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नसबंदी कांड से ‘परिवार नियोजन कार्यक्रम’ को क्षति होगी
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जीवन-मृत्यु से जूझ रहीं कितनी बहनें
और कितनो ने है अबतक जान गवाई !
डॉक्टर नहीं मौत के सौदागर हैं सभी
इन्हे धरती का भगवान कहो ना भाई !
दुखी मन और नम आँखें लिए ये आलेख लिखना शुरू किया तो उपरोक्त पंक्तियाँ मेरे मानसपटल पर न जाने कहाँ से आ गईं.छत्तीसगढ़ के नसबंदी शिविरों में ऑपरेशन के बाद मरने वाली महिलाओं की संख्या १५ तक पहुंच गई है.अभी भी जीवन-मृत्यु से जूझ रही पांच महिलाओं की हालत बहुत गंभीर बनी हुई है.नसबंदी जैसी साधारण सर्जरी कराने के बाद हुई पंद्रह महिलाओं की मौत से छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि पूरा देश सहम उठा है.इस घटना का सबसे दुखद पहलू ये है कि इतनी क्रूर और अमानवीय घटना घटने के बाद पीड़ितों का साथ देने की बजाय कांग्रेस और भाजपा दोनों ही एक दूसरे के विरुद्ध राजनीतिक बयानबाजी करने में जुटी हुईं हैं और इस दुखद घटना के पूर्णतः जिम्मेदार डॉक्टर अपने को बचाने के लिए आपरेशन के बाद इस्तेमाल की गईं दर्दनिवारक और एंटीबायटिक दवाईयां आईब्रुफेन और सिप्रोक्सिन को नकली बताकर हादसे का जिममेदार बता रहे हैं.
सरकारी नियम के अनुसार एक डॉक्टर एक दिन में पैंतीस ऑपरेशन से ज्यादा नहीं कर सकता है.अपनी प्रोमोशन कराने के लिए और सरकार से वाहवाही पाने के लिए इस सरकारी नियम की धज्जियाँ उड़ाते हुए पांच घंटे में रिकार्ड ८३ आपरेशन करने वाले डॉ आर. के. गुप्ता को गिरफ्तार कर लिया गया है.अपनी गिरफ्तारी से पूर्व डॉ आर. के. गुप्ता ने संवाददाताओं से बातचीत के दौरान इस मामले पर अपनी सफाई देते हुए खुद को जिम्मेदार मानने से इनकार कर दिया था.उनका कहना था कि ‘नसंबदी के बाद महिलाओं को दर्दनिवारक और एंटीबायटिक दवाईयां आईब्रुफेन और सिप्रोक्सिन दिया गया था.दवा लेने के बाद महिलाओं ने उल्टी और सिरदर्द की शिकायत की थी.इससे यह साबित हो रहा है कि महिलाओं की मौत संदिग्ध गुणवत्ता वाली दवाओं के कारण हुई है.’उनके अनुसार १५ महिलाओं की मौत का कारण नकली दवाएं हैं.
वो इस बात का कोई जबाब नहीं दे पाये कि यदि महिलाओं की मौत नकली दवाओं की वजह से हुई है तो ये दवाएं शासन के स्तर से कैसे दी जा रहीं थीं और इन नकली दवाओं की डॉक्टरों के द्वारा जाँच क्यों नहीं की गई ? ये संभव है कि छत्तीसगढ़ में नकली दवाओं का गोरखधंधा वहां के शासकीय डॉक्टरों की मदद से चल रहा हो.यदि ऐसा है तो इससे बुरा और क्या हो सकता है.डॉक्टर आर. के. गुप्ता ने अपनी सफाई देते हुए कहा कि ‘वह लंबे समय से आपरेशन कर रहे हैं तथा इस दौरान उन्होंने हजारों महिलाओं की नसबंदी की है,लेकिन ऐसी घटना कभी नहीं हुई है.’आपरेशन वाले अौजारों को कीटाणुरहित नहीं किये जाने की बात का खंडन करते हुए उन्होंने कहा कि ‘आपरेशन से पहले सभी औजारों को पूरी तरह से कीटाणुरहित कर सुरक्षित कर लिया गया था.इसके बाद ही आपरेशन किया गया.’बहुत आश्चर्य की बात है कि उन्होंने जंग लगे अौजारों को क्लीनचिट दे दी.
डॉक्टर आर. के. गुप्ता ने अपने बचाव में यहाँ तक कहा कि ‘उन्हें फंसाने की कोशिश की जा रही है जबकि जिला चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी तथा अन्य अधिकारियों और चिकित्सकों,जो निलंबित हैं सभी के खिलाफ ऐसी ही क़ानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए.शासन की नीतियों के तहत उन्हें फंसाया जा रहा है.’आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि छत्तीसगढ़ डाॅक्टरों की प्रयोगशाला बन गया है.छत्तीसगढ़ में पहले भी डाॅक्टर आम जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करते रहे हैं.सन २०११-१२ में प्रदेश में आयोजित तीन नेत्र चिकित्सा शिविरों में ६४ लोंगों की आंखे चली गयी थी.सन २०११-१२ में ही छत्तीसगढ़ में कुछ डाॅक्टरों ने सुनियोजित ढंग से सैकड़ो गरीब महिलाओं के गर्भाशय निकाल कर उनके इलाज के नाम पर सरकार की ओर से मिलने वाली ३० हजार रूपये प्रति महिला के हिसाब से करोड़ों रुपयों की राशि हड़प ली थी.उस समय गरीब और अनपढ़ महिलाओं के साथ धोखाधड़ी करने वाले कुल सात डाॅक्टरों के खिलाफ सिर्फ यही कार्यवाही की गई थी कि उनका लाईसेंस सिर्फ एक साल के लिए निरस्त कर दिया गया था.अब वो सभी डाॅक्टर आरोपमुक्त होकर फिर से अपने अस्पताल चला रहे हैं.
छत्तीसगढ़ में आमजनता की सेहत के साथ कई वर्षों से इस तरह का जानलेवा खिलवाड़ किया जा रहा है.वर्तमान समय में छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में गत रविवार को दो अलग-अलग जगहों पर हुए परिवार नियोजन शिविरों में ११० से ज्यादा महिलाओं के आॅपरेशन किये गये थे,इनमें अधिकांश की आयु ३० से ३२ साल की थी इन आॅपरेशनों के चलते १५ महिलाओं की मौत हो चुकी है.७० से ज्यादा महिलाएं अस्पताल में जिंदगी और मौत से संघर्ष कर रही है.१८ महिलाओं की डायलिसिस की जा रही है,जिनमे से पांच की हालत अत्यंत नाजुक है.नसबंदी शिविर में बैगा जनजाति के दो महिलाओं की भी नसबंदी की गई थी,जिसमे से एक महिला की आपरेशन के बाद मृत्यु हो चुकी है.डॉक्टरों ने ये जानते हुए भी कि बैगा जनजाति की नसबंदी करने पर रोक है,उन्हें रूपये का लालच देकर और बहला फुसलाकर उनकी नसबंदी कर दी.
विलुप्त हो रहीं बैगा जनजाति की नसबंदी कलेक्टर की अनुमति के बगैर नहीं की जा सकती है.डॉक्टरों ने नसबंदी करने का अपना तयशुदा शासकीय लक्ष्य पूरा करने के लिए सही गलत सभी हथकंडे अपनाएं,यहांतक कि पूर्णतः संवेदनहीन होकर महिलाओं को जमीन पर लिटाकर महज चार पांच मिनट में ही प्रत्येक महिला का आपरेशन करते चले गए और पांच घंटे में ८३ महिलाओं का आपरेशन कर दिया,मानो वो इंसान न होकर कोई जानवर हों.इसका दुखद नतीजा भी अब सबके सामने है.अब तो सबसे जयादा चिंताजनक बात यह है कि इस घटना को जानकर अब छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि पूरे देशभर में लोग नसबंदी कराने से दूर भागेंगे और इससे परिवार नियोजन कार्यक्रम को बहुत भारी क्षति पहुंचेगी.अब लोंगो का विश्वास सरकारी डॉक्टरों पर से उठ जायेगा.
नसबंदी शिविर में महिलाओं की मौत से यह सिद्ध हो गया है कि छत्तीसगढ़ सरकार राज्य के गरीब और अनपढ़ आदिवासियों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रही है.मुख्यमंत्री रमन सिंह का अपने स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल का बचाव करते हुए ये कहना कि ‘नसबंदी डॉक्टर करता है न कि स्वास्थ्य मंत्री’,ये साबित करने के लिए काफी है कि छत्तीसगढ़ सरकार इस पूरे मामले पर कितनी संवेदनहीन और लापरवाह है.मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस भी छत्तीसगढ़ में बंद और तोड़फोड़ का आयोजन कर सिर्फ तात्कालिक राजनीतिक लाभ लेने में व्यस्त है.छत्तीसगढ़ सरकार और उसके डॉक्टरों की लापरवाही के कारण हुई इस दर्दनाक और बेहद अमानवीय घटना का पूरा संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार को उनके खिलाफ कठोर से कठोर कार्यवाही करनी चाहिए और इस बात की सुनिश्चित व्यवस्था करनी चाहिए कि अब छत्तीसगढ़ ही नहीं,बल्कि पूरे देशभर में ऐसी दुखद घटना की पुनरावृति न हो.देशवासियों से ऐसी दर्दनाक और अमानवीय घटनाओं के प्रति जागरूक होने की अपील करते हुए अंत में एक कवि के शब्दों में बस यही कहूँगा-
कली बेंच देगें चमन बेंच देगें,
धरा बेंच देगें गगन बेंच देगें,
कलम के पुजारी अगर सो गये तो…
ये धन के पुजारी वतन बेंच देगें !
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!! जयहिंद !! वन्देमातरम !! आलेख और प्रस्तुति=सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कन्द्वा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६.
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