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भारत एक हिन्दू राष्ट्र नहीं बन सकता है- जागरण जंक्शन मंच

सद्गुरुजी
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भारत एक हिन्दू राष्ट्र नहीं बन सकता है- अमर शहीद गणेशशंकर विद्यार्थी

सोशल मीडिया पर इन दिनों हिन्दू धार्मिक उन्माद की एक बाढ़ सी आई हुई है। “गर्व से कहो कि हम हिन्दू हैं” और “भारत एक हिन्दू राष्ट्र है” या फिर भारत शीघ्र ही एक हिन्दू राष्ट्र बनने वाला है, जैसे स्लोगन आपको अनेक जगह पर पढ़ने को मिल जाएंगे। जन्म से एक हिन्दू होने के नाते ये सब पढ़ने में अच्छा लगता है, परन्तु इस दिवास्वप्न की गहराई से जांच पड़ताल कीजिये तो आप इसी निष्कर्ष पर पहुंचेंगे कि यह कभी न पूरा होने वाला महज एक झूठा स्वप्न भर है। इस हकीकत से हिन्दुओं को वाकिफ कराने के लिए ये ब्लॉग लिखना मैंने जरुरी समझा। पाठकों से मेरा विनम्र अनुरोध है कि निष्पक्ष भाव से लिखे गए इस लेख को उसी भाव से पढ़ें और अपनी राय भी जरूर दें।

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लेख की शुरुआत भारत को आजाद कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले अमर शहीद गणेशशंकर विद्यार्थी के भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने के विषय पर आजादी से वर्षों पूर्व दिए गए अत्यंत विचारणीय और वर्तमान परिस्थितियों में एकदम सटीक बैठते बहुमूल्य विचारों से कर रहा हूँ। इस विषय पर उन्होंने कहा था, “आज कुछ लोग ”हिन्‍दू राष्‍ट्र हिन्‍दू राष्‍ट्र” चिल्‍लाते हैं। हमें क्षमा किया जाये—यदि हम कहें—नहीं; हम इस बात पर जोर दें कि वे एक बड़ी भारी भूल कर रहे हैं। और उन्‍होंने अभी तक ”राष्‍ट्र” शब्‍द के अर्थ ही नहीं समझे। हम भविष्‍यवक्‍ता नहीं, पर अवस्‍था हमसे कहती है कि अब संसार में ”हिन्‍दू राष्‍ट्र” नहीं हो सकता, क्‍योंकि राष्‍ट्र का होना उसी समय सम्‍भव है जब देश का शासन देशवालों के हाथ में हो। और यदि मान लिया जाये कि आज भारत स्‍वाधीन हो जाये या इंग्‍लैंड उसे औपनिवेशिक स्‍वराज्‍य दे दे, तो भी हिन्‍दू ही भारतीय राष्‍ट्र के सब कुछ न होंगे। और जो ऐसा समझते हैं—ह्रदय से या केवल लोगों को प्रसन्‍न करने के लिए—वे भूल कर रहे हैं और देश को हानि पहुंचा रहे हैं।”

कितना कड़वा सत्य क्रांतिकारी गणेशशंकर विद्यार्थी जी ने बयान किया था। आज भारत स्वतंत्र है, किन्तु हिन्दू राष्ट्र नहीं हो सकता है, क्योंकि भारत में केवल हिन्दू ही नहीं रहते हैं अन्य कई धर्मों के लोग भी रहते हैं। कई लोग तर्क देते हैं कि भारत में लगभग अस्सी प्रतिशत हिन्दू हैं, फिर ये हिन्दू राष्ट्र क्यों नहीं हो सकता है? कई ऐसे बहुधर्मी लोगों से भरे मुस्लिम देश हैं, जहाँ इतने ही जनसंख्या बाहुल्य मुस्लिमों का है, किन्तु फिर भी वो मुस्लिम धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र हैं, जैसे इंडोनेशिया। इंडोनेशिया का जिक्र करते हुए वे भूल जाते हैं कि उनका “राजधर्म” इस्लाम होने के बावजूद भी इंडोनेशिया एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। “विभिन्नता में एकता” वहां का शासकीय स्लोगन हैं। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि एक मुस्लिम देश में एक मुसलमान के घर बच्चा पैदा होता है और वो रामायण का पाठ करवाता है। जन्मजात शिशु के कान में कोई जेहादी बनाने का नहीं बल्कि बड़े होकर राम बनने का मंत्र गुंजायमान किया जाता है। हिन्दू मुसलामानों की टोपी का और मुसलमान हिन्दुओं के तिलक का सम्मान करते हैं। वहां इन सब चीजों को लेकर कोई बहस का मुद्दा या मन के भीतर पाला हुआ विषैला अहम नहीं है और एक दूर को धार्मिक दृष्टि से नीचा दिखाने की कलुषित भावना भी नहीं है, जैसा कि हमारे देश में है।

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यही नहीं, उनकी मुद्रा पर भगवान श्री गणेश जी का चित्र अंकित हुआ नजर आता हैं। मंदिरों को जहाँ पर मुस्लिम समाज द्वारा पूजा जाता है और भगवान राम के बारे में जहाँ पर मदरसों में बच्चों को पढाया जाता है। चौकिये मत, इंडोनेशिया में ये सब होता है, इसलिए वहां अमन और शांति भी रहती है। वहां के मुस्लिम साफ़ कहते हैं कि अरब के मुस्लिम्स से हमारा कुछ भी लेना- देना नहीं है, हमारे पूर्वज हिंदू थे, ये सत्य हम भुला नहीं सकते। धन्य हैं ऐसे मुस्लिम्स, उन्हें मेरा नमन। पूरी दुनिया के मुसलामानों को वो पैगाम दे रहे हैं कि अरब या जेहादी मुस्लिम्स का नाम ले- लेकर अपनी छातियाँ फुलाना और उन्हें अपना आदर्श समझना न सिर्फ बहुत बड़ी मूर्खता है, बल्कि आने वाले समय में एक बड़ी आफत को भी न्योता देना है। सभी मुस्लिम देशों में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेशिया से पूरी दुनिया के मुल्कों को ये सबक लेना है कि धार्मिक विभिन्नता वाले इस देश में इतनी अमन और शांति क्यों है, वहांपर न कोई दंगा फसाद है और न ही कोई जेहाद। इसका एक ही कारण है, वहां की प्राचीन सभ्यता, संस्कृति और उच्च जीवनादर्श।

इंडोनेशिया की प्राचीन सभ्यता, संस्कृति और उच्च जीवनादर्श भारत से ही प्रभावित है, परन्तु क्या कारण क्या है कि वहांपर अमन और शांति है, किन्तु भारत में नहीं? इसका एक कारण है- भारत के मुस्लिमों का इस देश से ज्यादा अरब या अन्य मुस्लिम देशों की संस्कृति और जेहादी रहनुमाओं से लगाव रखना, उन्हें अपना आदर्श मानना। दूसरा अहम कारण है हिन्दुओं का देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने का झूठा सपना देखना और दिखाना। भारतीय मुस्लिमों का अरब से या अन्य इस्लामी देशों से जो बेहद लगाव है, उसपर बस यही कहूँगा कि दूर के ढोल सुहावने होते हैं। जेहादियों से प्रभावित होकर पूरी दुनिया में मुस्लिम राज्य स्थापित होने का वो झूठा सपना भी न देखें, ऐसा कभी होने वाला नहीं है। आइये उस तरफ ध्यान न दे अपने हिन्दुस्तान रूपी घर को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र इंडोनेशिया से प्रेरणा ले सजाएँ और सवारें। हिन्दुओं से ये अनुरोध करूंगा कि भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की चर्चा बंद करें। वे इस सच्चाई को समझें कि दुनिया के ५६ मुल्कों का राजधर्म यदि इस्लाम है तो उसका एकमात्र कारण मुस्लिम भाइयों की एकता और एकजुटता है, जो हिन्दुओं में नहीं है। अतः हिन्दू राष्ट्र जैसे विवादित विषय पर व्यर्थ की ऊर्जा बर्बाद करने की बजाय उसे हिन्दुओं को संगठित करने में लगाएं और हिन्दू धर्म में निहित जात-पात के भेदभाव वाली सबसे बड़ी बीमारी को जड़ से ख़त्म करें।

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हिन्दू धर्म ने अपनी जात-पात के भेदभाव वाली पुरानी बीमारी की वजह से महात्मा बुद्ध से लेकर डॉक्टर अम्बेडकर तक अनेक महापुरुषों को खोया है, जो हिन्दू धर्म का कायाकल्प कर उसे पूरे विश्व में फैलाने की सामर्थ्य रखते थे। दुनिया के भूगोल में हिन्दुओं के सिमटने का एक एक बहुत बड़ा कारण है। आज हिन्दू इतिहास के जिस वीर शिवाजी महाराज के “हिन्दू राष्ट्र” की बात करते हैं, यदि वो शिवाजी महाराज की जीवनी पढ़ें तो उनकी आँखों में न सिर्फ आंसू होंगे, बल्कि जात-पात का भेदभाव पढ़कर उन्हें अपने हिन्दू होने पर भी शर्म आएगी। ये एक ऐतिहासिक सत्य है कि कई वर्षों के अनवरत कठिन संघर्ष के बाद पश्चिमी महारष्ट्र में स्वतंत्र हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करने के बाद शिवाजी महाराज ने जब अपना राज्याभिषेक करना चाहा तो ब्राहमणों ने उनका घोर विरोध किया। शिवाजी महाराज क्षत्रिय नहीं थे, अतः ब्रामणो ने कहा कि पहले क्षत्रियता का प्रमाण लाओ तभी वह राज्याभिषेक करेंगे। यह जानकार आपकी भी आँखें भर आएँगी कि शिवाजी महाराज को अंतत: मजबूर होकर एक ब्रामण को एक लाख रुपये देने का प्रलोभन देना पड़ा तब जाकर उसने राज्याभिषेक किया। यह भी एक ऐतिहासिक सत्य है कि राज्याभिषेक के बाद भी पूना के ब्राहमणों ने शिवाजी को राजा मानने से इंकार कर दिया था और विवश होकर शिवाजी को अष्टप्रधान मंडल की स्थापना करनी पड़ी थी।

भारत का हिन्दू बहुल पडोसी देश नेपाल अब एक धर्मनिरपेक्ष देश बन गया है। सितम्बर माह में नेपाली संविधान सभा ने नेपाल को हिन्दू राष्ट्र घोषित करने के प्रस्ताव को भारी बहुमत से ठुकरा दिया था। नेपाल की जनसंख्या में भारत जितने ही लगभग ८० फीसदी हिन्दू हैं, शेष १० फीसदी बौद्ध, ५ फीसदी मुस्लिम और ५ फीसदी किरांत-ईसाई व अन्य हैं। कहा जाता है कि पुरातन काल में ‘ने’ नाम के एक हिन्दू साधु काठमांडू की घाटी में रहते थे और वे इस घाटी की रक्षा या पाल अर्थात पालन-पोषण करते थे, इसलिए इस हिमालयी देश का नाम नेपाल पड़ा। इस हिन्दू बहुल देश के अधिकतर लोग देश को हिन्दू राष्ट्र घोषित करने की मांग २००८ से ही करते रहे हैं और अब भी कर रहे हैं। पहले यह एक राजशाही वाला हिन्दू राष्ट्र ही था, किन्तु नेपाल के वामपंथियों द्वारा चलाये गए एक वृहद जन आंदोलन की सफलता के कारण हुए राजशाही के खात्मे के बाद २००८ में उसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित कर दिया गया। हिन्दुओं को नेपाल से शिक्षा लेनी चाहिए। हिन्दू राष्ट्र बनना अब यदि नेपाल में संभव नहीं है तो भारत में तो ऐसा होना और भी ज्यादा असंभव है, क्योंकि भारत नेपाल से बहुत अधिक विशाल और धार्मिक विविधता वाला देश है। सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि दुनिया के बहुत से मुस्लिम देश अब धीरे धीरे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में तब्दील होते जा रहे हैं। अतः अब दुनिया के लोगों का अमन और सुख शांति से परिपूर्ण सुखद भविष्य हिन्दू-मुस्लिम नहीं, बल्कि धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र होने में ही निहित है। इस बात को नहीं मानना एक बहुत बड़ी सच्चाई से मुंह मोड़ना है।

आज से वर्षों पहले दो तीन बार मैं आरएसएस की कुछ शाखाओं में गया था। उनकी राष्ट्रसेवा और देशभक्ति पर मुझे भी गर्व है। वहांपर सबसे अच्छी बात मुझे ये लगी कि वो लोग किसी भी व्यक्ति के जाति का नहीं, बल्कि सिर्फ नाम का ही सम्बोधन जी लगाकर करते हैं। मुझे आश्चर्य है कि आरएसएस ने आजतक जातपात ख़त्म करने के लिए कोई आंदोलन क्यों नहीं चलाया? वो इस काम को बेहतर ढंग से कर सकती है, पर पता नहीं क्यों करना ही नहीं चाहती है? आरएसएस के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की अवधारणा से मेरी कुछ हद तक सहमति है। जब राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत जी कहते हैं कि हिंदुस्तान हिंदू राष्ट्र है तो उनके ऐसा कहने का मेरे विचार से सिर्फ यही मतलब होगा कि सभी भारतीयों को हिंदू माना जाना चाहिए, क्योंकि विदेशों में उनकी पहचान हिन्दुस्तानी होने की ही है और उनकी जड़ें भारत की प्राचीन सांस्कृतिक अभिव्यक्ति में निहित हैं। इस बात में कोई संदेह नहीं कि भारत में इस्लाम और इसाईयत का जो वर्तमान स्वरूप है, वह बहुत हद तक हिंदुस्तानी संस्कृति का ही एक पहलू है, क्योंकि उनके पूर्वज कभी हिन्दू थे। पुनः फिर वही बात मैं दुहराना चाहूंगा कि हिन्दुस्तानियों को इंडोनेशियाई संस्कृति से सबक सीखना चाहिए और सभी धर्मों व धर्मावलम्बियों का आदर सम्मान करना चाहिए, ताकि देश में अमन और शांति रहे। देश में विदेशी निवेश आने के लिए उचित माहौल बनाने और राष्ट्र का सर्वांगीण विकास करने के लिए ये अति आवश्यक है।

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(आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कन्द्वा, जिला- वाराणसी. पिन- २२११०६)
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