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गुजरे हुए बचपन की यादें और फुलवसिया का सानिध्य
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वो खेल, वो साथी, वो झूले
वो दौड़ के कहना, आ छू ले
हम आज तलक़ भी ना भूले वो
ख्वाब सुहाना बचपन का..
मुकेश जी का गाया ये गीत मुझे याद आ रहा था,जब फुलवासी मुझे बचपन की याद दिला रही थी.बचपन में आम के बगीचे में खेलना,पेड़ो पर चढ़ना,सबसे पहले झूला झूलने के लिए झगड़ा करना और बच्चों के झुण्ड के साथ खेलते कूदते व लड़ते-झगड़ते हुए स्कूल जाना याद आता है.
पेड़ पर चढ़ने का आपको कितना शौक था..आम पेड़ पर कितना भी पुलुई पर फला हो आप तोड़ लाते थे.एक बार तो आम तोड़ने के चक्कर में पेड़ से गिरकर बेहोश भी हो गए थे..आपके सारे दोस्त डर के मारे भाग गए थे..मैं आपको उठाकर घर पहुंचाई थी.आपको याद है न..-फुलवासी मुझसे पूछती है.
हाँ..सब याद है..उस समय तो तुम्ही ने दोस्ती निभाई थी..-मैं कुछ सकुचाते हुए बोली.
फुलवासी मुस्कुराते हुए बोली-दोस्ती तो आपने भी निभाई थी..जब मुझे बिच्छू काट लिया था और मैं जोर जोर से चिल्ला रहीं थी..कितनी गुनी ओझा झाड़ने के लिए बुलाये गए थे..पर जहर था की उतरने का नाम न लेता था..अंत में घरवाले आप को पकड़ के लाये..मेरे पैर का अंगूठा पकड़कर जैसे ही आपने मंत्र पढ़ना शुरू किया था..मुझे आराम मिलने लगा था और मैं रोना चिल्लाना बंद कर दी थी..
मैं झेंपते शरमाते हुए बोला-कितने शौक से अपने मित्र श्रीधर को गुरु बनाया था..और उसे आम के पेड़ की डाली पर गमछा बिछाकर बड़े आदर से बैठाया था..तब जाकर उसने सांप और बिच्छू का जहर झाड़ने के मंत्र सिखाये थे..मंत्र सीखने के बाद बड़ी बेसब्री से इंतजार था कि किसी को सांप बिच्छू कांटे और हमें अपनी विद्या आजमाने का मौका मिले..संयोग से तुम्हे बिच्छू ने काटा और मेरे जैसी नौसिखिये गुनिये को सबसे अंत में मौका दिया गया..परन्तु तुम्हारे पैर का अंगूठा पकड़ते ही मैं मंत्र भूल गया था..मुझे तो ग्लानि के मारे रोना आ गया था..मैं तुम्हारा अंगूठा पकड़ के ईश्वर से प्रार्थना करता रहा कि हे प्रभु..मेरी लाज रखो और इसका कष्ट दूर करो..अब मैं आगे से किसी को भी नहीं झाड़ूंगा..ईश्वर ने मेरी प्रार्थना सुन ली थी और तुम्हे आराम मिल गया था..
फुलवासी जोर से हँसते हुए बोली-सच..मैं तो उस समय सोची थी कि आप मन्त्र विद्या के सबसे सिद्ध गुनिया हैं..आप तो अनाड़ी निकले..फिर सहसा गंभीर होकर आगे बोली-आप बचपन से ही ह्रदय के बहुत साफ रहे हैं..मैंने बहुतों के मुंह से मैंने सुना है कि सच्चे ह्रदय से की गई प्रार्थना कभी निष्फल नहीं जाती है..
मैं गोरे रंग वाली सुन्दर परन्तु अधेड़ हो चुकी फुलवासी की तरफ देखते हुए पूछा-तुम अब भी अपने चेहरे पर चूना पोतती हो..
फुलवासी शरमाकर झेंपते हुए बोली-अब भला क्यों चेहरे पर चूना लगाउंगी..अब मेरे पास किस चीज की कमी है..पति सरकारी कम्पनी में इंजीनियर हैं..और अब तो मेरा ये बेटा भी इंजीनियरिंग की पढाई पूरी कर चूका है..ये भी जल्द ही कहीं नौकरी में लग जायेगा..
मैं गहरी नींद में सोते उसके बेटे,बहू और पोते की तरफ की तरफ एक नजर डाल बोला-बचपन में तो कई बार दिवार से चूना छुड़ाकर चेहरे पर लगाने वाली बात को लेकर मेरा तुम्हारा झगड़ा हुआ था..मेरे घर की दीवारों पर जब भी नया चूना पानी लगता था..तुम हाथ से दिवार रगड़कर अपने चेहरे पर लगाने के लिए पहुँच जाती थी..
फुलवासी बहुत गंभीर होकर बोली-मत याद दिलाइए उन मनहूश गरीबी से भरे दिनों को..हमलोग आठ भाई बहन कितना दुःख कष्ट झेलते हुए पले पढ़े..उसे याद कर रुलाई आ जाती है..सब भाई बहन फटे चीथड़े पहनते थे और भरपेट खाने के लिए तरस जाते थे..कोई मेहमान हमारे यहाँ आ जाता तो अम्मा अगल बगल से भेली और दाना मांग के लाती थीं..हमलोग सारे भाईबहन लार चुआते हुए मेहमान के आसपास मंडराते थे..इस उम्मीद में कि शायद वो हमें भी कुछ भेली दाना वो खाने को दे दे..हम सब की नजरें भुजा वाली दलीय पर टिकी रहतीं थीं कि शायद अब मेहमान खाना छोड़ हमें डलिया थमा दे..उस बचे हुए भेली भुजा को खाने के लिए हमलोग आपस में झगड़ते थे..और अम्मा की मार भी खाते थे..हमारे यहाँ आने वाले मेहमान मिठाई या कोई फल लाते थे तो हम सब भाई बहन उसे खाने के लिए आपसे में राक्षसी ढंग से लड़ाई झगड़ा और मारपीट करते थे..और फिर अम्मा बाबूजी से सब के सब छड़ी से मार खाते थे..हमें मार के अम्मा बाबूजी रोते थे..इतने सारे बच्चे पैदा करके पछताते थे..
एक गहरी साँस खींचते हुए फुलवासी बोली-हमारी थोड़ी से खेती थी..जिससे हमारे बड़े परिवार हेतु सालभर खाने के लिए भी अनाज पैदा नहीं होता था..गरीबी जो न पाप और अपराध करा दे..हमलोग लोंगो के खेतों से गन्ना,खीरा,ककड़ी और खाने वाली दूसरी चींजे चुरा के खाते थे..कभी कभी पकडे जाने पर गाली और मार भी खाते थे..मुझे अपने भाई बहनो से बहुत प्रेम था..परन्तु हमेशा ये महसूस होता था कि हमारी फटेहाली,गरीबी और छोटी से छोटी चींजों की भी इच्छापूर्ति न हो पाने का कारण इतने अधिक भाई बहनो का होना ही है..यदि हम दो तीन भाई बहन ही होते तब शायद हमारे घर की इतनी बुरी स्थिति नहीं होती..मैंने तो उसी समय दृढ निश्चय कर लिया था कि मेरी शादी होगी तो मैं दो से ज्यादा बच्चे नहीं पैदा होने दूंगी..और मैंने ऐसा ही किया..एक लड़का एक लड़की..बस यही मेरी संताने हैं..लड़की को पढ़ालिखा के शादी विवाह कर दी..उसकी अब एक लड़की भी है..लड़के का भी विवाह कर दी..बीटा,बहु और पोता से आप मिल ही चुके हैं..हर तरह से आज मैं सुखी हूँ..बस यही एक परेशानी है कि बहु को गठिया पकड़ लिया है..सोचा कि बीएचयू में दिखा भी दूँ और इसी बहाने आपसे भेंट भी कर लूँ..कितने दिनों से आपसे भेंट काने की इच्छा थी..परन्तु तैंतीस साल बाद आपसे भेंट हो पाई है..इतने सालों के बाद आज आपको देख के मैं तो पहचान ही नहीं पाई..
मैं भी तुम्हे कहाँ पहचान सका था..वो तो जब तुमने अपना परिचय दिया था..तब मुझे वो बचपन की हंमेशा नाक पोंछते हुए सुड सुड करने वाली फुलवासी याद आई..-मैं हँसते हुए बोला.
फुलवासी शरमाते हुए बोली-अब छोड़िये उसे..इस फुलवासी का कुछ कल्याण कीजिये जो आज आपके सामने बैठी है..मेरी सबसे बड़ी समस्या अपनी बहू की बीमारी को लेकर है..आप ज्ञानी ध्यानी संत हैं..कुछ उपाय बताइये..
मैं कुछ सोचते हुए बोला-जो दवा चल रही है उसे चलने दो..मैंने सुना है कि बथुआ का रस और एलोविरा का रस पीने से तथा पीसी हुई तीसी सुबह शाम दो चम्मच खाने से बहुत जल्द ही गठिया का रोग ठीक हो जाता है..
आपलोग सोयेंगे नहीं क्या..कबसे बातें कर रहे हैं..रात के बारह बज चुके हैं..-मेरी पत्नी सीढियाँ चढ़ के आते हुए बोलीं.
मैं उठते हुए बोला-फुलवासी..दिनभर हॉस्पिटल में बैठकर तुम थकी होओगी..अब तुम आराम करो..
मैं पत्नी के साथ नीचे आया और रोज की तरह बरामदे में बिछी अपनी चारपाई पर सो गया.
ऐ जी..जरा उठिए तो..-आधी रात को किसी ने जगाया तो मेरी नींद खुल गई.आँखे खोलकर देखा तो सामने अपने मोबाइल का टोर्च जलाये फुलवासी खड़ी थी.उसके एक हाथ में मोबाइल और दूसरे हाथ में एक सेंडिल थी.
क्या बात है फुलवासी..-मैं बिस्तर पर उठकर बैठ गया.छत से बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दे रही थी.
एगो चाकू जरा दे दीजिये..कुछ पूछिये या टोकिएगा मत..बहुत जरुरी काम है..-फुलवासी बोली.
मेरी कुछ समझ में नहीं आया कि वो क्या करने जा रही है.कुछ पूछने से उसने पहले ही मना कर दिया था.मैं कुछ सोचते हुए बोला-तुम चलो..मैं चाकू लेकर आ रहा हूँ..
वो सीढ़ियों की तरफ चल दी.मैं रसोईघर में जाकर एक चाकू ढूंढा और फिर धीरे से रसोईघर का दरवाजा बंद कर दिया.सबलोग गहरी नींद में सो रहे थे.मैं नहीं चाहता था कि किसी की नींद ख़राब हो.सेंडिल और चाकू का ये करेगी क्या..कही अपनी बहू या बेटे से तो झगड़ा नहीं कर ली है.मैं यही सब सोचते हुए चाकू लेकर छत पर पहुंचा तो देखा कि फुलवासी अपने हाथ में सेंडिल लेकर रोते हुए बच्चे के चारो ओर घुमा रही है.जब वो अपनी क्रिया पूरी कर चुकी तो मैं उसके नजदीक जाकर चाकू दिया,जिसे वो बच्चे के सिरहाने बिस्तेर के नीचे रख दी.मैं मुस्कुराते हुए उसके गोपनीय क्रियाकलापों को देख रहा था.उसकी बहू लम्बा सा घूँघट काढ़े हुए बिस्तर पर बैठकर सबकुछ चुपचाप देख रही थी ओर उसका बेटा गहरी नींद में सो रहा था.
चल अब बबुआ के दूध पिला..-फुलवासी अपनी बहू से बोली.
फुलवासी की बहू बच्चे को अपनी गोद में लेकर साड़ी के आँचल से ढक ली.बच्चा माँ का दूध मुंह में जाते ही चुप हो गया.
फुलवासी मेरी तरफ देख विजयी मुस्कान के साथ बोली-बहुरिया अभी बच्ची है..कुछ टोना-टोटका करना जानती नहीं है..कुछ सीखना भी नहीं चाहती है..बहुत पढ़ीलिखि जो है..मैंने ये सब अपनी माँ फे बचपन में ही सीख लिया था..कोई भी रोग होता तो माँ हमसब भाई-बहनो का इलाज इसी टोने टोटके से करती थी..तब इतनी गरीबी थी कि भरपेट खाने को भी नहीं मिलता था..इलाज कहाँ से कराते..
ये सब कोई सही ईलाज नहीं है फुलवासी..कोई रोग हो तो डॉक्टर को दिखाना चाहिए..हमारे देश में न जाने कितने अबोध बच्चे इसी अन्धविश्वास का शिकार होकर मर जाते हैं..-मैं उसे समझाते हुए बोला.
जहाँपर नजर,टोना-टोटका या कोई ऊपरी हवा-बताश का असर हो वहांपर कोई भी दवा काम नहीं करती है..गांव-देहात के अनपढ़ लोग अभी भी इस बात को अच्छी तरह से समझते है..पर शहर के पढेलिखे लोगों को ये बात समझ में नहीं आती है..-फुलवासी अपनी बहू की तरफ देखते हुए बोली.
इसी अन्धविश्वास के चक्कर में पड़कर न जाने कितने लोग गंभीर रोगों को अपने दामन में छिपाए मौत के शिकार हो जाते हैं..यदि वो लोग जीते जी सही ढंग से अपना इलाज कराये होते तो शायद अभी भी इस दुनिया में जिन्दा होते..-मैं बोला.
मैं नहीं कहती कि गंभीर बीमारी का इलाज मत कराओ..पर मेरी ये बात सोलह आने सच है कि नजर,टोना-टोटका या ऊपरी हवा-बताश का असर भी आदमी के ऊपर होता है..इसीलिए समझदार लोग दवा के साथ-साथ दुआ का भी सहारा लेते हैं..-फुलवासी मेरी ओर देखते हुए बोली.
दुआ तो बहत अच्छी चीज है फुलवासी..पर तंत्र-मंत्र और टोना-टोटका के नाम पर किसी को नुकसान पहुँचाने,बलि के नाम पर जीवहत्या करने और दुनिया भर का ढोंग-पाखंड करने और कराने से बचना चाहिए..ऐसा घृणित कार्य करने से मनुष्य पाप का बोझा सिर पर तो लादता ही है..इसके साथ ही ऐसा करने-कराने वाले लोग अक्सर तंत्र-मंत्र या किसी तांत्रिक और ओझा-सोखा के चक्कर में फंसकर तन,मन और धन से बर्बाद भी हो जाते है..-मैं फुलवासी को समझाते हुए बोला.
फुलवासी मेरी बात सुनकर चुप हो गई.मैं बोला-आपलोग आराम करें..अब मैं चलता हूँ..
फुलवासी अपना हाथ खुजाते हुए उठ खड़ी हुई.वो मेरे करीब आ बोली-अब क्या सोएं..एक तो मच्छर बहुत काट रहे हैं..और दूसरे एक घंट बाद चार बजे हमें यहाँ से निकलना है..सुबह पांच बजे वाली ट्रेन पकड़नी है..
इतनी जल्दी क्या है..दो तीन दिन और रुको न..आई हो तो बनारस थोडा बहुत घूम लो..और फिर अभी तो तुमसे बचपन की बहुत सी बातें करनी हैं..-मैं फुलवासी की और देखते हुए बोला.
फिर कभी अपने पति के साथ आउंगी तो दो चार दिन जरूर रुकूँगी..और बनारस भी घूमूंगी..पर इस बार मत रोकिये..कुछ जरुरी काम निपटाने हैं..-फुलवासी मुस्कुराते हुए बोली.
ठीक है..जैसी तुम्हारी मर्जी..खेल अधूरा छोड़कर भागना तुम्हारी बचपन की आदत है फुलवसिया..अपने खेल लेती हो और जब दूसरे के खेलने की बारी आती है तो भाग खड़ी होती हो..-मैं उसे चिढ़ाते हुए बोला.
फुलवसिया मुस्कुराते हुए बोली-अपनी बेईमानी करने की याद मत दिलाइये..बचपन में कौन सा खेल ईमानदारी से आपने खेल था..उन सबका ईमानदारी से हिसाब-किताब हो तो आगे खेलने की अब मेरी ही बारी निकलेगी..
मैंने मुस्कुराते हुए उसे छेड़ा-फुलवसिया..
मुझे लगा कि वो बचपन की तरह अब भी चिढ़कर निरबसिया..कहते हुए भाग जाएगी,लेकिन वो कुछ बोली नहीं.बस मुस्कुराते हुए देखती रही.कुछ यादकर उसकी आँखे भींग गईं.वो अपने हाथों से अपनी आँखे पोंछते हुए बोली-फुलवसिया आज सुख के फूलों की सेजपर लेटी है,लेकिन वो अपने बचपन के दुःख भरे दिन नहीं भूल सकती और उन दुःख भरे दिनों में आपका साथ और अपने घरवालों के चोरीछिपे मुझे रोज कुछ न कुछ खिलाना मैं कभी नहीं भूल सकती..मैं आपसे मिलने के लिए बीएचयू से चली थी तो ये सोचकर परेशान थी कि पता नहीं आप मुझे पहचानेंगे या नहीं..बचपन की वो फटेहाल गरीब फुलवसिया को कबके भूल गए होंगे..
मैं कुछ भी नहीं भुला हूँ..मुझे सब याद है..तुम्हे सुखी देखकर मैं बहुत खुश हूँ..फुलवासी तुम्हारी तरह सबके जीवन में अच्छे दिन आयें..ईश्वर से मेरी यही प्रार्थना है..-इतना कहकर मैं सीढ़ियों की तरफ चल पड़ा.मेरा गाला रुंध रहा था और आँखें गीली हो रहीं थीं.
एक घंटे के बाद फुलवासी अपने बेटे ,बहु और पोते को लेकर चली गई.मैं बरामदे में बैठा देर तक उसी के बारे में सोचता रहा.उससे जी भरके बात करने की इच्छा अधूरी ही रह गई थी.
जीवन की भागदौड़ में आगे बढ़ते भी हमेशा में ये चाह बनी रहती है कि कोई बचपन का मित्र मिल जाये और उससे जी भरके बातें करते हुए बचपन की यादें ताजा करें.मुकेश जी का गाया हुआ गीत फिर मन में गूंजने लगा-
मिलकर रोये, फरियाद करे
उन बीते दिनों की याद करे
ऐ काश कही, मिल जाये कोई जो
मीत पुराना बचपन का..
हाये रे अकेले छोड़ के जाना
और ना आना बचपन का
आया हैं मुझे फिर याद वो जालिम
गुज़रा जमाना बचपन का..
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आलेख,संस्मरण और प्रस्तुति=सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कन्द्वा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६.
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