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बिंदिया चमकेगी..चूड़ी खनकेगी..मित्र से जुड़ा संस्मरण

सद्गुरुजी
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बिंदिया चमकेगी..चूड़ी खनकेगी..मित्र से जुड़ा संस्मरण
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सुबह से ही लोंगो से मिलने जुलने में व्यस्त रहने के कारण आज मैं बहुत देर से भोजन कर पाया.भोजन करके उठा तो दिवालघड़ी की तरफ देखा.दिन के अढ़ाई बज रहे थे.हाथ मुंह धोकर करके और कपडे पहनकर मैं आँगन में आया तो लाल साड़ी में लिपटी अंजलि पलंग पर बैठी मेरे माताजी और पत्नी से बात करती दिखीं.मेरी बेटी नए खलौनो से खेलने में व्यस्त थी.उसके पास कुरकुरे व चिप्स के कई पैकेट पड़े थे.
मुझे देखते ही अंजलि दौड़कर मेरे पास चलीं आईं-प्रणाम गुरुदेव..क्षमा कीजियेगा.. मैंने आपको विश्राम के समय में डिस्टर्ब किया..
जी..कोई बात नहीं..अब आपका पोता कैसा है..-मैंने मुस्कुराते हुए पूछा.
आपकी कृपा है..अब वो बिल्कुल ठीक है..-अंजलि बहुत प्रसन्नता के साथ बोली.
ठीक है..आप बैठिये..और कुछ चाय पानी ग्रहण कीजिये..-मैं अपने कमरे की तरफ बढ़ते हुए बोला.
अपने कमरे में पहुंचा तो देखा कि हरे रंग की खूबसूरत साडी पहनी सुचित्रा मेरे कम्प्यूटर में बड़े ध्यान से कुछ पढ़ रही थी.भोजन के लिए जाते समय मैं अपना कम्प्यूटर खुला ही छोड़ गया था.उस समय मैं एक लेख लिख रहा था.मेरा एफएम रेडियो खोलकर सुचित्रा फिल्मीगीत सुन रही थी.
मैंने तुझसे, मुहब्बत की है, गुलामी नहीं की बलमा
दिल किसी का टूटे, चाहे कोई मुझसे रूठे
मैं तो खेलूँगी, मैं तो छेड़ूँगी
यारी टूट-दी ये ते टूट जाए
बिंदिया चमकेगी, चूड़ी खनकेगी
तेरी नींद उड़े ते उड़ जाए
कजरा बहकेगा, गजरा महकेगा
माही रूस जाए ते रूस जाए

मैंने हाथ बढाकर एफएम रेडियो बंद कर दिया.सुचित्रा मुझे देखते ही कुर्सी से उठ खड़ी हुई.मेरे बहुत रोकने पर भी नहीं मानी और मेरे पैरों को स्पर्श करते हुए बोली-ये मेरा अधिकार है..आप मुझे पांव छूने से मना नहीं कर सकते..
अच्छा ठीक है..बैठो..-इतना कहकर उसके करीब एक कुर्सी खींचकर मैं बैठ गया.
आपने रेडियो क्यों बंद कर दिया..इतना अच्छा गाना आ रहा था..-सुचित्रा मुस्कुराते हुए मुझे छेड़ने की कोशिश करने लगी.
वो अपना हाथ रेडियो की तरफ बढ़ाने लगी तो मैं उसका हाथ पकड़ बोला-रेडियो मत खोलो..मुझे तुमसे कुछ जरुरी बातें करनी है..
सुचित्रा हाथ मिलाने की कोशिश करते हुए हंसकर बोली-आज दीदी से मैंने आपकी खूब शिकायत की है..आपकी ढेर सारी बुराईयाँ मैंने उन्हें बताईं हैं..और थोड़ी बहुत आपकी तारीफ भी की है..
सब सुनकर क्या कहा उन्होंने..-मैंने मुस्कुराते हुए पूछा.
उन्होंने कहा कि इस बारे में मैं क्या कहूँ..आप जाने और वो जाने..आप लोंगो की पुरानी दोस्ती है..मैं आप दोनों के बीच में कुछ नहीं बोलूंगी..-सुचित्रा कुछ निराश होते हुए बोली.
तुमने पति पत्नी के बीच में झगड़ा करने की पूरी कोशिश की..परन्तु मेरी पत्नी बहुत समझदार हैं..वो तुम्हारी झूठी बातों के जाल में नहीं फंसीं..स्त्री चरित्र से बहुत भली भांति वाकिफ है वो.. -मैं उसे चिढ़ाते हुए बोला.
ऐसा मत कहिये..मैंने आपकी सिर्फ बुराई ही नहीं बल्कि बड़ाई भी तो की है..-सुचित्रा बोली.
मैं उसे चिढ़ाने की गरज से बोला-तुम्हारी स्थिति विदुषी चन्द्रकला के जैसी हो गई है..उसने भी तुम्हारी तरह से एक विद्वान पंडित जी को स्त्री चरित्र समझाने के लिए उनकी बुराई भी की और बड़ाई भी की..
ये विदुषी चन्द्रकला कौन है..-सुचित्रा मेरी बात काटते हुए बोली.
ये एक कथा है..जो बहुत समय पहले मैंने अपने मौसा जी से सुनी थी..बहुत संक्षेप में तुम्हे सुनाता हूँ..एक गांव में चन्द्रकला नाम की एक बहुत सुन्दर विदुषी स्त्री रहती थी..वेद,शास्त्रों का उसे बहुत अच्छा ज्ञान था..उसके गांव में काशी के एक विद्वान पंडित जी पहुंचे..संयोग से पंडित जी उस स्त्री के यहाँ ही रुके..उस स्त्री के पूरे परिवार ने पंडित जी का बहुत सेवा सत्कार किया..पंडित जी को पता चला कि चन्द्रकला जितनी सुन्दर है उतनी ही विदुषी भी है..पंडित जी के मन में उसके ज्ञान की थाह लेने की इच्छा उतपन्न हुई..उन्होंने उस परिवार और गांव वालों के समक्ष चन्द्रकला से शास्त्रार्थ का प्रस्ताव रखा..चन्द्रकला उनके प्रस्ताव को स्वीकार कर ली..शाम को उसके घर के बाहर गांव वालों की भारी भीड़ जुटी..चर्चा का विषय था-वेद शास्त्रों के ज्ञान से सम्मान-प्राप्ति..पंडित जी वेद शास्त्रों से कई श्लोक सुनाकर सिद्ध किया कि वेद शास्त्रों का ज्ञान व्यक्ति को सम्मान दिलाता है और वेद शास्त्रों का ज्ञान नहीं होना मनुष्य को साधारण जीवन जीने पर मजबूर करता है..
चन्द्रकला पंडित जी की बात का विरोध करते हुए बोली-पंडित जी..स्त्री चरित्र से बड़ा कोई वेद शास्त्र नहीं है..वो चाहे तो आप जैसे वेद शास्त्रों के ज्ञाता को भी अपमानित और सम्मानित कर सकती है..
पंडित जी ये सुनकर नाराज होते हुए बोले-स्त्री चरित्र को आप वेद शास्त्र बता रही हैं..जो मुझे अपमानित और सम्मानित कर सकती है..आप को ये बात प्रमाण देकर सिद्ध करनी होगी..
चन्द्रकला ने उनकी चुनौती स्वीकार करते हुए कहा-ठीक है..कल सुबह मैं ये बात सिद्ध कर दूंगी..
अगले दिन सुबह चन्द्रकला के घर के बाहर गांव वालों की भीड़ जुट गई.पंडित जी सुबह का स्नान कर मन्त्रजाप करने के लिए अतिथिकक्ष में चले गए.चन्द्रकला ने घर का द्वार खोल दिया और अतिथिकक्ष में चली गई.उसने अतिथिकक्ष का द्वार अंदर से भिड़ा दिया.कुछ देर बाद वो परिवार और गांव वालों का नाम लेकर जोर जोर से चिल्लाने लगी-मंगरु काका..झगरू चाचा..जल्दी आओ..रामू भैया..माधव भैया..जल्दी आओ..
उसने दशों लोंगो का नाम लेकर पुकार.लोग दरवाजा खोलकर भीतर घुसे.चन्द्रकला ने भयभीत सी मुद्रा बनाकर पंडितजी कि तरफ अंगुली से इशारा किया.लोगों ने पंडित जी को पकड़कर मारना पीटना शुरू कर दिया.
कुछ देर बाद चन्द्रकला लोगों को रोकते हुए बोली-ठहरो..पंडितजी को मत मारो..मैं तो पंडित जी की सिद्धि देखकर भयभीत हो गई थी..वो हवा में उड़ते हुए मंत्रजाप कर रहे थे..वो तो बहुत बड़े सिद्धपुरुष हैं..हम सबको उनकी सेवा सत्कार करनी चाहिए,,
ये सुनते ही पंडित जी को मारने पीटने वाले लोग उनका पैर छूकर माफ़ी मांगने लगे.पूरा गांव उनके सेवा सत्कार में जुट गया.गांव भर में उनकी सिद्धि की चर्चा होने लगी.कुछ देर पहले इतना अपमान और अब इतना सम्मान..पंडित जी आश्चर्य से सारा तमाशा देख रहे थे.
शाम को सब से विदा लेकर गांव से चलते समय पंडित जी का सामना जब चन्द्रकला से हुआ तो हाथ जोड़कर बोले-देवी..अब मैं भलीभांति समझ गया हूँ कि स्त्री चरित्र से बड़ा कोई वेद शास्त्र नहीं है..वो चाहे तो मुझ जैसे वेद शास्त्रों के ज्ञाता को भी अपमानित और सम्मानित कर सकती है..
सुचित्रा कहानी सुनकर चिढते हुए बोली-मुझे आप ये कहानी क्यों सुनाये..मैं चन्द्रकला नहीं हूँ..मैं तो दीदी से आपकी शिकायत करके बस यूँ ही मजाक कर थी..आपके सम्मान के लिए यदि कभी जरुरत पड़ी तो मैं अपनी जान भी दे दूंगी..वो अपनी गीली आँखे पोंछने लगी.
मैं उसे सीरियस देखा तो उसका हाथ अपने दोनों हाथों में लेते हुए बोला-तुम ऐसा मत कहो..मेरे पुराने मित्रों में तुम्ही एक तो साथ हो..और सब तो मेरा साथ छोड़ चले गए..
मैं भी सीरियस हो चला था,तभी मेरी अढ़ाई साल की बिटिया हाथ में खिलौना लिए मेरे पास आ पहुंची.मेरी गोद में बैठकर वो सबसे पहले मेरे हाथ सुचित्रा के हाथ से छुड़ाई और फिर अपना खिलौना मुझे दिखाने लगी-पापा..देखो..
कौन दिया है बिटिया..-मैंने पूछा.
बिटिया नहीं..बेटा..-उसने मुझे टोका.
मैंने हँसते हुए कहा-अच्छा ठीक है बेटा बोलूंगा..ये खिलौना बेटा तुम्हे कौन दिया है..
वो अपने नन्हे हाथ से सुचित्रा की तरह ईशारा करते हुए बोली-आंटी ने..
सुचित्रा बिटिया के सिर पर हाथ फेरते हुए बोली-आंटी नहीं..मम्मी कहो बेटा..
नहीं..मम्मी हम..-बिटिया नाराज होकर बोली.वो मेरे हाथ पर अपना हाथ मारते हुए बोली-ये बाबू है..हम मम्मी..
सुचित्रा खिलखिलाकर हंस पड़ी-बहुत प्यारी बच्ची है..कितनी मासूम बातें करती है..
मासूम नहीं बहुत चंट है..घर में सबकी नक़ल करती है..कभी पापा बनेगी..कभी मम्मी तो कभी दादी..-मैं बिटिया की तरफ देखते हुए बोला.
बिटिया की नजर बिस्तर पर रखे सुचित्रा के काले बैग पर गई तो वो मेरी गोद से उतर खिलौना फर्श पर फेंक दी और जाकर सुचित्रा का बैग उठा ली.मैंने उसे मना किया-आंटी जी का बैग है..बेटा छूना नहीं..
वो बैग लेकर हँसते हुए घर के भीतर भाग गई.मैं बैग लाने के कुर्सी से उठा-मैं तुम्हारा बैग ले के आता हूँ..कोई नुकसान न करे वो..
सुचित्रा मेरा हाथ पकड़ कुर्सी पर बैठाते हुए बोली-आप बैठिये..बैग में ऐसा कुछ भी नहीं है..कुछ देर खेलेगी फिर वापस कर देगी..
चाय पिओगी या शर्बत..-मैंने पूछा.
चाय रहने दीजिये..शरबत पी लूंगी..बहुत गर्मी है..पता नहीं कैसे आप इस कमरे में रहते हैं..दीवारों पर प्लास्टर नहीं है..खिड़की दरवाजे नहीं लगे हैं..कमरे में एक कूलर तक नहीं है..पूरा कमरा तप रहा है..कैसे आप यहाँपर आराम करते हैं..भगवान जाने..-सुचित्रा कमरे में चारो ओर देखते हुए बोली.
अभी इन सब चींजों के लिए मेरे पास रूपये नहीं हैं..मकान बनवाते समय जिन लोंगो से मैंने मदद लिया था..पहले उनके रूपये तो लौटा दूँ..फिर इन सब चीजों के बारे में सोचूंगा..-मैं बड़ी सहजता से सच बोल दिया.
मैं कुर्सी से उठकर कुछ दूर गया और शरबत लाने के लिए घर के भीतर आवाज दिया.मेरे कुर्सी पर बैठते ही सुचित्रा फिर बोलना शुरू कर दी-मैं नहीं मानती कि आप के पास रूपये नहीं हैं..यदि वास्तव में नहीं हैं तो मुझसे कहिये..
मैं मुस्कुराते हुए बोला-उपरवाले का शुक्र है कि मेरे जैसे फ़क़ीर की सभी जरूरते पूरी हो जाती हैं..मुझे चिंता तो उन अमीरों की है..जिनके पास बेशुमार दौलत होते हुए भी उनकी इच्छाएं पूरी नहीं हो पाती हैं..
मेरी बात सुनते ही सुचित्रा गुस्से से तिलमिलाकर उठ खड़ी हुई.उसके ह्रदय पर कुछ ज्यादा ही चोट मैंने कर दी थी.तुरंत खड़े होकर मैं उसे कुर्सी पर बैठाया.तबतक शर्बत और बिस्कुट आ चूका था.मैं उसके हाथ में शर्बत का गिलास पकड़ा दिया.
ये लड़की कौन है..जो शर्बत ले के आई थी.,.-सुचित्रा सहज होने की कोशिश करते हुए पूछी.
मेरे चाचा जी की लड़की है..मेरी पत्नी की अंगुलियां जल गईं थी..इसीलिए घरेलू कामकाज में उनकी मदद करने आई है..-मैं बोला.
इतनी कमउम्र में इसकी शादी भी हो चुकी है..-सुचित्रा आश्चर्य से बोली.
हाँ..अठारह साल की पूरी होने के बाद इस साल फ़रवरी में इसकी शादी हुई है..-मैं बोला.
कमउम्र की शादी के कुछ फायदे भी है..और कुछ नुकसान भी है..पर आज के माहौल को देखते हुए अठारह साल के बाद शादी कर देना अच्छा है..आजकल तो आठ-दस साल के बच्चे बॉयफ्रेंड और गर्लफ्रेंड ढूंढने लग जा रहे हैं..हम भी अपनी बिटिया की शादी अठारह साल के बाद कर देंगे..वो अपनी पढाई लिखाई और कॅरियर बनाना शादी के बाद भी जारी रखेगी..अपने जीवन में जो कुछ भी बनना चाहेगी..उसके लिए वो अपना प्रयास करती रहेगी.
मैं चुप रहा.कुछ बोला नहीं.मेज पर से रुहआफजा शर्बत का गिलास उठाकर मैं पीने लगा.
सुचित्रा मॉनिटर की तरफ देखते हुए बोली-मेरे ऊपर अप्रेल में जो दो संस्मरण लिखे थे..वो अबतक पब्लिश क्यों नहीं किये..मैं आज वो दोनों ड्राफ्ट पढ़ी हूँ..कुल पंद्रह ड्राफ्ट हैं जो आपने अबतक पब्लिश नहीं किये हैं..
उस समय चुनावी माहौल था..देशहित के लिए मोदी जी का समर्थन करना जरुरी था..इसीलिए मैंने व्यक्तिगत संस्मरण वाले ब्लॉग पब्लिश नहीं किये..-मैं बोला.
वो शर्बत का गिलास ट्रे में रख माउस पर अपना दाहिना हाथ रखते हुए बोली-लाइए मैं आज सब ड्राफ्ट पब्लिश कर देती हूँ..
मैं उसका हाथ पकड़ते हुए बोला-नहीं..ऐसा मत करो..मैं उन सबको पढ़कर उसके बारे में फैसला करूँगा..
सुचित्रा मेरी तरफ देखते हुए बोली-संस्मरण पढ़ने के लिए ही मैं आपके ब्लॉग खोलती हूँ..जो संस्मरण मुझे अच्छा लगता है..उसे मैं कई कई बार पढ़ती हूँ..राजनीतिक लेख मुझे बकवास लगते हैं..चुनाव के समय मैंने तो न्यूज़ देखना बंद कर दिया था..हर न्यूज़ चैनल पर बस एक ही रट थी..मोदी..मोदी..आप भी अपने ब्लॉग पर वही रट लगाये हुए थे..
मैं मुस्कुराते हुए बोला-आखिर मोदी जी केंद्र में एक स्थिर सरकार बना लिए न..हम सब का प्रयास सफल हो गया..
मोदी जी का समर्थन करके क्या मिल गया आपको..मैं तो आपके राजनीतिक लेख पढ़ के ऊब गई..-मुझे खुश होते देख सुचित्रा चिढ़ते हुए पूछी.
देश को एक स्थिर,ईमानदार और सुशासन करने वाली सरकार मिल गई..एक बहुत योग्य प्रधानमंत्री मिल गया..मुझे और क्या चाहिए..जब देश हित की बात हो तो हुश्न और इश्क दोनों को रुसवा कर देना चाहिए..-मैं गम्भीर होकर बोला.
सुचित्रा कुछ देरतक चुपचाप मुझे देखती रही,फिर बोली-आपको कुछ जरुरी बात मुझसे करनी थी..
मैं कुछ याद करते हुए बोला-हाँ..मैं सोच रहा हूँ कि अगले साल आश्रम की वर्किंग कमेटी का चुनाव होना है..तो क्यों न तुम्हे सचिव बना दिया जाये..आश्रम के जनकल्याणकारी कार्यों को देश विदेश में फ़ैलाने के लिए मुझे तुम्हारी बहुत जरुरत है..
सुचित्रा के चेहरे पर ख़ुशी की चमक और उसके होंठों पर मुस्कान विखर गई,परन्तु कुछ ही पलों के बाद वो उदास होकर बोली-आपकी सेवा करके मुझे ख़ुशी होती..परन्तु मैं सरकारी सर्विस में हूँ..इसीलिए अभी ये प्रस्ताव स्वीकार नहीं कर सकती हूँ..रिटायर होने के बाद आश्रम की सेवा करुँगी..
मैं कुछ निराश सा हो गया.वो मेरी हिम्मत बढ़ाते हुए बोली-आप परेशान मत होइए..जो भी लिखने पढ़ने का कार्य हो मुझे सोप दीजियेगा..
क्षमा कीजियेगा..मैं आप लोंगो को डिस्टर्ब कर रही हूँ..परन्तु अब हमारे चलने का समय हो गया है..शाम के चार बज गए हैं..-अंजलि हमारे पास आते हुए बोलीं.
मैं कुर्सी से उठते हुए बोला-आइये बैठिये..
वो अपना बैग खोलीं और उसमे से एक लिफाफा निकालकर मेज पर रखते हुए बोलीं-नवरात्र के समय में आपने मुझपर असीम कृपा की थी..मेरा पोता आईसीयू में था..और उस समय मुझे रूपये की सख्त जरुरत थी..त्यौहार पर बैंक बंद थे और सब एटीएम खाली हो चुके थे..
मैं सबकुछ याद करते हुए बोला-जी..मुझे याद है..नवरात्र में जिसदिन मैं सुचित्रा के यहाँ आया था..उसदिन संयोग से सुबह ये रूपये एक शिष्य ने आश्रम में वाटर प्यूरीफायर लगवाने के लिए दिए थे..मुझे ख़ुशी है की ये रूपये एक बच्चे की जान बचाने में काम आये..
अंजलि भावुक होकर हाथ जोड़ बोली- गुरुदेव..मुझे क्षमा कीजियेगा..आपके रूपये लौटने में मुझे बहुत देर हुई..आपकी कृपा से मेरा पोता मौत के मुंह में जाने से तो बच गया..परन्तु मैं बहुत ज्यादा कर्ज के बोझ तले दब गई हूँ..वो अपनी आँखे पोछने लगी.
मैं अंजलि को समझाते हुए बोला-आप घबराइये मत..कुछ महीनो के बाद कर्ज से छुटकारा मिल जायेगा..आप बैठिये..मैं अभी आता हूँ..
घर के अंदर जाकर मैंने चाय बनाने को कहा-तीन कप चाय बना दो..
वापस अपने कमरे में आया तो दोनों मोबाईल और कालबेल सब एकसाथ बज रहे थे.मैं जाकर गेट खोला और अभिवादन करते हुए अंदर आते लोंगो को बैठने के लिए कहा-आप लोग आश्रम वाले कमरे में बैठिये..मैं दस मिनट में आता हूँ..
मैं अपने कमरे में आया और आकर बिस्तर पर बैठ गया.मेरी कुर्सी पर अंजलि बैठी थी.सुचित्रा बहुत अपसेट लग रही थी.वो कुर्सी से उठकर बिस्तर पर मेरे पास बैठ खिसियाते हुए बोली-मैंने आपको फोन पर मना किया था न कि आज किसी और को समय मत दीजियेगा..
मैंने आज किसी को भी मिलने का समय नहीं दिया था..-मैं बोला.
आपने सबको मना किया था..फिर भी लोग आपसे मिलने के लिए आते चले जा रहे हैं..इसीलिए मैं यहाँपर नहीं आती हूँ..आपको मेरी कोई परवाह ही नहीं है..-सुचित्रा नाराज होते हुए बोली.
मैं कुछ बोलता उससे पहले अंजलि बोल पड़ी-सुचित्रा..तुम यहाँपर गलत हो..शास्त्रों में कहा गया है कि अतिथि देवो भव:.क्या घर आये मेहमान को कोई भगा देता है..और फिर लोंगो की सेवा करना तो गुरुदेव का कर्तव्य है..
अंजलि..तुम बीच में मत बोलो..मुझे गुस्सा आ गया तो तुम्हे कुछ अपशब्द कह दूंगी..या फिर उठ के यहाँ से चल दूंगी..-सुचित्रा गुस्से से बोली.
मैं कुछ सोचकर बिस्तर से उठा और अपने मित्र सुचित्रा का हाथ पकड़ उसे उठाते हुए बोला-तुम उठो..और मेरे साथ चलो..
सुचित्रा चुपचाप मेरे साथ चल पड़ी.मैं उसे घर के भीतर अपनी पत्नी के कमरे में ले गया.मैंने उसे कुर्सी पर बैठाया और खुद बिस्तर पर अपनी पत्नी के साथ बैठ गया.सुचित्रा को खुश करने के लिए एक जोखिम मैं मोल ले रहा था.जोखिम केवल इतना ही था कि सुचित्रा मेरी पत्नी को दीदी न कह दे.मेरी पत्नी को इस बात की बहुत चिढ है कि उनसे कई साल बड़ी होकर भी सुचित्रा उन्हें दीदी कहती है.
मैंने अपनी पत्नी से कहा-आप भी इस कलर की एक साड़ी ले लीजिये..देखिये गाढ़ा हरा रंग इनपर कितना अच्छा लग रहा है..साड़ी से मैच करती हरी चूड़ियाँ और माथे पर हरी बिंदी सबकुछ बहुत सुन्दर है..सुचित्रा मुस्कुराते हुए सबकुछ चुपचाप सुनती रही…
मेरी पत्नी ने मेरा साथ देते हुए कहा-मुझे तो इनके कान का झुमका बहुत पसंद है..ऐसा ही मेरे पास भी था जो ये मकान बनवाते समय बिक गया..
आपको पसंद है तो ले लीजिये..मैं दूसरा बनवा लूंगी..-सुचित्रा हँसते हुए अपने दोनों हाथ झुमका उतारने के लिए अपने कान पर ले गई.
मेरी पत्नी झट से उसका हाथ पकड़ लीं-नहीं..ये आप क्या कर रही है..मैं नहीं लूंगी..आपके कान में ये बहुत सुन्दर लग रहे हैं..इसे पहने रहिये..मैं भी कुछ दिन बाद नया खरीद लूंगी..अब हमलोग सबके कर्जों से मुक्त हो चले हैं..बस थोड़ा सा रह गया है..
सुचित्रा का मूड फ्रेश हो चूका था.इतने में चाय आ गई.मैं आँगन से एक स्टूल उठा लाया.मेरे चाचा जी की लड़की चाय की ट्रे उसपर रख दी.
एक चाय अंजलि मैडम को दे आओ..-मैं बोला.
मैं उन्हें चाय दे आई हूँ..वहां पर बिस्कुट भी रखा हुआ है..-वो बोली.
ठीक है..तुम भी चाय पी लो और माता जी को भी दे दो..-मैं बोला.
ये कितना ठंडा कमरा है..और गुरूजी का कमरा तो आग उगलता है..-सुचित्रा चाय पीते हुए बोली.
ये उसी के आदि हो चुके हैं..मैं तो इन्हे समझा के थक चुकी हूँ..अब आप ही इन्हे समझाइये..आपके गुरु भी हैं..और पुराने मित्र भी हैं..-मेरी पत्नी हँसते हुए बोलीं.
सुचित्रा मेरी तरफ देख मुस्कुराते हुए बोली-कुछ दिन के लिए मैं इन्हे अपने साथ ले जाती हूँ..कुछ दिन मुझे भी इनकी सेवा करने का सौभाग्य मिलेगा..इस समय मेरी छुट्टिया भी चल रही हैं..
मेरी पत्नी मेरी तरफ देख हँसते हुए बोलीं-इन्हे दो दिन आप अपने यहाँ नहीं रख पाएंगी..इनके गणों से आप परेशान हो जाएँगी..आपका घर आश्रम बन जायेगा..ये मेरे और आपके बिना रह सकते हैं..परन्तु अपने गणो के बिना नहीं..
मैं उठते हुए बोला-मैं चल रहा हूँ..लोग मेरा इंतजार कर रहे हैं..फिर मैं सुचित्रा से बोला-सुचित्रा..तुम बैठो..मैं दो घंटे बाद आता हूँ..
सुचित्रा उठते हुए बोली-नहीं.,.अब मैं चलूंगी..घर पर मेरी बिटिया मुझे ढूंढ रही होगी..
छह महीने की हो गई होगी बिटिया..-मेरी पत्नी ने पूछा.
नहीं..अभी तो चार महीने की हुई है..किसी दिन उससे मिलने आइये न..सुचित्रा बोली.
आउंगी..अभी तो अंगुलिया जली हुई हैं..इसीलिए कहीं जा नहीं पा रही हूँ..-मेरी पत्नी बोलीं.
मैं पत्नी के कमरे के बाहर निकलकर आँगन में आया तो देखा कि मेरी बिटिया आराम से फर्श पर बैठकर सुचित्रा के बैग से रुमाल शीशा,कंघी,लिपस्टिक और गाड़ी की चाभी आदि सब सामान निकालकर खेल रही थी.मैं डांटते हुए उससे बैग लेकर सब सामान उसमे रखने लगा.मेरी बिटिया नाराज होकर रोते हुए मुझसे बैग छीनने लगी-मम्मी का बैग है..
मैं उसे समझाने लगा-नहीं बेटा..ये मम्मी का नहीं आंटी जी का बैग है..किसी का बैग खोलना गन्दी बात है..
उसे बैग दे दीजिये..मेरे पास कई बैग हैं..-सुचित्रा पास आते हुए बोली.
रुकिए ..मैं अपना बैग लाके उसे देती हूँ..-मेरी पत्नी ये कहकर अपने कमरे में गईं और ठीक वैसा ही अपना बैग लाकर बिटिया को दे दीं.सुचित्रा का बैग मैं बिटिया से लेकर सुचित्रा को पकड़ा दिया.वो सबसे विदा ले मेरे साथ गैलरी से होकर मेरे कमरे की तरफ बढ़ने लगी.गैलरी के बीच मुझे रोकते हुए सुचित्रा बोली-पंद्रह दिन हो गए थे आपसे मिले..मन में बहुत बेचैनी थी..यहाँ आकर बहुत अच्छा लगा..परन्तु मेरा मन अभी तृप्त नहीं हुआ है..मुझे दिनभर का समय दीजिये..मैं किसी दिन सुबह आपको लेने आउंगी..
तुम परेशान मत होना..मैं जल्द ही किसी दिन समय निकालकर आऊंगा..बिटिया और माता जी से भी मुलाकात हो जाएगी..-उसे साथ लेकर मैं अपने कमरे की तरफ बढ़ते हुए बोला.
अंजलि हमें देखते ही कुर्सी से उठकर खड़े होते हुए बोली-गुरुदेव..अब हमें जाने की इजाजत दीजिये..बहुत से लोग आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं..
सुचित्रा बैग से रुमाल निकाल अपना चेहरा पोंछी.दोनों अभिवादन कर चल दीं.मैं चौखट के पास खड़ा हो उन्हें जाते हुए देखता रहा.उनके गेट से बाहर जाने के बाद मैं अपने कमरे के भीतर आ गया.कम्प्यूटर वाली मेज पर रखे रूपये से भरे सफ़ेद लिफाफे पर मेरी नजर पड़ी तो सोचा कि इसे आलमारी में रख दूँ.मैं मेज के करीब जाने लगा तभी नीचे फर्श पर मेरी नजर सुचित्रा के माथे की हरी बिंदिया पर पड़ी,जो शायद चेहरा पोंछते समय उसके माथे से गिर गई होगी.मैंने वो गोल हरी बिन्दिया अपने हाथ में ले लिया.अनजाने में मेरे मित्र का दिया हुआ ये एक अनमोल तोहफा था.मैं मुस्कुराते हुए अपने होंठो में बुदबुदाया-बिंदिया चमकेगी..चूड़ी खनकेगी..
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संस्मरण और प्रस्तुति=सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कन्द्वा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६.
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