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भावी संस्कार देख लेना वास्तविक ज्योतिष विद्या है
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हाथों की चंद लक़ीरों का
सब खेल है बस तक़दीरों का
तक़दीर है क्या मैं क्या जानूँ
मैं आशिक़ हूँ तद्बीरों का
इस दुनिया में ज्यादातर लोग भाग्य पर विश्वास करते हैं.बहुत कम लोग ऐसे मिलेंगे जो अपने कर्म पर विश्वास करते हैं.भाग्य पर विश्वास ही व्यक्ति को ज्योतिष और ज्योतिषियों की शरण में ले जाता है.ज्योतिष शब्द का अर्थ है-परमात्मा की ज्योति या परमात्मा की शक्ति.गीता में भगवान कृष्ण ने इसे “दिव्य चक्षु” कहा है.ये “दिव्य चक्षु” भगवान स्वयं प्रदान करते है.दिव्यं ददामि ते चक्षु: अर्थात इस अलौकिक और दिव्य ईश्वरीय योगशक्ति को मैं देता हूँ,जिससे केवल संसार की चीजों को नहीं बल्कि भगवान को भी उसके वास्तविक स्वरुप में देखा जा सकता है.
ज्योतिष विद्या को विज्ञानं का दर्जा देने के लिए उसे खगोल विज्ञानं से जोड़ा गया है,परन्तु मेरे विचार से ये पूर्णतया सही नहीं है.ग्रहों के दुष्प्रभाव के नाम पर जिस तरह से लोगों को डराया जाता है,वास्तव में वैसा कुछ भी नहीं है.ग्रह नक्षत्र उस प्रकार से मनुष्यों को प्रभावित नहीं करते हैं,जिस प्रकार का वर्णन ज्योतिषी या ज्योतिष शास्त्र करते हैं.ज्योतिष शास्त्रों में लिखीं हुईं सब बातें सत्य नहीं हैं.ग्रह नक्षत्रों से भी बड़ी चीज है भगवान की निश्छल भक्ति.भगवान से भक्ति ऐसी हो कि भगवान स्वयं कह दें-
जहाँ भगत मेरो पग धरे,तहाँ धरूँ मैं हाथ !
लारी लागी ही रहे,कबहुँ न छूटे साथ !!
ग्रह नक्षत्र प्राकृतिक रूप से अपना कार्य करते है और हमें भी बिना उनसे डरे ईमानदारी और मेहनत से अपना कार्य करना चाहिए.ज्योतिष विद्या आज एक बहुत बड़ा व्यापार बन चूका है.इसके नाम पर पाखंड और ठगी पूरी दुनिया में जारी है.काशी के महान अौघड़ संत बाबा कीनाराम ने इसे ठग विद्या कहा था.वास्तव में हस्तरेखा और कुंडली आदि स्थूल ज्योतिष है.सूक्ष्म ज्योतिष इससे भिन्न है और ये भगवान में लीन रहने वाले विरले संतों को प्राप्त होता है.सूक्ष्म ज्योतिष वास्तव में क्या है,इसे समझने के लिए ये प्रेरक प्रसंग पढ़िए.
भगवन महावीर हस्तरेखा,कुंडली या अन्य स्थूल ज्योतिष विद्या के ज्ञाता नहीं थे,परन्तु वो अपने दिव्य चक्षु से किसी भी प्राणी के भावी संस्कार को देखने की अदभुद क्षमता रखते थे.एक बार वो अपने एक शिष्य के साथ एक वन से गुजर रहे थे.रास्ते में एक आम के पेड़ के नीचे गेंदे का एक छोटा सा पौधा था.
शिष्य ने भगवान महावीर से पूछा-भगवन ! मैंने सुना है कि दिव्यदृष्टि प्राप्त संत किसी भी प्राणी का भूत,वर्तमान और भविष्य बिना किसी स्थूल ज्योतिषीय माध्यम के देख सकते हैं ?
हाँ..ऐसा संभव है..-भगवान महावीर ने उत्तर दिया.
क्या संत किसी पेड़पौधे का भी भावी संस्कार निहार सकते हैं ?-शिष्य ने पुन: प्रश्न किया.
हाँ..-भगवान महावीर ने उत्तर दिया.
तब शिष्य ने आम के पेड़ के नीचे स्थित हरे भरे छोटे से गेंदे के पौधे की ओर ईशारा कर कहा-भगवन ! इस छोटे से गेंदे के पौधे का भविष्य बताइये..
भगवान महावीर ने उस हरेभरे गेंदे के पौधे को कुछ क्षण निहारा ओर फिर बोले-इसके भावी संस्कार फलने फूलने के दिखाई दे रहे हैं..अत: कुछ दिनों बाद ये खूब फले फूलेगा..
दोनों उस रास्ते पर आगे बढे.कुछ दूर आगे जाने के बाद शिष्य मूत्रत्याग करने के बहाने वापस आया ओर उस हरेभरे छोटे से गेंदे के पौधे को उखाड़ कर फेंक दिया ओर फिर तेजी से आगे बढ़ महावीर के साथ चलने लगा.
दो माह बाद जब उसी रास्ते से दोनों वापस आ रहे थे तो कुछ दूर पर वही आम का पेड़ दिखाई दिया.शिष्य ने महावीर को आम के पेड़ के नीचे स्थित गेंदे के पौधे की याद दिलाई,जिसका भविष्य उन्होंने बताया था.
महावीर कुछ बोले नहीं,अपने शिष्य की ओर देख केवल मुस्कुरा भर दिए.
आम के पेड़ के नीचे जब वो दोनों पहुंचे तो तो शिष्य ने आश्चर्य से देखा कि वहाँपर फूलों से लदी हुई गेंदे की घनी झाडी है,जो भूमि पर लेटी हुई सी लग रही थी.
आश्चर्यचकित शिष्य के मुंह से शब्द निकले-ये कैसे सम्भव है ?
भगवान महावीर ने हँसते हुए कहा-तुम तो इसे उखाडकर फेंक दिये दी,परन्तु इसे तो खिलना ही था.जिस दिन तुम इसे मूत्रत्याग के बहाने आकर उखाड फेंके थे,उसी दिन रात को काफी वर्षा हुई.भूमि पर फेंके गए पौधे की जडों ने मिट्टी को पकड लिया ऑर पोधा भूमि पर लीटा हुआ होने के वावजूद भी फूलों से लहलहा उठा.उसे तो खिलना ही था.
शिष्य बहुत लज्जित था.उसने भगवान महावीर से अपनी गलती के लिये क्षमा मंगी.भगवान महावीर ने उसे क्षमा कर दिया.दोनों आगे की यात्रा पर चल पड़े.
हर व्यक्ति के जीवन में महावीर जी जैसे त्रिकालदर्शी संत का मिलना तो बहुत कठिन है,लेकिन एक चीज सबके पास है और वो है-तदबीर.तदबीर यानि कर्म से व्यक्ति अपनी बिगड़ी हुई तक़दीर बदल सकता है.अपने जीवन में सबसे बड़ी शिक्षा मुझे यही मिली है.
तदबीर से बिगड़ी हुयी, तकदीर बना ले
अपने पे भरोसा हैं तो, एक दाँव लगा ले
क्या ख़ाक वो जीना है, जो अपने ही लिए हो
खुद मिट के, किसी और को मिटने से बचा ले
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सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कन्द्वा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६
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