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राष्ट्रगान से ‘अधिनायक’ शब्द हटाने पर विचार होना चाहिए

सद्गुरुजी
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img1120125162_1_2666राष्ट्रगान से ‘अधिनायक’ शब्द हटाने पर विचार होना चाहिए
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जन-गण-मन अधिनायक जय हे,
भारत-भाग्य-विधाता ।
पंजाब सिन्धु गुजरात मराठा,
द्रावि़ड़ उत्कल बंग ।
विन्ध्य हिमाचल यमुना गंगा,
उच्छल जलधि तरंग ।
तव शुभ नामे जागे,
तव शुभ आशिष मांगे,
गाहे तव जय गाथा ।
जन-गण मंगलदायक जय हे,
भारत-भाग्य-विधाता ।
जय हे ! जय हे !! जय हे !!!
जय ! जय ! जय ! जय हे !!

राजस्थान विश्वविद्यालय का २६वां दीक्षांत समारोह ७ जुलाई २०१५ को आयोजित हुआ, जिसमे पिछले २४ सालों से लम्बित १७ लाख से ज़्यादा डिग्रियां बांटी गई। इस कार्यक्रम की कई विशेषताएं देश के करोड़ों लोंगो के दिलों को छू गईं। इस कार्यक्रम में ब्रितानी परंपरा के प्रतीक समझे जाने वाले काले गाउन और टोपियां नदारद थीं, उसकी जगह छात्र-छात्रा कुर्ता-पायज़ामा, सफ़ेद साड़ी-ब्लाउज़, सलवार-कमीज़ में डिग्री लेने आए। इस समारोह में राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह जी बतौर कुलाधिपति शामिल हुए और वो भारतीय पोशाक पहने और सिर पर साफा बांधे नजर आये। विशुद्ध भारतीय अंदाज वाला यह दीक्षांत समारोह देश के सभी विश्वविद्यालयों के लिए एक बहुत बड़ा सबक है कि वो अपने यहाँ आयोजित होने वाले दीक्षांत समारोहों में गुलामी की प्रतीक ब्रितानी परंपरा का परित्याग कर भारतीय पहनावा और भाषा को महत्व दें। इस समारोह की सबसे बड़ी विशेषता राजस्थान के राज्यपाल और विश्वविद्यालय के कुलाधिपति माननीय कल्याण सिंह जी का ऐतिहासिक सम्बोधन था, जिसमे उन्होंने कहा था कि हमारे देश के राष्ट्रगान में संशोधन होना चाहिए। यह ‘जन गण मंगलदायक..भारत भाग्य विधाता’ किया जाना चाहिए। ‘जन गण मन अधिनायक’ की जगह इसे जन गण ‘मन दायक या मंगलदायक’ कर दिया जाना चाहिए।
राजस्थान विश्वविद्यालय के २६ वे दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए कल्याण सिंह जी ने उपस्थित बुद्धिजीवियों और छात्रों से पूछा कि हमारे देश के राष्ट्रगान ‘जन गण मन अधिनायक जय हो..’ में ‘अधिनायक’ शब्द किसके लिए प्रयोग किया गया है? उन्होंने स्वयं ही इसका जबाब भी दिया कि यह ब्रिटिश समय के अंग्रेजी शासक का गुणगान है। जब गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर जी ने यह गीत १९११ में लिखा था, तब देश पर ब्रितानी राज था। इस गीत में ब्रिटिश शासन का गुणगान किया गया है। उन्होंने ‘अधिनायक’ और ‘महामहिम’ (हिज़ एक्सीलेंसी) दोनों ही शब्दों को ब्रितानी ग़ुलामी का प्रतीक बताते हुए इसे त्यागने का सुझाव दिया। राज्यपाल महोदय का यह बयान मधुमक्खी के छत्ते को छेड़ने जैसा ही था। मिडिया पर उनका सम्बोधन प्रसारित और प्रकाशित होते ही बिना सोचे समझे देश के तथाकथित बुद्धिजीवियों और विभिन्न दलों के कई सेकुलर नेताओ द्वारा उनकी आलोचना शुरू हो गई। हालाँकि भाजपा के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी जी ने राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह जी द्वारा राष्ट्रगान से ‘अधिनायक’ शब्द हटाने का समर्थन करते हुए कहा कि ‘अधिनायक’ शब्द का अर्थ होता है ‘तानाशाह’ (डिक्टेटर)। इस शब्द को राष्ट्रगान से जितनी जल्दी हटाया जाए देश के लिए उतना ही अच्छा होगा।
उन्होंने कांग्रेस की आलोचना करते हुए कहा कि कहा कि छह दशकों तक सत्ता के केंद्र में रहकर भी कांग्रेस ने राष्ट्रगाण में इस शब्द की ओर ध्यान नहीं दिया यह दुर्भाग्यपूर्ण है। राष्ट्रगान से इस शब्द को पूर्ववर्ती सरकार को ही हटा देना चाहिए था। भाजपा के वरिष्ठ नेता कल्याण सिंह और सुब्रमण्यम स्वामी जी ने राष्ट्रगान से ‘अधिनायक’ शब्द हटाने का सुझाव तो बहुत अच्छा दिया है, परन्तु क्या यह संभव है? संविधान सभा के स्थायी अध्यक्ष डॉ राजेन्द्र प्रसाद के अनुसार तो यह संभव है। उन्होंने कहा था कि ‘भारत का राष्ट्र गान ‘जन गण मन’ होगा और सरकारें भविष्य में अगर परिस्थिति के अनुसार इसके शब्दों में बदलाव करना चाहेंगी, तो वे ऐसा कर सकेंगी।’ उन्होंने यह भी कहा था कि ‘भारत के स्वाधीनता संग्राम में बड़ी भूमिका निभाने वाले ‘वंदे मातरम’ को भी यही दर्जा प्राप्त होगा।’ इस सत्य से बहुत कम लोग परिचित हैं कि संविधान सभा में ‘जन गण मन’ और ‘वंदे मातरम’ दोनों में एक को राष्ट्रगान चुनने को लेकर हमेशा बहस की स्थिति बनी रही। संविधान सभा की बैठक में अधिकतर ‘वंदे मातरम’ गीत ही गाया गया था। संविधान सभा के अधिकतर सदस्य ‘वंदे मातरम’ गीत को ही राष्ट्रगान चुने जाने के पक्ष में थे, परन्तु इसे राष्ट्रगान न चुने जाने की सबसे बड़ी वजह मुस्लिमों द्वारा इसका किया जाने वाला बहिष्कार और विरोध रहा। ‘वंदे मातरम’ गीत में जन्मभूमि या भारत माता को नमन करने की बात कही गई है, जबकि इस्लाम में अल्लाह के सिवाय किसी और के सामने झुकने की इजाजत नहीं है। मुस्लिमों के विरोध की यही वजह है। हालाँकि दिलचस्प बात ये है कि मूलरूप से बांगला में लिखित ‘जन गण मन’ के चौथे छंद में भारत माता को नमन किया गया है।
घोर-तिमिर-घन-निविड़-निशीथ
पीड़ित मूर्च्छित-देशे
जागृत दिल तव अविचल मंगल
नत-नत-नयन अनिमेष
दुस्वप्ने आतंके
रक्षा करिजे अंके
स्नेहमयी तुमि माता
जन-गण-मन-दुखत्रायक जय हे
भारत-भाग्य-विधाता
जय हे, जय हे, जय हे
जय-जय-जय, जय हे।

भारत का राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ मूलतः बांग्ला-भाषा में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर जी के द्वारा १९११ में लिखा गया था। कुछ बुद्धिजीवियों के अनुसार यह भारतमाता नहीं, बल्कि जार्ज पंचम की पत्नी क्वीन मैरी के लिए लिखा गया हैै। उनके अनुसार यह गीत कांग्रेस ने १९११ मेंइंग्लैंड के किगं जॉर्ज पंचम और उनकी पत्नी क्वीन मैरी का अभिनंदन करने के लिए रविंद्रनाथ टैगोर जी से लिखवाया था। कुछ बुद्धिजीवियों का कहना है कि रवींद्रनाथ टैगोर जी का परिवार अंग्रेजों के काफी नजदीक हुआ करता था, उनके परिवार के बहुत से लोग ईस्ट इंडिया कंपनी में काम करते थे। अंग्रेजों ने उनपर दबाब डालकर यह गीत अपने राजा के स्वागत के लिए लिखवाया। बंगाल-विभाजन को लेकर अंग्रेजों के खिलाफ बंगाल के लोग उठ खड़े हुए थे। उन्हें शांत करने के लिए अंग्रेजों ने इंग्लैंड के राजा किंग जार्ज पंचम और उनकी पत्नी क्वीन मैरी को भारत आमंत्रित किया, जो जनता के गुस्से को देखते हुए उस समय की राजधानी कलकत्ता की बजाय दिल्ली में अपना दरबार लगाये और कुछ ही समय बाद अंग्रेजों के द्वारा दिल्ली को भारत की नई राजधानी घोषित कर दिया गया। कुछ कारणोंवश यह गीत जार्ज पंचम के स्वागत में १२ दिसंबर, १९११ को दिल्ली-दरबार में नहीं गाया जा सका। इस गीत का अंग्रेजी अनुवाद पढ़कर जार्ज पंचम इतना प्रसन्न हुआ कि रवीन्द्रनाथ टैगोर जी को नोबल पुरस्कार से सम्मानित करने का फैसला किया। जार्ज पंचम उस समय नोबल पुरस्कार समिति के अध्यक्ष भी थे। कहा जाता है कि गाँधीजी अग्रेजों के स्तुतिगान ‘जन-गण-मन’ से प्रसन्न नहीं थे। यही वजह थी कि रवीन्द्रनाथ टैगोर जी ने नोबल पुरस्कार इस गीत के लिए न स्वीकार कर अपनी एक अन्य रचना ‘गीतांजलि’ के लिए स्वीकार किया।
राष्ट्रगान ‘जन गण मन अधिनायक जय हो..’ में ‘अधिनायक’ शब्द किसके लिए प्रयोग किया गया है? इस सवाल के जबाब में स्वयं गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कहा था कि यह गीत उन्होंने किंग जार्ज पंचम की स्तुति में नहीं बल्कि भारत का भाग्य लिखने वाले विधाता की प्रशंसा में लिखा था। उनके अनुसार ‘अधिनायक’ और ‘भाग्यविधाता ‘ शब्द का अर्थ ‘ईश्वर’ है। उनकी दृष्टि में यह ईश्वर से आर्शीवाद प्राप्त करने वाला प्रार्थना गीत भर था। कुछ बुद्धिजीवियों के अनुसार “जन गण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता” नामक पांच छंद वाले गीत में जार्ज पंचम और उसकी पत्नी क्वीन मेरी का गुणगान है। संस्कृत और बांग्ला मिश्रित इस गीत के पहले छंद को राष्ट्रगान के लिए चुना गया, जिसका अर्थ कुछ बुद्धिजीवियों के अनुसार इस प्रकार से है- “भारत के नागरिक, भारत की जनता अपने मन से आपको भारत का भाग्य विधाता समझती है और मानती है। हे अधिनायक (शासक), तुम्हीं भारत के भाग्य विधाता हो, तुम्हारी जय हो ! जय हो ! जय हो ! तुम्हारे भारत आने से सभी प्रान्त पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा, द्रविड़, उत्कल (उड़ीसा), बंगाल आदि और जितनी भी नदियां, जैसे-यमुना और गंगा, ये सभी हर्षित हैं, खुश हैं, प्रसन्न हैं। तुम्हारा नाम लेकर ही हम जागते हैं और तुम्हारे नाम का आशीर्वाद चाहते हैं। तुम्हारी ही हम गाथा गाते हैं। हे भारत के भाग्यविधाता तुम्हारी जय हो।” इस भावार्थ के अनुसार तो राष्ट्रगान किसी विदेशी शासक की स्तुति लगता है।
कई अन्य विषयों के कारण भी राष्ट्रगान बहस का मुद्दा रहा है। कुछ बुद्धिजीवियों का विचार है कि राष्टगान में भारत के सभी क्षेत्रों का वर्णन नहीं है, बल्कि भारत के सिर्फ उन क्षेत्रों का नाम शामिल है, जो उस समय ब्रिटिश राज के अंदर थे। इसमें सिंध का जिक्र है, जो अब पाकिस्तान का एक प्रान्त है। अदालत में इसे हटाने की मांग करने पर कोर्ट की यह राय थी कि सिंध का मतलब यहां प्रांत से नहीं बल्कि भाषा और इस समुदाय के लोगों से है। राष्ट्रगान का जो भी अर्थ हो, परन्तु हम सब देशवासी इसका पूरा आदर करते हैं और दिल से इसे गाते भी हैं। भाजपा के वरिष्ठ नेता कल्याण सिंह और सुब्रमण्यम स्वामी जी ने राष्ट्रगान से ‘अधिनायक’ शब्द हटाने का जो सुझाव दिया है, उसपर विचार-विमर्श और कार्यवाही होनी ही चाहिए। डॉ राजेन्द्र प्रसाद जी के अनुसार-‘सरकारें भविष्य में अगर परिस्थिति के अनुसार राष्ट्रगान के शब्दों में बदलाव करना चाहेंगी, तो वे ऐसा कर सकेंगी।’ उन्होंने यह भी कहा था कि ‘भारत के स्वाधीनता संग्राम में बड़ी भूमिका निभाने वाले ‘वंदे मातरम’ को भी यही दर्जा प्राप्त होगा।’ इसका अर्थ तो यही है कि संसद, केंद्र और राज्य सरकारों की सहमति से बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्यायजी द्वारा संस्कृत बाँग्ला मिश्रित भाषा में रचित गीत “बन्दे मातरम्” को राष्ट्रगान का दर्जा दिया जा सकता है।
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(आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कन्द्वा, जिला- वाराणसी.पिन- २२११०६)
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