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क्या क्या हुआ दिल के साथ,मगर तेरा प्यार नही भूले

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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क्या क्या हुआ दिल के साथ,मगर तेरा प्यार नही भूले
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हम भूल गये हर बात,
मगर तेरा प्यार नही भूले.
क्या क्या हुआ दिल के साथ,
मगर तेरा प्यार नही भूले.
बचपन के हम साथी दोनों,
सदा रहे हैं साथ.
एक ही सपना देखें जैसे,
दो आँखें दिन रात.
कोई लाख कहे सौ बात,
मगर तेरा प्यार नही भूले.

कृतिका (परिवर्तित नाम) के कमरे में पाकिस्तान के किसी फिल्म का गीत गूंज रहा था.मेरे कमरे में प्रवेश करते ही आलोक (परिवर्तित नाम) ने मेज के पास जाकर म्यूजिक सिस्टम ऑफ करते हुए कहा-दीदी..गुरु जी आये हैं..
हल्के पीले रंग के सलवार कमीज में लिपटी हुई खुले बालों वाली दुबली पतली युवती कृतिका को मैं देखते ही पहचान गया.एक साल पहले वो एक युवक के साथ दो बार मेरे आश्रम में आ चुकी थी.दोनों का आपसे में गहरा इश्क था.वो शादी करना चाहते थे और मुझसे आग्रह कर रहे थे कि मैं दुआ करूँ कि उनके परिवार वाले शादी के लिए राजी हो जाएँ.लड़का ब्राह्मण और लड़की कायस्थ थी.मैंने स्पष्ट रूप से कह दिया था कि ये विवाह होना नामुमकिन है.ज्यादा अच्छा है कि दोनों अपना कॅरियर बनाने पर ध्यान दो और परिवार वालों की मर्जी के मुताबिक शादी करो.दोनों को मेरा सुझाव पसंद नहीं आया था.मुझे इस बात का बहुत दुःख था कि दोनों बहुत उम्मीद लेकर मेरे पास आये थे,परन्तु बहुत निराश होकर मेरे दर से गए थे.
कृतिका मुस्कुराते हुए मेरे पास आई और झुककर मेरे पैर छूने लगी.मैं पीछे हटते हुए बोला-पैर मत छूना..खुश रहो..फिर उसे ध्यान से देखते हुए बोला-ये तुमने क्या हालत बना रखी है अपनी..सालभर पहले जब तुम मेरे पास आयीं थीं तब तुम कितनी स्वस्थ और सुन्दर थीं..क्या हो गया है तुम्हे..
कृतिका कुर्सी लाकर मेरे पास रखते हुए बोली-सब बताउंगी गुरुदेव..पहले आप बैठिये..बड़े सौभाग्य से तो आप हमारे यहाँ पधारे हैं..
मैं कुर्सी पर बैठकर सफ़ेद रंग की दीवारों और साफ सुथरे सजे धजे कमरे को देखने लगा,जिसमे आरामदेह पलंग से लेकर मेज कुर्सी,किताबें,म्यूजिक सिस्टम,टीवी और कम्प्यूटर तक सभी सुख सुविधाएँ उपलब्ध थीं.
गुरूजी..आपने हमारा घर देख लिया है..क्या हमारे घर में कोई वास्तुदोष या अन्यदोष है..मेरे स्वर्गीय पति पीडब्लूडी में इंजीनियर थे और वस्तु के अच्छे जानकर भी थे..घर बनवाते समय उन्होंने वास्तुशास्त्र के जानकर पंडितों की सलाह भी ली थी..-कृतिका की माताजी हाथ जोड़कर बोलीं.
नहीं..कोई दोष नहीं है..मकान के दक्षिण-पश्चिम का कोना सिर्फ ऊँचा करवा दीजिये..-मैं बोला.
जी..आप बिलकुल सही कह रहे हैं..कइयों ने यही बात कही है,परन्तु ये लड़की माने तब तो..ये ऊँचा करने ही नहीं देती है..वहां कमरा बन जायेगा तो हमारे बगल में रहने वाले उस धोखेबाज लड़के की शक्ल इसे कैसे दिखाई देगी..जिसने इसका पूरा जीवन बर्बाद कर दिया है..-कृतिका की माताजी तेज स्वर में बोलीं.
मम्मी..तुम रसोई में जाओं..गुरूजी के लिए कुछ बना के लाओ..आलोक तुम भीं अपने कमरे में जाओं..मुझे गुरूजी से कुछ जरुरी बात करनी है..-कृतिका हाथ उठाकर बोली.
दीदी मैं नहीं जाउंगी..मुझे अपने कॅरियर के बारे में गुरूजी से कुछ पूछना है..-अनुष्का (परिवर्तित नाम) पलंग पर बैठते हुए बोली.
नहीं..तू भी जा..बाद में आना..-कृतिका बक्से के ऊपर रखा सफ़ेद दुपट्टा अपने गले में डालते हुए बोली.
बैठने दो इसे..क्यों भगा रही हो..तुम्हारे घर में यही एक लड़की है,जो खुश है और हंस मुस्कुरा रही है..-मैं कृतिका से बोला
आजकल क्या कर रही हो तुम..-मैंने मुस्कुराती हुई अनुष्का से पूछा.
जी..इस साल बीकॉम कम्प्लीट किया है..-अनुष्का बोली.
अब आगे एमबीए कर लो..मैं बोला.
जी..मैं भी यही सोच रही हूँ..मैंने कई जगह प्रवेश परीक्षा दी है..क्या मैं किसी अच्छे कालेज में दाखिला ले पाने में सफल हो पाऊँगी..-अनुष्का बोली.
हाँ..जरूर सफलता मिलेगी..-मैं बोला.
पूछ ली न..चल..अब भाग यहाँ से..-कृतिका मेरी कुर्सी के पास नीचे फर्श पर बैठते हुए बोली.
नहीं दीदी..बैठने दो न..मैं कुछ नहीं बोलूंगी..चुपचाप बैठूंगी..-ये कहकर अनुष्का पलंग पर और आराम से बैठ गई.
कृतिका हाथ उठाकर अनुष्का को जाने के लिए आदेश देने लगी.वो तस से मस नहीं हुई.
छोडो बैठने दो उसे..तुम अपनी बात कहो..तुम्हारी रिसर्च कम्प्लीट हुई की नहीं..-मैं पूछा.
कृतिका सिर उठा मेरी और देखते हुए बोली-नहीं गुरूजी..अभी कम्प्लीट नहीं हुई है..विपिन (परिवर्तित नाम) के शादी कर लेने के बाद मैं बहुत गहरे डिप्रेशन में चली गई थी..मुझे नींद ही नहीं आती थी..हर समय विपिन की वेवफाई के बारे में सोचती रहती थी..मेरा मानसिक संतुलन पूरी तरह से बिगड़ गया था..डाक्टरों ने ढेरों दवाइयों के साथ मुझे नींद की गोलियां खिलाईं और कई बार बिजली के झटके दिए..
इतनी खराब मानसिक हालत हो गई थी कि डॉकटरों को शॉक ट्रीटमेंट देना पड़ा..-मैं आश्चर्य से पूछा.
हाँ..गुरूजी..घर की सब चीजें दीदी तोड़ने फोड़ने लगीं थीं..सबको गाली देती थीं और मारती थीं..-अनिष्का बोली.
शॉक ट्रीटमेंट में तो तुम्हे बहुत पीड़ा हुई होगी..-मैं बहुत दुखी होकर बोला.
नहीं गुरुदेव..मुझे बेहोश कर वो लोग कान में शॉक ट्रीटमेंट देते थे..मुझे शॉक ट्रीटमेंट के बाद होश में आने पर उल्टी होती थी और जल्दी कुछ याद नहीं आता था..मुझे तो उस समय लगा था कि कहीं मेरी यादास्त ही न चली जाये..इसीलिए मैंने खुद को सम्भालना शुरू किया..और फिर धीरे धीरे ठीक होती चली गई..कई ओझा-सोखा और तांत्रिक भी मेरा इलाज कर रहे थे..वो लोग मेरे ऊपर किसी ब्रह्म का सवार होना बताते थे..-कृतिका धीमे स्वर में बोली.
मैं बोला-बकवास बातें हैं ये सब.,.ब्रह्म किसके भीतर नहीं है..ब्रह्म का अंश आत्मा है..जो शरीर के बाहर निकल जाती है तो शरीर मृत हो जाता है..कोई मन रूपी प्रेत किसी डरपोक मनुष्य को परेशान कर सकता है..परन्तु ब्रह्म कदापि नहीं..तुम्हारी परेशानी मानसिक थी..अधिकतर रोगी मानसिक या शारीरिक बीमारी के शिकार होते हैं..परन्तु लोग भ्रमवश भूत-प्रेत के चक्कर में फंसकर समय और धन दोनों नष्ट करते है,,और फिर बाद में जानमाल की बड़ी क्षति झेलने के बाद बहुत पछताते हैं..मैं बहुत दुखी होते हुए बोला-इतना सबकुछ घटित हो गया और मुझे किसी ने भी बताया नहीं..शायद मैं उस समय तुम्हारी कुछ मदद कर सकता था..
कृतिका बोली-उस समय मैं आपसे बहुत नाराज थी..क्योंकि आपने विपिन से शादी कराने में मेरी कोई मदद नहीं की थी..मैंने अपने घर में सबको धमकी दी थी कि कोई भी गुरूजी के पास नहीं जायेगा..मेरी बुआ आपके आश्रम की पुरानी शिष्य हैं..उन्होंने सैकड़ो बार हमलोगों से कहा था कि इसे गुरूजी के पास ले चलो..ठीक हो जाएगी..पर मैं आपके पास जाने को तैयार नहीं हुई..
विपिन बैंक में नौकरी मिलने के बाद तुमसे कोर्ट मैरिज करने को तैयार था..फिर कैसे उसका विचार बदल गया..-मैंने पूछा.
कृतिका गहरी साँस खिंच दर्द भरे स्वर में बोली-गुरुदेव..उसने पूरा प्लान बनाने के बाद आखिरी समय में मुझे धोखा दिया..मैं उसके कहे अनुसार जिला विवाह अधिकारी के कार्यालय में अपने दोस्तों के साथ दिनभर बैठी उसका इंतजार रही..पर वो नहीं आया..कुछ दिन बाद पता चला कि उसकी सगाई हो गई है..कई सालों से कुआंरी बैठी अपनी बड़ी बहन के विवाह की खातिर उसने खुद को बेच दिया..जिस लड़की से उसकी शादी हुई है..उसी के बड़े भाई से विपिन की बहन का विवाह हुआ है..
ओह..वो भी बिचारा कितना मजबूर था..-सहसा मेरे मुंह से निकल गया.
गुरुदेव..मैं आपकी बात मानती हूँ..परन्तु वो मुझसे मिल के सारी बात बता तो सकता था..शायद मुझे तब इतना दुःख नहीं हुआ होता..वो तो चारों और अपराधियों की तरह मुझसे मुंह छिपा लिया..कई महीने तक अपने घर से बाहर ही नहीं निकला..अब तो कहीं सड़क पर या गली में उससे आमना सामना होता है तो वो चुपचाप नीचे सिर झुकाकर पास से गुजर जाता है..-कृतिका भरे स्वर में बोली.वो अपनी गीली आँखे पोंछने लगी.
मैं कृतिका को समझाते हुए बोला-विपिन अपने अपराधबोध के तले दबकर नरक की जिंदगी जी रहा है..तुम उसे क्षमा कर दो..और कहीं पर भी कभी मुलाकात हो तो उसे शादी की बधाई दे दो..शायद उसे अपने अपराधबोध से कुछ मुक्ति मिल जाये..और उसके जीवन ख़ुशी आ जाये..इससे तुम्हे भी बहुत शांति मिलेगी..
ये सब मुझसे नहीं होगा..आप मुझे दीक्षा दे दीजिये..अब मैं माया मोह से मुक्त होना चाहती हूँ..-कृतिका मेरा पैर पकड़ रोते हुए बोली.
कृतिका के सिर पर मैं हाथ रख बोला-दीक्षा मैं तुम्हे दूंगा..परन्तु उसके लिए तुम्हे पहले सुयोग्य पात्र बनना होगा..तुम्हे अपनी पीएचडी पूरी करनी होगी और कहीं पर नौकरी पकड़नी होगी..तभी मैं दीक्षा दूंगा..अब मेरा पैर छोडो और उठो..
ठीक है मैं ये सब करुँगी..-कृतिका अपनी चुनरी सम्भाल उठते हुए बोली.
तभी कृतिका की माताजी एक प्लेट में पकौड़ी और दूसरे में बर्फी की मिठाई लेकर आईं और अनुष्का से बोलीं-जा..मेरे कमरे से छोटा स्टूल ले के आ..
अनुष्का स्टूल लेने भाग गई.मैं कृतिका के माता जी से बोला-आप क्यों परेशान हुईं..मैं ये सब नहीं खाऊंगा..मुझे आप बस सादा पानी पिला दीजिये..
कृतिका की माता जी बोलीं-गुरुदेव..आप कुछ भी थोड़ा सा ले लीजिये..हम सबके लिए ये प्रसाद बन जायेगा..
अनुष्का प्लास्टिक का बादामी रंग का गोल स्टूल ले आई.कृतिका की माताजी मिठाई और पकौड़ी की प्लेट उसपर रखकर कमरे से बाहर जाते हुए बोलीं-आप पानी पीजिये..मैं आपके लिए चायबना लाती हूँ..
कृतिका मेरी तरफ देख हँसते हुए बोली-गुरूजी..आप गुड की चाय पीते हैं न..
हाँ..पर तुम्हे कैसे मालूम हुआ..-मैं हैरानी से पूछा.
बुआ ने मुझे बताया था कि आप लिखते भी हैं..नेट पर मैंने आपकी रचनाओ को सर्च कर पढ़ा है..उसे पढ़कर मुझे बहुत सुकून मिला..मैं आपके लिए गुड की चाय बना के लाती हूँ.. -कृतिका ये कहकर कमरे से बाहर निकल गई.
अनुष्का मेज के पास जाकर म्यूजिक सिस्टम से छेड़छाड़ कर रही थी.उसने जैसे ही म्यूजिक सिस्टम चालू किया,वही पाकिस्तानी फिल्म का गीत बजने लगा.अनुष्का गीत सुनकर अपने मुंह पर हाथ रख हंस रही थी और शायद यही गीत सुनकर रसोई में चाय बना रही कृतिका की आँखे और दिल दोनों रो रहे होंगें..
हाय रे मजबूरी दिल की,
भेद न दिल के खोले.
अपने घर को जलते देखा,
मुँह से कुछ न बोले.
हम जलते रहे रे दिन रात,
मगर तेरा प्यार नही भूले.
हम भूल गये हर बात,
मगर तेरा प्यार नही भूले.
क्या क्या हुआ दिल के साथ,
मगर तेरा प्यार नही भूले.

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ आलेख और प्रस्तुति=सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कन्द्वा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६.
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