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खूनी और मस्से वाली वादी बवासीर (पाइल्स)- समस्या-निदान

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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खूनी और मस्से वाली वादी बवासीर (पाइल्स)- समस्या- निदान

मेरा मुझमे कुछ नहीं,
जो कुछ है सो तेरा।
तेरा तुझको सौंपते,
क्या लागे है मेरा।।

साधू-संतों और सद्गुरुओं से प्राप्त ज्ञान उन्ही की सेवा में समर्पित है। दुखी मानवता की सेवा ही उनकी सच्ची सेवा है और उनके अमृत वचनों व् लोकहितकारी अनुभवों का प्रचार-प्रसार ही उनके प्रति ह्रदय से अभिव्यक्त भावपूर्ण श्रद्धांजली है। सन १९९५ की बात है, उस समय सर्दी का मौसम था। आश्रम में आये कुछ साधुओं के साथ बैठकर चाय पीने के साथ साथ आध्यात्मिक चर्चा भी चल रही थी। आश्रम के कुछ शिष्य भी भगवद चर्चा का आनंद उठा रहे थे।

कुछ कार्य से कमरे के बाहर आया तो मेरी निगाह बेंच पर बैठी आश्रम में अक्सर आने वाली एक युवती पर पड़ी, जो मुझसे मिलने की प्रतीक्षा कर रही थी। चेहरे से बहुत उदास और दुखी लग रही थी। मैंने हालचाल पूछा तो रोने लगी। कई बार रोने का कारण पूछने पर बहुत संकोच और शर्म के साथ मुझे बताई कि उसे खूनी बवासीर है और तीन दिन से रक्तस्राव हो रहा है।

मैंने उससे पूछा, ‘डॉक्टर को दिखाई की नही। कुछ दवा ली।’
उसने कहा, ‘होम्योपैथी और अंग्रेजी दोनों दवा ली हूँ, पर कोई फायदा नहीं।’

हमलोग बातचीत कर ही रहे थे कि एक साधू कमरे से बाहर निकले और हमारे करीब आ बोले, ‘बेटी घबरा मत। इस रोग की एक रामबाण दवा है। दवा यहांपर मौजूद भी है। तू जा एक पाँव दही ले के आ।’
युवती दही लेने जाने लगी तो मैंने उसे रोका, क्योंकि थोड़ा दूर जाना था। एक शिष्य को दही लाने के लिए भेज दिया। मुझे यह जानने की उत्सुकता थी कि आश्रम में खूनी बवासीर की रामबाण अौषधि है कहाँ?

दवा बताने वाले साधू उस बोरे की तरफ बढे, जिसमे आम की लकड़ी हवन के लिए रखी हुई थी। लकड़ी के ऊपर पानी वाले नारियल का खेझुरा यानि जटा रख हुआ था। अक्सर ही यज्ञ होते रहने के कारण नारियल की काफी जटा इकट्ठी हो गई थी, जो हवनकुंड में आम की लकड़ी को सुलगाने के काम आती थी। वो साधु कुछ सुखी जटा ले उसे उसे अच्छी तरह से जलाये, फिर उसे ठंडाकर खूब बारीक पिसे। एक मिटटी के पुरवा में एक पाँव दही आ गई। साधू महोदय एक चम्मच जटा की राख दही में अच्छी तरह से मिलाये और युवती को उसे खाने को कहे।

युवती ने उस दही को खा लिया। एक कागज में दो चम्मच जटा की राख बाँध साधू महाशय युवती को थमाते हुए बोले, ‘बेटी, इस दवा को आज रात तक इसी तरह से दही में मिलाकर दो बार और खा लेना। दवा बस आज ही तीन बार लेना, फिर मत लेना।’ दवा लेकर युवती चली गई और हमारी अधूरी आध्यात्मिक चर्चा फिर शुरु हो गई। अगले दिन वो युवती आश्रम में आई तो बेहद खुश थी। दवा काम कर गई थी।

बहुत से लोंगो को ये दवा मैंने बताई और उन्हें लाभ भी की। कुछ लोग जो बवासीर की बहुत गंभीर अवस्था में थे, उन्हें कम लाभ हुआ। मैंने उन्हें बिना देरी किये डॉक्टर के पास जाने की सलाह दी। इस आयुर्वेदिक दवा के बारे में बाद में और भी बहुत से लोंगो के मुंह से सुना। कुछ लोगों ने बताया कि एक गिलास (गिलास शीशे का हो तो ज्यादा बेहतर होगा) छाछ में एक चम्मच नारियल की जली हुई जटा की खूब बारीक पिसी राख मिला सुबह खाली पेट लेने से नई या पुरानी खूनी बवासीर में बहुत जल्दी फायदा मिलता है।

दवा जल्दी और ज्यादा असर करे, इसके लिए ये जरुरी है कि दवा लेने के एक घंटा पहले और एक घंटा बाद तक कुछ नहीं खाया पीया जाये। बाकी समय आप खाए पियें, परन्तु ध्यान रखें कि ज्यादा घी तेल वाली तली भुनी हुई चीजें, बेसन, मैदा और बैंगन की सब्जी व उड़द की दाल आदि न खाएं। बवासीर में सूरन की सब्जी चोकर वाले आंटे की रोटी के साथ खाएं, बहुत लाभ मिलेगा। बवासीर का मूल कारण कब्ज है।

भारत जैसे देश में, जहाँपर सार्वजनिक जगहों पर या बहुत से गाँवों में अभी भी शौचालय की सुबिधा का अभाव है, वहांपर लोंगो खासकर महिलाओं द्वारा मलत्याग की इच्छा को मज़बूरी में दबाने के कारण भी बवासीर रोग हो जाता है। ये छूत का रोग भी है। ऐसे रोगियों के मल पर मलत्याग और उनके मूत्र पर मूत्रत्याग नहीं करना चाहिए। परिवार में किसी को बवासीर है और यदि शौचालय की अच्छी तरह से साफ़ सफाई नहीं रखी जाएगी तो परिवार के दूसरे लोंगो को भी ये रोग हो सकता है।

जिन्हे कब्ज रहती है, पेट साफ़ नहीं होता है, उन्हें मैथीदाना १०० ग्राम, अजवाइन ५० ग्राम और काली जीरी २५ ग्राम लेकर खूब बारीक चूर्ण बना उन्हें मिलाकर शीशी में रख लेना चाहिए और रात को सोते समय आधा चम्मच यानि तीन ग्राम चूर्ण गर्म पानी के साथ लेना चाहिए।
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अपने साधना काल के दौरान बारह वर्षों तक बहुत देर तक एक ही आसन में बैठने और खाने-पीने की अनियमित दिनचर्या के कारण सन २००३ में मुझे खुजली और मस्से वाले बवासीर हो गई थी। आश्रम में आने वाले कई डॉकटरों से सलाह लिया, अंग्रेजी और होम्योपैथी की बहुत सी दवाएं खाईं, पर कोई फायदा नहीं हुआ। अंत में मैंने अपने एक पूज्य गुरुदेव से इस बात की चर्चा की, उन्होंने रोज सुबह खाली पेट एलोविरा का जूस निकालकर पीने और उसका गुदा मस्से पर लगाने की सलाह दी। तीन-चार महीने के बाद मुझे उस खुजली और मस्से वाली बवासीर से छुटकारा मिल गया।

एक सज्जन फिशर यानि गुदामुख की त्वचा के फटने व घाव होने से पीड़ित थे। शौचालय में जाते तो दर्द के मारे बच्चों की तरह से जोर जोर से रोने लगते थे। मैंने उन्हें एलोविरा जूस पीने और एलोविरा जेल लगाने की सलाह दी। अब वो ठीक हैं और मुलाक़ात होने पर धन्यवाद देते नहीं थकते हैं। एलोविरा का आप गुदा निकाल लें या फिर बाबा रामदेव वाली दूकान से बिना केमिकल वाली शुद्ध एलोविरा जेल लें लें। मस्से पर एलोविरा जेल लगाने से पहले अपने नाख़ून जरूर काट लेना चाहिए।
रोग यदि न ठीक हो तो किसी अच्छे डॉक्टर से जरूर सलाह लें।

आज भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया की बहुत बड़ी आबादी बवासीर रोग से ग्रस्त है। लोगों को इस रोग से छुटकारा दिलाने के लिए एक सरकारी मुहीम चलनी चाहिए। सरकारी मुहीम तो जब चलेगी, तब चलेगी। फिलहाल आइये हम लोग ही मिल के बवासीर रोग भगाने की एक मुहीम चलायें। आप सभी कृपालु पाठकों की अनमोल प्रतिक्रिया और इस रोग को दूर भगाने वाले उपयोगी अनुभवों का स्वागत है।

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(आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कन्द्वा, जिला- वाराणसी. पिन- २२११०६)
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