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मेरे सजना तेरी ज़िन्दगानी रहे,ज़िन्दगानी रहे-करवाचौथ पर

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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मेरे सजना तेरी ज़िन्दगानी रहे, ज़िन्दगानी रहे-करवाचौथ
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छिपी नारी के मन में है सीता
जिसका जीवन अंगारों पे बीता
मेरे जीवन के राम तेरा लेती हूँ नाम
मेरे माथे पे तेरी निशानी रहे, निशानी रहे
गंगा मैया में जब तक के पानी रहे
मेरे सजना तेरी ज़िन्दगानी रहे, ज़िन्दगानी रहे

लता जी का गाया ये गीत उसके घर पर ऊँची आवाज में बजते हुए कई बार मैंने सुना है.शायद उसे बहुत पसंद है.संभव है अपने पति से बहुत प्रेम करती हो.छत पर टहलते हुए मैं रोज उस छोटे से मकान को कुछ देर जरूर देखता हूँ.छह बाई छह के दो बहुत छोटे छोटे कमरे और घर के बाहर दिनरात जलते रहने वाला बिजली का बल्ब.बिजली रहने पर न तो ये बल्ब बुझता है और न ही ऊँची आवाज में सुनाई देनेवाले फिल्मीगीत बंद होते हैं.दोनों कमरों के बाहर बहुत छोटे से बरामदे में एक सिलाई मशीन रखी हुई दिखाई देती है,जिसपर अक्सर अपने लम्बे घने काले बाल खोली हुई एक पतली दुबली सांवली सी युवा स्त्री मजदूरी पर किसी रेडीमेड गारमेंट की दुकान वाले के कपडे सिलती रहती है.कई छोटे छोटे बच्चे उसे घेरे रहते हैं.वो कभी उनपर प्यार बरसाते हुए नजर आती है तो कभी कैची उठाकर उन्हें भगाते हुए दिखती है.
उस स्त्री का पति यूँ तो कहने भर को राजगीर है,परन्तु उसका मुख्य कार्य गांव के आवारा लड़कों के साथ मिलकर जुआ खेलना है और देशी दारू पीना है.मुझे लगता है कि उसमे अपने अबतक के जीवन में सिर्फ एक ही मकान कायदे बनाया होगा और वो भी अपना.जब सालभर पहले उसका मकान बन रहा था तो बस दो ही व्यक्ति मकान निर्माण में लगे दिखाई देते थे,एक वो और दूसरी उसकी पत्नी.मैंने उसका नाम दुर्गा रखा हुआ है.ये नाम उसका मैंने उस दिन रखा था,जिसदिन उसका शराबी पति अपने एक दोस्त को लेकर आया था और दारू के नशे में झूमते हुए बोला था,”मैं तुझे जुए में हार चूका हूँ..अब तू मेरे इस दोस्त की पत्नी है..जा तू इसके साथ जा..”वो स्त्री झाड़ू लेकर अपने शराबी पति और उसके दोस्त पर टूट पड़ी थी.तमाशा देखने के लिए जुटी भीड़ के सामने आज के युग की द्रौपदी ने आज के युग के शराबी जुआरी युधिष्ठर को बहुत कायदे से मजा चखाया था.मैंने उसीदिन उसका नाम दुर्गा रख दिया था.
इस घटना के कुछ दिन बाद उसके पति ने अपनी बेइज्जती का बदला लिया था.सोते समय वो दुर्गा का हाथ पैर रस्सी से बाँध दिया था और लात घूंसे व डंडे से उसे बहुत बुरी तरह से मारा था.सुबह के समय दुर्गा के दरवाजे पर ओरतों की भीड़ जमी हुई थी.वो रोते हुए अपने शरीर के जख्म दिखा रही थी.आज दुर्गा एक राक्षस से हार गई थी.मैंने सुना है कि वो अपने शराबी जुआरी पति को सुधारने की मुहीम चला रखी थी और ये दुर्दशा उसी मुहीम का नतीजा थी.
मैं अपनी छत पर खड़े होकर जब दुर्गा को गांव की अौरतों के सामने रोते चिल्लाते हुए देख रहा था,तभी पीछे से आकर मेरी पत्नी मेरे कंधे पर हाथ रख बोलीं-मत देखिये आप ये सब..आँखें गीली कर लेंगे और फिर मुझसे बहाना बनाएंगे कि आँख में कुछ पड़ गया है..
पीछे मुड़कर मैंने पत्नी को देखा और एक गहरी साँस खींचकर कहा-वो अकेली स्त्री न जाने कबसे जूझ रही है..कभी अपना घर बसाने लिए ..कभी अपना घर बनाने के लिए और कभी अपना घर टूटने से बचाने के लिए..
बेशर्मी भरी जिंदगी जी रही है वो..मैं उसकी जगह होती तो ऐसे नालायक पति को छोड़कर कब की चली गई होती..-मेरी पत्नी बोलीं.
छोटे छोटे बच्चों को लेकर कहाँ जाएगी वो..मैंने सुना है कि उसके माँ बाप भी अब जीवित नहीं हैं..कहीं न जाकर उसे यहीं विषम परिस्थितियों से संघर्ष करना चाहिए..कभी तो उसके जीवन में सुखभरे दिन आएंगे..-मैंने दुखी स्वर में कहा.
आप छोड़िये ये सब देखना और उसकी बातें करना..ये सब तो इन लोगों का कभी न ख़त्म होने वाला किस्सा है..आप चल के नहा लीजिये..कुछ देर बाद लोग मिलने के लिए आना शुरू कर देंगे..-मेरी पत्नी ये कहते हुए सीढयों की तरफ चल पड़ीं और मैं भी उस स्त्री के लिए कुछ न कर सकने का मन में अफ़सोस लिए उनके पीछे पीछे चल पड़ा.
आज करवाचौथ के दिन सुबह छत पर टहलते हुए जब दुर्गा के घर पर मेरी नजर पड़ी तो देखा कि वो अपने छोटे से घर को धोने और सजाने सँवारने में लगी हुई है.उसके घने लंबे बाल इधर उधर लहरा रहे हैं और उसका पति बरामदे में एक ओर खड़ा अंगड़ाई ले रहा है और सुबह सुबह साफ सफाई करने के लिए अपनी बीबी पर झल्ला भी रहा है.बिजली नहीं होने के कारण उसका म्यूजिक सिस्टम आज बंद था.छत पर टहलते हुए मैं सोचने लगा कि इसका पति भी कितना एहसानफरामोश और निकृष्ट है..जिस स्त्री के जुल्फ की छाँव तले आज ये छोटा सा घर बसाये हुए है..जिस स्त्री ने स्वयं दुःख सहकर भी इसे ढेरो सुख दिया हुआ है..छोटे छोटे कई सुन्दर बच्चे दिए हुए हैं..सिलाई करके घर गृहस्थी का बोझा भी अपने सिर पर उठा रखा है..निकृष्ट और निकम्मे पति को सिंदूर के रूप में अपनी मांग में सजा रखा है..और मंगलसूत्र के रूप में अपने गले में धारण कर रखा है..क्या अपनी इस तपस्विनी पत्नी और मासूम बच्चों के प्रति उसका कोई फर्ज नहीं बनता है..तन,मन और धन से दिनरात इसकी और इसके बच्चों की सेवा करने वाली स्त्री की कोई सेवा न सही,कम से कम प्रेमपूर्ण व्यवहार तो कर ही सकता है..गाली सहकर,मार खाकर और जुए में दांव खेले जानेवाली चीज बनकर भी एक स्त्री अपने पति को पूज रही है..दिनरात तन,मन और धन से उसकी सेवा में जुटी हुई है..यही असली भारत की तस्वीर है..जो अब धीरे धीरे इण्डिया में बदल रहा है..ये निखट्टू पति भारत में तो सदियों से खूब मौज मस्ती कर रहे हैं..परन्तु अब इण्डिया में इनकी खैर नहीं..
मेरे छत पर टहलते टहलते बिजली आ जाती है..हाथ में झाड़ू ली हुई दुर्गा घर के भीतर अपना जाकर म्यूजिक सिस्टम आन कर देती है.आशा भोसले की आवाज फिजा में गूंजने लगती है और मैं मुस्कुराते हुए सोचने लगता हूँ कि धन्य है दुर्गा तुम्हारी पति भक्ति..तुम खूब बनो ठनों सजो संवरो..सेवा रूपी आहुति बन इस यज्ञ में जुटी रहो..कभी तो तुम्हारे देवता प्रसन्न होंगे.और कभी तो तुम्हारी तरफ ध्यान देंगे..करवाचौथ की बधाई स्वीकार करते हुए आप भी दुर्गा की पसंद का वो गीत गुनगुना लीजिये जो ऊँची आवाज में आज कई बार वो बजा चुकी है-
सजना है मुझे सजना के लिए
सजना है मुझे सजना के लिए
ज़रा उलझी लटें संवार लूँ
हर अंग का रंग निखार लूँ
कि, सजना है मुझे सजना के लिए
सजना है मुझे सजना के लिए

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संस्मरण और प्रस्तुति=सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कन्द्वा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६.
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