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असहिष्णुता आई.. असहिष्णुता आई.. देश में चल रहा नया राग

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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असहिष्णुता आई.. असहिष्णुता आई.. देश में चल रहा नया राग
आपने भी ये कहानी जरूर पढ़ी या सुनी होगी। एक चरवाहा लड़का अपने गाँव से दूर एक पहाड़ी पर भेड़ें चराने के लिए ले जाया करता था। भेड़े चराते हुए एक बार उसके शैतानी दिमाग में ख़याल आया कि गाँववालों पर रोब गाँठने के लिए और उन्हें भयभीत कर मजा लेने के लिए कोई अफवाह फैलाई जाये। वो झूठ बोलने की एक योजना बनाकर दौड़ता हुआ गाँव के अंदर आया और चिल्लाने लगा, ”भेड़िया आया… भेड़िया आया… मेरी भेड़ों को बचाओं, नहीं तो वो मार डालेगा।”

गाँव की जनता हथियार लेकर भेड़िया को खदेड़ने के लिए दौड़ते चिल्लाते हुए उसके साथ चल पड़ी। उनके दौड़ने चिल्लाने और और व्‍यर्थ में हाथ-पैर मारने का मजा लेता हुआ चरवाहा लड़का कुटिलता से मुस्कुराता रहा। जनता को दौड़ते हाँफते और चिल्लाते हुए पहाड़ी पर चढ़ने के बाद ज्ञात हुआ कि फिलहाल इस समय तो वहांपर कोई भेड़िया नहीं है। निश्छल ह्रदय वाले ग्रामीणों ने सोचा कि भेड़िया दिखाई नहीं दे रहा है तो हो सकता है कि शोर सुनकर वो भाग गया हो।

चरवाहा लड़का एक दो दिन का अंतर देकर ”भेड़िया आया… भेड़िया आया…” चिल्लाने वाली अपनी कुटिल हरकत जारी रखा। गाँव के भोले भाले लोग उसका साथ देते और धोखा खाकर निराश हताश मन से लौट आते थे। धीरे धीरे उस लड़के का साथ देने वालों की संख्या कम होने लगी। पहले जहाँ पूरा गांव उसका साथ देने के लिए दौड़ पड़ता था, अब सिर्फ दो चार लोग उसका साथ देने लगे।

एक रोज उस लड़के ने भेड़ें चराते हुए देखा कि आज तो वास्तव में ही एक भेड़िया आ गया है और एक के बाद एक उसकी भेड़ें मारते जा रहा है। यह देख बेहद डरा हुआ चरवाहा लड़का गाँव में आया और चिल्लाने लगा, ”भेड़िया आया… भेड़िया आया… मेरी भेड़ों को बचाओं, नहीं तो वो मेरी सारी भेंड़े मार डालेगा।” गाँव के लोगों ने कहा, ”तेरे झूठ बोलने से हम तंग आ चुके हैं। इस बार कोई तेरे साथ नहीं जाने वाला। तू यूँ ही चिल्‍लाता रह।”

लड़के की चिल्‍लाहट की ओर गांव वालों ने बिलकुल भी ध्‍यान नहीं दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि उधर पहाड़ी पर भेड़िये ने झूठ बोलने वाले लड़के के दल की एक-एककर सभी भेड़ें मार डालीं, एक को भी ज़िंदा नहीं छोड़ा। इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जो लोग झूठ बोलने के आदी हैं, उनके सच बालने पर भी लोग कभी विश्‍वास नहीं करते।

”भेड़िया आया, भेड़िया आया!” वाली ये लघु कथा देश की वर्तमान परिस्थियों पर बिलकुल फिट बैठती है, बस इसमें थोड़ा सा फेरबदल करके भेड़िया की जगह असहिष्णुता कर दीजिये। देशभर में आज कुछ नेताओं, साहित्यकारों और फिल्मकारों द्वारा नित्य शोर मचाया जा रहा है कि “देश में असहिष्णुता आई… असहिष्णुता आई…” जानबूझकर मचाया जा रहा ये शोर लगता है कि तभी जाकर थमेगा, जब देश में सचमुच में ही एक दिन घोर असहिष्णुता आ जाएगी। असहिष्णुता फैलने के बनावटी मुद्दे पर कुछ लोंगो का दिखावटी विरोध उन्हें जनता की नजरों में गिरा रहा है। बहुत से लोग इस शोर शराबे में शामिल होकर हीरो बनने के चक्कर में कहीं जीरो न बन जाएँ। इस सत्य से वो मुंह फेर रहे हैं कि एक दूसरे को बर्दास्त न कर पाने की भावना थोड़ा बहुत हर परिवार में रहती है तो फिर इतने विशाल और विभिन्नता वाले देश में क्यों नहीं दिखेगी? वो हमेशा से रही है और भविष्य में भी हमेशा रहेगी। उसपर विवाद करना निंदनीय कार्य है और यह आग को बढ़ाने के लिए उसमे घी डालने के जैसा है।

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देश में तो अमन और शान्ति का माहौल है, किन्तु कुछ लोंगो के दिलों में सत्ता सुख से वंचित होने पर एक ऐसी असहिष्णुता जन्म ले चुकी है, जिसका हिंदी शब्दकोश में एक बहुत सरल अर्थ दिया गया है, “बर्दास्त न करना”। जी हाँ, मोदी को, भाजपा को और आरएसएस को कुछ लोग बर्दास्त नहीं कर पा रहे हैं। जनता के भारी बहुमत से बनी हुई मोदी सरकार को अठारह महीने बिचारे किसी तरह से झेल पाये और फिर असहिष्णुता का बेसुरा राग छेड़ दिया। दुनिया आश्चर्य से देख रही है कि भारत में तो अमन शान्ति और सदभाव है, फिर ये असहिष्णुता बढ़ने का क्या तमाशा हो रहा है? रोज जिसे देखो वही मीडिया की सुर्ख़ियों में आने के लिए असहिष्णुता पर बयान जारी कर दे रहा है और मीडिया के सामने मोदी विरोध का ढोल पीट रहा है। ये सब लोग ऐसा तमाशा करके सारी दुनिया में हमारे देश की छवि ख़राब कर रहे हैं, इनपर रोक लगनी ही चाहिए और रोक मोदीजी ही बयान देकर लगा सकते हैं।

देश में असहिष्णुता फैलने का बहाना बनाकर एक सुनियोजित ढंग से पहले कुछ साहित्यकार, रंगकर्मी, फिल्मकारों ने विरोध जताया और अब इस मामले को राजनीतिक रंग देते हुए कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व में संसद भवन से राष्ट्रपति भवन तक मार्च निकाला है। कांग्रेस का 11 सदस्यीय दल राष्ट्रपति से मिला और उन्हें एक ज्ञापन सौंपा। दरअसल कांग्रेस की कुटिल राजनीती इस समय यही है कि राष्ट्रपति महोदय असहिष्णुता के मुद्दे पर मोदी सरकार की आलोचना करें। मुझे नहीं लगता है कि माननीय राष्ट्रपति महोदय ऐसा कोई बयान जारी करेंगे, भले ही वो असहिष्णुता बढ़ने के शोर के बीच कई बार इस पर चिंता जता चुके हैं।

फिल्म अभिनेता शाहरुख़ खान के अच्छे अभिनय का मैं भी प्रशंसक रहा हूँ, किन्तु बहुत ख़राब लगा जब अपने जन्मदिन के मौके पर उन्होंने कहा कि देश में इन दिनों घोर असहिष्णुता है। यदि भारत में घोर असहिष्णुता होती तो क्या आप सुपर स्टार होते? शाहरुख़ खान जी आपको भी भलीभांति मालूम होगा कि आपको सुपर स्टार बनाने में हिन्दू दर्शकों का भी उतना ही बड़ा योगदान है, जितना कि मुस्लिम दर्शकों का।

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मुझे उस समय भी बहुत खराब लगा था, जब कुछ साल पहले कांग्रेस के शासनकाल में आपने एक विदेशी मीडिया को दिए गए इंटरव्यू में अपने और अपने परिवार की सुरक्षा को लेकर चिता जताई थी और अपने बच्चों के हिन्दू नाम रखने के साम्प्रदायिक कारण बताये थे। मुझे याद है कि उस समय पाकिस्तान के नेताओं ने भारत के सुरक्षा व्यवस्था की खिल्ली उड़ाते हुए आपको पाकिस्तान में बसने का न्योता भी दिया था। हमारे धर्मनिरपेक्ष देश के लिए इससे बड़ी शर्म और दुर्भाग्य की बात और क्या हो सकती है कि देश के अल्पसंख्यक इतनी सुविधा, सुरक्षा और उन्नति के हिन्दुओं के मुकाबले अधिक अवसर पाने के बावजूद भी देशी-विदेशी मीडिया में ऐसी ओछी शिकायतें करते रहते हैं।

मंगलवार को पॉर्लियामेंट से राष्ट्रपति भवन तक पैदल मार्च निकालने के बाद सोनिया जी ने राष्ट्रपति महोदय से मुलाकात की और एक बयान जारी किया कि देश में भय, धमकी और असहनशीलता का माहौल है। उनके इस झूठे और महज राजनीतिक उद्देश्य से दिए गए बयान से मैं सहमत नहीं, क्योंकि इस समय देश में कांग्रेस के शासनकाल से कहीं ज्यादा अमन, शांति, साम्प्रदायिक सदभाव और उन्नति दिखाई दे रही है। पीएम मोदी और भाजपा को बर्दास्त न कर पाने वाली कुटिल राजनीतिक साजिश के तहत उन्हें बदनाम करने के लिए असहिष्णुता बढ़ने का तमाशा कांग्रेस और उसके समर्थकों द्वारा रचित और संचालित है। अब देश की जनता भी इस सत्य से भलीभांति अवगत हो चुकी है। सोनिया जी की केवल एक बात से मैं सहमत हूँ और वो है पीएम की चुप्पी। ये बात मेरी भी समझ के बाहर है कि रोज सोशल मीडिया के जरिये खूब बोलने वाले पीएम मोदी जी कुछ घटनाओं पर खामोश क्यों हो जाते हैं?

दादरी काण्ड पर पंद्रह दिनों की उनकी चुप्पी ने ही विरोधियों को ये शोर मचाने का मौका दिया है कि देश में असहिष्णुता आई.. असहिष्णुता आई.. देश की जनता भी पीएम मोदी की चुप्पी से नाराज है। मोदी लहर घटने से भाजपा को हो रहा नुकसान कई राज्यों के पंचायत और स्थानीय निकाय चुनाओं में साफ़ दिखाई दे रहा है। बिहार के चुनाव में भी भाजपा के लिए यह नुकसानदेह साबित हो सकता है। गाय और गोमांस पर उलजुलूल बयान देकर मीडिया की सुर्ख़ियों में रहने वाले नेताओं को पीएम तुरंत चुप करायें। पार्टी ऐसे लोंगो पर उचित कार्यवाही करे। विकास की राह से वो भटके नहीं। भाजपा को गाय और गोमांस वाला मुद्दा ठीक वैसे ही नुकसान पहुंचा रहा है, जैसे पीएम मोदीजी दिल्ली के विधानसभा चुनाव में खुशनसीब और बदनसीब जैसी अतार्किक और निम्न स्तर की बात कर भाजपा को काफी नुकसान पहुंचाये थे। देश का चहुंमुखी विकास करके एक स्वर्णिम इतिहास रचने का मिला दुर्लभ और ऐतिहासिक अवसर भाजपा और मोदीजी को यूँ ही व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए।

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(आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कन्द्वा, जिला- वाराणसी. पिन- २२११०६)
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