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ओ सुन्दर बांके जोगिया चोला काहें ना..संत कबीर वाणी

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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ओ सुन्दर बांके जोगिया चोला कहें न धुलाय-कबीर वाणी
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ओ सुन्दर बांके जोगिया चोला काहें ना धुलाय
काहें ना धुलाय,चोला काहें ना धुलाय..

सद्गुरु महाराज कबीर साहब अपने इस भजन में साधुओं से कहते हैं कि साधु बने हो तो इस बात का चिंतन करो कि मन रूपी चोला क्यों गन्दा है और ये साफ क्यों नहीं हो प् रहा है ? मन को निर्मल करने के लिए ही तो साधु बने हो.सुन्दर और संघर्षशील साधु वो है जो अपने मन की सफाई करने में जुटा हुआ है.साधना करने वाला हर व्यक्ति साधु है,भले ही वो गृहस्थ जीवन में ही क्यों न हो.
जन्म जन्म की मैली चोली,
विषय दाग परि जाई
बिन धोवे पीव रीझत नाही,
जन्म अकारथ जाई
काहें ना धुलाय,चोला काहें ना धुलाय
ओ सुन्दर बांके जोगिया चोला काहें ना धुलाय ..

हमारा मन कई जन्म से विकारग्रस्त है.संसार में आने से विषय वासनाओं के दाग हर व्यक्ति के मन पर पड़ते हैं.हमारा गन्दा मन हमारे और परमात्मा के बीच में एक मायावी आवरण बन चूका है,इसीलिए परमात्मा का अनुभव हमें नाही हो पाता है.मन को साफ करना जरुरी है,क्योंकि बिना मन के निर्मल हुए परमात्मा हमसे प्रसन्न होने वाले नही हैं.अत: साधु को सदैव इस बात का चिंतन करते रहना चाहिए की उसका मन निर्मल कैसे हो.
राम नाम का साबुन ले लो,
सत्संग का जल पाई
अपने गुरु को करलो बरेठा
जन्म दाग धूल जाई
काहें ना धुलाय,चोला काहें ना धुलाय
ओ सुन्दर बांके जोगिया चोला काहें ना धुलाय..

किसी सद्गुरु से दीक्षा के रूप में भगवान का जो भी नाम व्यक्ति ग्रहण करता है,वो साबुन के जैसा है.परन्तु अकेला साबुन मैल नही धो सकता है.मैल धोने के लिए जल भी चाहिए.गुरु का सत्संग और साधुओं की सेवा ही जल है.गुरु को चाहे धोबी समझों या चाहे अपना सबसे बड़ा हितैषी समझो,आपका वास्तविक कल्याण उसी से ही होगा.गुरु की कृपा से कई जन्म से विकारग्रस्त मन निर्मल हो जाता है और ईश्वर का साक्षात्कार सुलभ हो जाता है.अत: हे धओं मन की निर्मलता पर सदैव ध्यान दो.
गु से मैल कटे रग रग की,
रु से होत सफाई
धोये जा हर स्वांस से मल मल
धुलत धुलत धूल जाई
काहें ना धुलाय,चोला काहें ना धुलाय
ओ सुन्दर बांके जोगिया चोला काहें ना धुलाय..

बहुत से साधु स्वांस से गुरु मंत्र का जप करते हैं.इस महामंत्र की विशेषता ये है कि गु अक्षर के चोट से हमारे जन्म जन्म के संस्कारों पर तथा हमारी बुरी आदतों पर बार बार प्रहार होता है.रु अक्षर सफाई होने अथवा मन के भीतर का अज्ञान दूर करने का द्योतक है.स्वांस का भजन निरंतर करते रहने से एक दिन ऐसा आता है जब मन पूरी तरह से निर्मल हो जाता है और भगवन भक्त को पुकारने लगते हैं अर्थात अपने होने का एहसास दिला देते हैं.इसीलिए हे साधुओं अपने मन रूपी चोला को धोने पर ध्यान दो.
गंगा-जमुना खूब नहाये,
गया न मन का मैल
आठ पहर जुझत ही बीता,
जस कोल्हू का बैल
काहें ना धुलाय,चोला काहें ना धुलाय
ओ सुन्दर बांके जोगिया चोला काहें ना धुलाय..

तीर्थ,व्रत और हज करने से मन निर्मल नहीं होता है.गंगा-जमुना में नहाने से भी मन निर्मल नहीं हो पाता है.ये सब मनुष्य चाहे कितने जन्म भी क्यों न कर ले,उसका मन शुद्ध होने वाला नहीं है.ये सब क्रियाएँ कोल्हू के अज्ञानी बैल की तरह से हैं,जो दिनरात कोल्हू में चलने के बावजूद भी वही का वहीँ रहता है.वास्तव में साधु हो तो अपने मन की शुद्धता का चिंतन और आंकलन करो.
गुरु को जबतक गुरु न माना,
गुरु आज्ञा नहीं आई
जान लिया जब गुरु स्वरुप को,
सहज मुक्ति होइ जाई
काहें ना धुलाय,चोला काहें ना धुलाय
ओ सुन्दर बांके जोगिया चोला काहें ना धुलाय..

लोग दीक्षा ले लेते है,परन्तु गुरु की आज्ञा का पालन नहीं करते हैं.जो साधु अपने गुरु के उपदशों का पूरी तरह से पालन करते हैं,वो गुरु के सूक्ष्म प्रकाश स्वरुप का अपने भीतर दर्शन करते हैं.गुरु के ज्योतिर्मय स्वरुप को यदि कोई देख ले,जान ले तो वो जीते जी माया के स्थूल व सूक्ष्म बंधनों से मुक्त हो जाता है.साधुओं को मन को निर्मल कर अपने शरीर के भीतर गुरु के प्रकाश स्वरुप का दर्शन करना चाहिए.
जिसकी चोली निर्मल हो गई,
अमर लोक लिए जाई
कहत कबीर सुनो भाई साधो,
सद्गुरु शब्द सुहाई
काहें ना धुलाय,चोला काहें ना धुलाय
ओ सुन्दर बांके जोगिया चोला काहें ना धुलाय..

जिस साधु का मन निर्मल हो गया और भगवान में राम गया,वो शरीर,मन और संस्कार रूपी चोला छोड़ने के बाद शश्वत धाम सत्यलोक चले जाता है.हम सब का शश्वत धाम सदैव अमर है,वो जीवन और नृत्यु के चक्रव्यूह से बाहर है.सद्गुरु महाराज कबीर साहब कहते हैं कि हे साधुओं के सद्गुरु के उपदेश से प्रेम करो और उसपे पूरी ईमानदारी से अमल करो.सद्गुरु परमात्मा तक पहुँचाने वाली एक सीढ़ी हैं.उनसे असीम प्रेम करो और अपने गंदे मन को निर्मल करने के लिए सदैव प्रयत्नशील रहो.जीतेजी परमात्मा का अनुभव प्राप्त करना ही साधु के जीवन का एकमात्र लक्ष्य होना चाहिए.
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व्याख्या और प्रस्तुति=सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कन्द्वा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६.
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