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आरक्षण: बेहद लुभावना और बहुत ही खतरनाक खिलौना है

सद्गुरुजी
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आरक्षण: बेहद लुभावना और बहुत ही खतरनाक खिलौना है

बाइस साल के एक युवक को कंधे पर बंदूक लिए देखा तो सोचा कोई नक्सली होगा, परन्तु विस्तार से खबर पढ़ने पर पता चला कि ये युवक हार्दिक पटेल है, जिसकी अगुआई में पिछले ४० दिनों से गुजरात में आंदोलन और विरोध प्रदर्शन चल रहा है। आजकल के कई युवा सरकारी सिस्टम के प्रति अपना असंतोष और आक्रोश प्रदर्शित करने के लिए बंदूक और रिवॉल्वर के साथ तस्वीरें खींचा मीडिया पर प्रसारित करते हैं, परन्तु ये गलत है। कंधे पर बंदूक रख फोटो खिंचाने और उसे मीडिया में प्रकाशित कराने का मतलब है युवाओं के बीच हिंसा को जायज ठहराने वाला गलत सन्देश भेजना और सरकार के प्रति उनके आक्रोश को हिंसा में तब्दील करना। आरक्षण जैसे एक जातिगत मुद्दे पर ही सही, परन्तु लाखों युवाओं का समर्थन हासिल कर चुके हार्दिक पटेल जैसे उभरते हुए युवा नेता को ये सब शोभा नहीं देता है। हिंसा को बढ़ावा देने वाली ऐसी तस्वीरें उन्हें न तो खिंचानी चाहिए और न ही मीडिया में प्रकाशित और प्रसारित करानी चाहिए।
मंगलवार २५ अगस्त को पाटीदार यानि पटेलों के उभरते हुए एक नए युवा नेता हार्दिक पटेल ने पटेलों के लिए आरक्षण की मांग को लेकर अहमदाबाद में एक महारैली की थी, जिसमे लगभग नौ से दस लाख पटेल समुदाय के लोग एकत्रित हुए थे। इस रैली के लिए उन्हें शाम तक की अनुमति मिली थी, लेकिन जब वो लोग निर्धारित समयावधि के बाद भी रैली स्थल से नहीं हटे तो पुलिस ने लाठीचार्ज कर उन्हें वहां से खदेड़ना शुरू कर दिया और हार्दिक पटेल को हिरासत में ले लिया, हालाँकि उन्हें हिरासत में लेने के कुछ ही देर बाद छोड़ दिया गया। हार्दिक पटेल को हिरासत में लेने से नाराज़ होकर बहुत से आंदोलनकारियों ने गुजरात के कई इलाकों में तोड़फोड़ की और गाड़ियों में आग लगा दी। कुछ उपद्रवी आंदोलनकारियों ने गृहमंत्री रजनी पटेल के घर पर पथराव किया और उनके घर को आग लगाने की कोशिश भी की। लगातार बढ़ती हिंसा के कारण ही सूरत, मेहसाणा, अहमदाबाद और दूसरे कई इलाकों में कर्फ़्यू लगा दिया गया। एक तरफ सरकार ने जहाँ बुधवार को सभी स्कूल कालेज बंद करने की घोषणा की तो वहीँ दूसरी तरफ अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठे हार्दिक पटेल ने बुधवार को गुजरात बंद का आह्वान किया है। इस युवा नेता की जिद अब हिंसक रूप अख्तियार करती चली जा रही है। आंदोलनकारियों के पथराव से घायल कई पुलिस कर्मी अस्पताल में भर्ती हैं। राज्य सरकार को केंद्र से अतिरिक्त सुरक्षा बल मंगाना पड़ा है।
लोगों के बीच अफवाह फैलने से रोकने के लिए मोबाईल और इंटरनेट सेवाएं कुछ जगहों पर बाधित करनी पड़ी है, क्योंकि पटेल आरक्षण को लेकर अफवाह फैलाने वाले मैसेज भेजे जा रहे थे। व्यवसाय को सबसे बड़ी पूजा समझने वाले गुजरात के व्यापारी तथा शांतिप्रिय और खुशहाल आमजनता इस आंदोलन से काफी परेशान हो चुकी है। गुजरात ही नहीं पूरे देशभर के लोग यही सोच रहे हैं कि क्या ये आंदोलन जायज है? इस आंदोलन के सही या गलत होने पर विचार करने से पहले इस बात पर विचार करें कि आंदालकरियों की मांग क्या है? ‘पाटीदार अनामत आंदोलन समिति’ के नाम से एक जाति विशेष का सामाजिक मंच बनाकर हार्दिक पटेल ने जुलाई में पाटीदार अनामत यानि पटेलों को आरक्षण दिलाने के लिए एक आंदोलन की नींव डाली। थोड़े ही दिनों में लाखों लोग उनके साथ हो लिए। गुजरात में पटेल समुदाय काफी हरा-भरा यानि सम्पन्न माना जाता है। गुजरात की कुल आबादी का लगभग बीस प्रतिशत हिस्सा पटेल समुदाय का है। खेत-खलिहान से लेकर सत्ता के गलियारे तक उनकी तूती बोलती है। राजनितिक क्षेत्र में उनके वर्चस्व का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि गुजरात सरकार में मुख्यमंत्री सहित सात मंत्री पटेल हैं। पांच एमपी पटेल समुदाय से हैं। हार्दिक पटेल के अनुसार देश भर में १७० सांसद पाटीदार यानि पटेल हैं। इस सम्पन्न समुदाय को बिहार में कुर्मी, गुजरात में पटेल या पाटिदार और महाराष्ट्र में पाटिल कहते हैं।
हार्दिक पटेल का कहना है कि खेती संकट के दौर से गुजर रही है, पटेल समुदाय के छात्रों को ९० फीसदी नंबर पाने पर भी एमबीबीएस में दाखिला नहीं मिलता है और युवाओं को नौकरियां नहीं मिल रही हैं, इसलिए एडमिशन और नौकरी में आरक्षण चाहिए। हार्दिक पटेल की बात पटेलों की दृष्टि में जरूर सही होगी, तभी तो लाखों पटेल आरक्षण की मांग को लेकर उसके साथ कंधे से कंधा मिलाते हुए सड़कों पर उतर आएं हैं। इनकी मांग भले ही जायज हों, परन्तु इन्हे असलियत से भी वाकिफ होना चाहिए। वर्षों पहले पटेल नेताओं ने ओबीसी आरक्षण व्यवस्था का विरोध किया था अब उनके नेता ओबीसी दर्जा मांग रहे हैं। देश की कई जातियां पिछले कई वर्षों से आरक्षण की मांग कर रही हैं अब उसमे ये लोग भी शामिल हो गए हैं, परन्तु इस सच्चाई से अनभिज्ञ हैं कि सुप्रीम कोर्ट जाट आरक्षण के फैसले को रद्द कर चुकी है और यदि पटेल समुदाय को आरक्षण दिया जाता है तो उसे भी रद्द कर सकती है, क्योंकि जाटों से कहीं ज्यादा सम्पन्न पटेल समुदाय है। गुजरात में कई अन्य समुदायों द्वारा पटेलों की आरक्षण संबंधी मांग का कड़ा विरोध किया जा रहा है। अहमदाबाद में ओबीसी समुदाय के ठाकोर, चौधरी, रबारी और अन्य समाज ने मिलकर महाधरना का कार्यक्रम आयोजित किया और सरकार को धमकी दी कि अगर पटेलों की मांगों के सामने सरकार ने घुटने टेके तो इस सरकार को उखाड़ फेंका जाएगा। आरक्षण इस देश में वोट बटोरने और अपनी राजनीति चमकाने का एक खेल बन चुका है। आरक्षण में आरक्षण की मांग हो रही है।
अब सम्पन्न जाति के लोग भी अपनी जाति विशेष को आरक्षण दिलाने के लिए लड़ रहे हैं। आरक्षण अब देशहित को दरकिनार कर मात्र अपनी जाति विशेष को खुशहाल करने का सपना दिखाने, उसे भरमाने और अपनी जाति विशेष की राजनीति करने वालों के हाथों का एक बेहद लुभावना और खतरनाक खिलौना बन चुका है। देश के लिए विकट समस्या और सिरदर्द बनती जा रही आरक्षण व्यवस्था का आधार अब जाति की बजाय व्यक्ति की ख़राब आर्थिक स्थति कर देनी चाहिए, जो ज्यादा न्यायसंगत और सबके स्वीकार्य करने योग्य है। जहाँ तक हार्दिक पटेल की बात है तो हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि हार्दिक पटेल गुजरात के कड़ी तालुका के भाजपा कार्यकर्ता भरतभाई पटेल के बेटे हैं। हो सकता है कि भाजपा का एक बड़ा नेता बनने का चक्कर हो। हार्दिक पटेल के आप पार्टी से भी राजनीतिक रिश्ते बताये जाते हैं। हो सकता है कि वो अरविन्द केजरीवाल के नक्शे कदम पर चलते हुए एक बड़ा जन आंदोलन खड़ा कर भविष्य में गुजरात की सत्ता हासिल करने का स्वपन देख रहे हों। उनका उद्देश्य चाहे जो भी हो और ऐसे आंदोलनों का हश्र भी चाहे जो हो, परन्तु सच तो यही है कि ऐसे आंदोलनों से आम जनता से लेकर पुलिस और सरकार तक सबको ही भारी परेशानी उठानी पड़ती है।
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(आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कन्द्वा, जिला- वाराणसी. पिन- २२११०६)
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