Menu
blogid : 15204 postid : 771982

बैठी गुफा में सब जग देखे..अघोरी साधु की सच्ची कहानी

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
  • 534 Posts
  • 5673 Comments

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
xax
बैठी गुफा में सब जग देखे..अघोरी साधु की सच्ची कहानी
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

बैठी गुफा में सब जग देखे,
बाहर कछु नहीं सूझै !
उल्टा बाण पारदिहिं लागे.
सूरा होय सोई जूझै !

श्मशान में जलती हुई चिताओं के बीच पीपल के पेड़ के नीचे ध्यानमग्न अवस्था में बैठे अघोरी साधु कोई दिव्य महापुरुष लग रहे थे.काले वस्त्र वो पहने हुए थे.गलेमें हड्डियों से बनी माला डाली हुई थी.उनके पास में काले रंग का एक झोला और एक त्रिशूल रखा हुआ था.लाश फूंकने आये गांव के कुछ बुजुर्ग और नौजवान चबूतरे से नीचे बैठे हुए थे.आपस में बातचीत करते हुए भी उन सबकी निगाहें रह रहकर समाधिस्थ अघोरी की तरफ चली जाती थीं.कुछ देर बाद अघोरी साधु ने आँखें खोलीं.उनकी आँखें गुस्से से लाल थीं.वो क्रोधित होकर बोले-घोर कलयुग है..अब मुझे वहां जाना ही पड़ेगा..उस राक्षस का पर्दाफाश करना ही पड़ेगा..
अघोरी बाबा अपना झोला और त्रिशूल उठाते हुए उठ खड़ा हुए.गांव के एक बुजुर्ग व्यक्ति अघोरी बाबा के पास जाकर हाथ जोड़ बोले-बाबा..आप नाराज क्यों हैं..क्या हमलोगो से कोई भूल हुई है..
नहीं तुमलोगों से कोई गलती नहीं हुई है..जिसने घोर पाप किया है..मैं उसका असली चेहरा सबको दिखाने जा रहा हूँ..-अघोरी साधु ये कहते हुए गांव की ओर चल दिए.उसी गांव के वो वृद्ध व्यक्ति भी उनके पीछे पीछे चल पड़े-चलिए महाराज..मैं भी आपके साथ गांव में चलता हूँ..
उस वृद्ध व्यक्ति को समझ में नहीं आ रहा था कि दो घंटे पहले हंस हंसकर बातें करने वाले ये साधु अचानक इतना उग्र क्यों हो गए हैं..गांव में किस पापी का असली चेहरा ये दिखाने जा रहे हैं..
तेज क़दमों से अघोरी साधु के पीछे पीछे चलते हुए उन्होंने ने हिम्मत कर पूछ ही लिया-महाराज हमारे गांव में कौन ऐसा पापी है..जिसके पापों का आप पर्दाफाश करने जा रहे हैं..और क्या उसने पाप किया है..
चुपचाप मेरे साथ चलो..थोड़ी देर में सब पता चल जायेगा..-अघोरी बाबा खेत की पगडण्डी पर तेजी से चलते हुए गुस्से से कड़कती हुई आवाज में बोले.
वृद्ध व्यक्ति खामोश हो सोचने लगे-समाधी में अघोरी बाबा ने न जाने क्या देख लिया है..इस समय कितने क्रोधित हैं ये..दो घंटे पहले जब गांव के लोंगो के साथ एक लाश लेकर हम शमशान में पहुंचे थे तो हमें देखकर पीपल के नीचे बैठे ये अघोरी बाबा हँसते हुए बोले थे-ये दुखिया आज शरीर छोड़कर सुखिया हो गया..कई साल से टीबी की बीमारी से जूझ रहा था..
अघोरी बाबा की बात सुन सबलोग हैरान रह गए थे.
मैंने हाथ जोड़ पूछा था-बाबा..आप इस दुखिया को कैसे जानते हैं..आपको तो ये भी मालूम है कि ये सालों टीबी के रोग से जूझकर मरा है..
अघोरी बाबा हँसते हुए बोले थे-श्मशानवासी हमारे ईष्ट महादेव हमें सब बता देते हैं..
सब लाश फूंकने में व्यस्त हो गए थे और मैं अघोरी बाबा के निकट बैठते हुए पूछा था-बाबा आप तो सिद्ध महापुरुष हैं..और कितनी कम उम्र में साधु हो गए हैं..
अघोरी बाबा मेरी बात सुनकर कुछ देरतक हंसने के बाद बोले थे-मेरी इस देह से मेरी उम्र का अंदाजा मत लगाना बच्चा..मेरी उम्र बहुत है..कितने जन्म से अपने मन में उपजे कई सवालों का जबाब ढूंढ़ रहा था..मौत क्या होती है..क्या आत्मा होती है..और यदि होती है तो आत्मा मरने के बाद कहां चली जाती है..क्या आत्मा से बात की जा सकती है..इन सब सवालों के सही जबाब मुझे इस जन्म में मिले..जब मुझे सही गुरु मिले..विवेक और वैराग्य का सही ज्ञान मिला..जीव और शिव दोनों का साक्षात्कार हुआ..जीते जी मोक्ष की अनुभूति हुई..
गांव की दुर्गामाई मंदिर के पुजारी के घर का रास्ता यही हैं न..-अघोरी बाबा गांव में प्रवेश करते हुए पूछे.
हाँ..महाराज..यही रास्ता है..-वृद्ध व्यक्ति अघोरी बाबा की यादों से बाहर निकलते हुए बोले.उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि अघोरी बाबा इतने क्रोधित होकर गांव के पुजारी के घर क्यों जा रहे हैं..
पुजारी के घर पहुंचकर वृद्ध ने देखा कि उनके घर के बाहर गांव वालों की काफी भीड़ लगी हुई है.बहुत सी ओरतें जोर जोर से रो रहीं हैं.एक कम उम्र की जवान ओरत छाती पीट पीटकर रो रही है.
वृद्ध ने पुजारी के पास जाकर पूछा कि-बाबा..क्या बात है..ये रोना पीटना क्यों मचा हुआ है..
पुजारी रोते हुए बोले-कल पोती पैदा हुई थी..आज वो पता नहीं कहाँ गायब हो गई है..उसकी जगह बिछौने पर चुनरी और नौ अड़हुल के फूल पड़े हुए मिले हैं..ये लगातार तीसरे साल ऐसा हुआ है..दुर्गामाई मेरी पोती को फिर उठा ले गईं..मेरी पोती इस समय पता नहीं कहांपर और किस हाल में होगी..
मैं जानता हूँ कि तुम्हारी पोती इस समय कहांपर और किस हाल में है..-अघोरी बाबा पुजारी को गुस्से के मारे दहकती हुई सुर्ख लाल आँखों से घूरते हुए बोले.
अघोरी बाबा के मुंह से ये बात सुनते ही पुजारी की छाती पीट-पीटकर रोती चीखती पुत्रवधु दौड़कर उनका पैर पकड़ ली और रोते हुए बोली-बाबा..कहाँ है मेरी बेटी..
तेरी बिटिया ठीक है..चल मैं तुझे तेरी बेटी से मिलाता हूँ..-अघोरी बाबा उसके सिर पर हाथ रख बोले.
झूठ बोल रहा है ये ढोंगी..संगीता तुम इस पाखंडी साधु से दूर हटो..और बेटा सदानंद तुम इस झूठे साधु को पकड़कर गांव के बाहर कर दो..-पुजारी गरजती हुई आवाज में बोले.
मैं इस बाबा के साथ अपनी बेटी को ढूंढने जाउंगी..चाहे आप कुछ भी क्यों कहें..-संगीता बोली.
सदानंद..बहू को घर के अंदर ले जाओ..मैं खुद इस पाखंडी को धक्के मार के गांव के बाहर निकालता हूँ..-पुजारी गुस्से के मारे चीखते हुए बोला.
बाबूजी..साधु की बात पर विश्वास करने में हर्ज ही क्या है..अभी चल के देख लेते हैं..उनकी बात झूठी साबित हुई तो ही उनसे दुर्व्यवहार करना उचित होगा..-सदानंद बोला.
गांववाले पुजारी को समझाने लगे-पुजारी बाबा..इस अघोरी के साथ चल के देखने में हर्ज ही क्या है..कुछ ही देर में सारी सच्चाई सामने आ जाएगी कि ये अघोरी सच्चा है या झूठा..
अघोरी सबको लेकर चल पड़े.पुजारी गुस्से के मारे खिसियाते और झल्लाते हुए पीछे पीछे सबके साथ चल पड़े..
बाबा..मेरी वो फूल सी बिटिया जीवित तो है न..-संगीता तेज क़दमों से अघोरी के साथ चलते हुए बार बार एक ही बात पूछती रही.
बेटी वो ठीक है..और दुर्गामाई नाग-नागिन के रूप में उसकी रखवाली कर रही हैं..-अघोरी बाबा यही कहकर रास्ते भर उसे दिलासा देते रहे.
अघोरी बाबा सबको साथ लेकर गांव से दो किलोमीटर दूर सुनसान और बंजर ताल में स्थित एक सूखे कुँए के पास आ गए.कुँए के अंदर से किसी बच्चे के रोने की धीमी आआज आ रही थी.
अघोरी बाबा संगीता से बोले-बेटी..तेरी बिटिया इसी कुँए के भीतर है..तू ठहर..मैं गांववालों के साथ मिलकर उसे सुरक्षित निकालने की कोई व्यवस्था करता हूँ..
संगीता ग्यारह फुट गहरे अधपटे सूखे कुँए में झांकी और अंदर का दृश्य देखकर उसका कलेजा दहल गया.फन काढ़े हुए नाग-नागिन का जोड़ा और लाल तौलिये में लिपटी रोती चिल्लाती हुई उसकी फूल सी बिटिया..ये दृश्य देखकर उसके रोंगटे खड़े हो गए.उसके ह्रदय में माँ की ममता ऐसा जोर मारी की वो बिना कुछ सोचे समझे कुँए में कूद गई..
वो धम्म से कुँए के एक कोने में गिरी.पैरों में दर्द से भरी मोच और चोट महसूस की,परन्तु कराहते हुए भी उसका ध्यान अपनी बेटी की तरफ था. नाग नागिन फन काढ़े हुए उसकी तरफ बढे.उसने दोनों हाथ जोड़ दिए और रोते हुए कहा-आस्तिक..आस्तिक..हे नागराज..हे नागरानी..ये मेरी बेटी है..और मैं इसकी माँ हूँ..आपलोग एक तरफ हो जाइये..मुझे मेरी बेटी को लेने दीजिये..
जीव जंतु भी समझदार होते हैं.उनमे भी दया ममता होती है.नाग-नागिन का जोड़ा उसके सामने से हट कुँए के एक कोने में चला गया.संगीता ने अपने दोनों हाथ बढ़ा अपनी बेटी को उठाया और सीने से लगा लिया.कुछ ही देर में बेटी चुप हो गई.अब एक माँ अपनी बेटी को सीने से चिपकाये जोर जोर से रो रही थी.
उधर कुँए के ऊपर खलबली मची हुई थी.सबलोग साँस थामे कुँए में झांककर सबकुछ देख रहे थे.बदहवास सा होकर इधर उधर भाग रहा सदानंद कहीं से एक मोटी सी डोरी ला उसका एक सिरा लोंगो को पकड़ाया और दूसरा सिरा पकड़ धीरे धीरे कुँए में उतरने लगा.संगीता बच्ची को ले उठ खड़ी हुई.तभी उसकी नजर कुँए में पड़े शिशुओ के दो छोटे से कंकाल पर पड़ी.वो सोचने लगी कि ये कंकाल किसके हैं.कहीं ये कंकाल उसकी गायब बच्चियों के तो नहीं हैं ? वो घबराहट भरे दिलोदिमाग से यही सब सोचते हुए बच्ची सदानंद को थमाकर बोली-आप बिटिया को लेकर ऊपर चलें..मैं पीछे से आ रही हूँ..
सदानंद बिटिया को लेकर ऊपर की तरफ चल पड़ा और संगीता शिशुओ के दोनों कंकाल अपने आँचल में बांध ली.नाग-नागिन को हाथ जोड़ प्रणाम की और फिर रस्सी पकड़ कुँए के ऊपर आ गई.संगीता ऊपर आकर अघोरी साधु के पास आई और अपना आँचल खोल शिशुओ के दोनों कंकाल उन्हें दिखाते हुए पूछी-बाबा..ये किसके कंकाल हैं..
अघोरी साधु बोले-बेटी..ये तेरी उन दो बेटियों के कंकाल हैं..जो गायब हो गईं थीं..उन्हें गायब करनेवाला नरपिशाच इसी कुँए में लाकर उन्हें फेंक देता था..और उनकी जगह पर चुनरी और नौ अड़हुल के फूल रख दुर्गामाई पर बच्चे चुराने का इल्जाम मढ़ देता था..
बाबा कौन है वो नरपिशाच..-संगीता क्रोध के मारे चिल्लाते हुए पूछी.
अघोरी बाबा थोड़ी दूर पर खड़े उसके ससुर की तरफ अंगुली दिखाते हुए बोले-वो नरपिशाच तेरा ससुर है..
संगीता के ससुर सच सुन सकपका गए.वो थर थर कांपते हुए किसी तरह से हिम्मत कर बोले-ये सब झूठ है..ये अघोरी साधु झूठ बोल रहा है..मैं भला ऐसा पाप क्यों करूँगा..
अघोरी बाबा क्रोध से लाल नेत्रों से उन्हें घूरते हुए तेज स्वर में बोले-क्योंकि तुम्हे लड़कियों से सख्त नफरत है..तुम माँ दुर्गा की पूजा करने का ढोंगभर करते हो..यदि तुम माँ के असली पुजारी होते तो अपनी अबोध पोतियों में भी माँ का ही रूप निहारते और इतना बड़ा पापकर्म नहीं करते..अगर मेरी बात झूठी है तो चल..गांव के मंदिर में चलकर दुर्गामाई की कसम खा कि तूने अपनी पोतियों की हत्या नहीं की है..
पुजारी सिर झुका चुप हो गए.सारा गांव उनकी निंदा करने लगा.अघोरी बाबा की जय जयकार होने लगी.संगीता और सदानंद रोते बिलखते हुए अपनी दोनों मर चुकीं बच्चियों के कंकालों को जमीन में दफना दिए और अघोरी बाबा की कृपा से जीवित बच गई तीसरी बच्ची को लेकर अपने घर की तरफ चल पड़े.आसपास के गांवों में ये खबर इतनी तेजी से फैली कि शामतक हजारों लोग अघोरी बाबा के दर्शन करने के लिए जुट गए.उस रात को पुजारी बाबा बिना किसी से कुछ कहे घर से जो गायब हुए तो आज तक पता नहीं चला की वो कहाँ चले गए.गांव के दुर्गामाई जी के मंदिर में ठहरे अघोरी बाबा भोर होते होते मंन्दिर से न जाने कहाँ अंतर्ध्यान हो गए.आज भी बहुत से लोग उन्हें ढूंढ रहे हैं.जिस व्यक्ति ने मुझे इस सच्ची घटना की जानकारी दी थी उसने मुझसे पूछा था कि अघोरी बाबा हमारे गांव समाज में रहकर लोंगो की सेवा क्यों नहीं किये..वो हमें छोड़कर एकांत में क्यों चले गए..
मैंने कुछ देर खामोश रहने के बाद कबीर साहब की वाणी में उनके प्रश्न का उत्तर दिया था-
जो कुछ कहूँ अकह सो न्यारा,
ताहि देखि लौ लावें !
कहत कबीर एही गति के योगी,
बहुरि न भवजल आवें !

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
कहानी और प्रस्तुति=सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कन्द्वा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६.
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh