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वेद: वेदों का कोई भी मंत्र अश्लील नहीं- जागरण जंक्शन मंच

सद्गुरुजी
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वेद: वेदों का कोई भी मंत्र अश्लील नहीं- जागरण जंक्शन मंच

आश्रम से जुडी हुई एक लड़की कुछ साल पहले एक विदेशी महिला को लेकर मेरे पास आई थी। इंग्लैंड की रहने वाली वो विदेशी महिला हिंदी पढ़ी थी, इसलिए वो अच्छी हिंदी जानती थी। वो शादीशुदा नहीं थीं और ईसाई मिशनरी से जुड़कर धर्म प्रचार के कार्य में लगी हुई थीं। उसने आते ही बहुत शालीनता से अभिवादन किया और अपना परिचय देते हुए एक बाइबिल मुझे भेंट की। एक महापुरुष के सन्देश को मैं ह्रदय से लगाकर अपने पास रख लिया। जलपान के बाद उसने कुछ विषयों पर मुझसे चर्चा करने की इजाजत मांगी। वो मुझे अपने धर्म की अच्छाइयाँ बताकर प्रभावित करना चाहती थीं।

लगभग दो घंटे तक चली चर्चा के दौरान उसने हिन्दू धर्म पर कई आरोप लगाये। उसके सारे आरोपों के जबाब मैंने इस तरह से दिए कि वो खामोश हो गई, अंत में वो थकहारकर गहरी साँस खींचते हुए वेदों में अश्लीलता की चर्चा छेड़ दी। वो शास्त्रार्थ की पूरी तैयारी करके आई हुई थी। अपने थैले से दो पुस्तके निकाली और फिर एक पुस्तक खोलकर मेरे सामने रख दी। यजुर्वेद की दो ऋचाएं पूर्णतः गलत व्याख्या सहित उसमे इस प्रकार से उद्धरित की गईं थीं-

यकास्कौ शकुन्तिकाह्लागीती वंचती।
आ हन्ति गमे निगाल्गालिती धारका।। ( यजुर्वेद २३-२२)
अर्थात – पुरोहित कुमारी-पत्नियों से उपहास करते है। पहला पुरोहित कुमारी (लड़की) की योनि की ओर संकेत करके कहता है कि जब तुम चलती हो तो योनि से ‘हल-हल’ की ध्वनी निकलती है, मानो चिड़ियाँ चहक रही हो। जब योनि में लिंग प्रवेश करता है, तब ‘गल-गल’ की ध्वनि निकलती है।

यकोअस्कैउ शकुन्तक आहाल्गीती वन्चती।
विवाक्ष्ट एव ते मुखाम्ध्वयों पा नस्त्वंभी भाष्था।। (यजुर्वेद २३/२३)
अर्थात- वे पुरोहित के लिंग की ओर संकेत करके कहती है कि हे पुरोहित, तुम्हारे मुंह से ‘हल-हल’ की ध्वनि निकलती है, जब तुम बोलते हो, तुम्हारा लिंग तुम्हारे मुंह के ही समान है, क्योंकि इसमें भी छेद है अत: तुम हम से जबान न चलाओ। तुम भी हमारे जैसे ही हो।

पढ़कर मैं हंसने लगा। उसे मेरे हंसने का अर्थ समझ नहीं आया तो मैं बोला- ‘जिसने भी वेदमंत्रों की ये व्याख्या की है वो सत्य से परिचित नहीं है। उसे इन मंत्रों का असली अर्थ भी नहीं मालुम है। इन वदमंत्रों का असली अर्थ जानने के लिए ‘बृहदारण्यकोपनिषद’ का ये श्लोक पढ़ना और उसका अर्थ जानता जरुरी है।

योषा वा अग्निगौतम तस्य उपस्थ एव सम्मिलोमानि धूमो योनिरर्चिर्यदन्तः करोति तेSन्गारा अभिनन्दा विस्फुल्लिन्गास्तस्मिन्नेतस्मिन्नग्नौ देवा रेता जुह्वति तस्या आहुत्यै पुरुषः सम्भवति. योषा वाव गौतामाग्निस्तस्या उपस्थ एव समिद्यदुपमंत्रयते सधूमो योनिरर्चिर्यदन्तः करोति तेSन्गारा अभिनंदा विस्फुल्लिंगाः. तस्मिन्नेतस्मिन्नग्नौ देवा रेतो जुह्वति तस्या आहुतेर्गर्भः सम्भवति (बृहदारण्यकोपनिषद ६/२/१३)

इस मंत्र का अर्थ है कि स्त्री अग्नि है, पुरुष का लिंग समिधा है, स्त्री का गुप्ताँग ही ज्वाला है, उसका आकर्षण ही धूम है, उसमें प्रवेश ही अंगार है, आनंद ही चिंगारी है और रेत ही आहुति है। इस उपनिषद के अनुसार वेदों में स्त्री शब्द का प्रयोग अग्नि के लिए किया गया है। पुरुष के लिंग का अर्थ है समिधा यानी वह लकड़ी जिसे जलाकर यज्ञ किया जाता है अथवा जिसे यज्ञ में डाला जाता है। स्त्री गुप्तांग या योनि शब्द का आशय हवन कुण्ड की धधकती हुई अग्नि से है। धूम यानी धुंआ का अर्थ आकर्षण है। स्त्री में प्रवेश करने का अर्थ अंगार है। आनंद का अर्थ चिंगारी है और रेत का अर्थ आहुति है।
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उपनिषदों में ऋषियों ने वेदों के अलंकारिक और प्रतीकात्मक शब्दों की विशद रूप से व्याख्या की है, ताकि वेदमंत्रों का सही अर्थ समझा जा सके। वेद का कोई भी मंत्र अश्लील नहीं है। हिन्दू धर्म को बदनाम करने के लिए विधर्मियों द्वारा जानबूझकर ये प्रचार किया जाता है कि वेदों में अश्लीलता भरी पड़ी है। आप बृहदारण्यकोपनिषद के उपयुक्त श्लोक को समझकर वेद के किसी भी मंत्र का अर्थ समझेंगे तो आपको कोई भी मंत्र अश्लील नहीं मिलेगा। मैंने उस विदेशी महिला को उन वेदमंत्रों का इस प्रकार से सही अर्थ समझया-

यकास्कौ शकुन्तिकाह्लागीती वंचती।
आ हन्ति गमे निगाल्गालिती धारका।। ( यजुर्वेद २३-२२)
अर्थात पुरोहित लड़कियों और पत्नियों से बात करते हैं। पहला पुरोहित हवनकुंड की धधकती हुई ज्वाला की तरफ संकेत करके कहते हैं कि जब ये चलती है यानि जलती है तो ‘हल हल’ की ऐसी ध्वनि निकलती है, मानों चिड़िया चहक रही हो। जब धधकती हुई ज्वाला में समिधा यानी लकड़ी डाली जाती है तो ‘गल गल’ की ध्वनि निकलती है।

आप हवन करते समय जलती हुई लकड़ी और धधकती हुई ज्वाला की आवाज पर गौर कीजिये, आपको बिलकुल यही आवाज सुनाई देगी। वेद न सिर्फ सच्चे बल्कि पूर्णतः वैज्ञानिक भी हैं। ग्रिफिथ, मैक्स मूलर और विलियम्स जैसे विदेशी विद्वान वेदों का सही अर्थ समझ ही नहीं पाये। हिन्दू धर्म को बदनाम करने के लिए और हिन्दुओं को भ्रमित करके उन्हें धर्मांतरण के लिए प्रेरित करने के लिए ही उन्होंने वेदों के मंत्रों का अर्थ से अनर्थ कर उसमे झूठी और मनगढ़ंत अश्लीलता दिखाई।

उन्ही के किये हुए उलजुलूल अनुवादों की नक़ल करके हमारे देश के भी कई लेखकों ने हिन्दू धर्म को जानबूझकर देश-विदेश में अपमानित किया है और हिन्दुओं को भरमाने का घृणित और बेहद निंदनीय कार्य किया है। अब उनकी नक़ल करके बहुत सारे लोग हिन्दू धर्म और वेदों के बारे में मीडिया पर झूठा दुष्प्रचार कर रहे हैं। सत्य लोंगो तक पहुंचाया जाना अब बेहद जरुरी हो गया है, ताकि हिन्दू भाई झूठे और मनगढ़ंत दुष्प्रचार से भ्रमित न हो। मैंने दूसरे मंत्र की भी सही व्याख्या इस प्रकार से उस विदेशी महिला को समझाई-

यकोअस्कैउ शकुन्तक आहाल्गीती वन्चती।
विवाक्ष्ट एव ते मुखाम्ध्वयों पा नस्त्वंभी भाष्था।। (यजुर्वेद २३/२३)
अर्थात- वे यानी स्त्रियां पुरोहित के समिधा की और संकेत करके कहती हैं कि आपके मुंह से ‘हल हल’ कि ध्वनि निकलती है, जब बोलते हो यानी मंत्र पढ़ते हो। आपकी छिद्रयुक्त समिधा भी आपके मुंह के समान ही है। अर्थात ये भी धधकती हुई अग्नि में जाने पर ‘हल हल’ क़ी ध्वनि करती है। अब हमलोगो क़ी तरह अधिक वार्तालाप मत करो। इसका अर्थ है कि अग्नि तैयार है, अतः यज्ञ शुरू करो।

इन वेदमंत्रों के सही अर्थ जानकर वो विदेशी महिला बहुत संतुष्ट और प्रसन्न हुई, परन्तु जाते जाते आखिर में एक आरोप लगा गई, ‘सर.. आप माने या न माने, पर आपके हिन्दू धर्म में ‘स्किन प्रॉब्लम’ (छुआछूत) बहुत है।’ साथ आई लड़की, जो वर्षों से मेरे आश्रम में आ रही थीं, उसकी तरफ इशारा करते हुए बोली- ‘सर.. ये लड़की दलित परिवार की है.. बहुत गरीब है.. काले रंग की होने के कारण कोई इससे शादी करने को तैयार नहीं है.. अब आप ही बताइये कि ये क्या करे?’

उस समय तो एक गहरी साँस खींचकर मैं चुप रहा, किन्तु बाद में कुछ लोगों के जरिये कोशिश किया कि उसकी शादी कहीं लग जाये, परन्तु इस कार्य में कामयाबी नहीं मिली। दो तीन महीने के बाद एक दिन वो लड़की कार से आई, उसके साथ उससे दुगुनी उम्र का एक अधेड़ भी था। उसने परिचय कराया,’गुरूजी, ये मेरे पति हैं।’ मुझे अच्छा तो नहीं लगा, परन्तु शिष्टाचार निभाते हुए उसे बधाई दिया। बातचीत के दौरान तब मैं बहुत दुखी हुआ, जब मुझे पता चला कि वो अब ईसाई बन चुकी है।

मुझे दो साल बाद एक दिन पता चला कि उसका पति गुप्तरोगी है, वो अपनी पत्नी से यौन-संबंध कायम करने में सक्षम नहीं है, अतः वो बाप नहीं बन सकता है। मेरी सलाह पर उसने एक बच्चा गोद ले लिया। बच्चा उसे सरलता से मिल गया, क्योंकि ईसाई संस्थाएं ईसाई लोगों को यहाँ वहां फेंके हुए मिले बच्चे गोद देने में ज्यादा रूचि लेती हैं, क्योंकि इस तरह से धर्मांतरण सरलता से हो जाता है। दोष हिन्दुओं का भी है वो गरीब, दलित और लावारिश बच्चों को गोद लेने में जल्दी रूचि नहीं लेते हैं।

कुछ ही समय बाद उस लड़की का ईसाई पति गुजर गया। सास ने सारी जायदाद से उसे बेदखल कर दिया। अब वो मुकदमा लड़ रही है। किसी भी ईसाई संस्था ने उसकी कोई मदद नहीं की। वो दो चार महीने के बाद अक्सर अपने गोद लिए हुए बच्चे को लेकर मेरे पास आती है और रोती पछताती है। उसे देखकर मैं हमेशा यही सोचता हूँ कि इस बिचारी को धर्मान्तरण से क्या मिला? ईसाई धर्म-प्रचारकों के के बहलावे फुसलावे और झूठे सपने दिखाने के लालच में न फंसती तो आज कहीं ज्यादा सुखी होती। जब भी वो आशीर्वाद मांगती है तो एक गहरी साँस खींचकर हमेशा उसे बस यही आशीर्वाद देता हूँ, “ईश्वर तुम्हारी मदद करें।”
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(आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट-कन्द्वा, जिला- वाराणसी। पिन-२२११०६)
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