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प्रकृति के पांचोतत्व प्रदूषित हो चुके हैं-पर्यावरण दिवस

सद्गुरुजी
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प्रकृति के पांचो तत्व प्रदूषित हो चुके हैं-पर्यावरण दिवस
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कभी मनुष्य प्रकृति की गोद में रहता था,जब उसकी जरूरतें सिमित थीं.अब प्रदूषण की गोद में रहता है,क्योंकि उसकी आवश्यकताएं असीमित हैं.कहा जाता है कि आवश्यकता आविष्कार की जननी है.विज्ञानं मनुष्य की असीमित आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मानव सभ्यता के विकास के साथ साथ आविष्कार करता रहा और प्रदूषण दिन प्रतिदिन बढ़ता रहा.आज विकास के चरमशिखर पहुंचकर विश्व की अधिकांश जनता भौतिक सुखसुविधाओं का भोग करने के साथ साथ विभिन्न तरह के जानलेवा प्रदूषण को झेलने के लिए भी मजबूर है.प्रदूषण को यदि विज्ञानं की कोख से जन्मा विष कहा जाये तो कोई गलत बात नहीं होगी.इस विष को आज समूचा विश्व पीने को मजबूर है,कोई राष्ट्र कम तो कोई ज्यादा.अत:प्रदूषण अब कोई किसी देश विशेष की समस्या न होकर एक अंतर्राष्ट्रीय समस्या बन गया है हमसब को मिलकर इस समस्या का हल ढूँढना होगा.
पंचतत्वों से निर्मित प्रकृति के संतुलन में जब दोष पैदा हो जाता है,तो उसे प्रदूषण कहा जाता है.आकाश तत्व प्रदूषित हो जाने को ध्वनि प्रदूषण कहा जाता है.कल-कारखानो,वाहनों और लाउड स्पीकरों के शोर से आकाश तत्व इतना प्रदूषित हो गया है कि व्यक्ति का शांति से जीना मुश्किल हो गया है.लोगों में बहरापन और मानसिक तनाव की बीमारी बढ़ती जा रही है.कल-कारखानों और मोटर वाहनों के काले धुंए से वायु तत्व प्रदूषित हो गया है,जिससे स्वच्छ वायु में साँस लेने का सौभाग्य मिलना मुश्किल हो गया है.प्रदूषित वायु में साँस लेने से लोग विभिन्न प्रकार की असाध्य बिमारियों का शिकार हो रहे हैं.वाहनो के काले धुवों से उड़ने वाले प्रदूषित कण सांस के साथ मनुष्य के फेफड़ों में चले जाते हैं और कई असाध्य रोगों को जन्म देते हैं.हर तरफ बढ़ती हुई सघन आबादी और हरेभरे वृक्षों का अभाव इस समस्या को और बढ़ा रहा है.अग्नितत्व प्रदूषित हो जाने से पूरे विश्व का तापमान बढ़ रहा है.ग्रीनहाउस गैस यानि कि कार्बन डाईऑक्साइड वातावरण में बढ़ रही है,जिससे ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन पूरे विश्व में रहा है.बर्फीले पहाड़ों पर ग्लेशियर पिघलने से समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है,जो पंद्रह वर्ष बाद कई द्वीपों और देशों के अस्तित्व के लिए बहुत बड़ा खतरा बनने जा रहा है.
जलतत्व का प्रदूषित होते जाना होना हमारे देश के लिए सबसे बड़ी समस्या है.कल-कारखानो और सीवर का गन्दा जल नदियों के साथ मिलकर बहुत भयानक जल प्रदूषण पैदा कर रहा है.हमारे देश की नदियों का जल इतना प्रदूषित हो गया है कि पीने की तो बात दूर रही,वो नहाने लायक भी नहीं रह गया है.हमारे देश में पेट से संबंधित अनेक बिमारियों का दूषित पेयजल है.भारत में आज के समय में बहुत कम आबादी को शुद्धजल पीने को मिल रहा है,देश की अधिकांश आबादी अशुद्ध जल पीने को मजबूर है.पृथ्वी तत्व या मिटटी तत्व प्रदूषित हो जाने कारण शुद्ध खाद्य पदार्थ खाने को मिलना अब कठिन होता जा रहा है.उपज बढ़ाने के लिए केमिकल खाद और जहरीले कीटनाशकों का प्रयोग अनाज और फल-फूल आदि सभी खाद्य पदार्थों को प्रदूषित करता जा रहा है.हमारे देश में गंदे जल से सिंचाई के कारण कई बीमारियां फसलों में चली जाती हैं जो बाद में भोजन के माध्यम से मनुष्य के शरीर में पहुंचकर घातक बीमारियां पैदा करती हैं.
इस प्रकार से हम देख रहे हैं कि प्रकृति के पांचो तत्व प्रदूषित हो चुके हैं.आज मनुष्य को साँस लेने को न शुद्ध वायु मिल रही है,पीने को न शुद्ध जल मिल पा रहा है, खाने को न ही शुद्ध खाद्य पदार्थ मिल पा रहा ह और चैन से जीने को न तो शांत वातावरण ही मिल पा रहा है.पर्यावरण-प्रदूषण के कारण समय पर वर्षा नहीं आ रही है और न ही सर्दी-गर्मी का चक्र ठीक चल रहा है.देश में समय समय पर प्रताड़ित करने वाले सूखा, बाढ़, ओला आदि प्राकृतिक प्रकोपों का कारण भी प्रदूषण ही है.कल-कारखानों के प्रदूषण से होने वाले विनाश का सबसे दुखद और ज्वलंत उदाहरण भोपाल गैस कांड है.हम सब लोग जानते है कि भोपाल गैस कारखाने से रिसी गैस के कारण हजारों लोग मर गए थे और न जाने कितने लोग अपंग हो गए थे.वृक्षों की अंधाधुंध कटाई हो रही है.हरेभरे खेत तथा पोखरे-तालाब और वृक्षों के झुरमुट में बसे गांव गायब होते जा रहे हैं,उनकी जगह हरियाली विहीन घनी आबादी वाली कंक्रीट की कालोनिया लेती जा रही हैं.प्राकृतिक असंतुलन और प्रदूषण बढ़ने का मूल कारण यही है.
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अंत में इस समस्या के समाधान पर चर्चा करूँगा.मेरे विचार से हर प्रकार के प्रदूषण की रोकथाम के लिए सरकार और जनता दोनों को जागरूक होना पड़ेगा.सरकार हर सड़क के किनारे घने वृक्ष लगवाये.आबादी वाले क्षेत्रों और कालोनियों में जहाँपर संभव हो,वहांपर वृक्षारोपण जरूर हो.सरकार कल-कारखानो को आबादी से बहुत दूर लगाने की अनुमति दे.कारखानो का और शहरों का प्रदूषित जल-मल व कूड़ा-कचरा नदियों में गिरने से रोका जाये.उसे शहर से दूर ले जाकर नष्ट करने का उपाय खोजा जाये.मित्रो,मैंने अपने अबतक के जीवन में कई तरह के पेड़ पौधे बहुत सी जगहों पर लगाये हैं.वे सब आज फल फूल रहे हैं.जब भी जाकर उन हरेभरे लहलहाते वृक्षों को मैं देखता हूँ तो मैं वैसे ही रोमांचित हो जाता हूँ,जैसे किसी पुराने मित्र से मिलने पर.खुश हो जाता हूँ.आप सबसे मेरा अनुरोध है कि अपने हाथों से पेड़ पौध जरूर लगाएं ताकि खुली स्वच्छ हवा में आप तरोताजा साँस ले सकें.!! जयहिंद !! !! वन्दे मातरम !!
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सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६.
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