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औरंगज़ेब रोड और धर्मनिरपेक्ष औरंगज़ेब- सामयिक समीक्षा

सद्गुरुजी
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औरंगज़ेब रोड और धर्मनिरपेक्ष औरंगज़ेब- जागरण जंक्शन मंच
‘मुबारक हो, एनडीएमसी ने औरंगज़ेब रोड का नाम बदलकर एपीजे अब्दुल कलाम रोड करने का फैसला किया है।’ ये मुबारकबाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जी ने २८ अगस्त को ट्वीट करके देश की जनता को दी थी। उनके उस ट्वीट का जबाब तुरंत ऑल इंडिया मजलिस-ए इत्तेहादुल मुसलमीन के नेता और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी जी ने ट्वीट कर दिया,’आप औरंगजेब के बारे में सही तथ्य पढ़ें।’ अपने एक अन्य ट्वीट में ओवैसी जी ने सवाल उठाया, ‘बीजेपी नेताओं ने इसका प्रस्ताव किया और दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार ने इसे इंप्लिमेंट किया। ये दोनों क्या संदेश दे रहे हैं?’ भाजपा और आप ने उन्हें क्या जबाब दिया, मुझे नहीं पता, परन्तु देश की जनता इस फैसले से बेहद खुश है। पिछले कई दिनों से ये विषय मीडिया पर चर्चा का विषय बना हुआ है।
कई मुस्लिम संगठनों के प्रमुखों, देश के अनेक सेकुलर नेताओं और बहुत से बुद्धिजीवियों ने नई दिल्ली नगरपालिका परिषद (एनडीएमसी) के औरंगजेब रोड का नाम बदलकर पूर्व राष्ट्रपति दिवंगत एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर रखने के फैसले का कड़ा विरोध किया है। वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष और ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य सैयद कासिम रसूल इलियास ने कहा, ‘यह सोचा-समझा प्रयास है। यह यहीं नहीं रूकने वाला है। इससे इतिहास के साथ छेड़छाड़ करके शहरों और सड़कों के नाम बदलने का चलन चल सकता है। उनके पास शहरों और सड़कों की लंबी सूची है जो ऐतिहासिक हस्तियों या मुस्लिम शासकों के नाम पर हैं। वे इनको बदलना चाहते हैं।’ उनका संदेह गलत भी नहीं है। अब्दुल कलाम जी के नाम से सड़क का नाम बदलने के तत्काल बाद शिवसेना ने कहा है कि वह महाराष्ट्र में औरंगाबाद जिले का नाम बदलेगी जहां मुगल शासक औरंगबजेब की कब्र है। इस मुद्दे पर भाजपा भी उससे सहमत है। दिल्ली में औरंगजेब रोड का नाम बदलने पर राजनीति तो जारी है ही ये विवाद कोर्ट तक भी पहुँच गया है। एक याचिकाकर्ता ने अदालत से आग्रह किया है कि वह नई दिल्ली नगर पालिका परिषद (एनडीएमसी) पर नाम बदलने संबंधी अधिसूचना जारी करने पर रोक लगा दें। उनका आरोप है कि सांप्रदायिक राजनीति व इतिहास की जानकारी की कमी के चलते कुछ लोग यह नाम बदल रहें हैं।
देश के कई बुद्धिजीवियों का विचार है कि रोड का नाम बदला जाना दूसरे देशों के समक्ष भारत की धर्मनिरपेक्ष छवि को नुकसान पहुंचाएगा। अौरंगजेब की धर्मनिरपेक्षता पर विचार करने से पहले ये बताना चाहूंगा कि दिल्ली की अहम जगहों और रोड़ों के पुराने नाम में परिवर्तन करना कोई नई बात नहीं है। आजादी के बाद से लेकर अबतक अनेक जगहों और रोड़ों के पुराने नाम बदले गए हैं। इनमे से अधिकतर नाम अंग्रेजों से जुड़े हुए थे और गुलामी के प्रतीक चिन्ह थे, जैसे- विक्टोरिया रोड- राजेंद्र प्रसाद रोड, हेस्टिंग्स रोड- कृष्ण मेनन मार्ग, इरविन रोड- बाबा खड़ग सिंह मार्ग, वेजले रोड- जाकिर हुसैन मार्ग, सकरुलर रोड- जवाहर लाल नेहरू मार्ग, कर्जन रोड- कस्तूरबा गांधी मार्ग, अलबुर्कर रोड- तीस जनवरी मार्ग, साउथ एंड रोड- राजेश पायलट मार्ग और ओल्ड मिल्स रोड- रफी मार्ग में तब्दील हो गई। एडर्वड पार्क को सुभाष पार्क और हार्डिग ब्रिज को तिलक ब्रिज का नाम दिया गया। आजादी के बाद सबसे ज्यादा समय तक दिल्ली पर राज करने वाली कांग्रेस ने नेहरू-गांधी परिवार के सदस्यों के नाम पर कई स्लम बस्तियों और अस्पतालों के नाम रखे।
दिल्ली की कई रोड़ों के नाम बदले जाने का विवरण मैंने सिर्फ इसलिए दिया है कि जब अंग्रेजों के नाम वाली रोड़ों के नाम बदले जा सकते हैं तो मुगल शासकों के क्यों नहीं? आखिर वो भी तो हमारे देश पर ३५० साल तक कब्जा जमाने वाले विदेशी आक्रमणकारी ही थे, फिर उनसे प्रेम क्यों? कई रोड पर उनके नाम की लगी शिलापट्टियां भी अब क्यों न उखाड़ फेंकी जाएँ? हिन्दुओं की अौरंगजेब के प्रति नफरत और मुस्लिमों का उनके प्रति प्रेम जग जाहिर है। मुस्लिम ये मानते हैं कि मुगल शासक औरंगबजेब ‘हिंदू विरोधी’ नहीं थे, बल्कि वह एक ‘धर्मनिरपेक्ष’ व्यक्ति थे। आइये अब इसी बात पर विचार हो जाये कि अौरंगजेब कितने ‘धर्मनिरपेक्ष’ थे? अौरंगजेब की धर्मनिरपेक्षता देखिये कि उसने इस्लाम धर्म को अपने शासन का आधार बनाया। उसने हिन्दुओं के तीर्थ पर टैक्स लगाया और हिन्दू त्योहारों पर प्रतिबंध तक लगा दिया। मुस्लिम भाई उसकी बड़ाई करते है कि औरंगजेब पवित्र जीवन व्यतीत करने वाला शासक था। राजाओं के तमाम दुर्गुणों से मुक्त वह साधू के जैसा जीवन जीता था।
खाने-पीने, वेश-भूषा और जीवन की अन्य सभी-सुविधाओं में वह संयम बरतते हुए काम से काम खर्च करता था। सबसे बड़ी बात ये कि वह अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए क़ुरान की नकल करके और टोपियाँ सीकर पैसा कमाता था। यहाँ पर ओरंगजेब की पैरवी करने वालों से एक बात पूछनी चाहिए कि वो हिन्दुस्तान का धर्मनिरपेक्ष शासक होकर भी सिर्फ कुरान की ही क्यों नक़ल करते थे, वो गीता या अन्य धर्मग्रंथों की भी तो नक़ल कर सकते थे? आप इस बात को भी अगर दरकिनार कर अौरंगजेब के सबसे बड़े सपने पर गौर करें। औरंगज़ेब का एक ही सबसे बड़ा सपना था, ‘दारुल हर्ब’ (क़ाफिरों का देश भारत) को ‘दारुल इस्लाम’ (इस्लाम का देश) में परिवर्तित करना। ये एक कड़वी सच्चाई है कि उसके इसी मजहबी जूनून की वजह से आज भी देश के अधिकतर मुस्लिम उससे सहानुभूति रखते हैं और उसे अपना आदर्श मानते हैं। अपने इसी सबसे बड़े लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अौरंगजेब ने अनेकों मंदिर नष्ट किये और लाखों हिन्दुओं को जबरन मुसलमान बनाया। तोड़े गये मंदिरों की जगह पर मस्जिद और सराय बनाई गईं तथा मकतब और कसाईखाने कायम किये गये। हिन्दुओं के दिल को दुखाने के लिए गो−वध करने की खुली छूट दे दी गई।
यही नहीं उसने हिन्दुओं पर जज़िया कर लगाया और उनके तीर्थस्थान ब्रज में आने वाले तीर्थ−यात्रियों पर भारी कर लगाया। कहा जाता है कि जब तक औरंगजेब रोज ढाई मन जनेऊ न जला लेता था, तब तक उसे नींद नहीं आती थी। इसका अर्थ यह हुआ कि उसके शासनकाल में रोज ही न जाने कितने हिन्दुओं को मारा और धर्म परिवर्तन करने के लिए सताया जाता था। रोज ही न जाने कितनी हिन्दू ओरतों का शारीरिक मान मर्दन होता था और न जाने कितने मन्दिरों तथा देवी-देवताओं की प्रतिमाओं का विध्वंस किया जाता था। इसके बारे में बहुत कुछ इतिहास में दर्ज है। यही वजह थी कि आतताई औरंगजेब को मारने के लिए सन्यासी प्राणनाथ महाप्रभु जी और उनके शिष्य बुन्देला वीर छत्रसाल को योजना बनानी पड़ी। उनकी योजनानुसार युद्ध के मैदान में एक ख़ास प्रकार के जहर से युक्त खंजर से ओरंगजेब पर वार किया गया। धीरे धीरे उस जहर का असर आतताई औरंगजेब पर हुआ और वो तीन महीने में तडप-तडप कर मरा। इस तरह से उसका तथा उसके पापों का का अंत हुआ।
औरंगशाही में औरंगजेब ने स्वयं लिखा है कि ”मुझे प्राण नाथ महाप्रभु और छत्रसाल ने धोखे और छल से मारा है।” अौरंगजेब ने अपने जीवन में खुद भी तो यही सब किया था। उसने सत्ता हासिल करने के लिए धोखे से अपने पिता शाहजहां को कैद करके रखा। अपने बड़े भाइयों दारा शिकोह और शाह सुजा को सत्ता पाने की खातिर छल से मरवा दिया था। अौरंगजेब की इस धर्मनिरपेक्षता पर सेकुलर बुद्धिजीवी क्या वाह वाही करेंगे कि उसने कश्मीरी ब्राह्मणों पर क्रूर अत्याचार करके उन्हें इस्लाम कबूल करने पर मजबूर किया। कश्मीरी पंडितों के एक दल ने सिखों के नवम गुरु तेग बहादुर जी से सहायता की याचना की। कश्मीरी पंडितों के आग्रह पर उनके ‘तिलक’ और ‘जनेऊ’ की रक्षा के लिए गुरु तेग बहादुर जी औरंगजेब से मिलने दिल्ली रवाना हो गए। वहां पर तथाकथित धर्मनिरपेक्ष अौरंगजेब ने गुरु जी के सामने तीन शर्ते रखीं- इस्लाम कबूल करें, करामात दिखाएं या फिर शहादत दें। गुरु जी ने अौरंगजेब को समझाया- ‘मैं धर्म परिवर्तन के विरुद्ध हूं और चमत्कार दिखाना ईश्वर की इच्छा की अवहेलना है।’ इतना सुनते ही अौरंगजेब आगबबूला हो गया।
उसने पहले गुरु जी के साथ आए तीन सिखों- भाई मती दास, भाई सती दास और भाई दयाला को भारी यातनाएं देकर मरवा दिया, फिर आठ दिनों तक गुरु जी पर अनेक तरह से क्रूर अत्याचार करने के बाद २४ नवंबर १६७५ ई. को गुरु जी को दिल्ली के चांदनी चौक में शीश काटकर शहीद कर दिया। बाद में उसी जगह पर गुरुद्वारा ‘शीश गंज’ बना। भाई लखीशाह जी गुरु जी के शरीर को अपने घर ले गए और उस घर को आग लगाकर दाह संस्कार संपन्न किये। उसी पवित्र स्थान पर आगे चलकर गुरुद्वारा ‘रकाब गंज’ निर्मित हुआ। अौरंगजेब को खुश करने के लिए सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी के दोनों छोटे पुत्रों, ७ वर्ष के जोरावर सिंह जी और ५ वर्ष के फतेह सिंह जी को इस्लाम धर्म नहीं स्वीकार करने पर सरहंद के नवाब वजीर खाँ ने जिंदा ही दीवारों में चिनवा दिया था। औरंगजेब की क्रूरता का एक और प्रसंग देखिये। छत्रपति शिवाजी महाराज के सुपुत्र छत्रपति संभाजी महाराज और उनके मित्र कविकलश को गिरफ्तार करने के बाद औरंगजेब ने उन्हें मुसलमान बनाने की बहुत कोशिशें की। उनके धर्म परिवर्तन से इनकार करने पर औरंगजेब ने दोनों की जुबान कटवा दी, आँखें निकलवा दीं और अंत में दोनों के शरीर के टुकडे टुडे करवा दिए। यही नहीं अौरंगजेब ने तो हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रतीक बन चुके सूफी संत हज़रत सरमद का सन १६६१ में बेहद खौफनाक ढंग से क़त्ल करवा दिया था।
अौरंगजेब को किसी भी दृष्टि से धर्मनिरपेक्ष और एक अच्छा शासक नहीं कहा जा सकता है। वो बेहद क्रूर और मजहबी जूनून में अँधा हो चुका शासक था। उसके पूर्वजों में जो थोड़ी बहुत दिखावटी उदारता थी, वो भी उसमे नहीं थी। मरते समय उसने अपनी वसीयत में इस बात को स्वीकार किया कि उसने जीवन भर मानवता के खिलाफ काम करके बहुत बड़ा पाप किया है। उसने अपनी वसीयत में लिखा है, ‘बुराइयों में डूबा हुआ मैं गुनहगार, वली हज़रत हसन की दरगाह पर एक चादर चढ़ाना चाहता हूँ, क्यूंकि जो व्यक्ति पाप की नदी में डूब गया है, उसे रहम और क्षमा के भंडार के पास जाकर भीख माँगने के सिवाय और क्या सहारा है।’ उसने आगे लिखा है, ‘नेक राह को छोड़कर गुमराह हो जाने वाले लोगों को आगाह करने के लिये मुझे खुली जगह पर दफ़नाना और मेरा सर खुला रहने देना, क्यूंकि उस महान शहन्शाह परवरदिगार परमात्मा के दरबार में जब कोई पापी नंगे सिर जाता है, तो उसे ज़रूर दया आ जाती होगी।’ अंत में उसने स्वयं को पापी माना और ये भी स्वीकार किया कि मजहबी जूनून में अँधा होकर वो जीवन भर नेक राह छोड़कर गुमराह होता रहा।
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(आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कन्द्वा, जिला- वाराणसी. पिन- २२११०६)
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