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डॉ जाकिर नाईक यदि सच्चे हैं तो मेरे सवालों के जबाब दें

सद्गुरुजी
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25sept_zakirnaik
डॉ जाकिर नाईक यदि सच्चे हैं तो मेरे सवालों के जबाब दें
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इस्‍लाम के प्रचारक डॉ जाकिर नाईक पर बहुत दिनों से मैं एक लेख लिखने की सोच रहा था.उनके विचारों का गहराई से अध्ययन करने के पश्चात मैं ये लेख प्रस्तुत कर रहा हूँ.मैं लेख के प्राम्भ में ही यह निवेदन करना चाहूंगा कि यह लेख किसी की धार्मिक भावना को ठेस पहुँचाने या किसी भी तरह का धार्मिक उन्माद फ़ैलाने के लिए नहीं,बल्कि मुस्लिमों और हिन्दुओं को डॉ जाकिर नाईक के साम्प्रदायिक विचारों की सच्चाई बताने के लिए के लिए उन्हें सम्बोधित करते हुए लिखा गया है.डॉ जाकिर नाईक यदि वास्तव में धर्म के सच्चे ज्ञाता हैं तो लेख में उठाये गए सवालों के जबाब दें ?
डॉ जाकिर नाईक आजकल दुबई से प्रसारित पीस टीवी नाम से इस्‍लामिक चैनल चला रहे हैं.उनका जन्‍म भारत के मुंबई शहर में १८ अक्टूबर सन १९६५ में हुआ था.वह इस्‍लाम के प्रचारक हैं और ‘इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन’ के अध्यक्ष हैं.वो वैचारिक धर्म परिवर्तन के जरिये दूसरे धर्म के अनुयायियों को इस्‍लाम में आमंत्रित करने का कार्य करते हैं.वो विदेशों में आयोजित होने वाली धर्मसभाओं में इस्‍लाम का प्रतिनिधित्‍व भी करते हैंउनपर अनेक बार कई देशों में जहर घोलने वाले विवादित सांप्रदायिक भाषण देने के आरोप लगे हैं.उनकी इन्ही हरकतों की वजह से ब्रिटिश सरकार सहित कई देशों की सरकारें अपने देश में उनके प्रवेश करने और विवादित धार्मिक भाषण देने पर प्रतिबंध लगा चुकी हैं.
मंदिर और मूर्तियों का विरोध करते हुए ज़ाकिर नाईक साहब फरमाते हैं कि इस संसार का मालिक निराकार है और मुस्लिम धर्म उसी निराकार ईश्वर को मानता है.मंदिर में ईश्वर की साकार मूर्तिपूजा करने वाले लोग अज्ञानी हैं.डॉ जाकिर नाईक साहब यदि आप वास्तव में ज्ञानी हैं तो मुझे ये बताइये कि निराकार ईश्वर को याद करने के लिए यदि मंदिर और मूर्ति की जरुरत नहीं है तो फिर मस्जिद की जरुरत क्यों है ?आखिर मस्जिद बनाना भी तो साकार मूर्तिपूजा ही है.मस्जिद बनाकर एक साकार बूत आप क्यों बना रहे हैं ?निराकार खुदा को मानने वाले तो कहीं भी उसकी प्रार्थना कर सकते हैं,तो फिर मस्जिद बनाने की क्या जरुरत है ?आप कहते हैं कि पूरब के धर्मों में ईश्वर के स्थान के बारे में उनका अज्ञान ही झलकता है.उनके मुताबिक ईस्लाम जिस ईश्वर को देखता है वो इस ब्रह्मांड का हिस्सा नहीं है,बल्कि वो सातवें आसमान पर रहता है.
डॉ जाकिर नाईक साहब यदि आपने ध्यान-समाधी लगाई होती तो आपको सातवें आसमान की बात समझ में आती.आपको पता चलता कि वो कहांपर स्थित है ?आपको मैं बता दूँ कि शरीर के भीतर स्थित सातवां चक्र सहस्रार ही वो सातवां आसमान है,जहांपर ईश्वर या खुदा रहता है.डॉ जाकिर नाईक साहब हिन्दू धर्म में मूर्तिपूजा की बात मैं स्वीकारता हूँ,परन्तु इस्लाम में बुतपरस्ती हराम होते हुए भी बहुत से चिन्हो व प्रतीकों के रूप में जारी है जैसे-अल्लाह के अलावा पैगंबर मोहम्‍मद साहब को भी याद करना,अरबी भाषा में ही नमाज पढ़ना,सिर्फ मक्का की ओर मुंह फेरकर ही नमाज़ पढ़ना,मक्का में एक पत्थर,जिसे मोहम्‍मद साहब ने चूमा था,उसे और एक कुँए के जल को पवित्र मानना,कश्‍मीर की दरगाह में रखे पैगंबर मोहम्‍मद साहब के बाल के प्रति अगाध श्रद्धा रखना आदि सब क्या एक तरह की मूर्तिपूजा नहीं है ?
सन २०१० में “धर्म परिवर्तन” पर अपने विचार व्यक्त करते हुए ज़ाकिर नाईक साहब ने फ़रमाया था कि यदि कोई व्यक्ति मुस्लिम से गैर-मुस्लिम बन जाता है तो उसकी सज़ा मौत है,यहाँ तक कि इस्लाम में आने के बाद वापस जाने की सजा भी मौत है.नाईक साहब के अनुसार शरीयत के मुताबिक नाबालिग हिन्दू लड़की भी भगाई जा सकती है,लेकिन पढ़ी-लिखी वयस्क मुस्लिम लड़की किसी हिन्दू लड़के से शादी नहीं कर सकती और यदि कोई ऐसा करे तो उसकी सजा मौत है.ज़ाकिर नाईक के इस अधकचरे ज्ञान ने बहुत से मुसलमानो को भड़काकर पूरी दुनियाभर में न जाने कितने मासूम लड़के-लड़कियों की जान ले ली.उनका दोष सिर्फ इतना था कि वो एक दूसरे से प्रेम करते थे.
“अल्पसंख्यकों के धार्मिक अधिकार” विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए ज़ाकिर नाईक फरमाते हैं कि मुस्लिम देशों में किसी अन्य धर्मांवलम्बी को किसी प्रकार के मानवाधिकार प्राप्त नहीं होने चाहिये,यहाँ तक कि किसी अन्य धर्म के पूजा स्थल भी नहीं बनाये जा सकते.ज़ाकिर नाईक के अनुसार मुस्लिम लोग तो किसी भी देश में मस्जिदें बना सकते हैं लेकिन इस्लामिक देश में चर्च या मन्दिर नहीं चलेगा.ज़ाकिर नाईक साहब से मैं पूछना चाहूंगा कि यदि यही बात सभी देश अपने यहाँ लागू कर दें तो क्या मुस्लिम लोग गैर मुस्लिम देशों में मस्जिद बना पाएंगे ?आपकी सोच तालिबानियों से भी बदतर है.आपके इस निंदनीय विचार की जितनी भी निंदा की जाये,वो कम है.सभी मुसलमानो को अपना मौन समर्थन तोड़ उनकी निंदा करनी चाहिए.
वन्देमातरम न पढ़ने का कारण बताते हुए जाकिर नाईक कहते हैं कि मुसलमान तौहीद यानी एकेश्वरवाद में विश्वास रखते है और सिर्फ अल्लाह की इबादत करते है तथा अल्लाह के अलावा किसी की स्तुति करना,पूजा करना,वन्दना करना या किसी को अल्लाह के बराबर मानना अथवा किसी का नाम अल्लाह के साथ शामिल करना शिर्क (हराम) है,जिसे अल्लाह कभी माफ़ नहीं करेगा,इसीलिए, मुसलमान वन्देमातरम नहीं गाते हैं.मैं जाकिर नाईक से पूछना चाहूंगा कि कभी इंगलैंड के सम्राट जॉर्ज पंचम की स्तुति में लिखा गया और बाद में राष्ट्रगान बना “जन गणमन” फिर कैसे उनके नियम से परे है ? इसका अर्थ तो ये हुआ कि देशद्रोही घोषित हो जाने के भय से आप राष्ट्रगान का समर्थन करते हैं.
सन २०१२ में ज़ाकिर नाईक ने जानबूझकर भगवान शिवशंकर और श्रीगणेश के बारे में बयानबाजी कर हिंदुओं की भावनाओं को आहत किया था.नाईक ने कहा था कि ‘श्रीगणेश भगवान हैं ये बात साबित करोगे तो मैं प्रसाद लूंगा.अपने बच्‍चे गणेश को नहीं पहचानने वाले शिव कैसे जान पाएंगे कि मैं किसी मुसीबत में फंसा हूं.’उस समय डॉ जाकिर नाईक की इस टिप्‍पणी को लेकर हिन्दुओं ने कड़ी आपत्ति जताई थी.डॉ जाकिर नाईक साहब यदि आप हमारे देवी-देवताओं को नहीं मानते तो फिर हम क्यों आपके खुदा और रसूल को मानें ?यदि वेदों को आप ईश्वर की वाणी नहीं मानते तो फिर हम क्यों कुरान को खुदा का आदेश माने ?ये सब सवाल पूछकर मैं आपको समझाना चाहता हूँ कि समाज को जोड़ने का कार्य करें,तोड़ने का नहीं.
आप हमारे धर्म को सम्मान दें,हम भी आपके धर्म को सम्मान देंगे.आप हमेशा इस बात का ध्‍यान रखें कि सभी को अपनी आस्‍था के अनुसार धर्म के मार्ग पर चलने का अधिकार है.आप दूसरों के धर्म में कमी निकालते हैं तो आपके धर्म में भी कोई कमी निकाल सकता है.इस बात को आप क्यों भूल रहे हैं ?आप दुसरे धर्मों के लोंगो की भावनाओं को आहत करना छोेडिये.लोंगो के दिलों में नफरत पैदाकर अगले विश्व-युद्ध की व्यूहरचना करना बंद कर दीजिये.आपमें और तालिबान में क्या फर्क है ?आप एक विद्वान व्यक्ति होकर भी मुसलमानों को गुमराह कर रहे हैं और उन्हें झूठा स्वप्न दिखा रहे हैं कि एक दिन पूरी दुनिया में उन्ही का राज होगा.ऐसा दिन इस धरती पर कभी भी नहीं आने वाला है.
धरती पर सभी धर्मो का वजूद हमेशा रहेगा.वो खुदा या ईश्वर यही चाहता है.हिंदुओं की भावनाओं को आहत करने वाले .डॉ जाकिर नाईक के लाखों फ़ॉलोअर हैं,जिन्हे ये भ्रम है कि उनका हीरो डॉ जाकिर नाईक हर बात कुरान की रौशनी में कहते हैं.उन्हें शरीयत,तरीकत,मार्फ़त और हकीकत इनमे से किसी भी साधना स्तर का ज्ञान नहीं है.खुदा या ईश्वर को जान लेने वाला व्यक्ति ऐसी जाहिल और बेतुकी बातें नहीं करता है.वो तो मौन हो जाता है.ऐसे कुतर्की और महज किताबी ज्ञान रखने वाले नासमझ उस्ताद का दुनियाभर के शान्तिप्रिय समझदार मुसलमान विरोध करें.डॉ जाकिर नाईक मुसलमानों को बर्बादी की तरफ ले जा रहे हैं.ये बात जितनी जल्दी वो समझ लें,उनके लिए उतना ही अच्छा है.
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!! जयहिंद !! वन्देमातरम !! आलेख और प्रस्तुति=सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कन्द्वा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६.
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