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नववर्ष में मधुर कल्पनाओं को निष्कामभाव से साकार करें

सद्गुरुजी
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New-Year
नववर्ष में मधुर कल्पनाओं को निष्काम भाव से साकार करें
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कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोस्त्वकर्मणि।।

नए साल पर शुभकामना सन्देश देने के लिए जब ब्लॉग लिखने बैठा तो गीता का यह श्लोक याद आ गया. महाभारत के युद्ध में भगवान कृष्ण ने कर्म का महत्व बताते हुए मोहग्रस्त अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए कहा था कि हे अर्जुन! तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में अधिकार नहीं है. इसलिए तू न तो अपने आपको कर्मो के फलों का कारण समझ और न ही कर्म करने में तू आसक्त हो. मैं सोचने लगा कि भगवान अर्जुन से ऐसा क्यों कहे कि हे अर्जुन! तू सिर्फ कर्म कर, वो भी निष्काम भाव से. फल के बारे में सोचना भी मत! व्यावहारिक जीवन में क्या ये संभव है? हमलोग तो फल के बारे में पहले सोचते हैं, फिर कर्म करते हैं. अधिकतर लोग कर्मफल को लेकर इतना चिंतित रहते हैं कि धीरे धीरे मानसिक विक्षिप्तता की राह पर चल पड़ते हैं या फिर तनावग्रस्त होकर अनेक असाध्य रोगों के शिकार हो जाते हैं. भगवान श्रीकृष्ण जी इसी समस्या का समाधान बताते हैं कि मनुष्य को कर्म करना चाहिए, परन्तु कर्मफल के साथ आसक्ति नहीं रखनी चाहिए कि मुझे अपने मनमुताबिक ही फल प्राप्त हो, क्योंकि आपके कर्मफल को प्रभावित करने वाली दैहिक, दैविक, भौतिक और आध्यात्मिक आदि अन्य बहुत सारी चीजे हैं, जिनपर आपका कोई नियंत्रण नहीं है.
नए साल के आगमन पर लोग विभिन्न प्रकार के संकल्प लेते हैं, परन्तु अधिकतर लोग ज्यादा दिनों तक उस संकल्प पर अमल नहीं कर पाते हैं. किसी ने संकल्प लिया कि अब ऑफिस रोज समय से पहुंचूंगा. वो कुछ दिन ऑफिस समय से भी गया, परन्तु फिर पुराने ढर्रे पर चलने लगा. बहुत से लोग नए साल पर शराब, सिगरेट, तम्बाकू, गुटका और अन्य बहुत सी बुरी चीजें और बुरी आदतें छोड़ने का संकल्प लेते हैं, परन्तु सालभर तो क्या वो मुश्किल से दो चार दिन ही अपने संकल्प को निभा पातें हैं. मनोवैज्ञानिक इसका कारण ये बताते हैं कि पुरानी बुरी आदतों को हमेशा के लिए या फिर सालभर के लिए भी छोड़ना आसान काम नहीं है. मन को जब छोड़ी हुई चीजों के स्वाद की बहुत याद आती है, तब इन्द्रियां बरबस ही जीवात्मा को उन त्यागी हुई बुराइयों की तरफ खिंच ले जाती हैं. अब विचार करें कि इसका समाधान क्या है? मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि मन को संकल्प के साथ साथ विकल्प भी चाहिए, तभी बुरी आदतें हमेशा के लिए छूट सकती हैं. जैसे शराब आपने छोड़ दी है तो उसकी जगह फलों का जूस पीलिये या फिर स्वास्थ्य के लिए हितकर कोई शरबत पीजिये. आपने कोई बुराई छोड़ी है तो उसकी जगह कोई अच्छाई पकड़िए.
सबसे बड़ी बात ये कि अच्छे कामों में अपने को हमेशा व्यस्त रखिये.एक शब्द है अणुव्रत, जिसका अर्थ है कि छोटी अवधि के छोटे छोटे संकल्प लो तब सफलता जरूर मिलेगी. बचपन में हमलोग घर में पढ़ने के लिए सालभर की पढाई का टाइमटेबल बनाते थे, परन्तु उसपर ज्यादा दिन अमल नहीं कर पाते थे. अक्सर जब पढ़ने बैठते थे तो मित्र बैट बॉल ले के आ टपकते थे और अपने ही बनाये टाइमटेबल को ठेंगा दिखाते हुए हम मैदान की तरफ भाग जाते थे. पढाई करने के लिए घरवालों की डांट खाने के बाद समस्या का समाधान हमने ये ढूंढा कि हफ्ते भर की बजाय प्रतिदिन पढ़ने का टाइमटेबल बनाने लगे. बहुत हद तक वो सफल भी रहा. मनोवैज्ञानिक भी यही समझाते हैं कि मन पर लम्बे समय तक के लिए बड़े बड़े संकल्प का बोझ डाल उसे हताश निराश करने की बजाय थोड़े दिनों वाले छोटे छोटे संकल्प लो और संकल्प के साथ साथ विकल्प भी ले के चलो. भगवान श्रीकृष्ण के श्रीमुख से निकले गीता के एक और श्लोक की मैं चर्चा करना चाहूंगा.
सुखदुखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यप्ति।।

भगवान इस श्लोक में अर्जुन को समझा रहे हैं कि जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख-दुख को एक जैसा समझकर, उसके बाद युद्ध के लिए तैयार हो जा; इस प्रकार युद्ध करने से तू पाप को नहीं प्राप्त होगा. भगवान अर्जुन के माध्यम से हमें समझाना चाहते हैं कि जीवन को इस तरह से जियों कि जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख-दुख हमें प्रभावित न कर सकें और हमारी जीवात्मा इनमे न उलझकर जीवन की सबसे बड़ी ऊंचाई यानि परमात्मा का अनुभव प्राप्त कर सके. हार-जीत, लाभ-हानि, सुख-दुःख और रात-दिन एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. ये मानकर चलना चाहिए कि ये सब हमें एक साथ मिले हैं. पूरा सिक्का आप स्वीकार करेंगे तो धीरे धीरे इन सब चीजों से भय लगना, चिंता रहना, और असर पड़ना भी कम होते होते बंद हो जायेगा. इसके बाद जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि परमात्मा की प्रत्यक्ष अनुभूति भी सहजता से प्राप्त हो जाएगी.
जीवन में निष्काम भाव से उम्र बढ़ने के साथ साथ हर चीज का आनंद लेते जाइये. परन्तु मित्रों, याद रखियेगा कि उम्र भी बोलती है..इक्यावन, बावन..चलो अब वन की और..किस वन की ओर? अपनी इच्छाओं के घने वन की ओर..ज्ञान से, ध्यान से और समाधि से उसे ख़त्म करने के लिए. आँख मूंदने पर रह जाये सिर्फ इच्छाहीन और विचारहीन अंतस का आकाश..जो जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि मोक्ष है. अंत में सभी ब्लॉगर मित्रों और कृपालु पाठकों को हिंदी जगत के मशहूर कवि अशोक चक्रधर जी के शब्दों में नववर्ष की बधाई देता हूँ. आम जनता से लेकर सरकार तक की मधुर कल्पनाएं साकार हों या न हों, परन्तु निष्काम भाव से उसे साकार करने का प्रयास जरूर करें, यही नववर्ष की शुभकामना है.
न धुन मातमी हो न कोई ग़मी हो
न मन में उदासी, न धन में कमी हो
न इच्छा मरे जो कि मन में रमी हो
साकार हों सब मधुर कल्पनाएं।
नव वर्ष की शुभकामनाएं
हैपी न्यू इयर, हैपी न्यू इयर।

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आलेख और प्रस्तुति=सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कन्द्वा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६.

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