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त्रिया चरित्रम पुरुष भाग्यम देवो न जानाति- संस्मरण

सद्गुरुजी
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त्रिया चरित्रं पुरुष भाग्यं देवो न जानाति-संस्मरण
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पांडे जी मेरे एक बहुत पुराने शिष्य हैं,वो जब आश्रम में आते हैं तो कोई न कोई रोचक चर्चा छिड़ ही जाती है.आज जब वो आश्रम में आये तो संयोग से एक बैंक के अधिकारी बैठे हुए थे जो अपनी पत्नी की बेवफाई से पीड़ित थे और अपना दुःख ब्यान करते करते फुट फुट कर रोने लगे.वो मुझसे रोते हुए कह रहे थे-गुरुदेव..मैं क्या क्या बयान करूँ..वो मुझसे चोरीछिपे अपने मायके रूपये भेजती है..रोधोकर मेरा बनवाया हुआ नया मकान अपने नाम लिखवा ली है..मेरा सब जमापूंजी लेकर गहने बनवा ली है..मेरे मना करने पर भी मेरे दुश्मन रिश्तेदारों से जा के वो मिलती है..हर पल मुझसे झूठ बोलती रहती है..
अरे साहब..यही तो त्रिया चरित्र है..आप त्रिया चरित्र के जाल में बुरी तरह से फंस गए हैं..-पाण्डे जी मुझे प्रणाम कर बैठते हुए बोले.
पाण्डे जी..ये त्रिया चरित्र क्या है ..-मैंने मुस्कुराते हुए उन्हें छेड़ने की गरज से पूछा.
पाण्डे जी हँसते हुए बोले-आप सब जानते हैं प्रभु..फिर भी पूछ रहे हैं तो बता दूँ कि कोई भी अौरत जब अपना रूप और नखरा दिखा के अपनी सही गलत सब बात मनवा ले तो उसे त्रिया चरित्र कहा जाता है..मेरे पिताजी कहते थे कि-त्रिया चरित्रम पुरुष भाग्यम देवो न जानती मनुष्य कुत: अर्थात स्त्रियों का चरित्र और पुरुषों का भाग्य देवता भी ठीक से नहीं जानते हैं तो बिचारा साधारण मनुष्य उसे कहाँ से जान और समझ पायेगा ? गुरुदेव आप त्रिया चरित्र के बारे में जरूर कहीं न कही पढ़े होंगे..
मैं याद करते हुए बोला-हाँ..मुंशी प्रेमचंद जी के साहित्य में “त्रिया चरित्र” शब्द कई जगह पढ़ा है. अपनी कहानी “त्रिया चरित्र” में उन्होंने एक जगह पर लिखा है-“यह नहीं जानता था कि यह त्रिया चरित्र का जादू है.” अपनी एक अन्य कहानी “दो सखियाँ ” में उन्होंने इस शब्द का प्रयोग इस प्रकार किया है-“आज चार दिन होते हैं, मैंने त्रिया-चरित्र का एक नया अभिनय किया.” अपने उपन्यास निर्मला में “त्रिया चरित्र” शब्द का प्रयोग करते हुए प्रेमचंद जी ने लिखा है-“रुक्मिणी-तू यह त्रिया-चरित्र क्या जाने, यह उन्हीं की लगाई हुई आग है.” मेरी समझ से तो त्रिया चरित्र शब्द का अर्थ है-स्त्री का वो नाज नखरा या उसके प्रेम का वो जादू जो मर्दों से अपनी जिद पूरी करवा ले..
पाण्डे जी सहज भाव से खिलखिलाकर हँसते हुए बोले-गुरुदेव..एकदम सही कहा आपने..अधिकतर स्त्रियां ममता,प्रेम और वफादारी से परिपूर्ण होतीं हैं..परन्तु कुछ स्त्रियां स्त्री जाती के नाम पर कलंक भी होती हैं..जो अपने पति को प्रेम और वफादारी के बदले में शत्रुता और बेवफाई देती हैं..यही त्रिया चरित्र है प्रभु..आपका आदेश हो तो मैं अपने विभाग के एक साहब के जीवन में घटी एक सच्ची घटना बयान करूँ..
पांडे जी गंभीर होते हुए बोले-इस समय तो वो साहब विभाग के एक बहुत बड़े अधिकारी हैं..बीस साल पहले की जब ये घटना है..उस समय वो जूनियर इंजीनियर थे..उनकी नई नई शादी हुई थी..उनकी पत्नी बहुत सुन्दर और पढ़ीलिखी थी..एक बहुत अच्छा मकान किराये पर लेकर वो उसमे रहते थे..साहब सुबह आफिस आते तो फिर देर रात को ही घर लौटते थे..मैं प्रतिदिन उनके लिए दोपहर का खाना लेने के लिए उनके घर जाता था..रोज एक दूधवाले को मैं उनके घर में बैठे हुए देखता था..जो पलंग पर आराम से बैठकर उनकी पत्नी से हंसी मजाक करते हुए दीखता था..मैं सोचने लगा कि साहब से ये बात कहूँ कि न कहूँ..दो महीने बाद मैंने डरते डरते एक दिन साहब से कहा कि-साहब..मैं जब भी खाना लेने के लिए आपके घर जाता हूँ..एक दूधवाले को आपके पलंग पर आराम से बैठकर आपकी पत्नी से हंसी मजाक करते हुए रोज देखता हूँ..साहब आप इस ओर ध्यान दीजिये..
साहब ने मुझे घूर कर देखते हुए कहा-ठीक है पंडित..मैं अपनी पत्नी से आज बात करूँगा..तुम जाओ..और हाँ किसी से तुम इस बात की चर्चा मत करना..
साहब रात को घर गए और इस बारे में अपनी पत्नी से बात किये..वो सच को छिपाते हुए अपने सुन्दर रूप और नाज नखरों का ऐसा बाण चलाई कि अगले दिन साहब ने मुझे अपने आफिस में बुलाया और मुझे थप्पड़ मारते हुए कहा-पंडित..तुम झूठ बोलते हो..मेरी पत्नी मेरी कसम खाके कह रही थी कि दूधवाले से हँसीमजाक करने की बात झूठ है..उलटे वो तुमपर इल्जाम लगा रही थी कि तुम उसे घूरते हो..आज से तुम खाना लेने नहीं जाओगे..मैं किसी और को भेजूंगा..आज से तुम चालीस किलोमीटर दूर वर्क साईट पर अपनी साईकिल से प्रतिदिन जाओगे..यही तुम्हारी सजा है..चलो अब जाओ वर्क साईट पर..मुझे यहांपर दिखाई मत देना..
पाण्डे जी एक गहरी साँस खीचते हुए आगे बोले-गुरुदेव..मैं प्रतिदिन साईकिल से चालीस किलोमीटर दूर वर्कसाइट पर आते जाते हुए सोचता था कि-हे प्रभु..ये कैसा न्याय है..झूठे का बोलबाला और सच्चे का मुंह काला है..कभी कभी मैं रो देता था..भगवान सब देखते हैं..उनके घर में देर है..पर अंधेर नहीं..एकदिन साहब को आफिस के काम से दो दिन के लिए शहर से बाहर जाना था..वो अपनी पत्नी को बताकर सुबह घर से निकल पड़े..स्टेशन पर पहुंचकर उनका बाहर जाने का कार्यक्रम केंसिल हो गया..वो अपने घर पहुंचे..दोपहर का समय था..घर के बाहर एक दूधवाले की साईकिल खड़ी थी..साहब दरवाजा खटखटाने की बजाये खिड़की से झांके तो अंदर का दृश्य देखकर सन्न रह गए..उनकी पत्नी आपत्तिजनक स्थिति में एक व्यक्ति के साथ पलंग पर लेटी थी..दोनों हंसहंसकर बातें और अश्लील हरकतें कर रहे थे..पत्नी की ये बेवफाई देख साहब का खून खोलने लगा..किसी तरह से अपने ऊपर नियंत्रण कर उन्होंने दरवाजा खटखटाया..कुछ देर बाद उनकी पत्नी ने दरवाजा खोला..
वो घबराते हुए पूछने लगी-आप बाहर नहीं गए..
साहब कुछ नहीं बोले..वो घर के अंदर जा दरवाजा भिड़ा दिए..हाथ में पकड़ा सूटकेस उन्होंने मेज पर रख दिया..और फिर जाकर गोदरेज की आलमारी खोल अपना लाइसेंसी रिवॉल्वर निकाल लिया..रिवॉल्वर अपनी सुन्दर पत्नी के माथे सटाते हुए पूछा-बोल..मेरे प्यार में क्या कमी थी कि तुझे किसी दूसरे मर्द की जरुरत पड़ गई..
आप ये क्या कह रहे हैं..ये सब झूठ है..क्या आप को मुझपर विश्वास नहीं है..-उनकी पत्नी डर के मारे घिघियाते हुए बोली.
आज मैंने अपनी आँखों से तुझे किसी पराये मर्द की बाँहों में पड़े देखा है..तुझपर अब भी मैं विश्वास करूँ..-साहब ने चीखते हुए कहा.
यहांपर कोई नहीं है..आप मुझपर झूठा शक कर रहे हैं..-उनकी पत्नी साहब से लिपटते हुए बोली.
साहब उसे अपने से दूर धकेल चारपाई के नीचे झुके और वहांपर छिपकर बैठे दूधवाले का हाथ पकड़ उसे चारपाई से बाहर खिंचते हुए बोले-अबे..तू इसका आशिक है और मर्द का बच्चा है तो चारपाई के नीचे छिपकर क्यों बैठा है..चल बाहर निकल..
दूधवाला नौजवान हाथ जोड़कर खड़ा हो गया.वो डर के मारे थर थर कांप रहा था.साहब ने दोनों को एक साथ खड़ा कर कहा-अब तुम दोनों सच सच बोलना..नहीं तो मैं तुम दोनों को गोली मार दूंगा..
उन्होंने दोनों को घूरते हुए पूछा-तुम दोनों एक दूसरे को चाहते हो..
दोनों ने अपनी नजरें और सिर झुकाकर बहुत सहमे हुए और धीमे स्वर में अपने प्रेम प्रपंच को स्वीकार किया.साहब ने कुछ देर सोचा और फिर आलमारी के पास जा तिजोरी खोलते हुए अपनी पत्नी से कहा-तुम अपने कपडे,गहने और जितने रूपये चाहिए,इस आलमारी से निकाल लो..और सब सामान सूटकेस में भरकर इस दूधवाले के साथ इस घर से बाहर निकल जाओ..अब मेरे तुम्हारे सारे रिश्ते खत्म..
साहब की पत्नी चुपचाप सिर झुकाकर रोती रही..और हाथ जोड़कर साहब से माफ़ी मांगती रही..
साहब गुस्से के मारे चिल्लाते हुए बोले-तुम सब सामान लेकर इस व्यक्ति के साथ मेरे घर से बाहर निकल जाओ..नहीं तो तुमदोनो को गोली मार के मैं अपने आप को भी गोली मार दूंगा..
साहब की पत्नी ने डरते और रोते हुए सब सामान सूटकेस में भरा और अपने प्रेमी दूधवाले के साथ घर से बाहर निकल गई..दूधवाले के घर जाने पर साहब की पत्नी को पता चला कि वो तो पहले से ही शादीशुदा है और उसके दो बच्चे भी हैं..साहब के सास ससुर को इस कांड का पता चला तो वो अपनी बेटी से साफ कह दिए कि हमारे घर के दरवाजे अब तुम्हारे लिए हमेशा के लिए बंद हो चुके है..अब तुम उसी दूध वाले के साथ रहो..
वो दूधवाले की दूसरी पत्नी बनकर रहने लगी..गाय भैंस का गोबर फेंकने से लेकर खेत तक में काम करने लगी..दूधवाले की पहली बीबी से आये दिन लड़ाई झगड़ा गालीगलौज़ सब झेलने की आदती होइ गई..कुछ समय बाद कई बच्चों की माँ बन गई..
मैं एक गहरी साँस खींचते हुए बोले-बहुत दुखदाई घटना है..आपके साहब का क्या हुआ..फिर शादीविवाह किये कि नहीं..
पाण्डे जी बोले-कई साल तक साहब अपनी धोखेबाज पत्नी के गम में घुटते रहे..अंडा तक नहीं खाने वाले साहब सब खाने पीने लगे..कई साल बाद साहब अपने घरवालों के बहुत मनाने पर दूसरी शादी किये..उन्हें दूसरी ओरत बहुत प्रेमी और वफादार मिली..उसने अपने प्रेम और सेवा से साहब को घुट घुट के मरने से उबार लिया..साहब की खाने पीने की सब बुरी आदत भी छूट गई..भगवान के प्रति उनके मन में उन्हें फिर से विश्वास और श्रद्धा पैदा हो गई..रोज कई घंटे तक पूजापाठ करने लगे..दूसरी पत्नी से दो बच्चे हुए..अब तो दोनों बच्चे बहुत बड़े हो चुके हैं..
चलो अंत भला तो सब भला..पहली ओरत चरित्रहीन मिली तो दूसरी चरित्रवान मिली..अंत में आपके साहब का कल्याण हुआ..-बैंक अधिकारी यादव जी अपनी आँखे पोंछते हुए बोले.
यादव जी..आपको अपनी पत्नी के चरित्र पर शक नहीं न है..-मैं पूछा.
नहीं गुरुदेव..इस मामले में मैं भाग्यशाली हूँ..मेरी पत्नी में लाख कमिया हैं..परन्तु एक अच्छाई है कि वो पतिव्रता स्त्री है..-यादव जी हाथ जोड़कर बोले.
मैं उन्हें समझाते हुए बोला-तब आप उसकी कमियों पर बहुत ध्यान मत दीजिये..उसे प्यार से समझाइये..वो आपकी बात जरूर सुनेंगी..और मायके के चक्कर में अपने परिवार के हितों की अनदेखी नहीं करेंगी..
प्रसाद ग्रहण करने के बाद यादव जी और पांडेजी अभिवादन कर चले गए और मैं सोचने लगा कि इस सत्य घटना को मुझे मिडिया पर प्रकाशित जरूर करना चाहिए..आप सबकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी..!! जयहिंद !! !! वन्देमातरम !!
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आलेख और प्रस्तुति=सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कन्द्वा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६.
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