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बजट में राजकोषीय घाटा कम करने का उपाय जरूर हो
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दस जुलाई को नरेंद्र मोदी सरकार अपना पहला बजट पेश करने जा रही है.वित्त मंत्री अरुण जेटली के लिए सबको प्रसन्न करने वाला बजट पेश करना आसान नहीं होगा,क्योंकि मोदी सरकार को पिछली यूपीए सरकार से विरासत में सुस्त इकनॉमिक रिकवरी और बहुत ज्यादा सरकारी घाटा मिला है.मई माह में जारी सरकारी आंकड़ों के अनुसार राजकोषीय घाटा बजट अनुमान ४५.६ % तक पहुंच गया है.इसका अर्थ ये है कि यूपीए सरकार खाली खजाना छोड़कर गई है.सरकार की कुल आय से यदि कुल व्यय ज्यादा है तो इसे राजकोषीय घाटा कहा जाता है.
इससे अंदाजा लगाया जाता है कि सरकार का कामकाज चलने के लिए कितना उधार लेने की जरुरत होगी.राजकोषीय घाटा सामान्यत: राजस्व में कमी या फिर पूंजीगत व्यय यानि विकास कार्यों में अत्यधिक वृद्धि करने के कारण होता है.रोजकोषीय घाटे की भरपाई के लिए आमतौर पर सरकार भारतीय रिजर्व बैंक से उधर लेती है या फिर छोटी और लंबी अवधि के बॉन्ड जारी कर पूंजी बाजार से फंड जुटाती है.इससे मुद्रास्फीति अर्थात मांगे बढ़ने का खतरा रहता है,इसीलिए अर्थशास्त्री राजकोषीय घाटे को बिलकुल नहीं या फिर ये संभव न हो तो कम से कम रखने पर जोर देते हैं.
यदि दस जुलाई को प्रस्तुत होने वाले बजट में सरकार द्वारा ढेरों विकास परियोजनायें शुरू करने की घोषणा की जाती है तो निश्चित रूप से राजकोषीय घाटा बढ़ेगा और मुद्रास्फीति बढ़ने से महंगाई भी बढ़ेगी.मोदी सरकार देश की बिगड़ी हुई अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की बात करती है,परन्तु ये काम राजकोषीय घाटे को कम से कम रखकर ही किया जा सकताहै.एक अर्थशास्त्री का कहना है कि-“‘नई सरकार के लिए सबसे बड़ा चैलेंज रेवेन्यू बढ़ाना है.५-५ ५ प्रतिशत की विकास दर को देखते हुए यह आसान काम नहीं है.सरकार को जीएसटी और डीटीसी को लागू करना होगा.बजट में राजकोषीय घाटा का अनुमान बढ़ाकर 4.3 पर्सेंट किया जा सकता है.”
देश के कुछ अर्थशास्त्रियों का सुझाव है कि सरकार को राजकोषीय घाटे को पूरा करने के लिए अधिक उधार लेने की बजाय विनिवेश की रह पर चलना चाहिए.सार्वजनिक उपक्रमों में सरकारी हिस्सेदारी कम करने या बेचने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए तथा देशी विदेशी निवेशकों को इस और आकर्षित करना चाहिए.अर्थशास्त्रियों के अनुसार विनिवेश से सरकारी खजाने में 70,000 करोड़ से भी अधिक रुपये आ सकते हैं.मोदी सरकार को इन्फ्रास्ट्रचर के डिलेवलमेंट और स्किल डिलेपमेंट के लिए बजट में भारी धनराशि आबंटित करनी होगी.इसके लिए रेवेन्यू और टैक्स से प्राप्त होने वाली आमदनी को बढ़ाना होगा.
मोदी सरकार को बजट तैयार करते समय केंद्र और राज्यों के बीच जारी आर्थिक खींचतान की ओर ध्यान देना चाहिए.विभिन्न राज्यों के साथ भेदभाव करने तथा पूरी मदद न करने की शिकायतों को दूर करना चाहिए.इस समय केंद्र और राज्य सरकारें एक दुसरे पर विश्वास की कमी से जूझ रही हैं.केंद्र सरकार को संतुलित और पूरे देश का विकास करने वाला बजट प्रस्तुत करना चाहिए तथा सभी राज्यों के साथ एक सामान व्यवहार कर अपना भरोसा कायम रखना चाहिए,ताकि देश का संघीय ढांचा और मजबूत हो सके.!! जयहिंद !! !! वन्देमातम !!
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ आलेख और प्रस्तुति=सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कन्द्वा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६.
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