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चरम सुख (आर्गेज्‍म) और परमानन्द में क्या अंतर है-मंथन

सद्गुरुजी
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चरम सुख (आर्गेज्‍म) और परमानन्द में क्या अंतर है-मंथन
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चलत मुसाफिर मोह लियो रे
पिंजड़े वाली मुनिया..
उड़ उड़ बैठी हलवैया दुकनिया
हे रामा..उड़ उड़ बैठी हलवैया दुकनिया
अरे..बरफी के सब रस ले लियो रे
पिंजड़े वाली मुनिया..

गीतकार शैलेन्द्र साहब का लिखा हुआ एक ऐसा सदाबहार गीत, जो कहीं भी सुनने को मिल जाये तो हमारे चलते हुए क़दमों को रोक देता हैै। शैलेन्द्र जी ने गीत में पिंजड़े में बंद मुनिया पक्षी और मज़बूरी व मर्यादाओं के पिंजड़े में कैद भारतीय नारी की चर्चा की हैै। इस लेख में मैं मुनिया शब्द का प्रयोग सेक्स के लिए करने जा रहा हूँ। भारत में यूँ तो शर्म, संकोच और मर्यादाओं के पिजड़े में सेक्स रूपी मुनिया कैद है, परन्तु जीवन के सफर में स्त्री हो या पुरुष, ऐसा कोई मुसाफिर नहीं, जिसे ये अपने मोहजाल में न फंसाई होै।
स्त्री और पुरुष का शरीर किसी हलवाई की दुकान के जैसा ही है, जहांपर शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श रूपी विभिन्न प्रकार के मिष्ठान्न सजे हुए हैं। सेक्सवाली मुनिया जब स्त्री व पुरुष के भीतर से निकलकर बाहर सजी शरीर रूपी हलवाई की दुकान पर बैठती है तो शब्द रूपी, रूप रूपी. रस रूपी, गंध रूपी और स्पर्श रूपी बर्फी का स्वाद लेकर ही उड़ती हैै। संसार में कोई भी जीवात्मा आये और जाये, ये सेक्स रूपी पिंजड़ेवाली मुनिया किसी का भी जल्दी पीछा नहीं छोड़ती हैै। यदि पूरी ईमानदारी से स्वीकार किया जाये तो बात सत्य लगेगीै।
सेक्स पर मुझे अपने विचार व्यक्त के लिए मुंबई से आई एक महिला ने प्रेरित कियाै। उसने मुझसे एक प्रश्न पूछा था- गुरुदेव.. चरम सुख (आर्गेज्‍म) और परमानन्द में क्या अंतर है?
मैंने जबाब देने से पहले पूछा- क्या आप चरम सुख का अनुभव की हैं..
मुंबई में एक प्राइवेट स्कूल में वो टीचर हैै। बिना किसी शर्म या संकोच के वो मुस्कुराते हुए बोली- “शादी के बाद दो साल तक तो मैं चरम सुख का कोई अनुभव नहीं की थीै। मेरे पति रात को देर से अपनी ड्यूटी से लौटते थेै। खाना खाते ही उन्हें नींद आने लगती थीै। जिस रात भी मुझसे शारीरिक सम्बन्ध बनाते थे, बस दो मिनट में अपनी भूख मिटा के सो जाते थेै। मैं भी इसी को सेक्स संबंध समझती थीै।
जब मैंने पढ़ाने के लिए स्कूल जाना शुरू किया तो मेरे साथ पढ़ाने वाली मेरी एक सहेली से मुझे मालूम पड़ा कि परुष और स्त्री दोनों को ही शारीरिक मिलन के दौरान चरम सुख प्राप्त होता है, इसीलिए उनके शारीरिक मिलन को सम्भोग (समान रूप से भोग) का नाम दिया गया हैै। चरम सुख प्राप्ति के समय पुरुष के लिंग से वीर्य का स्राव होता है, जिसमें उसे आनंद की प्राप्ति होती हैै। स्त्री में चरमसुख प्राप्ति के समय गर्भाशय के सिकुड़ने से कफ जैसा चिपचिपाहट वाला पदार्थ निकलता है, जो संपूण योनि पथ को गीला और चिपचिपा कर देता हैै।”
वो आगे बोली- “इस बारे में मैंने कुछ किताबे खरीदकर अध्य्यन किया और पूरी जानकारी होने के बाद मैंने अपने पति को समझाया कि वो मुझे भी चरम सुख यानि यौन-संतुष्टि देै। ये सब सुनते ही पहले तो वो मुझपे शक करने लगा कि मैं किसी और पुरुष के सम्पर्क में तो नहीं आ गई हूँ? स्त्री को चरम सुख मिलने की बात मुझे कैसे पता चली? मैंने उसका संदेह दूर करने के लिए चरम सुख पाने से संबंधित किताबे दिखाई और अपनी सहेली से मिलवाया, तब जाके उसका संदेह दूर हुआै। मेरी लाई हुईं किताबे उसने पढ़ीं और उसमे दी गई सलाह के अनुसार जब उसने यौन-क्रिया की, तब जीवन में पहली बार मैंने चरम सुख का रसास्वादन कियाै।
चरम तृप्ति के समय प्राप्त होने वाले आनंद का वर्णन करना कठिन हैै। उस आनंद की प्राप्ति के समय मेरी आँखे मूंद गईं। योनि द्वार, भगांकुर, गुदापेशी व गर्भाशय मुख के पास की पेशियां तालबद्ध रूप में फैलने व सिकुड़ने लगीं। पूरे शरीर का अंग-अंग तनने और फड़कने लगाै। कानों के अंदर झनझनाहट होने लगीै। शरीर में हल्‍कापन महसूस होने लगाै। सुख की लहर में दौड़ता मन प्रियतम के प्रति प्रेम से भर उठाै। देरतक पति से लिपटी रहीै। जोर से पेशाब लगने के एहसास ने मुझे उनसे अलग कियाै। कुछ भूख भी महसूस हो रही थीै। आज पहली बार मेरे पति ने अपने साथ साथ मुझे भी सम्पूर्ण यौन-आनंद प्रदानकर सम्भोग शब्द को सार्थकता प्रदान की थीै।”
मैंने उस युवा स्त्री से कहा- “आप भाग्यशाली हैं। स्त्री-पुरुष के शारीरिक मिलन के समय प्रकृति की पांचों तन्मात्राओं शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श के प्रेममय प्रयोग से उपजी चरमतृप्ति का आपने अनुभव कियाै। देश की अधिकतर महिलाऐं इस चरम सुख से वंचित हैं। अधिकतर पुरुष स्त्री से अपनी वासना की भूख शांत करने भर से ही मतलब रखते हैं। बहुत से लोग स्त्री से मन ही मन घृणा करते हुए उसे पुरुष के भोग की एक वस्तु मात्र समझते हैं। आज के युग में भी कई रूढ़िवादी विचारों वाले समुदाय के लोग स्त्री की यौन-संतुष्टि का कोई ध्यान नहीं रखते हुए जानवरों की तरह केवल सन्तानोत्पत्ति के लिए यौन-संबंध स्थापित करते हैं।”
मेरी बात सुनकर उस स्त्री ने कहा- “जी..आप ठीक कह रहे हैं।यहांपर गांव में जब अपने ससुराल में मैं रहती हूँ तो पति से रात को मिलना मुश्किल हो जाता है। सास और ससुर का भय और ननद व जेठानियो के ताने। ये सब झेलने के बावजूद भी इस भय से कि पति कही और जाके मुंह न मारे। चोरी-छिपे धड़कते हुए दिल से पति से किसी तरह से कहीं एकांत में मिल भी लिए तो अधखुले वस्त्रों में खुद भूखे रहते हुए पति की भूख शांत कर दी। बस इतना ही मेरे लिए काफी है।
भारतीय नारी की यही नियति है गुरुदेव! परन्तु फिर भी कई देशों की उन लाखों-करोड़ों ओरतों से तो वो ज्यादा ही भाग्यशाली हैं जिनके गुप्तांग बचपन में ही काट और सील दिए जाते हैं, ताकि चरम सुख होता क्या है, जीवनभर कभी न तो वो जान सकें और न कभी महसूस कर सकें। इतना कहकर वो गहरी साँस लेते हुए बोली- “अब इस विषय को छोड़िये और मुझे परमानंद के बारे में बताइये।”
मैंने उसे परमानन्द के बारे में समझाते हुए कहा- “प्रकृति से सहवास का परिणाम यदि चमसुख है तो पुरुष से सहवास (साथ रहना) का परिणाम परमानन्द है। परमानंद पुरुष या ईश्वर के समीप रहने का प्रसाद है। प्रकृति की तन्मात्राएँ बहिर्मुखी और स्थूल होकर स्त्री-पुरुष के विधिवत सहवास से चरमसुख देती हैं और वही तन्मात्राएँ अंतर्मुखी, सूक्ष्म और दिव्य होकर भक्त और भगवान के भक्तिमय सहवास से परमानन्द प्रदान करती हैं। हर व्यक्ति के भीतर रतिमय एक अर्द्धनारीश्वर स्वरुप है, उसकी जागृति ही भक्त की जागृति है। जागृत भक्त ही ईश्वर का दिव्य शब्द सुनता है, उसका दिव्य रूप देखता है..उसकी विभूतियों का दिव्य रसास्वादन करता है..उसकी उपस्थिति की दिव्य गंध महसूस करता है और भक्त भगवान का दिव्य स्पर्श प्राप्त करता है, यही परमानन्द है।”
अंत में सेक्स रूपी मुनिया की फिर खोज खबर ले लें। दुनिया में इस बात पर बहुत विवाद है कि सेक्स का दर्शन नग्ण्ता में है या फिर सिर से पांव तक ढके हुए वस्त्रों में? अगर मुझसे आप पूछें तो कवि शैलेन्द्र साहब के शब्दों में बस यही कहूँगा कि-
उड़ उड़ बैठी बजजवा दुकनिया
आहा..उड़ उड़ बैठी बजजवा दुकनिया
अरे..कपडा के सब रस ले लियो रे
पिंजड़े वाली मुनिया..
चलत मुसाफिर मोह लियो रे
पिंजड़े वाली मुनिया..

(ये आलेख एक ऐसी स्त्री से बातचीत पर आधारित है, जो आधुनिक और बोल्ड विचारों की स्वामिनी है। मैंने लेख में उसका कोई नाम नहीं दिया है, क्योंकि दुर्भाग्य से ऐसी स्त्रियों को हमारे देश में चरित्रहीन समझा जाता है और शक की निगाहों से देखा जाता है। मुझे उससे हुई बातचीत ज्ञानवर्द्धक और हमारे जीवन का एक बहुत महत्वपूर्ण पहलू लगी, इसीलिए नभाटा के मंच पर उसे आप सबके साथ शेयर कर रहा हूँ। एक निवेदन आप सबसे और है कि इसे शान्ति से दो तीन बार पढ़े, फिर अपनी प्रतिक्रिया दें। आप मने या न माने, परन्तु यह एक सच्चाई है कि प्रकृति का चरम सुख और पुरुष का परमानंद पाना आदिम युग से मनुष्य के जीवन का मूल लक्ष्य रहा है और आज भी है। इस लेख को एक रिसर्च के रूप में देंखे, जो जितनी सांसारिक है, उतनी ही आध्यात्मिक भी है।)
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आलेख और प्रस्तुति=सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कन्द्वा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६.
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