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जागरण मंच पर एक साल का सफर पूरा होने की समीक्षा

सद्गुरुजी
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जागरण मंच पर एक साल का सफर पूरा होने की समीक्षा
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२६ जुलाई २०१३ को मैंने इस मंच पर १३० शब्दों में अपनी पहली रचना लिखी थी,जिसका शीर्षक था “धर्म निरपेक्षता का प्रमाण पत्र”.अबतक २२४ पोस्ट लिखने के बाद और जागरण जंक्शन मंच पर एक साल पूरा होने के बाद आज मन में ये विचार आया कि अपने इस एक साल के सफर के बारे में कुछ लिखूं.जब मैंने इस मंच पर लिखना शुरू किया तो उस समय इस मंच पर बहुत से महान रचनाकार थे,जो बहुत अच्छा लिखते थे.आदरणीया निशा मित्तल जी,यमुना पाठक जी,सरिता सिन्हा जी,डॉक्टर शिखा कौशिक जी शालिनी कौशिक जी,और उषा तनेजा जी तथा आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी,संतलाल करुण जी,आचार्य विजय गुंजन जी.योगी सारस्वत जी,हरी रावत जी,अमर सिंह जी,यतीन्द्रनाथ चतुर्वेदी जी,मदन मोहन सक्सेना जी,सत्यशील अग्रलवाल जी,भगवान बाबू जी,मनोरंजन ठाकुर जी और डॉ0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर जी की रचनाएँ मैं समय निकालकर जरूर पढता था.इन सब रचनाकारों के विचारों और लेखन शैली से से बहुत कुछ सिखने को मिला.उस समय और भी बहुत से रचनाकारों की रचनाएँ मैं पढता था,परन्तु क्षमा चाहूंगा कि इस लेख को लिखते समय उनके नाम मुझे याद नहीं आ रहे हैं.
अगस्त २०१३ में “भज राधे गोबिन्दा गोपाला, हरी का प्यारा नाम है” रचना के साथ पापी हरिश्चंद्र जी इस मंच पर प्रगट हुए.सबसे अलग तरह की व्यंगात्मक लेखनी.शुरू में तो उनके लेख मैं मुस्कुराने के लिए पढ़ना शुरू किया,परन्तु बाद में ये एक आदत बन गई.सितम्बर २०१३ में डॉक्टर रंजना गुप्ता ने इस मंच पर पदापर्ण किया.उनकी कविता “हादसों का शहर” शायद पहली रचना थी जो मैंने पढ़ी थी.समय के साथ साथ उनकी एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट रचनाएँ इस मंच की शोभा बनीं.उनके बारे में जब भी मैं निष्पक्ष रूप से सोचता हूँ तो मुझे लगता है कि इस मंच पर शायद उनकी योग्यता को समुचित सम्मान नहीं मिला,इसीलिए वो समय के साथ साथ इस मंच से निराश होती चलीं गईं.उन्हें शायद महसूस हुआ कि इस मंच पर योग्यता और उत्कृष्ट साहित्य नहीं बल्कि वरिष्ठता और कुछ विशेष नामों का ही वर्चस्व है.नवम्बर २०१३ में मेरी रचना “उलटा कुआं गगन में,तिसमें जरै चिराग” से इस मंच पर मुझे जाना जाने लगा.इसी समय मेरा परिचय आदरणीय इमाम हुसैन कादरी जी और संजय कुमार गर्ग जी से हुआ.
इस रचना के बेस्ट ब्लॉग घोषित होते ही पुराने ब्लॉगर आदरणीय सूफी ध्यान मुहम्मद जी ने ईष्या-द्वेष के वशीभूत होकर मंच पर सुनामी लाने की कोशिश की.मुझे आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी से से पता चला कि ये मंच पर पहले भी आदरणीय राजकमल जी और आदरणीय शशिभूषण जी जैसे कई वरिष्ठ ब्लॉगरों को अपमानित कर उन्हें मंच छोड़ने पर मजबूर कर चुके हैं.आदरणीय सूफी ध्यान मुहम्मद जी ने मेरी आलोचना करने के लिए मेरे नाम से एक लेख तक प्रकाशित कर दिया.मैंने और आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी ने जागरण जंक्शन परिवार से अनुरोध किया कि वो आदरणीय सूफी ध्यान मुहम्मद जी के विरुद्ध अनुशासनहीनता की कार्यवाही करे,परन्तु अफ़सोस है कि जागरण जंक्शन परिवार ने कुछ नहीं किया और वो सिर्फ तमाशा देखते रहे.मेरे पास दो ही रास्ते थे,पहला ये कि ये मंच छोड़ दूँ और दूसरा ये कि अपनी लड़ाई खुद लड़ूं.मैंने दूसरा रास्ता चुना.आदरणीय सूफी ध्यान मुहम्मद जी ने बलात्कार पीड़ित लड़कियों और महिलाओं का मजाक उड़ाने वाले दो लेख ”चमेली ने चमन का बलात्कार किया” और “ठीक तो है बलात्कार” लिखे.इन लेखों में समस्त नारी जाति का बहुत असभ्य ढंग से अपमान किया गया था.
इन लेखों में बलात्कारियों का खुलकर समर्थन किया गया था.इस मंच पर किसी ब्लॉगर ने भी इन लेखों का विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटाई.मुझे लगा कि अब मुझे ही कुछ करना चाहिए.मैंने जागरण जंक्शन परिवार से इन अमर्यादित लेखों की शिकायत की तो पहली बार वो जागे,सक्रीय हुए और इन लेखों को डिलीट करवा दिया.किसी की रचना डिलीट कराये जाने का अफ़सोस मुझे आज भी है,परन्तु इस बात का गर्व भी है कि महिलाओं के सम्मान की खातिर मैंने उस समय बिलकुल सही निर्णय लिया था.उसी तनाव भरे समय में आदरणीय सूफी ध्यान मुहम्मद जी के मित्र आदरणीय अनिल कुमार अलीन जी से परिचय हुआ.मैं उन दोनों की तीक्ष्ण बौद्धिक क्षमता और असाधारण प्रतिभा से बहुत प्रभावित था,परन्तु उन लोंगो का व्यवहार बहुत असभ्य,असामाजिक और अहंकार से परिपूर्ण था.आदरणीय अनिल कुमार अलीन जी भी बहुत असभ्य और अहंकारपूर्ण तरीके से मेरा विरोध करते रहे.उनके ब्लॉग के सॉफ्टवेयर में कुछ खराबी थी या फिर मंच पर उनके अहंकारपूर्ण ख़राब व्यवहार के कारण उनके सॉफ्टवेयर में कुछ खराबी पैदा कर दी गई थी.
उनके नाम पर क्लिक करने पर उनका ब्लॉग नहीं खुलता था.उनके कहने पर मैंने जागरण जंक्शन परिवार से अनुरोध किया कि उनके ब्लॉग का सॉफ्टवेयर ठीक कर दिया जाये.उनके ब्लॉग का सॉफ्टवेयर ठीक हो गया और उनके नाम पर क्लिक करने पर खुलने लगा.ये सब होने के बाद आदरणीय अनिल कुमार अलीन जी में कुछ बदलाव आया और उनका असभ्य और अहंकारपूर्ण व्यवहार काफी हद तक बदल गया.इस मंच की बौद्धिक रूप से असाधारण कई प्रतिभाओं को मैंने उनके अहंकार और असभ्यता के कारण समय बीतने के साथ साथ हताश,निराश और एकाकी होकर इस मंच से गायब होते हुए देखा.इस मंच पर सबके साथ मिलजुल कर अपने विचार साँझा करने वाले ही बहुत लम्बे समय तक इस मंच पर टिक पाएंगे.इस महान रचनाकारों से भरे मंच पर आदरणीया सुनीता दोहरे जी,फ़िरदौस जी,शोभा जी,शकुंतला मिश्रा जी,सुषमा गुप्ता जी,सोनम सैनी जी,रजनी दुर्गेश जी,अल्का जी,कविता जी,मीनाक्षी जी,वंदना सिंह जी,दिव्या जी,रेखा जी,निर्मला सिंह गौर जी,सीमाकंवल जी और आदरणीय दीपक तिवारी,राजेश कुमार श्रीवास्तव जी,बृज किशोर सिंह जी,दीपक पाण्डे जी,एल.एस. बिष्ट् जी,डॉ श्याम गुप्ता जी,डॉ अशोक कुमार दुबे जी जी,डॉ अशोक जी,पी के दुबे जी और अभिषेक शुक्ला जी सहित बहुत से अन्य ब्लॉगरों की रचनाओं को पढ़ने का सौभाग्य मिला है.
नवम्बर २०१३ से इस मंच से जुड़ीं आदरणीया निर्मला सिंह गौर जी ने सन २०१४ में बहुत उत्कृष्ट रचनाएँ इस मंच को प्रदान की हैं.उनकी “मझधार” कविता से प्रभावित होकर मैंने उनकी रचनाओं को पढ़ना शुरू किया था.निश्चित रूप से उनकी एक से बढ़कर एक सार्थक और शिक्षाप्रद रचनाएँ इस मंच की शोभा बढ़ा रही हैं.पिछले एक वर्ष में इस मंच पर तकनीकी रूप से या फिर ब्लॉगरों के हित में कोई नया परिवर्तन नहीं हुआ है.ये मंच अपने पुराने ढर्रे पर ही चल रहा है.जागरण ब्लॉग से कहीं बेहतर साहित्यिक रचनाएँ रीडर ब्लॉग में देखने को मिल जाती हैं,परन्तु अफ़सोस इस बात का है कि इस मंच पर ब्लॉगर साहित्यकार नहीं बल्कि पाठक मात्र समझे जाते हैं और पाठक भी जागरण ब्लॉग के इन लेखों के-“अपने स्टूडेंट के साथ सेक्स करने का बहाना ढूंढ़ती है यह महिला टीचर”,”एक ऐसा प्रेमी जोड़ा जो एक दूसरे का खून पीता है..पढ़िए एक असली वैंपायर जोड़े की कहानी”,कुछ दिन पहले एक पुराना लेख मैं देखा था “लड़की पटाने के तरीके.” जागरण ब्लॉग पर मैं सालभर से ढूंढ रहा हूँ कि वहां पर आदरणीय संतलाल करुण जी और आदरणीया निशामित्तल जी जैसा कोई साहित्यकार मिल जाये और उन लोंगो जैसी अनुपम लेखनी में कोई उत्कृष्ट रचना पढ़ने को मिल जाये.
परन्तु मुझे अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है कि वहांपर इनके जैसा लिखनेवाला एक भी साहित्यकार नहीं मिला.मेरा जागरण परिवार से आग्रह है कि ब्लॉगरों को पाठक नहीं बल्कि साहित्यकार माने और श्रेष्ठ ब्लॉगरों की रचनाओं को अख़बार में छापें और उन्हें समुचित पारिश्रमिक भी दें.दैनिक जागरण के सम्पादकीय पृष्ठ पर प्रतिदिन जो चुनी हुई दो रचनाओं का अंश छापते हैं,वो निरुद्देश्य है.इससे किसी को भी कोई फायदा नहीं है.इससे अच्छा है कि आप अख़बार में प्रतिदिन या हफ्ते में एक बार पूरे एक पेज पर चुनी हुई पूरी रचनाएँ छापें और उन्हें समुचित पारिश्रमिक भी दें.जब आप प्रतियोगिता का आयोजन करें तो चुने हुए विजेताओंं की भी रचनाएँ अख़बार में छापें और उन्हें समुचित पारिश्रमिक भी दें.यदि आप ऐसा करते हैं तो इस मंच पर एक से बढ़कर एक महान साहित्यकारों की भीड़ लग जाएगी.ये मंच जब शुरू हुआ था तो बहुत से अच्छे साहित्यकारों की इस मंच पर भीड़ थी,जो समय बीतने के साथ साथ इस मंच से हताश और निराश होकर चले गए.आज इस मंच पर पाठक हैं,परन्तु रचना पढ़ के कमेंट करने वाले साहित्यकार धीरे धीरे कम होते चले जा रहे हैं.
समय समय पर आयोजित होने वाली प्रतियोगिताओ के परिणामों की निष्पक्षता पर हमेशा से ही सवाल उठते रहे हैं.इस पर गहनता से विचार होना चाहिए.इसी तरह से “बेस्ट ब्लॉगर आफ दी वीक” के चुनाव में भी में भी अक्सर गड़बड़ियां देखने को मिल जाती हैं.कभी गुरुवार को,कभी शुक्रवार को और कभी शनिवार को आप चुनाव करते हैं.कुछ लोंगो को बार बार “बेस्ट ब्लॉगर आफ दी वीक” चुनते हैं,वहीँ दूसरी तरफ कुछ बहुत अच्छे रचनाकारों की तरफ कभी नजर उठा के भी नहीं देखते हैं.इस भेदभाव वाली प्रवृति में भी आपको सुधार करना चाहिए.रचनाओं को आज के टॉप हिंदी ब्लॉग्स में चुनने और फीचर करने में अक्सर गड़बड़ी दिखाई देती है.कई दिन तक उसमे कोई बदलाव नहीं होता है और किसी की हर रचना फीचर होती है तो किसी की कई रचनाएँ फीचर ही नहीं की जाती हैं.ये एक बहुत बड़ी गलती है,इसमें सुधार होना चाहिए और दोनों पोर्टल में रचनाएँ प्रतिदिन बदलीं जानी चाहिए.मेरा एक सुझाव ये है कि जागरण ब्लॉग और रीडर ब्लॉग की सभी रचनाओं के साथ व्यूज यानि पाठक संख्या भी दिखाई जाये.
हर लेख के साथ पाठक संख्या सभी साहित्यिक मंच पर दिखाया जाता है.अंत में मंच छोड़कर जाने वाले सभी महान रचनाकारों से मेरा अनुरोध है की वो इस मंच पर वापस आएं और पुन: लिखना शुरू करें.सबसे ज्यादा दुःख तो मुझे इस बात का होता है कि कोई रचनाकार जब इस मंच से गायब हो जाता है तो मंच के द्वारा उसकी कोई खोज खबर तक नहीं ली जाती है.मुझे उम्मीद है कि जागरण जंक्शन परिवार इस दिशा में भी कुछ सोचेगा और ब्लॉगरों से हमेशा संवाद कायम रखने पर गंभीरता से विचार-विमर्श करेगा.फ़िलहाल अभी तो सबसे पहले जागरण जंक्शन मंच के फीडबैक को चुस्त दुरुस्त किया जाना चाहिए.वहां शिकायत करने पर न तो जल्दी कोई जबाब ही नहीं मिलता है और न ही जल्दी कोई कार्यवाही होती है.मुझे पूर्ण विश्वास है कि जागरण जंक्शन मंच के संचालकगण मेरी किसी बात का बुरा न मानते हुए रचनात्मक दृष्टिकोण से मेरे इस समीक्षात्मक लेख पर विचार करेंगे.मैं चाहता हूँ कि जागरण जंक्शन मंच हिंदी ब्लॉगिंग की दुनिया में हमेशा सबसे आगे और हर दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ रहे.!! जयहिन्द !!
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आलेख और प्रस्तुति=सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कन्द्वा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६.
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