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या देवी सर्वभूतेशु, शक्तिरूपेण संस्थिता-नवरात्रि पर आलेख

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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या देवी सर्वभूतेशु,शक्तिरूपेण संस्थिता-नवरात्रि पर आलेख
या देवी सर्वभूतेशु, शक्तिरूपेण संस्थिता |
नमस्तसयै, नमस्तसयै, नमस्तसयै नमो नम: ||

अर्थात: हे देवी आप सभी जगह और सबमें व्याप्त हैं. आपमें सम्पूर्ण जगत की शक्ति निहित है. ऐसी माँ भगवती को मेरा प्रणाम, मेरा प्रणाम, मेरा प्रणाम.
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके |
शरण्ये त्र्म्बकें गौरी नारायणि नमोस्तुते ||

अर्थात जो सभी में श्रेष्ठ हैं, मंगलमय हैं जो भगवान शिव की अर्धाग्नी हैं, जो सभी की इच्छाओं को पूरा करती हैं, ऐसी माँ भगवती की शरण में आ उन्हें नमस्कार करता हूँ.

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नवरात्र में देवी जागरण-
माँ आप ही सारे जगत की माँ हो. आप सर्वोच्च शक्ति प्रकृति हो. आप महामाया, योगमाया और पराशक्ति हो. आप प्रसन्न हो जाओ तो मनुष्य के लिए किसी भी कार्य की सिद्धि असंभव नहीं और यदि आप अप्रसन्न हो जाओ तो धरती पर जल प्रलय, सूखा और भूकम्प, बीमारी रूपी आपदा का आना भी तय है. माँ आप हमारे भीतर शक्ति के रूप में स्थित हो. आप यदि देह से बाहर निकल जाओ तो शक्तिविहीन देह शिव से शव हो जाती है. हे माँ दुर्गा आप हमारे शरीर के भीतर सरस्वती के रूप में ज्ञान हो, लक्ष्मी के रूप में इच्छा हो और और काली के रूप में क्रिया हो. नवरात्र में आपकी आराधना से ज्ञान, इच्छा और क्रिया रूपी तीनो देवियों का हमारे भीतर जागरण हो जाता है और हमारे असम्भव कार्य भी आपकी शक्ति से संभव हो जाते हैं.

नवरात्र में माँ सबके भीतर देवी जागरण हो, ताकि संसार में विद्यमान राक्षसों के साथ साथ लोग अपने भीतर बसने वाली काम, क्रोध, लोभ, मोह, निद्रा, अहंकार व ईर्ष्या-द्वेष रूपी आसुरी प्रवृत्ति से भी लड़ सकें. माँ दुर्गा आप महाशक्तिशाली त्रिगुणात्मक प्रकृति स्वरुप में जहाँ एक ओर संसार में चहुंओर व्याप्त हैं और नित नए सृजन में लीन हैं, वहीँ दूसरी तरफ आप हमारी देह के भीतर भी सत, रज व तम आदि त्रिगुणात्मक व सर्वदा सक्रिय आंतरिक प्रकृति के रूप में हमेशा विद्यमान रहतीं हैं, जिसके वशीभूत होकर हम अच्छे या बुरे कर्म करते हैं और अच्छा बुरा फल पते हैं. माँ हम सब भारतवासी आपकी आरती उतारते हैं अर्थात अपना प्रेम और भक्तिभाव आरती के रूप में प्रकट करते हैं.

अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली |
तेरे ही गुण गायें भारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती ||

माँ आप सिर्फ मेरी ही माँ नहीं हैं, बल्कि सारे जगत की माँ हैं. आप कामनाओं की पूर्ति करने वाली क्रियाशक्ति यानि काली हैं. आप इच्छा, ज्ञान, क्रिया यानि दुर्गा के रूप में हर मनुष्य की खोपड़ी के भीतर विद्यमान हैं. पूरा देश आपका गुण गा रहा है और माँ हम सब भारतवासी आपकी आरती उतारते हैं.

तेरे भक्त जनों पे माता, भीर पड़ी है भारी |
दानव दल पर टूट पडो माँ, करके सिंह सवारी ||
सौ सौ सिंहों से तु बलशाली, दस भुजाओं वाली |
दुखिंयों के दुखडें निवारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती ||

माँ तुम्हारे भक्त दुखीं हैं. वो तुम्हारी शक्ति से परिचित नहीं हैं. माँ आप भक्तों के भीतर जागृत होइये, ताकि तरह तरह के पाप कर रहे दानवों पर आप भक्तों के रूप में शक्ति और आक्रोश रूपी सिंह पर सवार होकर पर उनपर टूट पड़ें. माँ, यदि आपके सभी भक्त एकजुट हो जाएं तो सौ सिंहों से भी ज्यादा बलशाली और अनेक भुजाओं वाली एकजुट आपकी शक्ति प्रकट हो जाये तो कौन सा ऐसा कार्य है, जो असंभव है, वो चाहे अपराधियों से लड़ना हो, भ्रस्ट नेताओं को सबक सिखाना हो या फिर देश के दुखियों के दुःख दूर करना हो. हे शक्तिस्वरूप में हम सबके भीतर स्थित माँ हम सब देशवासी आपकी आरती उतार रहे हैं.

माँ बेटे का है इस जग में, बड़ा ही निर्मल नाता |
पूत कपूत सूने हैं पर, माता ना सुनी कुमाता ||
सब पर करुणा दरसाने वाली, अमृत बरसाने वाली ||
दुखियों के दुखडे निवारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती ||

माँ दुर्गा आपका और पुत्र रूपी आपके भक्तों का इस संसार में माँ-बेटे जैसा पवित्र रिश्ता है. भक्त भले ही सत्यपथ से विचलित हो जाये, पुत्र गलत संगति में पड़कर कुमार्गी हो जाये, परन्तु माँ आप कभी कुमाता नही होती हैं. सबके भले के लिए सोचतीं हैं और सर्वव्यापी प्रकृति के रूप में आप सबको भोजन, फूलफल, जल, हवा और न जाने कितनी अनमोल चींजे प्रदान करतीं हैं. कभी कभी कुपित होकर शिक्षा देने के लिए आप जलप्रलय, सूखा, भूकम्प, बीमारी आदि कष्ट भी देती हैं, ताकि प्रकृति से छेड़छाड़ कर रहा मनुष्य सचेत हो जाये. आप बहुत दयालु हैं. आप की करुणा सबपर बरसती है. आप को माँ मानकर श्रद्धा रखनेवालों भक्तों पर आप मोक्ष रूपी अमृत की वर्षा भी करती हैं. हे सभी दुखी जनों के दुःख हरनेवाली माँ, हम सब भारतवासी आपकी आरती उतारते हैं.

नहीं मांगते धन और दौलत, न चाँदी न सोना |
हम तो मांगे माँ तेरे मन में, इक छोटा सा कोना ||
सबकी बिगडी बनाने वाली, लाज बचाने वाली |
सतियों के सत को संवारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती ||
अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली |
तेरे ही गुण गायें भारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती ||

माँ के सच्चे भक्त माँ से धन-दौलत और चांदी-सोना नहीं मांगते हैं, बल्कि वो तो सर्वव्यापी प्रकृति रूपी माँ के ह्रदय में बस थोड़ी सी जगह चाहते हैं, जिससे कि माँ को वो हमेशा याद रखें. ज्ञान, इच्छा और क्रिया के रूप हम सबके भीतर बैठकर माँ हम सबकी बिगड़ी बनाती हैं. सत्य मार्ग पर चलने वाले सतियों अर्थात सत्य-पथिकों के भीतर वो सतोगुण हमेशा बढाती रहती हैं, जिससे कि वो सत्य मार्ग से कभी डिगे ना. माँ हमसब लोग आपकी आरती उतारते हैं. आप हमसबपर कृपा करें. हम सबके भीतर ज्ञानशक्ति, इच्छाशक्ति और क्रियाशक्ति बढ़ाये, ताकि धर्म ,अर्थ, काम और मोक्ष आदि चारो पुरुषार्थों को हम अपने जीवन में सफलतापूर्वक सिद्ध कर सकें. माँ दुर्गा जी की यानि प्रकृति की कृपा आप सबपर हो. आप सबकी मनोकामनाएं पूर्ण हों. आप सब अपने जीवन में स्वस्थ रहें और सृजनात्मक कार्यों में सदैव लीन रहें. सभी ब्लॉगर मित्रों और पाठकों को शारदीय नवरात्रि की बहुत बहुत शुभकामनायें.

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आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम-घमहापुर, पोस्ट-कन्द्वा, जिला- वाराणसी. पिन- २२११०६.
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