भी तुमने दुर्दशा कर दी है..
फिर वो कमरे से बाहर जाते हुए बोले-तुमलोग हॉस्पिटल के बाहर चलो..मैं एम्बुलेंस के ड्राइवर को ढूंढ के लाता हूँ..
अर्पिता और प्रिया ने बेड के नीचे पड़ी अपनी सैंडिलें पहन लीं.मैं और अर्चना अर्पिता को पकड़कर कमरे से बाहर निकल आये.हमारे पीछे पीछे प्रिया बैग लेकर आ रही थी.हॉस्पिटल के बाहर आकर सफ़ेद रंग की एक खड़ी एम्बुलेंस के पास आकर हम खड़े हो गए.थोड़ी देर में ड्राइवर को लेकर अर्पिता के पिताजी आ गए.ड्राइवर पीछे का गेट खोल दिया.
मैंने और अर्चना ने अर्पिता को सहारा देकर एम्बुलेंस में चढ़ाया.मैं एम्बुलेंस में भीतर जाकर अर्पिता को पकड़कर सीट पर बैठा दिया और खुद भी उसके पास बैठ गया.वो मुझसे सटकर बैठ गई और हिचक हिचक कर रोने लगी.
हमारे सामने वाली सीट पर आकर अर्चना और प्रिया बैठ गईं.ड्राईवर गेट बंद कर दिया.अर्पिता के पिताजी ड्राइवर के साथ एम्बुलेंस में आगे बैठ गए.एम्बुलेंस चल पड़ी.मैं अपने सामने की सीट पर बैठी अर्चना की तरफ देखा.वो आसमानी रंग की सलवार कमीज और चुन्नी में लिपटी अपने सफ़ेद रुमाल से रह रहकर अपनी आँखों से बहते आंसू पोंछ रही थी.प्रिया दूसरी तरफ मुंह कर रो रही थी.हमसब लोग एकदम खामोश थे.
मैं अपनी जेब से अपना सफ़ेद रुमाल निकाल अर्पिता अर्पिता की आँखों से बहते आंसू पोंछा.अपने आंसुओं को बहता छोड़ मैं रास्तेभर उसकी आँखों के आंसू पोंछता रहा.खून देने के कारण मेरे दायें हाथ में हल्का सा दर्द था और कुछ कमजोरी महसूस हो रही थी.
आधे घंटे में हमलोग घर पहुँच गए.अर्पिता के पिताजी गाड़ी से उतरकर गेट पूरा खुलवा दिए.गाड़ी गेट के अंदर प्रवेश कर गई.घर के बरामदे के पास एम्बुलेंस खड़ी हो गई.
ड्राईवर पीछे का गेट खोल दिया.अर्चना और मैंने सहारा देकर अर्पिता को एम्बुलेंस के नीचे उतारा.प्रिया बैग लेकर नीचे उतर गई.ड्राईवर एम्बुलेंस का गेट बंद कर दिया ताकि हमें घर के भीतर जेन में कोई दिक्कत न हो.बरामदे में खड़ा आशीष हमारे पास आ गया.वो बहुत उदास लग रहा था.
अर्पिता को सहारा देकर मैं और अर्चना गैलरी से होते हुए घर के अंदर लाये.सीढ़ी के नीचे हम सबने अपने जूते सेंडिल उतार दिए.अर्पिता की माताजी धीरे धीरे चलते हुए हमारे पास आ पहुंची थी.अर्पिता उन्हें देखते ही उनके गले लगकर फूट फूट कर रोने लगी.मेरा मन ख़राब हो रहा था.तभी अर्पिता के पिताजी वहाँ आकर प्रिया से बोले-सबके लिए चाय बनाओ..दो कप चाय बाहर बरामदे में दे जाना..मुझे हॉस्पिटल वापस जाना है..अर्पिता को खाना खिला के डॉक्टर प्रभा की दी हुई दवाएं खिला देना..वो घर के बाहर की ओर जाने लगे,फिर पीछे मुड़ बोले-राज को अच्छे ढंग से खाना खिला देना..उसे बिना खाना खाये मत जाने देना..ये कहकर घर से बाहर निकल गए.
अर्पिता को सहारा देकर मैं और अर्चना उसके कमरे में ले गए.प्रिया लाईट जला दी और फैन आन कर दी.अर्पिता को लेकर हमदोनों बिस्तर के पास पहुंचे.बिस्तर पर बिछी नीले रंग की बेडसीट को देखते ही अर्पिता प्रिया के ऊपर बरस पड़ी-मैंने कल तुझे मना किया था न कि इस नीले रंगवाली मनहूस बेडसीट को मत बिछा..पर तू नहीं मानी..चल हटा इसे..और वो पिंक कलर वाली बेडसीट ला के बिछा..
प्रिया भागते हुए गई और थोड़ी देर में पिंक कलर वाली बेडसीट ले आई.नीले रंगवाली बेडसीट को हटा वो पिंक कलर वाली बेडसीट बिछा दी.पिंक कलर वाली पतली चादर वो बिस्तर के एक ओर रख दी.
अर्पिता कुर्सी पर रखी नीले रंग वाली बेडसीट की ओर गुस्से से देखते हुए बोली-इस मनहूस बेडसीट को मेरे कमरे से बाहर ले जा..और भूल से भी कभी इसे मेरे बिस्तर पर मत बिछाना.
प्रिया कुर्सी पर से नीले रंगवाली बेडसीट उठा कमरे से बाहर चली गई.मैं और अर्चना अर्पिता की सहारा देकर बिस्तर पर लिटा दिए.मैं बिस्तर पर बैठते हुए बोला-अर्चना बैठो..ये कुर्सी ले लो..
अर्चना कुर्सी खींचकर हमारे पास बैठ गई.अर्पिता अपने हाथ से आंसू पोंछते हुए अर्चना से बोली-प्रिया से मेरा रुमाल मांग के ला..
अर्चना कुर्सी से उठकर रुमाल लाने के लिए कमरे से बाहर चली गई.अर्पिता मेरी तरफ देखते हुए रुंधे स्वर में बोली-अर्चना को अब विदा करो..मैं तुमसे अकेले में कुछ बात करना चाहती हूँ..
ठीक है..मैं उससे जाने को कहूंगा..पर पहले उसे चाय पी लेने दो..उसने हमारी बहुत मदद की है..-मैं कुछ सोचते हुए बोला.
अर्चना क्रीम कलरवाला एक रुमाल ले के आ गई.वो अर्पिता के चेहरे पर झुककर उसके आंसू पोंछने लगी.वो रुमाल से अर्पिता का पूरा गुलाबी चेहरा पोंछी.
अर्पिता उसके हाथ से रुमाल लेते हुए बोली-अब तुम बैठो..प्रिया चाय ले के आती होगी..चाय पी के जाना..
मैं तुम्हारी बांह गर्म कपडे से सेंक दूँ..तुम बहुत देर से अपनी दायीं बांह को लेकर परेशान लग रहे हो..-अर्चना मेरी तरफ देखते हुए बोली.
क्या हुआ है इसकी बांह में..-अर्पिता परेशान होकर उठ बैठी.
तुम्हे अपना ब्लड दिया है इसने..ब्लड देने के बाद इसे चक्कर आ गया था..-अर्चना बोली.
क्यों दिया मुझे ब्लड अपना..मुझे मर जाने देते..मुझे अपनी ये मनहूस शक्ल तो तुम्हे नहीं दिखानी पड़ती..-अर्पिता रोते हुए मेरी सफ़ेद शर्ट की दायीं बांह का बटन खोल शर्ट की बाजू गोल्डन कलर वाली घडी से ऊपर करते हुए कोहनी तक सरकाकर बोली.
जहाँ से खून निकाला गया था,वहांपर सूजन आ गई थी.अर्पिता वहाँ पर सहलाते हुए बोली-यहाँपर कितना सूज गया है..
हॉस्पिटल के लोग लोग कई जगह पर खून निकालने वाली सुई चुभोकर खूनवाली नस ढूंढे थे..इसीलिए सूज गया है..अंकल जी ने उन लोंगो को बहुत डांटा था..-अर्चना बोली.
मैं वहांपर होती तो मार मार के उन सबों का मुंह लाल कर देती..-अर्पिता सिसकते हुए बोली.फिर आंसू भरी नजरों से मेरी तरफ देखते हुए बोली-आज का दिन ही मनहूस है..मेरा खून बहा..इसका खून बहा..और हमारा बच्चा भी खून मांस का लोथड़ा बनके मेरी कोंख से बह गया..-अर्पिता की आँखों से आंसू बहकर मेरी बांह पर टपकने लगे.
मैं भी रो रहा था,फिर भी उसे समझाने के लिए कुछ कहना चाहा तभी प्रिया चाय ले के
आ गई.मैं अपनी शर्ट की बाजू नीचे गोल्डन कलर वाली घडी तक सरकाकर बटन बंद कर दिया और फिर अर्पिता का रुमाल उठाकर उसके आंसू पोंछने लगा.
अर्चना छोटी मेज खींचकर हमारे समीप कर दी.प्रिया ट्रे उसपर रख दी.ट्रे में काजू,बादाम,बिस्कुट, नमकीन,चाय और तीन गिलास पानी रखा हुआ था.मैंने एक गिलास पानी उठा अर्पिता को दिया.बिस्कुट की प्लेट उसकी तरफ बढ़ाया तो सिर हिलाकर लेने से इंकार कर दी.
मैंने प्लेट अर्चना की तरफ बढ़ाया तो वो बिस्कुट लेने से इंकार करते हुए बोली-नहीं..मैं सिर्फ चाय लूंगी..
अर्चना उठकर एक कप चाय अर्पिता को दी और दूसरा कप मुझे देने लगी तो मैंने कहा-तुम पियो..मैं अभी पानी पिऊंगा.ये कहकर मैं ट्रे से शीशे की गिलास उठाकर पानी पीने लगा.पानी पीकर खाली गिलास ट्रे में रखा और पानी का दूसरा गिलास उठा लिया. मुझे बहुत तेज प्यास लगी थी.मैं दूसरे गिलास का पानी भी पी गया.खाली गिलास ट्रे में रख दिया.
साहिब..मम्मी जी ने ये काजू बादाम आपके लिए भिजवाया है..इसे खा के चाय पिलायेगा..-काजू बादाम की प्लेट उठा प्रिया मेरे सामने कर दी.
नहीं प्रिया..आज कुछ खाने की इच्छा नहीं है..-मैं दुखी स्वर में बोला.
खाओ इसे..तुम्हे मेरी कसम है..-अर्पिता रुंधे स्वर में बोली.
प्लेट प्रिया के हाथ से लेकर कुछ काजू बादाम मैंने खा लिए.फिर काजू बादाम वाली प्लेट ट्रे में रख चाय का कप उठा लिया.
पिया तुमने चाय पी..-मैंने चाय पीते हुए प्रिया से पूछा.
पी लूंगी साहिब..रसोई में रखी हुई है..-प्रिया अपने आंसू पोंछते हुए बोली.
हम तीनो ने चाय पीकर खाली कप ट्रे में रख दिया.प्रिया ट्रे लेकर चली गई.हमतीनो थोड़ी देरतक खामोश रहे.कुछ देर बाद अर्चना कुर्सी से खड़ी होते हुए बोली-चार बजनेवाला है..मैं अब घर चलूंगी..घर से सुबह की निकली हूँ..मेरी मम्मी परेशान होगी..
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ठीक है..अब तुम जाओ..-ये कहते हुए मैं छोटी मेज एक तरफ सरका बिस्तर से उठ खड़ा हुआ.मैं अर्चना का हाथ पकड़ बोला-आज हमारे दुःख में साथ देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया दोस्त..
अर्चना बहुत मुश्किल से रुंधे स्वर में बोली-आज जो कुछ भी बुरा हुआ है..उसे तुमदोनों भूल जाओ..भविष्य के लिए मेरी गुड विशेस तुम दोनों के साथ है..बेस्ट ऑफ़ लक..ये कहकर अर्चना अपना हाथ अर्पिता के कंधे पर रख हल्के से थपथपाई और फिर रुमाल से अपनी आँखे पोंछते हुए कमरे के बाहर निकल गई.
शेष और अंतिम भाग अगले ब्लॉग में..
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(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)
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