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सुमन बिकी नहीं बल्कि अपनी इज्जत बचाई-आपबीती
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लोगों की भीड़ के बीच सुमन अपनी माँ के साथ बड़ी देर से पीछे बैठी हुई थी.पीले रंग की सलवार कमीज पहने थी और अपने हाथ में मिठाई का डिब्बा और एक शादी का कार्ड लिए हुए थी.लोग आ जा रहे थे.मैंने उसे दो बार बुलाया-सुमन आओ..और ये तुम्हारे हाथ में मिठाई और कार्ड कैसा है..
वो शरमाकर हँसते हुए बोली-बताउंगी..पर आप खाली हो लीजिये..मैं अकेले में कुछ बात करुँगी.
लगभग दो बजे सबलोग चले गए.दो घंटे के लिए मैं आश्रम से उठकर अपने घर के भीतर कुछ देर आराम करने के लिए जानेवाला था.मैंने सुबह से बैठे होने के कारण अपनी दुःख रही कमर सीधा किया और उसे बुलाया-अब जल्दी से जो कहना है कहो..मैं दो घंटे के लिए घर के भीतर जानेवाला हूँ..
वो हँसते और शरमाते हुए मेरे पास आकर मिठाई का डिब्बा और शादी का कार्ड मेरे हाथों में रख दी.
किसकी शादी का कार्ड है..-मैंने पूछा.
इसी की शादी का कार्ड है..पहला कार्ड आपको देने आई है..-उसकी माँ बोलीं.
मैं आश्चर्य से पूछा-इसकी शादी हो रही है..किससे हो रही है..और लड़का क्या करता है..
बिरादरी का ही एक लड़का है..वो भी सिलाई कढ़ाई का ही काम करता है..शादी के बाद दोनों मिल के अच्छे ढंग से कमा खा लेंगे..दोनों एक दूसरे को देख के पसंद कर लिए हैं..शादी सादे ढंग से मंदिर में होगी..-सुमन की माँ बोलीं.
ये तो अभी बच्ची है..अभी कितने साल की हुई है..जो इसकी शादी कर रही हो..तुम्हे इसकी शादी करने की इतनी जल्दी क्यों हैं..-मैं कुछ नाराज होते हुए पूछा.
सुमन की माँ बोलीं-महाराज जी..अठारह साल की हो चुकी है..अब ये सयान हो चुकी है..हमारा मोहल्ला भी बहुत खराब है..मोहल्ले के आवारा लड़के खुले सांड की तरह बौराये घूमते हैं..हमारे कमरे खिड़की का शीशा तोड़ के सब झांकते थे..और इसे लेटे बैठे घूरते थे..उनके घरवालों से शिकायत करने पर भी जब वो बदमाश नहीं माने..तो इसने गुसियाकर दो बार अंदर से मिर्ची का पाउडर उनकी आँखों में फेंका..तब वो आवारा सब कुछ सुधरे..अब खिड़की से सब ताकझांक करना बंद कर दिए हैं..परन्तु महाराज जी..अब दूसरी मुसीबत हमारे सामने पैदा हो गई है..बिना इस समस्या को दूर किये इसकी शादी कैसे होगी..आप जबतक दया नहीं करेंगे..तबतक हमारी ये समस्या दूर नहीं होने वाली है..
मैं अपनी गद्दी पर आराम से बैठते हुए बोला-वो समस्या क्या है..
तू ही बता..और सबकुछ बता..महाराज जी से कुछ छिपाना मत..तभी तो वो हमारी मदद करेंगे..-सुमन की माँ सुमन की ओर देखते हुए बोलीं.
सुमन सिर झुककर बोलीं-आप जानते ही हैं कि मैं पढ़ीलिखी नहीं हूँ..बचपन में आपने मुझे सैकड़ो बार समझाया..पर मैं स्कुल नहीं गई..मैं दस साल की उम्र से ही सेठ मनोहर बाबू के घर जाकर सिलाई कढ़ाई का काम कर रही हूँ..मैं उन्हें पापा कहती हूँ..और उनकी पत्नी श्यामली को मम्मी कहती हूँ..आप उन्हें जानते ही हैं..वो लोग आपके यहांपर बराबर आते हैं.
मैं ये सब तो जानता ही हूँ..पर तेरी समस्या क्या है..तू मुझे वो बता..-थकान और भूख से परेशान होते हुए मैं बोला.मैं जल्द से जल्द गद्दी से उठना चाहता था.
सुमन और नीचे सिर झुका रोते हुए बोलीं- मनोहर बाबू मेरी पांच साल की मेहनत की कमाई का पंद्रह हजार रुपया नहीं दे रहे हैं..मैं अपनी शादी पक्की होने के बाद जब उनके पास गई ..तो मैंने उनका पांव छूते हुए उन्हें बताया कि पापाजी मेरी शादी तय हो गई है..मेरा हिसाब कर दीजिये..
वो हिसाब लिखी हुई कापी उठा मेरा हिसाब किये और बोले..सुमन तेरा पन्द्र हजार रूपये मजदूरी का मेरे पास जमा है..मैं तुम्हे तीस हजार रूपये दूंगा..बस तुम जाते जाते मेरी एक इच्छा पूरी कर दो..
मैंने पूछा-पापाजी आपकी क्या इच्छा है..
वो मेरा हाथ पकड़ बोले-सुमन मैं तुम्हे भोगना चाहता हूँ..तुम्हारी मम्मी आज घर पर नहीं है..तुम मेरी इच्छा पूरी कर दो..मैं तुम्हे तीस हजार रूपये दूंगा..
मैं हैरान होकर बोलीं-पापाजी आप ये क्या कह रहे हैं..आपकी बेटी और बहु मुझसे भी ज्यादा बड़ी हैं..क्या आप उनसे ऐसा कह सकते हैं..
वो नाराज होकर मुझे थप्पड़ मारना चाहे..तो मैंने उन्हें जोर से धकेल दिया..वो दूर जा गिरे..मैं उनके घर से रोते और भागते हुए अपने घर आई और अपने घर वालों को सारी बात बताई..
दो दिन बाद मम्मी यानि मनोहर बाबू की पत्नी श्यामली मेरे पास आईं..वो दो दिन से मेरे न आने का कारण पूछीं..मैं रोते हुए उन्हें सारी बात बताई..वो अपने पति को गाली देने लगीं..
वो मुझे ये कहकर अपने घर ले गईं कि चल..मैं अभी तेरा हिसाब कर देती हूँ..तेरे सामने मैं अपने पति को चुन चुन के गालियां दूंगीं..बुड्ढा साठ साल में सठिया गया है..
अपने घर ले जाकर वो मुझे सिलाई वाले कमरे में ले गईं..वहांपर केवल मनोहर बाबू थे..जो चौकी पर बैठे हुए थे..
मम्मी अपने पति को गाली देते हुए बोलीं-तू नामर्द है क्या..इस बच्ची का हिसाब क्यों नहीं करता है..चल इसी वक़्त इसका हिसाब कर..ये कहकर वो कमरे से बहार निकल गईं..और बाहर से दरवाजा बंद कर कुण्डी लगा दीं..
मैं उनकी चाल समझ सचेत हो गई..उनकी बात पर यकीन कर अकेले आने पर मुझे अब पछतावा हो रहा था..
मनोहर बाबू आलमारी खोलकर रुपयों का बण्डल निकले और चौकी पर सरिहाकर रखते बोले-ये साठ हजार रूपये हैं..तू मुझे खुश कर दे..और ये सब रूपये ले जा..
मैं उनके ऊपर थूकते हुए बोली-जा ये रूपये अपनी बेटी को दे दे ..और यही बात अपनी बेटी से कह..हो सकता है वो तेरी इच्छा पूरी कर दे..
ये सुनकर वो आग बबूला हो मुझे और मेरी जाति को गाली देते हुए मेरे साथ जबदस्ती करने की कोशिश करने लगे..मैं उनके मुंह पर थप्पड़ मारते हुए पूरी ताकत से उन्हें दूर धकेल दी..वो चौकी पर जा गिरे..उनके सरियाहे हुए नोटों के बण्डल इधर उधर विखर गए..
मैं खिड़की खोलकर बचाओ..बचाओ..चिल्लाने लगी..
कुछ ही देर में खिड़की पर सात आठ लोग इकट्ठा हो गए..तभी मम्मी दरवाजा खोल दीं..उन्होंने तुरंत खिड़की बंद की और मुझे धमकी दी कि यदि मैंने किसी को ये सब बताया तो वो मुझे जान से मरवा देंगी..
हिसाब की कापी से मेरे हिसाब के सब पन्ने फाड़ उन्होंने जला दिए..और कहा कि अब जा तेरा सब हिसाब हो गया..मैं रोते हुए घर चली आई..और अपनी माँ को सारी बात बताई..
सुमन की बात सुनकर मैं दंग रह गया..उसकी बात पर विश्वास नहीं हो रहा था..क्या आदमी इतना गिर गया है..मनोहर बाबू और श्यामली मेरे सामने कितना धर्मात्मा बनते हैं..क्या वो लोग ऐसा करेंगे..
क्या तू सच कह रही है..-मैंने गंभीर होकर पूछा.
सुमन आंसुओं से तरबतर अपना गोरा सुंदर मुखड़ा ऊपर उठाई और मेरे पांव पर अपने दोनों हाथ रख सिसकते हुए बोली-मेरे लिए आप से बढ़कर कौन है..मैंने आपके रूप में ही भगवान को देखा है..आपके सिवा मैं किसी और भगवान को नहीं जानती..मैं अपने इस भगवान की कसम खाकर कहती हूँ कि मैंने जो कुछ कहा है..वो सब सच कहा है..
उसकी आँखों में मुझे सच्चाई नजर आ रही थी.मैंने सुमन से कहा-तुम मनोहर को फोन मिलाकर मुझे मोबाइल दो..
सुमन अपने काले बैग से अपना मोबाइल निकाली और मनोहर का नंबर मिलाकर मुझे मोबाइल दे दी.थोड़ी देर बाद उधर से मरदाना आवाज सुनाई दी-हेलो..
मैं आश्रम से गुरूजी बोल रहा हूँ..-मैं बोला.
प्रणाम गुरुदेव..मैं मनोहर बोल रहा हूँ..मेरे लिए क्या सेवा है..-उधर से आवाज आई.
मनोहर जी आज शामतक सुमन का सब हिसाब करके उसके घर पर रूपये पहुंचा दीजिये..इसी में आपकी भलाई है..वो लोग उच्च अधिकारियों के यहाँ जाने का मन बना चुके हैं..मैं उनकी मदद करने का मन बना चूका हूँ..-मैं बोला.
नहीं गुरुदेव..आप उन्हें यहाँ वहां जाने से रोकिये..मैं आज शामतक सुमन के घर पंद्रह हजार रूपये भिजवा दूंगा..-मनोहर बाबू हकलाते हुए बोले.
मैं फोन काटकर सुमन को देते हुए बोला-शाम को छह बजे तक रूपये न मिलें तो मुझे फोन करके बता देना.
दोनों को प्रसाद देकर मैंने विदा किया.मैं सुमन के बारे में सोचते हुए खाना खाने चला गया.
आज शाम तो छह बजे सुमन ने मुझे फोन किया-गुरूजी..मेरी मेहनत के पंद्रह हजार रूपये मुझे मिल गए हैं..शाम को मम्मी आकर मुझे रूपये दे गईं..ये सब आपकी कृपा है..मेरी शादी में आपको आना पड़ेगा..नहीं तो मैं शादी नहीं करूंगीं..
मैंने सुमन का फोन काट दिया और आश्रम के सेक्रेटरी का नंबर मिला उनसे बोला-ये मनोहर और श्यामली जैसे लोग आश्रम में न प्रवेश करने पाएं..इसकी व्यवस्था कीजिये..और हाँ..याद रखियेगा कि हमें सुमन की शादी में चलना है..
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(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कन्द्वा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)
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