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संत सुदर्शन सिंह ‘चक’ ने किया बवासीर का अदभुद इलाज

सद्गुरुजी
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संत सुदर्शन सिंह ‘चक’ ने किया बवासीर का अदभुद इलाज
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दुर्बल को न सताइये, जाकी मोटी हाय ।
मरी खाल की सांस से, लोह भसम हो जाय ॥

संत कबीर साहब की ये शाश्वत वाणी हर युग में सत्य सिद्ध हुई है.उनकी इसी शाश्वत वाणी से जुड़ा हुआ एक प्रेरक प्रसंग प्रस्तुत है,जो सन १९६० के समय का है.सुदर्शन सिंह महाराज स्वामी अखंडानंदजी,आनंदमयी माँ और उड़िया बाबा के समकालीन संत थे.सुदर्शन सिंह ‘चक्र’ के नाम से वो गीता प्रेस की पुस्तकों और पत्रिकाओं में आध्यात्मिक लेख लिखते थे.वो एक ऐसे अनोखे संत थे,जो अपने पास आने वाले जरूरतमंद लोंगो का आयुर्वेदिक ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक ढंग से भी इलाज भी करते थे.उनके बताये हुए इलाज से लोग ठीक भी हो जाते थे.एक बार वो यात्रा करते हुए एक गाँव में पहुँचे और अपने एक शिष्य के यहाँ ठहरे.कुछ ही देर में उनके आने की खबर पूरे गांव में फ़ैल गई.
उनका दर्शन करने के लिए लोग आने लगे.उस गांव के सबसे ज्यादा अमीर और मानिंद व्यक्ति एक ठाकुर साहब थे.वे भी सुदर्शन सिंह महाराज का दर्शन करने के लिए आये.महाराज जी को प्रणाम कर वो उनके पास एक चौकी पर बैठ गए.वो कई घंटे तक बैठे रहे.जब दर्शन के लिए आने जाने वालों की भीड़ ख़त्म हो गई तो एकांत पाकर ठाकुर साहब संत सुदर्शन सिंह महाराज जी से बोले-“बाबा..मुझे बहुत भयंकर खूनी बवासीर है..मेरे शौच के मार्ग से खून निकलता है और हर समय बहुत ही कष्टप्रद जलन होती रहती हैं..मैंने बहुत सारे नामी गिरामी हाकिम,वैद्य और डॉक्टरों से इलाज कराया..परन्तु कोई लाभ नहीं हुआ..मेरे मर्ज पर कोई दवा काम ही नहीं करती है..मैं बहुत तकलीफ में हूँ..और बहुत आशा विश्वास लेकर आप के पास आया हूँ..आप मेरे रोग को दूर करने के लिए कुछ दवा और दुआ कीजिये..
सुदर्शन सिंह महाराज कुछ देर तक अपनी आँखे बंद किये बैठे रहे,फिर आँखे खोल ठाकुर साहब की ओर देखते हुए बोले-ठाकुर साहब..ये रोग सिर्फ दवा करने भर से ही नहीं जायेगा..क्योंकि आपको किसी की आह सता रही है..आपने किसी का दिल दुखाया है..किसी का हक़ छीनकर उसका दिल जला रहे हैं..इसी वजह से आप का गुदाद्वार दुःख रहा है..उसमे से खून निकल रहा है..और उसमे रातदिन भयंकर जलन हो रही है..
ठाकुर साहब के कुछ बोलने से पहले ही उनका नौकर हाथ जोड़ बोला-हुजुर..ठाकुर साहब बहुत भले आदमी हैं..इन्होने अपने जीवनकाल में कभी किसी को नहीं सताया है..हमेशा दूसरों का कुछ न कुछ भला ही किया है..
सुदर्शन सिंह महाराज जी ठाकुर साहब को एकटक देखते हुए बोले-ठाकुर साहब..जरा ठीक से याद कीजिये..आपने जरूर किसी का हक़ छिना है..प्रकृति के नियमों का उल्लंघन करने से और शरीर में वात-पित्त-कफ के असंतुलित हो जाने के दोष से जो रोग पैदा होता है..वो दवा इलाज से ठीक हो जाता है..परन्तु दूसरों का हक़ छीनने और पापकर्म करने के प्रभाव से जो रोग पैदा होता है वो सिर्फ दवा इलाज करने से ही ठीक नहीं होगा..उसके लिए भूलसुधार और प्रायश्चित करना जरुरी है..सबसे पहले आप अपना भुला हुआ पापकर्म याद कीजिये..
ठाकुर साहब ये सुनकर कुछ लज्जित से होते हुए बोले-बाबाजी..अपना सबसे बड़ा पापकर्म मुझे याद आ रहा है..मैंने अपनी विधवा भाभी का हक़ छिना है..वो इस समय अपने मायके में रह रही है..वो कई सालों से हमारी सम्पत्ति में से अपना हिस्सा मांग रही है..परन्तु मैं उसे इसलिए कुछ नहीं दे रहा हूँ कि कहीं वो रुपया पैसा जमीन-जायदाद लेकर अपने भाइयों को न दे दे..
सुदर्शन सिंह महाराज जी बोले-ठाकुर साहब..वो विधवा औरत दिनरात आपको कोस रही है..दुःख की अग्नि में उसका दिल जल रहा है..उसी का कुप्रभाव आपको बवासीर का रोग बनके परेशान कर रहा है..आपको इस भयंकर कष्टदायी रोग से मुक्त होना है तो उसे सम्मान सहित बुलाकर सम्पत्ति में से उसे उसका हिस्सा दीजिये या फिर वो मायके में ही रहना चाहे तो हर महीने सौ रूपये गुजारे के लिए उसे भेजिए..वो इस रूपये का क्या करेगी..ये सोचविचार आप मत कीजियेगा..और हाँ..आप जो दवा बवासीर की खा रहे हैं..वो खाते रहिएगा..दवा खाने के साथ साथ मेरा बताया उपाय भी जरूर कीजियेगा..तभी आप इस रोग से पूर्णतः मुक्त होंगे..
ठाकुर साहब कुछ देर तक सुदर्शन सिंह महाराज जी की कही हुई बातों पर विचार करते रहे,फिर उन्हें पूरी श्रद्धा के साथ प्रणाम कर अपने नौकर के साथ चले गए.छह महीने बाद सुदर्शन सिंह महाराज जी फिर उस गांव में पधारे.इस बार ठाकुर साहब अपने नौकर के साथ उनसे मिलने आये तो वो बहुत खुश दिखे.संत जी को साष्टांग प्रणाम कर एक चौकी पर बैठ गए.बाबाजी मुस्कुराते हुए उनकी तरफ देखकर उनका हालचाल पूछे तो वो बोले-बाबाजी..आपकी कृपा से अब मेरा रोग बारह आना ठीक हो गया है..अब मुझे काफी आराम है..
संत सुदर्शन सिंह महाराज जी ने पूछा-चार आना रोग ठीक होना बाक़ी कैसे रह गया..आपने उसे संम्पति में उसका हिस्सा ठीक से दिया या नहीं..या फिर उसे गुजारे के लिए सौ रुपया हर महीने भेजते हो या नहीं..
ठाकुर साहब बोले-बाबाजी..आपसे झूठ नहीं बोलूंगा..मैं पच्चीस रूपये महीना उसे भेजता हूँ..वो इतने में ही बहुत खुश है..पहली दफा रूपये लेकर मैं खुद गया था..मुझे देखकर वो बहुत खुश हुईं थीं..मेरे पास बैठ के बहुत देर तक रोईं थीं..पच्चीस रूपये जब मैंने उनको दिए और हर महीने पच्चीस रूपये भेजने का वादा किया तो खुश होकर बोलीं थीं कि मेरे गुजारे के लिए हर महीने इतने रूपये काफी हैं..तबसे मैं हर महीने पच्चीस रूपये बराबर भेज रहा हूँ..और भविष्य में भी हर माह भेजता रहूँगा..
सुदर्शन सिंह महाराज जी ठाकुर साहब की बात सुनकर हंसने लगे.वो ठाकुर साहब की ओर देखते हुए बोले-साधु संतों के वचन पालन में भी चालाकी..पाप पूरी तरह से कटेगा कैसे..अब इस माह से सौ रूपये भेजना..और तबतक हर माह नियमित रूप से भेजते रहना..जबतक कि वो इस संसार में जीवित हैं..
ठाकुर साहब ने ऐसा ही किया.वो बवासीर के भयंकर रोग से पूर्णतः मुक्त हो गए.वो आजीवन संत सुदर्शन सिंह महाराज जी के आज्ञाकारी शिष्य बने रहे.प्रिय पाठकों..यदि आपको जीवन में कभी कोई ऐसा रोग परेशान करे,जो दवाईयों से ठीक न हो तो इस बात पर जरूर चिंतन मनन कीजियेगा कि आपने किसी का हक़ तो नहीं मारा है या फिर किसी का दिल तो नहीं दुखाया है.भले ही आप तन,मन और धन से कितना भी सामर्थ्यवान क्यों हों,किसी के दिल की आह आपको रोग या चोट के रूप में परेशान कर सकती है या फिर किसी अन्य तरह से आपको पूर्णतः बर्बाद कर सकती है.आप इस सच्चाई को कभी मत भूलियेगा कि इस वृहद ब्रह्माण्ड के ग्रह-नक्षत्र ही नहीं बल्कि सभी जीव भी एक दूसरे से एक अलौकिक चुंबकीय तरंग के द्वारा जुड़े हुए हैं.हम सभी का जीवन एक दूसरे की क्रिया और प्रतिक्रिया से निश्चित रूप से प्रभावित होता है.आप अपने मन,वाणी और शरीर से जो भी कर्म करें,वो किसी का अहित न करें और किसी का दिल न दुखायें.अंत में महान कवि प्रदीप जी के एक बहुत प्रेरक गीत की कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं-
कोई लाख करे चतुराई,
कर्म का लेख मिटे ना रे भाई ।
ज़रा समझो इसकी सच्चाई रे,
कर्म का लेख मिटे ना रे भाई ॥

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आलेख और प्रस्तुति=सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कन्द्वा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६.
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