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पर्यूषण त्यौहार के दौरान मीट पर बैन उचित है- जागरण मंच

सद्गुरुजी
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पर्यूषण त्यौहार के दौरान मीट पर बैन उचित है- जागरण मंच
जैन समुदाय के पर्यूषण पर्व के दौरान मुंबई में मीट पर बैन लगाए जाने से उठे विवाद को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को सुनवाई करते हुए मीट की बिक्री पर लगी रोक को हटा दिया है। लेकिन कोर्ट ने इसके साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया है कि १७ सितंबर को जानवरों को काटे जाने पर बैन जारी रहेगा। मीट विक्रेता बाहर से मीट लाकर बेच सकते हैं। जैन समाज के त्योहार के दौरान मीट की बिक्री पर रोक लगना कोई नई बात नहीं है। पिछले कई सालों से ये पाबंदी जारी है। इस साल ये प्रतिबंध दो दिनों के बजाय चार से आठ दिनों के लिए लगाया गया था, इसलिए इसका भारी विरोध हो रहा था। कई दिनों की पाबंदी के ख़िलाफ़ आमजनता, शिवसेना, मनसे और कांग्रेस सहित कई अन्य राजनीतिक दलों के भारी विरोध को देखते हुए चार दिन की पाबंदी को घटाकर केवल एक दिन १७ सितंबर के लिए कर दिया गया था, परन्तु फिर भी विरोध के स्वर सुनाई दे रहे थे। इस विवाद की शुरुआत ४ सितंबर को उस दिन हुई थी, जब बीजेपी के पार्षदों के नेतृत्व में नगर निगम ने पर्यूषण पर्व के दौरान एक हफ़्ते के लिए मीट की बिक्री पर बैन लगाने का एक प्रस्ताव पारित किया था। इसके कुछ ही दिनों के बाद मुंबई और नवी मुंबई की महानगर पालिकाओं के द्वारा भी इसी तरह के प्रतिबंध लगाए गए।
इसका असर महाराष्ट्र से बाहर भाजपा शासित अन्य राज्यों में भी दिखा। राजस्थान और गुजरात में भी जैन पर्व के दौरान मीट पर बैन लगाने के प्रस्ताव पास किए गए। इसने आग में घी डालने का काम किया। मांस बेचने व खाने वाले और भाजपा से नाक भौ सिकोड़ने वाले विरोधी दल सभी एकजुट होकर एक स्वर में चिल्लाने लगे, ‘ये तो समाज का भगवाकरण हो रहा है और लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है।’ वे ये भूल गए कि देश की आधे से भी ज्यादा हिन्दू आबादी माँसाहारी है, तो फिर भगवाकरण की बात इसमें कहाँ से आ गई? रही बात मौलिक अधिकारों के हनन की तो वो बात भी निराधार है, क्योंकि सन २००८ में अपने एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा था कि मांस बिक्री पर कुछ दिनों की रोक से मौलिक अधिकारों का हनन नहीं होता है। बहु-विविधता वाले हमारे देश में किसी समुदाय विशेष की भावनाओं का ख़याल रखते हुए मांस की बिक्री पर कुछ दिनों के लिए लगे प्रतिबंध पर लोगों को न तो बुरा मानना चाहिए और न ही क्रोधित होना चाहिए। कानून और अधिकार की बात करने वाले लोग यह भूल गए हैं कि सुप्रीम कोर्ट आज से सात साल पहले ही जैन समुदाय के पर्यूषण पर्व के दौरान गुजरात में नौ दिन के लिए मांस की बिक्री पर लगी पाबंदी को जायज ठहरा चुकी है।
मेरे विचार से सिर्फ कुछ दिन के लिए मीट बैन का विरोध करने वाले लोगों को अपने अंतर्मन में झांकना चाहिए और अपने मन की अदालत में हाजिर होकर सिर्फ इतना भर सोचना चाहिए कि इस बहुधर्मी और विविधता से भरे हुए देश में वर्षों रहकर भी क्या हम इतने असहिष्णु हो चुके हैं कि महज कुछ दिन के लिए भी हम मांस बेचने या खाने से अपने को रोक नहीं सकते हैं? जबकि हम सबको मालूम है कि हिंदुओं में जो महत्व नवरात्रि का, मुस्लिमों में रमजान का, सिखों में गुरु पर्व का और बौद्धों में बुद्ध पुर्णिमा का है, ठीक वही महत्व जैनों में पर्युषण पर्व का है। पर्युषण पर्व उनके सभी पर्वों में सिरमौर है। जैनियों की आस्था का केन्द्र आत्मशुद्धि और विश्व शांति है। तपस्या की अग्नि में वो खुद को तपाकर अपने मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करने के साथ साथ आदर्श और शांति से परिपूर्ण विश्व का निर्माण करने की प्रक्रिया में भी जुटे हुए हैं। पर्युषण पर्व के मौके पर वो लोग उपवास रखकर, अपनी आत्मा में स्थिरवास करके, कुछ दिनों के लिए अपनी आत्मा में लीन होके, बैर भाव मिटाने के लिए सभी 84 लाख जीव योनी से क्षमा याचना करके और जगत में परमार्थ करने के नए शुभ संकल्प के साथ हमारे बीच आना और रहना चाहते हैं। हमें तो जैन समाज के त्याग, तपस्चर्या और शुभ संकल्प का प्रन्नचित होकर आदर और स्वागत करना चाहिए।
भोग करने और पैसे कमाने की हवस ने आज के आदमी को अंधा कर दिया है। मेरे विचार से पर्युषण पर्व आदमी को सबसे बड़ी शिक्षा यही देता है कि जीवन में खाना-पीना और पैसा कमाना जीवन का एक रूटीन या अहम हिस्सा हो सकता है, परन्तु यह जीवन की पूर्णता कदापि नहीं हो सकती है और जीवन को पूर्णता संतों के सानिध्य से ही मिलती है, चाहे वो किसी भी धर्म के पूर्ण संत हों। मीट बैन वाले मामले में एक बात बता दूँ कि मछली, अंडे और डिब्बाबंद मांस बेचने पर प्रतिबंध नहीं है, फिर भी मांसाहारियों के जिह्वा की लोलुपता देखिये कि उन्हें इतने से भी संतोष नहीं है। मेरे जो हिन्दू भाई हिन्दू धर्म और शास्त्रों में दृढ विश्वास रखते हैं, उन्हें मनुस्मृति के जरिय ये सत्य समझाना चाहूंगा कि शास्त्रों के अनुसार मांस खाना क्यों पाप है? यदि मेरी बात आपको अच्छी लगे तो मांस खाना छोड़ देने के बारे में जरूर सोचियेगा। मनुस्मृति (५.२६) के अनुसार, “पशुओं की हत्या करने की आज्ञा देने वाला, पशुओं का खण्ड खण्ड करने वाला या उसे मारकर बेचने वाला, उसे खरीदने वाला, उसे पकाने वाला, उसे परोसने वाला और उसे उसे खाने वाला, ये सभी व्यक्ति पाप के भागीदार हैं।” मनुस्मृति (५,२८) के अनुसार, “महान पण्डित कहते हैं कि जो व्यक्ति जिसका मांस खाता है ,वह परलोक में उस व्यक्ति को अवश्य ही खायेगा।” शास्त्रों के अनुसार मांस खाना छोड़ देना सबसे बड़ा पुण्य का कार्य है।
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(आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कन्द्वा, जिला- वाराणसी. पिन- २२११०६)
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