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राम नाम का जप और वृद्ध की सेवा करने का फल-प्रसंग
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रोग,चोट,बीमारी,आर्थिक तंगी,मृत्यु और विभिन्न प्रकार की अन्य समस्याएं हरेक के जीवन में आतीं हैं.मनुष्य इसे कर्मों का भोग और ख़राब समय कहता है.किसी ज्योतिषी या तांत्रिक से बात कीजिये तो वो आपको इतना महंगा उपाय सुझाएगा कि उसपर प्रयोग करना मध्यम वर्ग के लोगों के बस के बाहर की बात हो जाती है.आइये एक महान संत के मध्यम से जाने कि इन सब समस्याओं से छुटकारा पाने का सरल उपाय क्या है.आज से काफी समय पहले संत रामदास अपने एक युवा शिष्य के साथ काशी पधारे थे.स्वामी जी अपने शिष्य के साथ एक मंदिर में रुके थे.वो प्रतिदिन अपने शिष्य को भिक्षा लाने के लिए शहर की गलियों में भेजते थे और भिक्षा से प्राप्त अन्न के द्वारा एक समय भोजन ग्रहण करते थे.एक दिन उनका युवा शिष्य भिक्षा लेने के लिए बहुत प्रसिद्द ज्योतिषाचार्य गंगाभट्ट के घर पहुंचा,जिनके बारे में प्रसिद्द था कि वे सिद्धि प्राप्त त्रिकालदर्शी ज्योतिषी ब्राह्मण हैं और उनकी कोई भी भविष्यवाणी गलत नहीं होती है.
अपने घर के द्वार पर संत रामदास के युवा शिष्य को देखकर गंगाभट्ट बोले-कौन है आप..
शिष्य बोला-महाराज..मैं संत रामदास का शिष्य हूँ और स्वामीजी के साथ एक मंदिर में ठहरा हुआ हूँ..उनके आदेश पर मैं भिक्षा मांगने के लिए निकला हूँ..आपके द्वार पर मैं इसी उद्देश्य से आया हूँ..
गंगाभट्ट घर के अंदर गए और अन्न रूपी भिक्षा उसे देते हुए बोले-ये मेरा सौभाग्य है कि आप हमारे द्वार पधारे हैं..और संत रामदास जी की सेवा का अवसर मुझे भी मिल रहा है..
शिष्य भिक्षा लेकर जाने लगा तो गंगाभट्ट बोले- महात्मा जी..आपके माथे की रेखाएं बता रही हैं कि सिर पर चोट लगने से आज शाम को चार बजे आपकी मृत्यु हो जाएगी..मेरी भविष्यवाणी आज तक कभी गलत हुई है..
यह सुनते ही युवा शिष्य भयभीत हो उठा.वो अपने गुरुदेव स्वामी रामदास के पास गया और उन्हें सारी बात बताई.
स्वामी रामदास जी बोले-चिंता मत करो..भगवान राम के पावन नाम का चिंतन करो..और किसी वृद्ध की चरण सेवा में लग जाओ..काल आकर भी वापस लौट जायेगा..
शिष्य ने ऐसा ही किया.शाम को चार बजे तेज आंधी से मंदिर का शिखर गिर गया और वो शिष्य सिर पर भयंकर चोट लगने से बाल बाल बच गया. मृत्यु का समय बीत गया.वो रामनाम का जप व वृद्ध की सेवा के बल से मृत्यु से बच गया.
अगले दिन वो शिष्य पुन: गंगाभट्ट के यहाँ भिक्षा मांगने गया तो उसे जीवित देख ज्योतिषाचार्य गंगाभट्ट हैरान रह गए.उस शिष्य से सारी बात जान वो उस शिष्य के साथ स्वामी रामदास जी के पास पहुंचे और हाथ जोड़कर प्रणाम करते हुए बोले-महाराज..आप महान संत हैं..आप अपने शिष्य के ऊपर आये काल को भी हटाने में समर्थ हैं..अत: आज से आपके नाम के साथ समर्थ गुरु की पदवी लगाई जाएगी..
उस दिन से वो संत रामदास समर्थ गुरु रामदास हो गए.वो छत्रपति शिवाजी महाराज के भी गुरु बने.छत्रपति शिवाजी महाराज ने गुरु से प्राप्त आध्यात्मिक बल से इतिहास रच दिया था.
मित्रों,इस ऐतिहासिक प्रसंग से मुझे अपने निजी जीवन में घटी घटना याद आ गई.आज से छब्बीस साल पहले की बात है.उस समय धन को लेकर मैं बहुत अधिक परेशान था.काफी कर्ज भी मुझपर हो गया था.अपने उस साधनाकाल के समय मैं काफी संतों से मिला और अपनी आर्थिक समस्या का समाधान पूछा.
एक संत ने मुझे सुझाव दिया कि-आप अपने घर जाइये..प्रतिदिन सुबह अपने माता पिताजी का चरण छूकर अपने कार्य पर जाइये..हो सके तो कभी कभार किसी भूखे को भोजन करा दीजियेगा..माता पिता और भूखा व्यक्ति ये प्रत्यक्ष देवता हैं..इनकी सेवा कभी निष्फल नहीं जा सकती है..
इधर उधर भटकना छोड़कर मैं अपने घर आया और मैंने लगातार छह महीने तक ऐसा ही किया.महीने में दो बार किसी गरीब भिखारी को पकड़कर मैं प्रेम से उसे भोजन करा देता था.रोज चरणस्पर्श करने से मेरे पिताजी कभी कभी नाराज भी हो जाते थे,लेकिन आशीर्वाद जरूर देते थे.छह महीने में चमत्कार दिखा.न सिर्फ मेरी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हुई,बल्कि सब कर्ज भी चुकता हो गया.विभिन्न प्रकार की समस्याओं से ग्रस्त लोगों को मैं आज भी इसी सरल उपाय को अपनाने का सबसे पहले सुझाव देता हूँ.
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आलेख और प्रस्तुति=सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कन्द्वा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६.
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