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उसकी सारी खुशियां सर्जरी की प्लेट में सजकर चलीं गईं

सद्गुरुजी
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उसकी सारी खुशियां सर्जरी की प्लेट में सजकर चलीं गईं-संस्मरण
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तीस बत्तीस साल की एक दुबली सी युवती कमरे के एक कोने में अपनी माँ के साथ बैठी अपनी बारी आने की प्रतीक्षा कर रही थी.मैंने कल मैंने उन्हें पहली बार आश्रम में देखा था.शिष्टाचार के नाते मैंने उनसे पूछा-हाँ..माताजी कहें..क्या बात है..
महाराज..आप इन लोंगो को देख लें..हमलोग अकेले में कुछ बात करना चाहते हैं..-वो बोलीं.
कुछ देर बाद जब अन्य लोग चले गए तो मैं उनकी तरफ देख बोला-हाँ..माताजी अब कहिये..कैसे आना हुआ है..
वो दोनों मेरी गद्दी के कुछ पास आकर बैठ गईं.युवती की माता जी बोलीं-महाराज..ये मेरी छोटी बेटी है छाया (परिवर्तित नाम)..दोबच्चे हैं इसके..एक बारह साल की लड़की है और दूसरा सात साल का लड़का है..इसका पति राजमिस्त्री है..
अपनी परेशानी बताइये..-मैंने उन्हें बीच में टोकते हुए कहा.
युवती की माता जी अपनी बेटी की तरफ देखते हुए बोलीं-महाराज..दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है इसपर..शरीर से तो परेशान है ही ऊपर से इसका मर्द अब दूसरी अौरत के पीछे भाग रहा है..
शरीर से क्या परेशानी है..मुझे पूरी बात बताओ..–मैंने छाया की तरफ देखते हुए पूछा.
छाया अपना सिर उठा मेरी तरफ देखते हुए बोली-महाराज..मेरे जीवन में सब सुख था..पति और ससुर दोनों राजमिस्त्री का काम करते थे..कुछ खेती-बाड़ी भी थी..गुजारा बहुत आराम से चल रहा था..बच्चे,पति सास और ससुर सब मिलजुलकर बड़े प्रेम से रहते थे..चार साल पहले एक दिन अपनी दाहिनी छाती में गांठ महसूस की..मेरे पति भी उस गांठ को महसूस किये..गांठ को दबाने पर दर्द होता था..मेरे पति मुझे लेकर एक होम्योपैथी के डॉक्टर के पास गए..वो तीस हजार में मेरी छाती की गांठ गला देने का ठेका ले लिए..आवश्यक और अनावश्यक बहुत सी जाँचे कराके उन्होंने पैथोलॉजी वाले के माध्यम से खूब कमीशन खाया..परन्तु मेरी छाती की गांठ और उसमे जारी दर्द दिन पर दिन बढ़ता ही गया..मुझे एक बड़े सरकारी हॉस्पिटल में दिखाया गया..दुनियाभर की तकलीफदेह जाँच के बाद डॉक्टरों ने मेरे पति को बताया कि तुम्हारी पत्नी को ब्रेस्ट कैंसर है..आपरेशन करना पड़ेगा..इसे भर्ती कर दो..मैं हॉस्पिटल में भर्ती कर दी गई..मैं पंद्रह दिन तक हॉस्पिटल में भर्ती रही..डॉकटरों ने कई बार आपरेशन का दिन निश्चित किया..परन्तु आपरेशन नहीं किया..मैं ढेर सारी जांचों से ऊब गई थी..सबसे ज्यादा शर्म इस बात की लगती थी कि मेरे घरवालों के सामने ही डॉक्टर मेरे छाती दबाकर देखते थे और उनके साथ आने वाले जूनियर डॉक्टर और छात्र छात्राएं भी दिनभर में कई बार मेरी छाती टटोलकर देखते थे..मेरे साबरा का बांध टूट गया तो एक दिन मकई डॉक्टर के सामने चीख पड़ी-काट के फेंक क्यों नहीं देते हो मेरी छाती को..तुमलोग दिनभर टटोल टटोल के क्या देखते हो..क्या ढूंढते हो..नहीं समझ में आ रहा है तो साफ साफ कहो..मैं किसी प्राइवेट हॉस्पिटल में जा के आपरेशन करवा लुंगी..डॉक्टर कुछ बोले नहीं..खिसियाकर चले गए..हमलोग आपस में सलाहकार सरकारी हॉस्पिटल छोड़ दिए और एक अच्छे प्राइवेट हॉस्पिटल में चले गए..आपरेशन के लिए वहांपर एक बड़ी रकम मांगी गई..दो बिस्सा जमीन बेचीं और कुछ रिश्तेदारिओं से कर्जा लिया..आपरेशन हो गया..उसके साथ ही मेरी सारी खुशियां सर्जरी की प्लेट में सजकर सजकर जाँच के लिए चली गईं..कटे हुए वक्ष की जाँच से पता चला की मुझे ब्रेस्ट कैंसर नहीं था..केवल छाती में एक गांठ थी..सिर्फ उस गांठ को निकालकर एक छोटा आपरेशन भी हो सकता था..मेरी पूरी छाती कटने से बच सकती थी..और मेरी सारी पारिवारिक खुशियां भी जाने से बच सकती थी..छाया इतना कहकर हिचक हिचक कर रोने लगी..
उसकी पूरी बात सुनकर मुझे बहुत दुःख हुआ.मैं दुखी स्वर में पूछा-हॉस्पिटल और उसके डॉकटरों के खिलाफ तुमने कोई कार्यवाही नहीं की..
प्राइवेट हॉस्पिटल वाले सरकारी हॉस्पिटल के डॉकटरों को दोष देते रहे कि उन्होंने ठीक से चेक नहीं किया..हमारी गलती नहीं है..वो लोग बड़े आदमी हैं साहिब..हम गरीब लोग उनसे क्या लड़ते..-युवती की माँ बोलीं.
मैंने छाया से पूछा-अब तुम्हारे घर वालों का व्यवहार तुमसे कैसा है..
मेरे घर वालों का व्यवहार मेरे प्रति अब अच्छा नहीं है..मेरे सास ससुर को दो बिस्सा जमीन बिकने का दुःख है..वे लोग रोज जमीन बिकने और मेरे इलाज में कर्जा हो जाने का उलाहना देते हैं..जन्म-जन्मान्तर तक साथ देने की कसमे खाने वाला मेरा पति अब तो इसी जन्म में मुझसे दूर भागने लगा है..हरदम मेरे आगे-पीछे घूमने वाला और सुख दुःख में मेरी छाती में अपना सिर छुपा लेने वाला मेरा पति अब किसी और स्त्री के छाती की शरण ले लिया है..यही मेरा सबसे बड़ा दुःख है महाराज..मेरी गई हुईं खुशियां मेरे पास लौट आएं..इसके लिए अब आप ही कुछ कीजिये..-छाया रोते हुए बोलीं.
कुछ देर सोचने के बाद मैं बोला-छाया..अब एक ही रास्ता है..और वो ये कि तुम अपनी सेवा से अपने परिवार वालों को अपने पक्ष में करो..तुम्हारे शरीर के एक अंग विशेष की अपंगता अब एक यथार्थ है..उसे स्वीकार करो..और उससे तुम स्वयं दूर मत भागो..अपनी शिक्षा और योग्यता के अनुसार अपने गुणों को बढ़ाओ..यदि सिलाई कढ़ाई का तुम्हे ज्ञान हो तो उसे ही अपनाकर अपने खाली समय का सदुपयोग भी करो और कुछ कमाई भी करो..मेरा काम दुआ करना है..मैं तुम्हारे उज्जवल भविष्य के लिए ईश्वर से जरूर प्रार्थना करूँगा..
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संस्मरण और प्रस्तुति=सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कन्द्वा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६.
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