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कश्मीर की समस्या : आख़िर इस दर्द की दवा क्या है?

सद्गुरुजी
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कश्मीर की समस्या : आख़िर इस दर्द की दवा क्या है ?
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दिले-नादाँ तुझे हुआ क्या है,
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है।

कश्मीर समस्या पर ब्लॉग लिखने बैठा तो मशहूर शायर मिर्ज़ा गालिब याद आ गए. भारत, पाकिस्तान और कश्मीरियों के लिए कश्मीर समस्या एक पुराना दर्द है, जिसका समुचित ईलाज आजादी के बाद से लेकर अबतक नहीं किया जा सका है, इसलिए ये दर्द अब यह एक लाईलाज नासूर बन चूका है. सन १९५४ से लेकर आजतक अनगिनत बार कश्मीरी जनता अपनी आजादी के लिए या फिर दंगे, पथराव या आतंकी मुठभेड़ में सेना के द्वारा मारे गए अपनी किसी कश्मीरी भाई के लिए भारत और भारतीय सेना के खिलाफ सड़कों पर उतरती रही है. हमने कभी सेना के द्वारा तो कभी राजनीति के द्वारा कश्मीरियों को शांत करने की कोशिश की है, परन्तु कश्मीर समस्या का कोई स्थायी समाधान नहीं ढूंढ सके हैं.
सन १९४९ में कश्मीर इस शर्त पर भारतीय संघ में शामिल हुआ था कि विदेशी मामलों, सुरक्षा और मुद्रा चलन को छोड़कर भारत सरकार अन्य किसी भी मामले में दखल नहीं देगी. भारतीय संविधान की विशेष धारा ३७० के अंतर्गत कश्मीर को विशेष स्वायत्तता प्रदान की गई. इसमें प्रावधान था कि कश्मीर का मुख्यमन्त्री प्रधानमन्त्री और राज्यपाल गवर्नर कहलायेगा. भारतीय संघ में शामिल अन्य प्रदेशों के लोग कश्मीर में जमीन और सम्पत्ति खरीदकर बस नहीं सकेंगे. भारत की आजादी के समय शेख़ अब्दुल्ला कश्मीरियों के सबसे बड़े नेता थे. उनकी मंशा पाकिस्तान में शामिल होने की थी, परन्तु पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित और समर्थित कबायली हमला कश्मीर पर हो जाने और भारतीय सेना द्वारा सफलतापूर्वक उस हमले से निपटने से प्रभावित होकर उनका विचार बदल गया और वो सशर्त भारतीय संघ में कश्मीर का विलय कराने को तैयार हो गए. उस समय नेहरू जी ने कश्मीर में जनमत संग्रह कराने का वादा भी किया था. बस उनकी एक ही शर्त थी कि संयुक्त राष्ट्र संघ के फैसले के अनुसार पाकिस्तान कश्मीर के उत्तर-पश्चिमी हिस्से (पाक अधिकृत कश्मीर) से अपनी सेनाएँ हटाये, परन्तु पाकिस्तान ने कश्मीर के उस हिस्से पर अपना कब्जा नहीं छोड़ा. भारतीय शासकों ने इसी कारण से कश्मीर में जनमत संग्रह कराने से इनकार कर दिया था. कश्मीरी लोग विशेष स्वायत्तता (धारा ३७०) के साथ भारतीय संघ में शामिल तो हो गए, परन्तु आजतक कभी शांत और संतुष्ट नहीं हुए. भारत सरकार और भारतीय सेना की मुख़ालतफत करते हुए दिन पर दिन वो और अधिक आजादी की मांग करते चले गए. अब तो वो नारा लगाने लगे हैं कि इंडिया और पाकिस्तान नहीं, बल्कि हमें तो पूर्ण आजादी चाहिए. कश्मीर समस्या पर आजकल बहुत से लोग बहुत कुछ कह रहे हैं.
मैं भी मुँह में ज़बान रखता हूँ,
काश पूछो कि मुद्दआ क्या है।

जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कांफ्रेंस के कार्यकारी अध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने कहा, ‘‘एक बात तो तय है. यथास्थिति कायम रखना इसका समाधान नहीं है. यदि भारत लगातार यही कहता रहे कि पाकिस्तान अधिकृत जम्मू कश्मीर के हिस्से को खाली कराना ही होगा और तब तक इसका कोई हल नहीं निकलेगा तथा पाकिस्तान इस बात पर जोर देता रहे कि जम्मू कश्मीर 1947 के बंटवारे का एक अधूरा एजेंडा है ,तो वे कहीं नहीं पहुंचने वाले.’’
उमर अब्दुल्ला साहब ने कश्मीर मसले का हल बताते हुए कहा, ‘‘किसी भी हल को अमल में लाने के लिए सबसे पहले हमें यह स्वीकार करना होगा कि दोनों ही देशों में भविष्य में किसी भी क्षेत्र का हस्तांतरण नहीं होगा. इसका मतलब है कि आपको नियंत्रण रेखा को मानना होगा और इसे (अंतरराष्ट्रीय) सीमा के तौर पर स्वीकार करना होगा.’’
मेरे विचार से उमर अब्दुल्ला साहब ने अच्छा सुझाव दिया है, परन्तु कश्मीरियों और पाकिस्तान के सहयोग के बिना इस सुझाव को अमल में नहीं लाया जा सकता है. पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने कश्मीर मुद्दे के स्थाई समाधान के लिए भारत और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में दोनों तरफ एक धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र होना चाहिए, जिसे भारत और पाकिस्तान दोनों और से मान्यता मिलनी चाहिए. वाजपेई जी के समय में मुशर्रफ ये ठोस प्रस्ताव लेकर भारत आए थे, परन्तु उनके प्रस्ताव और प्रयास को न भारत ने पसंद किया गया और न ही पाकिस्तान के अवाम ने.
मैंने माना कि कुछ नहीं ‘ग़ालिब’,
मुफ़्त हाथ आए तो बुरा है।

पाकिस्तान का रवैया आजादी के बाद से लेकर अबतक कश्मीर को किसी तरह से हथियाने का ही रहा है. सन १९७१ में बांग्लादेश के रूप में पाकिस्तान का विभाजन हुआ, उस विभाजन को कराने में भारत की अहम भूमिका रही. तबसे पाकिस्तान अपनी सेना और अपने यहाँ प्रशिक्षण दिए आतंकवादियों के बल पर लगातार यही कोशिश कर रहा है कि कश्मीर को भारत से अलगकर सन १९७१ के अपमान का बदला ले. वो कश्मीर में आतंक फ़ैलाने के लिए अपने यहाँ न सिर्फ उग्रवादियों को प्रशिक्षण दे रहा है, बल्कि कश्मीरी अलगाववादी नेताओं को भी अपना पूरा समर्थन देकर उन्हें भड़का रहा है. अभी कुछ दिनों पहले जेल से रिहा हुए कश्मीरी अलगाववादी नेता मसर्रत आलम हुर्रियत कांफ्रेंस के कट्टरपंथी धडे के अध्यक्ष सैयद अली शाह गिलानी और अन्य कुछ अलगाववादी नेताओं के साथ मिलकर १५ अप्रेल को कश्मीर घाटी में एक रैली कर पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाये थे, साथ ही पाकिस्तानी झंडे भी लहराये थे. कश्मीर घाटी में कानून एवं व्यवस्था की स्थिति बनाये रखने के लिए मसर्रत आलम को फिर से गिरफ्तार कर लिया गया. मसर्रत आलम की गिरफ़्तारी के विरोध में श्रीनगर में अलगाववादी समर्थकों ने भारत के खिलाफ प्रदर्शन किया और पुलिस पर पत्थर भी फेंके.
पाकिस्तान में रह रहा मुंबई के आतंकी हमले का मास्टरमाइंड और जमात-उद-दावा (जेयूडी) प्रमुख हाफिज सईद ने मसरत आलम की गिरफ्तारी कि गिरफ्तारी का विरोध करते हुए कहा कि मसरत आलम ने कश्मीर में पाकिस्तान का झंडा फहराया था, दिल्ली में नहीं. कश्मीर एक विवादित जगह है, इसलिए ये गलत नहीं है. कश्मीर के अलगाववादी नेताओं को पूरा समर्थन देने का ऐलान करते हुए उसने यहाँ तक कहा कि पाकिस्तानी सरकार, पाकिस्तानी सेना और जेयूडी मिलकर कश्मीरियों के हक के लिए लड़ रहे हैं और ये और यही असली जिहाद (धर्मयुद्ध) है. हाफिज सईद ने अपनी और पाकिस्तान के धूर्तई की सब पोलपट्टी खोल के रख दी है. पाकिस्तान एक तरफ जहाँ भारत अधिकृत कश्मीर में अलगाव और आतंक का बीज बो रहा है, वही दूसरी तरफ कब्जा किये हुए अपने क्षेत्र के गुलाम कश्मीर में चीन की मदद से रेल नेटवर्क और सड़कों का जाल बिछा रहा है. दरअसल इसी बहाने वो भारत के साथ भविष्य में होने वाले युद्ध की तैयारी कर रहा है.
हमको उनसे वफ़ा की है उम्मीद,
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है।

इस समय कश्मीर में भाजपा और पीडीपी की मिलीजुली सरकार है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस सरकार के जरिये जम्मू-कश्मीर में जबरदस्त विकास कर वहां के लोगों को खुश करना चाहते है. उनके विचार से कश्मीर में विकास होने से लोंगो के भीतर से गुड्डा और अलगाववाद की भावना ख़त्म हो जाएगी. उनकी सोच सही है, परन्तु अलगाववादी सोच रखने वाले और भारत का खाकर पाकिस्तान का गुण गाने वाले इतनी जल्दी अपनी सोच बदलेंगे, ये मुझे नहीं लगता है. मेरी समझ से तो भारत को हिम्मत जुटाकर पाक अधिकृत कश्मीर में धुसना चाहिए और वहांपर स्थित सभी आतंकवादी ठिकानों को नष्ट कर देना चाहिए तथा पाक अधिकृत गुलाम कश्मीर का विलय भारत में कर लेना चाहिए. मुझे लगता है कि देरसबेर भारत को यही करना पड़ेगा. यही एक तरीका है जिससे कश्मीरी अलगाववादियों, पाकिस्तान में छुपे बैठे आंतकवादियों और उन्हें सहयोग देने वाले, आतंक की फैक्ट्री चलाने वाले व पूरे विश्व में आतंक फ़ैलाने वाले मास्टरमाइंड पाकिस्तानियों को करारा सबक सिखाया जा सकता है. अंत में- कश्मीर में आतंकवादियों से लड़ते हुए शहीद होने वाले सेना के हजारों जवानों और वहांपर कानून एवं व्यवस्था की स्थिति बनाये रखने के लिए शहीद होने वाले हजारों पुलिस कर्मियों को मेरा कोटि कोटि नमन.
जान तुम पर निसार करता हूँ,
मैं नहीं जानता दुआ क्या है।

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आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कन्द्वा, जिला- वाराणसी. पिन- २२११०६.
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