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अथाह दुःख सहकर भी सृजन करने के लिए तत्पर है स्त्री

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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अथाह दुःख सहकर भी सृजन करने के लिए तत्पर है स्त्री-संस्मरण
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याद मत कर अपने दुखों को
आने को बेचैन है धरती पर जीव
आकाश पाताल में भी अट नहीं सकता
इतना है औरत जात का दुःख
धरती का सारा पानी भी
धो नहीं सकता
इतने हैं आंसुओं के सूखे धब्बे

नारी पीड़ा को बहुत प्रभावी ढंग से अपनी कविता में उजागर करने वाले वरिष्ठ कवि चंद्रकांत देवताले जी की कविता “बाई दरद ले” पढ़ते हुए मुझे बहुत अच्छी लगीं.नारी और नारी पीड़ा का ध्यान आते ही वो युवती याद आ गई,जो विजिंटिंग हॉल में दिवार का सहारा लेकर सो रही थी.पिछले एक घंटे के दौरान मैं तीन बार विजिंटिंग हॉल का चक्कर लगा चूका था.हर बार वो सोते हुए मिली.लाल रंग की साड़ी पहनी हुई और साड़ी के आँचल से सिर ढक दिवार की टेक लेकर गहरी नींद में सो रही थी.वो न जाने कौन सी पीड़ा लेकर मेरे पास आई थी,जिसे व्यक्त करने से पहले ही सो गई थी.मैंने उसे जगाना उचित नहीं समझा.मुझे लगा की वो बहुत थकी हुई है,नींद के सहारे वो अपनी आत्मा के आगोश में समा विश्राम कर रही है.उसके चमकते हुए गोरे रंग के सुन्दर चेहरे पर वही निश्चिन्तिता और शांति थी,जो समाधी लगाये हुए साधु के चेहरे पर आ जाती है.समाधी और निद्रा दोनों का ही एक ही उद्देश्य है और वो है-कुछ देर के लिए सभी तरह की सांसारिक पीड़ा से मुक्ति दिला देना.कम्प्यूटर पर जरुरी काम खत्म कर मैं कविता पढ़ रहा था.तभी कम्प्यूटर की घडी पर मेरी नजर गई.शाम के पौने चार बज रहे थे.मैं कम्प्यूटर बंदकर कुर्सी से उठ खड़ा हुआ और सोचने लगा कि अब उसे जगाना चाहिए..शाम के पौने चार बज रहे हैं..लोंगो के आने का सायंकालीन समय शुरू होने वाला है..उसे सोता देख शायद कुछ लोगों को बुरा लगे कि जागने वाली जगह पर आकर ये स्त्री सो रही है ? बुरा मुझे भी लगता है,परन्तु.मैं इस बात को भी महसूस लारा हूँ कि नींद,आत्मा,गुरु और परमात्मा ये सभी शांति,विश्राम,आनंद और करुणा बरसाने के लिए ही हैं.जो इनकी शरण में जाता है.उसे असीम सुख और गहरी शांति मिलती है.मैं विजिटिंग हॉल में जाने से पहले वाटर फ़िल्टर के पास पहुंचा और गिलास उठाकर पानी पिटे हुए सोचने लगा कि गहरी नींद में सो रही इस इस स्त्री को अब जगाना ही पड़ेगा.फिर सोचने लगा कि इसे आवाज देने के लिए कहूँ कया..इसका नाम तो पता नहीं..ऐ स्त्री कहूँ..नहीं ये ठीक नहीं..सुनिए..हाँ यही ठीक रहेगा.मैं पानी पीकर स्टील का गिलास स्टैंड पर रख दिया.ठीक से नहीं रखा पाने के कारण गिलास स्टैंड से लुढ़कते हुए जमीन पर गिर गया.एक तेज आवाज हुई.विजिटिंग हॉल में सोते दिख रही स्त्री हड़बड़ाकर उठ गई.मैं गिलास उठाकर ठीक से स्टैंड पर रखा और विजिटिंग हॉल में प्रवेश किया.सिर पर साड़ी का पल्लू ठीक से रखते हुए वो स्त्री उठ खड़ी हुई.आगे बढ़कर वो मेरे पैर छूना चाही ,परन्तु मैंने मना कर दिया.मैं अपने स्थान पर बैठते हुए बोला-आप तो एक घंटा खूब गहरी नींद में सोईं हैं.मैं तीन बार आके लौट गया.वो स्त्री शरमाते और मुस्कुराते हुए बोली-मैं आपसे क्षमा चाहूंगी..आप कंप्यूटर पर बिजी थे..यहांपर आपका इंतजार करते करते नींद आ गई..वो अपने हाथ जोड़ते हुए बोली-मैं आपके आराम करने के समय में आ गई,उसके लिए भी मैं क्षमा चाहूंगी..
मैं सहज होते हुए बोला-ठीक है..आगे ध्यान रखियेगा..अब आप अपनी व्यथा कहिये..थोड़ी देर में और लोग आ जायेंगे..सबके सामने कुछ कहने में शायद आपको झिझक महसूस हो..
अपनी लाल साड़ी के आँचल से अपनी देह बड़ी सभ्यता से वो ढकते हुए बोली-जी..हाँ..मैं एकांत में आपसे कुछ बात करना चाहती थी..मेरा नाम ज्योति (परिवर्तित नाम) है..मेरी बुआजी आपके पास आती हैं..उन्होंने ने ही मुझे आपके पास भेजा है..मेरी कुछ निजी समस्या है..आप कहें तो बोलूं..
हाँ..आप बोलिए..-मैं बोला.
ज्योति गंभीर होकर कहने लगी-मेरी शादी को अभी सालभर भी नहीं हुआ है..मेरे ससुराल वाले मुझे बहुत परेशान करते हैं..मेरी सास गठिया की मरीज हैं.. वो चल फिर नहीं पाती हैं..फिर भी बिस्तर पर लेटे लेटे हुक्म चलाती रहतीं हैं..उनकी आज्ञा के पालन में जरा सी देर होने पर अपनी लड़कियों से और अपने लड़कों से मुझे पिटवातीं हैं..और मुंहमांगा दहेज़ मिलने पर भी दिनभर मेरे माता-पिताजी को गालियां देती रहती हैं..
तुम्हारे पति क़्या करते हैं..और उनका व्यवहार तुम्हारे साथ कैसा है..-मैंने पूछा.
ज्योति मेरी तरफ देखते हुए बोली-वो रेलवे में नौकरी करते हैं..उनके पिताजी के मरने के बाद उन्हें ये नौकरी मिली थी..उनके व्यवहार मेरे साथ बहुत खराब है..अक्सर पीकर घर लौटतें हैं और अपनी माँ के द्वारा मेरे खिलाफ भड़काने-उकसाने पर मुझे मारना पीटना शुरू कर देते हैं..आपसे अपना दुःख क़्या कहूँ मुझे तो कहने में भी शर्म आती है..वो सबके सामने ही मुझे मारते-पीटते हुए चिल्लाते हैं-इसे ज्यादा गर्मी चढ़ी है..मैं अभी इसकी गर्मी शांत किये देता हूँ..और फिर अपने कमरे में घसीटते हुए ले जाकर मारते पीटते हुए बहुत बेदर्दी से बलात्कार करते हैं..मैं दर्द के मारे देरतक रोती चिल्लाती हूँ और जब उनका क्रूर जुल्म झेलकर लंगड़ाते हुए कमरे से बाहर निकलती हूँ तो मेरा सूजा हुआ मुंह और देह की दुर्दशा देख घर के सब लोग अपने मुंह पर हाथ रख हँसते हैं और मेरे आज्ञाकारी पति अपनी माँ के पास आ बड़े गर्व से सीना तान कहते हैं-बहुत भकभका रही थी..इसकी ढिबरी टाइट कर दी माँ..इसकी देह पर बढ़ी चर्बी और इसके दिमाग पर चढ़ी गर्मी सब निकाल दी है मैंने..अब दो चार दिन तक बिना कुछ बोले चौबीसो घंटे सबका हुक्म मानती रहेगी..मैं रोते कराहते हुए घर के कामों में लग जाती हूँ..पूरे घर में अकेले झाड़ू पोंछा लगाओ..सबके कपडे धोकर प्रेस करो..सबके लिए खाना बनाओ..दिनभर सास की सेवा करो..और रात को पति की मार से बचने के लिए थकी हुई,पोर-पोर दर्द से कराहती हुई देह नोचने खसोटने और दांत से काटने के लिए चुपचाप पति को सौप दो..और फिर दर्द से रोते-चिल्लाते व कराहते हुए सो जाओ..इतना कहने के बाद वो रूककर अपनी आँखे पोंछने लगी.
उसकी व्यथा सुनकर मैं बहुत दुखी होकर पूछा-घर के कामों के लिए कोई नौकर या नौकरानी नहीं हैं..
ज्योति रुमाल से अपनी आँखे पोंछते हुए बोली-नहीं..घर का सब काम मुझे ही करना पड़ता है..उस घर में पैसे की कमी नहीं है..मेरी सास फैमिली पेंशन पाती हैं और मेरे पति बहुत अच्छी तनख्वाह पाते हैं..नीचे की दो मंजिलों से काफी किराया भी उतररता है..शादी के बाद जब मैं वहां गई तो वहांपर घर के कामों के लिए एक नौकर और एक नौकरानी रखे गए थे..मेरे ससुराल पहुँचने के तीसरे ही दिन उनको हटा दिया गया..और मुझसे घर का सब काम करने को कहा गया..घर का काम करते हुए कुछ ही दिनों में जब थककर मैं चूर हो गई तो मैंने अपनी सास से साफ साफ कह दिया कि घर के कामों में मेरी मदद के लिए एक नौकरानी रखो..मुझसे अकेले घर के सब काम नहीं होंगे..मेरी बात सुनकर मेरी सास अपनी दोनों बेटियों को मेरे हाथ पकड़ने को कहीं..और मेरे पति को थप्पड़ मारने का आदेश दीं..मेरे पति मेरे दोनों गाल पर तबतक थप्पड़ मारते रहे..जबतक की मैं घर के सब काम करने के लिए हाँ नहीं कह दी..मैं पति की मार से लस्त-पस्त होकर फर्श पर लुढक गई थी..मेरे शरीर के सारे जेवर उतरवाकर मेरी सास ने अपने पास रख लिए और मुझे स्टील की पायल भर पहनने को दीं..उस दिन के बाद से अक्सर वो लोग मेरे साथ मारपीट करने लगे..एक बार मइके में डेरा जमाई अपनी बड़ी ननद के कपडे प्रेस करते हुए उनकी साड़ी थोड़ी सी जल गई थी..उन्होंने गर्म प्रेस से मेरी कमर जला दी..अगर मेरे पति उनके हाथ से प्रेस नहीं छीनते तो वो मेरा पूरा शरीर ही जला देतीं..और पति ने मुझे जलने से सिर्फ इसलिए बचाया क्योंकि रोज रात को दारू पीकर घर आने के बाद मेरे शरीर का गोरा सुन्दर गोस्त उसे नोचने बकोटने और काटने के लिए चाहिए..वो अपने वासना की हवश इसी ढंग से बुझाता है..
ये सब सुनकर मुझे इतना ख़राब लगा कि मैं उसके आगे कुछ कहने से पहले ही बोल पड़ा-तुमने उन सबकी इतनी सेवा की..और उन राक्षसों ने तुम्हारे साथ इतना बुरा व्यवहार किया..संवेदनहीनता और अमानवीयता की सारी हदें उन्होंने पार् कर दीं..
ज्योति रोते हुए बोली-मैंने उन लोंगो की सेवा ही नहीं की बल्कि उनकी ख़राब आदतें भी सुधारने की कोशिश की..परन्तु मुझे वहां भी लात जूते ही खाने पड़े..पति से शराब छोड़ने को कहा तो शराब के नशे में धुत वो मुझे चप्पल से पीटते हुए देर तक चिल्लाता रहा-साली..तेरे बाप के पैसे से पीता हूँ..तू होती कौन है मुझे शराब पीने से रोकने वाली..मेरे माँ बाप को जी भरके उसने गन्दी गन्दी गालियां दीं..अपने नशेड़ी जुआड़ी देवर को घर में चोरी करते हुए रंगे हाथों मैंने पकड़ा तो उसने उलटे मुझपर ही चोरी करने का झूठा इल्जाम लगा न सिर्फ मुझे मारा बल्कि घर के अन्य लोंगो से भी मुझे पिटवाया..छोटी ननद को एक लड़के के साथ उनके कमरे में आपत्तिजनक स्थिति में देखा तो ये बात मैंने अपने पति को बताई..उसने लोहे की राड से मुझे मारा..संयोग से उसी दिन मेरे माता-पिता जी मेरा हाल चाल देखने के लिए आ पहुंचे..पिताजी के जब मैंने पैर छुए तो उन्होंने आशीर्वाद देते हुए मेरे कंधे पर हाथ रखा..जख्म पर पिताजी का हाथ पड़ते ही दर्द से मैं कराह उठी..मेरे मुंह से आह निकल गई..मेरे पिताजी ने पूछा-क्या बात है बिटिया..तू जोर से कराही क्यों..मैंने अपनी आँखे पोंछते हुए कहा-कुछ नहीं पापा..सब ठीक है..मेरे पापा को शक हो गया था कि मेरे साथ कुछ बुरा हुआ है..उन्होंने मेरी माँ से कहा कि इसे इसके कमरे में ले जाकर अच्छी तरह से चेक करो..और जब माँ ने मेरे कपडे हटाकर मेरी पीठ और कंधे पर राड के कई नीले निशान देखे और कमर पर जलाने के देखे तो दुःख और गुस्से के मारे पागल सी हो उठीं..उन्होंने जाकर मेरे पिताजी को सारी बातें बताईं..वो मुझपर बरसने लगे..तूने हमें बताया क्यों नहीं कि तेरे साथ इतना अत्याचार हो रहा है..तू पढ़ी-लिखी होकर भी इतनी मूर्ख है..मुझे लेकर वो घर से बाहर निकले और सीधे उस इलाके के थाने में पहुँच गए..इतना जुल्म सहने के बाद भी मैं अपने ससुराल वालों के खिलाफ कोई क़ानूनी कार्यवाही नहीं करना चाहती थी..परन्तु मेरे पिताजी ने मुझे समझाया कि बिटिया जुल्म करना और जुल्म सहना दोनों अन्याय है..तुम्हे दर्द देने वाले संवेदनहीन राक्षसों को भी दर्द का एहसास हो..इसके लिए उन्हें सजा दिलाना जरुरी है..बहुत द्वन्द झेलने के बाद अंतत: मैं क़ानूनी कार्यवाही करने के लिए तैयार हो गई..मेरे ससुराल वालों के खिलाफ दहेज़ के लिए प्रताड़ित करने और मुझे शारीरिक यातना देने का मामला दर्ज हुआ..मेरी सास,दोनों ननद और मेरे पति गिरफ्तार कर लिए गए..मैं अपने माता-पिताजी के साथ अपने मायके चली आई..मैंने स्कूल वाली अपनी पुरानी नौकरी फिर से ज्वाइन कर ली..कुछ दिन बाद मेरे अकड़बाज पति जमानत पर छूटे तो मेरे मायके आकर मेरे माता-पिताजी के पैर पकड़कर माफ़ी मांगे..मेरा पैर पकड़कर फूट फूट कर रोने लगे और रोते हुए बोले कि ज्योति मेरे घर को और मेरे जीवन को बर्बाद होने से बचा लो..माँ मरने की कगार पर है..वो मरने से पहले एक बार तुम्हे देखना चाहती है और अपनी गलतियों के लिए तुमसे माफ़ी मांगना चाहती है..बड़ी बहन क़ानूनी कारवाही से भयभीत होकर अपंने ससुराल चली गई है और छोटी बहन अपने प्रेमी के साथ फरार हो गई है..घर चलने के लिए उन्होंने मेरे गर्भ में पल रहे बच्चे की कसम मुझे दी है..मैं उनके साथ नहीं गई..मैंने सोचने के लिए कुछ दिन का समय माँगा है..मेरे माता-पिताजी मुझे अब मेरी ससुराल भेजने को तैयार नहीं हैं..मैं अजीब से द्वन्द में फंसी हुई हूँ..समझ में नहीं आ रहा है कि मेरे पति वास्तव में सुधरे हैं या नहीं..उनके आंसू पछतावे के थे या क़ानूनी मुसीबत में फंसने पर चालाकी और दिखावे के थे..अब आप ही मेरा मार्गदर्शन कीजिये कि मुझे अब क्या करना चाहिए..आप जो भी सलाह देंगे मैं मानूगीं..
मैं कुछ देर सोचने के बाद बोला-तुम अपनी ससुराल चली जाओ ज्योति..उस घर का अंधकार अब तुम्ही दूर कर सकती हो..अपने किये की सजा वो लोग पा चुके हैं..अब निश्चित रूप से तुम्हारे साथ वो लोग बहुत अच्छा व्यवहार करेंगे..लो ये प्रसाद लो..
ज्योति उठकर मेरे पास आई तो मेजपर से कुछ सेव उठाकर मैंने उसके आँचल में डाल दिए.उसे बधाई देते हुए मैंने कहा-मेरी तरफ से तुम्हे बहुत बहुत आशीर्वाद और बधाई..अब अगली बार आओ तो पति और बच्चा साथ में हो..
वो कुछ देर तक अपनी अश्रुपूरित श्रद्धा व्यक्त करती रही..और फिर चली गई.चार दिन बाद उसने अपनी ससुराल से मुझे फोन किया और कहने लगी-गुरुदेव..चमत्कार हो गया है..मेरे पति का व्यवहार अब एकदम मित्रवत और प्रेमपूर्ण है..अपनी गलतियों के लिए माफ़ी मांगते हुए उन्होंने शराब छोड़ने का वादा किया है..मेरी सास अपने किये पर बहुत शर्मिंदा हैं..जब भी उनके पास जाती हूँ..वो हाथ जोड़ देती हैं..मेरे सब गहने उन्होंने मुझे दे दिए हैं..और हाँ..एक नौकर और एक नौकरानी फिर से इन लोगों ने घर में रख लिया है..आपके प्रति मैं नतमस्तक हूँ..ये सब वाकई एक बहुत बड़ा चमत्कार है..
मैं हँसते हुए बोला-ये चमत्कार और कमाल कानून के डंडे का है ज्योति..अपने माता-पिताजी को धन्यवाद दो..जो तुम्हारे लाख छिपाने पर भी सबकुछ जान गए और तुरंत जागरूक होकर कानून का सहारा लिए..
अंत में नारी की अथाह और असीम पीड़ा को शब्दों में समेटती वरिष्ठ कवि चंद्रकांत देवताले जी की कविता “बाई दरद ले” की कुछ और सार्थक पंक्तियाँ सादर साभार सहित प्रस्तुत हैं-
सीता ने कहा था – फट जा धरती
ना जाने कब से चल रही है ये कहानी
फिर भी रुकी नहीं है दुनिया
बाई दरद ले!
सुन बहते पानी की आवाज़
हाँ ! ऐसे ही देख ऊपर हरी पत्तियां
सुन ले उसके रोने की आवाज़
जो अभी होने को है
जिंदा हो जायेगी तेरी देह
झरने लगेगा दूध दो नन्हें होंठों के लिए

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संस्मरण और प्रस्तुति=सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कन्द्वा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६.
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