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लंका का दहन हुआ,आधुनिक युग का रावण गिरफ्तार हुआ

सद्गुरुजी
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लंका का दहन हुआ,आधुनिक युग का रावण गिरफ्तार हुआ
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ज्ञान हीन जो गुरु कहावै। आपन भूला जगत भूलावै।।
ऐसा ज्ञान चलाया भाई। सत साहब की सुध बिसराई।।
यह दुनियां दो रंगी भाई। जिव गह शरण असुर की जाई।।
तीरथ व्रत तप पुन्य कमाई। यह जम जाल तहाँ ठहराई।।

बाबा जी बनकर धर्म के नाम पर देश की भोलीभाली जनता को लूटने वाले,उन्हें तरह तरह के कर्मकांडों में फंसा अंधविश्वासी बनाने वाले,अनुयायियों की श्रद्धा-भक्ति का नाजायज फायदा उठाकर मुफ्त में काम करा अपने लिए महल खड़ा करने वाले,दूसरों की सम्पत्ति और जमीन हड़पने वाले,लड़कियों और शादीशुदा महिलाओं को अपनी वासना का शिकार बनाने वाले,अवैध रूप से हथियार बनाने और रखने वाले,कई तरह के ढोंग-पाखंड और शब्दजाल की जादूगरी से अपने शिष्यों और राजनेताओं को सम्मोहित कर बाकायदे एक समानांतर सरकार चलाने वाले, गेरुआ वस्त्र धारण कर अपराध करने वाले और जाती-धर्म के नाम पर सांप्रदायिक दंगा भड़काने वाले तथाकथित स्वयंभू धर्म-गुरुओं की फेहरिस्त बहुत लम्बी है,उसमे से कुछ प्रमुख विवादित धर्म-गुरुओं की चर्चा इस लेख में मैं कर रहा हूँ,जिनके कुकर्मों बारे में मिडिया द्वारा समय समय पर पूरे देश को विस्तृत जानकारी दी गई हैं.अपने काले कारनामों से ये लोग न सिर्फ अच्छे संतों को बदनाम कर रहे हौं,बल्कि सनातन हिन्दू धर्म के शाश्वत ज्ञान,विश्व व्यापी सम्मान और हिंदुओं की एकता को भी भारी क्षति पहुंचा रहे हैं.
राजनीतिक छत्रछाया में खूब फले फूले स्वर्गीय योग गुरु धीरेन्द्र ब्रह्मचारी पर अवैध रूप से हथियार बनाने से लेकर यौन-शोषण तक के अनेक आरोप लगे थे.राजनीतिक गलियारे के एक और विवादास्पद संत चंद्रास्वामी पर हथियारों की तस्करी और राजीव गांधी की हत्या के षडयंत्र में शामिल होने के आरोप लगे थे.दक्षिण भारत के प्रसिद्द संत नित्यानंद स्वामी पर एक अभिनेत्री के संग रंगरलिया मनाने और उसका यौन-शोषण करने के आरोप लगे थे.बाराबंकी से लेकर इलाहाबाद तक अपना धार्मिक साम्राज्य फ़ैलाकर अपने को परमात्मा का एकमात्र तत्वदर्शी अवतार घोषित करनेवाले आधुनिक युग के एक साधु स्वर्गीय संत ज्ञानेश्वर पर हत्या करने,जमीन हथियाने और अवैध रूप से आधुनिक हथियार रखने के आरोप लगे थे.तमिलनाडु के एक बहुत विवादस्पद धर्मगुरु स्वामी प्रेमानंद पर तेरह महिलाओं के साथ दुष्कर्म करने के आरोप लगे थे.तांत्रिक स्वामी सदाचारी पर वेश्यालय चलाने के आरोप लगे थे.स्वामी भीमानंद पर देश भर में व्‍यापक स्‍तर पर सेक्‍स रैकेट चलाने के गंभीर आरोप लगे थे.
बाबा गुरमीत सिंह राम रहीम पर बलात्कार और गैरकानूनी कामों में संलिप्त होने के गंभीर आरोप उनके कई महिला अनुयायियों ने लगाये थे.जेल में बंद आसाराम बापू और उनके लड़के नारायण साईं पर बहुत सारी लड़कियों और महिलाओं का यौन-शोषण करने और कई गैर कानूनी कार्य करने के आरोप लगे हुए हैं और अभी हाल ही में गिरफ्तार हुए संत रामपाल पर हत्या कराने,हथियार रखने,अवैध ढंग से आश्रम बनाने और कई अन्य गैर क़ानूनी कार्य करने से लेकर देशद्रोह तक के आरोप लगे हैं.अपने को संत कबीर का अवतार और ब्रह्माण्ड का एकमात्र तत्वदर्शी संत कहने वाले संत रामपाल दुनिया भर के संतों,गुरुओं,आचार्यों,मंडलेश्वरों,धर्माधिकारियों और सभी पंथों के संचालकों को शास्त्रार्थ के लिए पिछले कई साल से ललकार रहे थे.इस युग में खुद को सत्य का एकमात्र जानकर साबित करने की कोशिश में लगे रामपाल झूठे और ठग निकले.हरियाणा के बरवाला में अवैध रूप से बने रामपाल के सतलोक आश्रम को ढहाने की तैयारी चल रही है.जहांपर भोग-विलास के सभी साधन थे.
कंडोम से लेकर स्विमिंगपुल तक और प्रशिक्षित कमांडो सेना से लेकर आधुनिक हथियार तक सभी कुछ बरामद हुआ है.इसे यदि इस तरह से कहा जाये कि ठगी करके बसाई गई लंका का दहन हुआ और आधुनिक युग का रावण गिरफ्तार हुआ तो कोई अतिश्योक्तिपूर्ण बात नहीं होगी.पूरे देशभर में ऐसी न जाने कितनी लंकाएं होंगी और रामपाल जैसे न जाने कितने कुकर्मी रावण होंगे.आज जरुरत इस बात की है कि सतलोक आश्रम जैसी सभी लंकाओं को ढूंढकर उनका दहन हो और रामपाल जैसे सभी रावणों की गिरफ़्तारी हो.ये लोग मूर्ख या अज्ञानी नहीं बल्कि एक से बढ़कर एक चालाक और ज्ञानी हैं.परन्तु इन सबके सर्वनाश का कारण इनका अहम और चारित्रिक दोष बन रहा है,जैसा कि प्राचीनकल से लेकर अभीतक होता आया है.रावण ज्ञानी था और वो भी कोई साधारण ज्ञानी नहीं.दशानन अर्थात दस मुख वाला यानि कि दस गुना अधिक मानसिक शक्ति वाला ज्ञानी,परन्तु उसमे सौ गुण होने पर भी पराई स्त्री का अपहरण जैसा एक चारित्रिक दोष उसके सारे गुणों पर भारी हो गया और उसके विनाश का कारण बना.आज के युग में भी बहुत से पथभ्रस्ट और बुद्धिभ्रस्ट साधु मायावी लोभ में आकर बिना सोचे समझे रावण के पदचिन्हो पर चल रहे हैं,भले ही अंत में उन्हें अपमान,जेल और विनाश ही क्यों न प्राप्त हो.इस बात की उन्हें कोई चिंता या परवाह नहीं है.अपने अनुयायियों और पाले हुए बदमाशों के बलपर सभी तरह के कुकर्म कर रहे हैं और अपनी एक समानांतर सरकार चलाकर शासन-प्रशासन को चुनौती दे रहे हैं.
आज के तथाकथित ज्ञानियों और सवयंभू संतों की ये कैसी बुद्धिमत्ता और ज्ञान है,जो उन्हें अच्छे और बुरे का अंतर करना नहीं सीखा पा रही है.ऐसा ऊँचा ज्ञान किस काम का जो ज्ञानी को ही सुरक्षा प्रदान न कर सके और उसके अस्तित्व को ही खतरे में डालते हुए गलत मार्ग पर जाने के लिये भ्रमित करे.एक ज्ञानी व्यक्ति यदि चरित्रहीन है तो ज्ञानी होते हुए भी वो चरित्रहीनता के दोष से नहीं बच सकता है,वहीँ दूसरी तरफ एक अज्ञानी व्यक्ति भी अपने घर में रहकर चारित्रिक बल के साथ मन ही मन भगवान का नाम लेकर अपना कर्तव्य कर्म करते हुए और यथासामर्थ्य दूसरों की सेवा करते हुए शांति और सम्मान से जीवन व्यतीत कर सकता है.यदि मोक्ष की अवधारणा सत्य है तो सही मायने में मोक्ष का अधिकारी भी वही है.वो अपने संस्कार काट रहा है,जबकि दुनियाभर का झूठ बोलकर और पापकर्म करके बड़े बड़े आश्रमों में रहने वाले साधु अपने संस्कारों का बोझा काटने की बजाय और बढ़ा ही रहे हैं.धर्म क्षेत्र से जुड़े पहले के साधु-संत झोपडी में रहकर मायावी प्रलोभनों से दूर रहते हुए समाज को संस्कारित व धार्मिक बनाने में अपनी महती भूमिका निभाते थे.वो लोग काम, क्रोध,मद व लोभ को त्याग कर और खुद का जीवन दूसरों के हितार्थ होम कर दूसरों को प्रेरणा देते थे.
विशेष नामदान देने और ऊँची भक्ति कराने के नाम पर दुनियाभर का ढोंग-पाखंड करने वाले और झोपडी की जगह बड़े बड़े महल रूपी आश्रमों में भोगमय जीवन व्यतीत करने वाले आज के साधु-संतों में योग और साधना कितनी है,ये बताना बहुत मुश्किल काम हो गया है.अपने को सर्वगुण सम्पन्न कहने वाले इन आधुनिक साधु-संतों की कथनी और करनी में बहुत फर्क है.ये सिर्फ अपने शिष्यों को ही त्याग करने का उपदेश देते हैं और स्वयं हर तरह के भोग में लिप्त रहते हैं.इनमे से अधिकतर के बहुआयामी रंगीन चरित्र के तो कहने ही क्या,सुन्दर स्त्री के सम्पर्क में आते ही इनका चारित्रिक बल क्षीण हो जाता है और वासना की भूख जाग उठती है.पहले तो उस स्त्री को तरह तरह के प्रलोभन देकर ये लोग अपने प्रेमजाल में फंसाते हैं और यदि कोई मजबूत चरित्र वाली स्त्री उनकी बात नहीं मानी तो उसे डरा धमकाकर और छल-कपट का सहारा लेकर बलात्कार और ब्लैकमेल करने का कुकृत्य भी करते हैं.सही गलत किसी भी तरह के काम से प्रचुर मात्रा में धन आये और सभी आधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण विशाल आश्रम बने,जहांपर कंचन,कामिनी और कीर्ति तीनो ही बरसें,आज के ज्यादातर साधु-संतों का बस यही स्वप्न है और आजीवन उनकी यही कोशिश रहती है कि ये स्वप्न सही गलत किसी भी तरीके से चाहे जैसे भी हो पूरा हो.उनकी यही स्वार्थी सोच उन्हें अपराध की ओर ले जाती है.
ये लोग ईश्वरीय योगपथ से पथभ्रस्ट होकर और अपने स्वार्थ में अंधे होकर ये भी नहीं सोचते हैं कि यदि उनकी ऐसी पतित गति-मति और सोच-स्वप्न है तो उनके शिष्य या अनुयायी उनसे क्या शिक्षा ग्रहण करेंगे.एक बहुत प्रसिद्द कहावत भी कही गई है कि जैसा गुरु वैसे ही चेले.बहुत ऊँचा ज्ञान पाने और सबसे अधिक पहुंचे हुए गुरु के समक्ष शरणागत होने के चक्कर में अधिकतर लोग जो थोड़ा बहुत देवी-देवताओं की पूजापाठ करते थे,वो भी छोड़ देते हैं.आध्यात्मिक जगत में सबसे अधिक दूर तक पहुँचाने का दावा करने वाले तरह तरह के भेषधारी नकली संतों की अनगिनत दुकाने सजी हुई हैं.इनके आध्यात्मिक खोज के तो क्या कहने,इन्होने एक सर्वव्यापी परमात्मा का भी बाप ढूंढ लिया है.एक दूसरे से अधिक चेला बनाने की और एक दूसरे से अधिक बड़ा और भोग-विलास की सभी सुविधाओं से युक्त सुसज्जित आश्रम बनाने की इनमे आपस में जबरदस्त प्रतिस्पर्धा है.इनका भगवान से प्रेम भी एक ढकोसला और छलावा मात्र है.स्वयं को भगवान से भी बड़ा मानते हुए ये सही गलत किसी भी मार्ग पर चलकर अपनी शूद्र और कुत्सित कामनापूर्ति करने में ही यकीन रखते हैं.
इन पथभ्रस्ट,कुकर्मी और ढोंगी-पाखंडी साधुओं के बलपर हम विश्वगुरु नहीं बन सकते.ये लोग तो उल्टे हमारी जग-हंसाई करवा रहे हैं.विश्वगुरु बनने के लिए भारत को ब्रह्मनिष्ठ संत-महात्माओं, ज्ञानियों और निर्मल हृदय वाले महापुरुषों की जरुरत है,जिनके बारे में आचार्य व्यास जी ने पुराण में लिखा है-‘धर्मस्य तत्वं निहितं गुहायाम्। महाजनो येन गतः स पन्थाः।’ अर्थात धर्म का रहस्य अथवा स्वरूप इतना गहन है,मानो वह गुफाओं में छिपा है.अतः सभी उसका गहन अध्ययन नहीं कर सकते.सुगम मार्ग यही है कि जिन्होंने घोर तपस्या कर उस परम तत्व को जान लिया,तथा जिस रास्ते वे चले,उसी मार्ग पर चलना चाहिए.साधु-संतों को हमेशा ये ध्यान रखना चाहिए कि उनका जीवन उनके अनुयायियों के लिए प्रेरणादायी और अनुकरणीय बने न कि उनके लिए कष्टदायी और ईश्वरीय पथ से पथभ्रस्ट करनेवाला बने.आमजनता से मेरी यही अपील है कि आप पथभ्रस्ट साधु-संतों के पीछे भागने की बजाय अपना गुरु स्वयं बनकर अपने को सुधारे.परमात्मा आपके भीतर हैं,उपयुक्त समय आने पर वो स्वयं प्रकट हो जायेंगे.गीता में दिए गए भगवान श्रीकृष्ण के वचन को बस आप सदैव याद रखें-‘ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति।’ अर्थात भगवान हम सबके भीतर हैं,उन्हें ढूंढने के लिए कहीं भटकने की जरुरत नहीं है.ढोंगी-पाखंडी साधुओं के चक्कर में पड़कर अपना कीमती समय,खून-पसीने से कमाया अपना धन और जाने पर फिर हाथ न आने वाली सबसे बेशकीमती चीज अपनी इज्जत मत गवाओ.
ऐसा राम कबीर ने जाना । धर्मदास सुनियो दई काना।।
सुन्न के परे पुरुष को धामा । तहँ साहब है आदि अनामा।।
ताहि धाम सब जीव का दाता। मैं सबसों कहता निज बाता।।
रहत अगोचर सब के पारा। आदि अनादि पुरुष है न्यारा।।

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!! जयहिंद !! वन्देमातरम !! आलेख और प्रस्तुति=सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कन्द्वा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६.
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