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श्रीकृष्ण के सामयिक और सार्वभौमिक संदेश- जन्माष्टमी पर

सद्गुरुजी
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श्रीकृष्ण के सामयिक और सार्वभौमिक संदेश- जन्माष्टमी पर

एक ईश्वर में विश्वास करने वाले बहुत से हिन्दू और अन्य धर्मों के लोग हिन्दू धर्म के अवतारों और बहुदेववाद की कड़ी आलोचना करते हैं। मुझे लगता है कि इसका मूल कारण अज्ञानता है। क्या इतनी बड़ी सृष्टि में एक ईश्वर के सिवा और कुछ नहीं है? सृष्टि में सर्वव्यापी प्रकृति, तरह तरह की शक्तियां, संसार के अरबों मनुष्य और अनगिनत प्राणी ये सब क्या हैं? इनके अस्तित्व को आप कैसे नकार सकते हैं? इन सब सवालों के सही जबाब केवल हिन्दू दर्शन में मिलते हैं, इसलिए मैं हिन्दू दर्शन को पूर्ण मानता हूँ।

एकत्व में अनेकत्व और अनेकत्व में एकत्व हिन्दू दर्शन की सबसे बड़ी खोज और यथार्थवादी दार्शनिक उपलब्धि है। हम मानते हैं कि ईश्वर निराकार और निर्विशेष है, परन्तु हम इस सच्चाई को भी मानते हैं कि सर्वव्यापी निराकार और निर्विकार ईश्वर ही प्रकृति, अवतार और हम सबके रूप में साकार हुआ है। सर्वत्र व्याप्त निर्गुण और निराकार परमात्मा कभी कृष्ण, कभी राम तो कभी कोई अन्य रूप धारण कर समय समय पर इस धरती पर अवतरित होता है, जिसे हम परमात्मा का विशेष अवतार मानते हैं।

ये विशेष अवतार भक्तों के मन को न सिर्फ आध्यात्मिक रूप से आनंदित करते हैं, बल्कि सांसारिक रूप से लोककल्याण हेतु आंदोलित भी करते हैं। इस पोस्ट में एक ऐसे अवतार की चर्चा कर रहा हूँ, जिन्हे पूर्ण अवतार कहा जाता है। वो हैं भगवान श्रीकृष्ण। शन‌िवार ५ स‌ितंबर को पूरी दुनिया में भगवान श्री कृष्‍ण का जन्मोत्सव जन्माष्टमी मनाया जाएगा। कहते हैं कि वो कारागार में पैदा हुए थे, परन्तु उनके दिव्य जीवन की सबसे बड़ी विशेषता देखिये कि पूरे संसार को सांसारिक कारागार से मुक्त होने का गीता रूपी मंत्र दे गए। मृत्यु रूपी मामा कंस उनके पीछे पड़ा था, परन्तु उससे वो कभी भयभीत नहीं हुए, वो उसपर न सिर्फ विजय पाये, बल्कि हम सबके पीछे हर क्षण पड़ी मृत्यु और आवागमन रूपी बंधन से मुक्त होने का उपाय भी बता गए।

श्रीकृष्ण को भगवान का पूर्ण अवतार क्यों कहा जाता है? जो इस सवाल का सही जबाब पा गया, वो श्रीकृष्ण को भी समझ लिया। श्रीकृष्ण हमेशा साक्षी भाव में रहे, ईश्वरत्व में लीन रहे, इसलिए उनके होंठों पर हमेशा मुस्कुराहट खिली रही और फुर्सत के क्षणों में उनके होंठों पर मनुष्य ही नहीं बल्कि समस्त प्राणियों के तन, मन और आत्मा को मंत्रमुग्ध और आनंदित कर देने वाली बांसुरी बजती रही। श्रीकृष्ण पूर्ण पुरुष और सबसे ज्यादा अनुकरणीय व् व्यावहारिक अवतार इसलिए हैं, क्योंकि वो भयभीत होकर, अन्याय सहकर, रो धोकर, घर-द्वार छोड़कर और सबकुछ त्यागकर नीरस और कायरतापूर्ण जीवन जीने की सलाह नहीं देते हैं।

वो प्रेम के विरोधी भी नहीं, बल्कि वो तो सबसे प्रेम करने का सन्देश देते हैं। श्रीकृष्ण हँसते मुस्कुराते हुए मृत्यु से बेखौफ होकर और निष्काम कर्मयोगी बनकर जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। वो अपने बाल्य रूप में बच्चों को अपने संगी साथियों के संग विभिन्न तरह के खेल खेलने को प्रेरित करते हैं, वही दूसरी तरफ बाल्य रूप में ही भक्तों के संग महारास रचाते हैं, जिसके अंतर्गत भक्त कभी कृष्ण हो जाता है तो कृष्ण कभी भक्त। सरल शब्दों महारास का अर्थ है जीव ब्रह्म से और ब्रह्म जीव से एकाकार होने का अनिवर्चनीय आनंद प्राप्त करे। यही आध्यात्मिक रहस्य की बात जब दिमाग के पल्ले नहीं पड़ती है तो बहुत से हिन्दू और अन्य धर्मावलम्बी अर्थ का अनर्थ लगाते हैं।

श्रीकृष्ण एक योग्य राजा और कुशल गृहस्थ भी थे। कहा जाता है कि उनकी अनेक रानियाँ थीं। ये संभव है, क्योंकि उस समय कई पत्नियां रखने का रिवाज था। राजा हो जाने पर भी श्रीकृष्ण अपने बचपन के गरीब मित्र सुदामा को नहीं भूलते हैं और पास आने पर हर प्रकार से उनकी मदद करते हैं। ये भी संसार को उनके द्वारा दिया गया एक अच्छा सन्देश है। श्रीकृष्ण एक सद्गुरु भी हैं, जो अर्जुन को महाभारत का युद्ध लड़ने के लिए प्रेरित करते हैं। श्रीकृष्ण के इस संदेश को और महाभारत का युद्ध होने देने को अज्ञानतावश गलत रूप में लिया जाता है। वस्तुतः श्रीकृष्ण इस सन्देश के जरिये यह समझाना चाहते हैं कि जीवन में जितना महत्व अहिंसा का है, उतना ही महत्व हिंसा का भी है।

दुनिया के सभी देश अपने को अहिंसा का पुजारी बताते हैं। कोई उनसे पूछे कि फिर तरह तरह की सेना और एक से बढ़कर एक ख़तरनाक हथियार क्यों अपने पास रखे हुए हो? उनके पास इस बात का कोई जबाब नहीं है, क्योंकि सबने अहिंसा के गुणगान के साथ साथ किसी देश से युद्ध होने की स्थिति में या फिर बढ़ते हुए आतंकवाद से लड़ने की पूरी तैयारी भी कर रखी है। हिंसा और अहिंसा दोनों का ही महत्व संसार में हमेशा रहा है और हमेशा रहेगा। कोई भी व्यक्ति चाहे वो अहिंसा का कितना भी बड़ा पुजारी क्यों हो, वो हर रोज जाने-अनजाने कुछ न कुछ हिंसा भी जरूर करता है।

श्रीकृष्ण भी हमें यही समझाना चाहते हैं। यदि इस बात को हम समझे होते तो एक हजार वर्ष तक विधर्मी और विदेशी हमलावरों के गुलाम नहीं रहे होते। आज के समय में भारत पाक सीमा पर बेलगाम और हिंसक हो चुके पाकिस्तानी सैनिकों और उसके द्वारा भेजे जा रहे आतंकवादियों से लगभग रोज ही अघोषित छदम युद्ध और मुठभेड़ हो रही है। हम लोग अहिंसा के पुजारी हैं तो क्या हुआ, अपनी आत्मरक्षा के लिए क्या हम लोग उन्हें करारा जबाब न दें? उनके साथ तो हमें युद्ध लड़ने के लिए और उन्ही की हिंसक भाषा में जबाब देने के हमेशा सतर्क और तैयार रहना होगा। ये एक कड़वी सच्चाई है, जिसे हम सबको स्वीकार करना चाहिए।

श्रीकृष्ण के कुछ सन्देश और हैं जो हमारे जीवन में बहुत काम आने वाले हैं। भगवान कहते हैं कि जीवन में कर्म करते जाओं, परन्तु फल से जुड़ाव मत रखो। ये जिद मन में मत पालो कि मुझे ऐसा ही फल मिले। भगवान ऐसा सन्देश क्यों दिए हैं, इसलिए क्योंकि हमारे कर्मों के फल को प्रभावित करने वाली बहुत सी दृश्य अदृश्य शक्तियां हैं, जिनपर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है। भगवान का एक और सन्देश है कि मेरा अवतार दुष्टों का विनाश करने और साधुओं को बचाने के लिए होता है। दुष्ट समझाने से माने तो ठीक नहीं तो उनका समूल नाश अवतारी पुरुष के हाथों हो जाता है। साधू भगवान में लीन है तो उसे सुरक्षा की कोई जरुरत ही नहीं, परन्तु यदि भ्रष्ट है तो उसे अवतारी पुरुष की सख्त जरुरत है, ताकि उसकी आत्मा अधोगति करते हुए मनुष्य योनि भी न खो दे।

अपने दुष्ट और अन्यायी परिजनों का वध करने वाले और भक्तों को परमानंद देने वाले जगतगुरु भगवान श्रीकृष्ण के इन्ही सामयिक और सार्वभौमिक संदेशों के साथ अपनी लेखनी को विराम दे रहा हूँ। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व की आप सभी को बहुत बहुत बधाई। इस पर्व पर धनिया के बीजों के चूर्ण, मखाने, चिरौंजी और सूखे मेवों से निर्मित मीठी और सुस्वादु धनिया पंजीरी या धनिया बर्फी लोग भगवान को चढ़ाते हैं और उसे प्रसाद स्वरुप खाते हैं। ये एक तरह की आयुर्वेदिक औषधि भी है, जो बारिश में जल के दूषित होने से शरीर में बढ़े कफ एवं वात के दोषों यानि विषैले तत्वों का नाश करती है।

वसुदेव-सुतं देवं कंस-चाणूर-मर्दनम् |
देवकी-परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ||

(आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कन्द्वा, जिला- वाराणसी. पिन- २२११०६)

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