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बिहार चुनाव हारने की वजह “ज्यादा जोगी, मठ उजाड़”- समीक्षा

सद्गुरुजी
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बिहार चुनाव हारने की वजह “ज्यादा जोगी, मठ उजाड़”- समीक्षा

क्या कहूँ कुछ कहा नहीं जाये,
बिन कहे भी रहा ना जाये !
रात भर करवट मैं बदलूं,
दर्द दिल का सहा नहीं जाये !

ये गीतकार हसरत जयपुरी के एक गीत के बोल हैं। भाजपा की आज यही स्थिति है। बिहार चुनाव में वह हुआ जिसकी पार्टी ने कल्पना भी नहीं की थी। एनडीए की इस चुनाव में करारी हार हुई है और कांग्रेस, जेडीयू और आरजेडी महागठबंधन की बड़ी जीत हुई है। बिहार में भाजपा के हार के कारणों पर यदि विचार करें तो सबसे बड़े दो कारण संघ प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण के बारे में दिए गए बयान और बिहार में होने वाली जातीय जोड़-तोड़ है। सबसे पहला और बड़ा कारण सर संघचालक मोहन भागवत रहे, जिन्होंने ऐन चुनाव के पहले और चुनाव के मध्य आरक्षण की समीक्षा का मुद्दा उठाकर चुनाव को अगड़ा बनाम पिछड़ा कर दिया। उनकी टिप्पणी का फायदा उठाते हुए लालू प्रसाद यादव ने पिछड़े-दलितों में यह बात फैलाई कि बीजेपी आरक्षण का विरोध कर रही है। अगड़ा बनाम पिछड़ा का यह मुद्दा बीजेपी को बहुत महँगा पड़ा। यहांपर यह सवाल पैदा होता है कि क्या मोहन भागवत ने जानबूझकर पीएम मोदी को नीचा दिखाने के लिए ऐन चुनाव के पहले और चुनाव के मध्य यह मुद्दा उठाया या फिर उनकी और बीजेपी की पहले से ही इस मुद्दे पर मिलीभगत और सांठगांठ थी कि चुनाव के समय ऊँची जातियों का वोट खींचने के लिए यह मुद्दा उठाया जाये। यदि ऐसा था तो बीजेपी घटिया राजनीति करने में अब अन्य पार्टियों से भिन्न कहाँ रह गई है?

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भाजपा के हारने का दूसरा कारण बिहार में होने वाली जातीय जोड़-तोड़ है। सभी जानते हैं कि बिहार में जातिगत राजनीति हमेशा से बहुत शक्तिशाली रही है। दादरी में अखलाक की हत्या पर कई बीजेपी नेताओं ने भड़काऊ बयान दिए और प्रधानमंत्री मोदीजी पंद्रह दिन तक चुप रहे। गाय और गोमांस का मुद्दा भी भाजपा ने जोर शोर से उठाया। इस शोर शराबे से चिंतित और भयभीत होकर अल्पसंख्यक समुदाय महागठबंधन के पक्ष में लामबंद हो गया। केंद्रीय मंत्री वीके सिंह ने फरीदाबाद में जलाए गए दलित बच्चों की बात करते समय कुत्तों को पत्थर मारने की चर्चा कर दी। महागठबंधन के नेताओं ने दलितों के बीच जाकर इस बात का जमकर झूठा प्रचार किया कि बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री वीके सिंह ने फरीदाबाद में जलाए गए दलित बच्चों की तुलना कुत्तों से कर दलितों का अपमान किया है। दलितों को संदेह हुआ कि बीजेपी दलित विरोधी पार्टी है। इन सब बातों का प्रभाव ये पड़ा कि अल्पसंख्यक और दलित समुदाय लालू-नीतीश के साथ जमकर गोलबंद हो गया।

लालू का एम-वाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण भी इससे बहुत मज़बूत होकर महागठबंधन के पक्ष में एक लहर सा पैदाकर दिया। हालाँकि भाजपा भी बिहार की जातीय राजनीति को समझते हुए उसे साधने के लिए राम विलास पासवान, उपेंद्र कुशवाहा, जीतनराम माँझी और पप्पू यादव का सहारा ली, किन्तु सामाजिक न्याय के कार्य और एलान के ज़रिए पिछड़ी जातियों पर अपनी पकड़ पहले ही मजबूत बना चुके लालू यादव और नीतीश कुमार के सामने उसका सारा जोड़-तोड़ और जाति पर आधारित जातीय समीकरण फेल हो गया। बीजेपी कुछ हद तक कामयाब रही, परन्तु उसके सहयोगी पूरी तरह से फेल हो गए। बिहार के चुनाव में भाजपा ने गाय, गोमांस और हिंदुत्व से लेकर पाकिस्तान को कोसने तक के सभी संवेदनशील मुद्दे उठाये, किन्तु वो वोटरों को अपनी और खिंच नहीं सकी। उसने बिहार के विकास का मुद्दा भी उठाया। प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार के विकास के लिए एक बड़ा आर्थिक पैकेज़ देने की घोषणा की और नया बिहार बनाने का वादा भी किया, लेकिन विकास के मामले में बिहार की जनता ने मोदी की अपेक्षा नीतीश कुमार पर ज्यादा विश्वास किया। भाजपा के नेता अपनी सभाओं में चिल्लाते रहे कि नितीश कुमार ने बिहार का कोई विकास नहीं किया, किन्तु नितीश कुमार द्वारा किये गए विकास कार्य अपनी आँखों से देख रही बिहार की जनता ये मानने को तैयार नहीं हुई कि नीतीश कुमार ने काम नहीं किया है। इसके उलट वो ये मानती है कि नीतीश ने ईमानदारी और मेहनत से काम करते हुए राज्य को बदहाली से निकालने की जीतोड़ कोशिश की है और उसका परिणाम भी विकास के रूप में जनता को दिखने लगा है।

यही वजह थी कि बिहार में नितीश सरकार के ख़िलाफ़ सत्ता विरोधी कोई लहर नहीं थी, बल्कि. इसके विपरीत चुनाव नतीजे बता रहे हैं कि उनके पक्ष में जबरदस्त लहर थी। प्रधानमंत्री मोदी विकास करने के मामले में खुद को सबसे आगे समझने का मन में अहंकार पाले बैठे थे, इसलिए जनता को उन्हें दिल्ली के बाद अब बिहार के चुनाव में भी हार का आईना दिखाना पड़ा है। वो माने या न माने किन्तु ये सच है कि पिछले डेढ़ साल के कार्यकाल में विकास करने के मामले में उनके सरकार की साख गिरी है। जनता को कोई विकास दिखाई नहीं दे रहा है, पर हाँ इसके उलट बढ़ी हुई महंगाई और उनके ऊपर टैक्स के रूप में दिन पर दिन बढ़ता आर्थिक बोझ जरूर दिखाई दे रहा है। पीएम मोदी भले ही विकास के बड़े बड़े दावे करें, किन्तु जनता यही महसूस करती है कि विदेशों से कालाधन और देश में अच्छे दिन लाने का अपना चुनावी वादा वो निभा नहीं पाये और न ही महँगाई से राहत दे पाए। महागठबंधन की किस्मत देखिये कि चुनाव के समय दाल के दाम आसमान छू रहे थे, यह भी एक बड़ी वजह थी कि बिहार के चुनाव में भाजपा की दाल नहीं गली।

मुझे लगता है कि इन्ही सब कारणों से जनता विकास के उनके दावे को गंभीरता से नहीं ले रही है। इसपर उन्हें गंभीर मंथन करना चाहिए। भाजपा की हार का प्रमुख कारण बदलते दौर की राजनीति को न समझ पाना भी है। राज्य और केन्द्र के चुनाव में हमेशा मुद्दे अलग-अलग होते हैं। यह बात भाजपा ठीक से समझ नहीं पाई है। सच तो है कि पार्टी अध्यक्ष अमित शाह बिहार के चुनाव में बुरी तरह असफल रहे क्योंकि वह बिहार के सामाजिक ताने-बाने को समझ ही नहीं पाए। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने बिहार के चुनाव को दिल्ली वाले असफल तरीके से विकास और हिंदुत्व के मुद्दे पर जीतने की कोशिश की, जिसमे वो दिल्ली की ही तरह एक बार फिर परास्त हुए हैं। उनको लेकर एक मुद्दा बिहारी बनाम बाहरी बना, जिसमे शत्रुघ्न सिन्हा ने नीतीश का साथ दिया। चुनाव परिणाम आने पर बिहार के भाजपा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा है, “ऐसा लगता है कि बिहारी बनाम बाहरी का मामला हमेशा के लिए तय हो गया।” इसका अर्थ यह हुआ कि नीतीश ही असली बिहारी हैं और चुनाव हारने वाले बाहरी। अमित शाह की मनमानी कार्यशैली का शत्रुघ्न सिन्हा और आरके सिंह जैसे नेताओं ने खुलकर विरोध किया। बिहार के कई नेता उनसे नाराज हुए। पूर्व आईएएस आरके सिंह का यह बयान कि टिकटों की खरीद-बिक्री हुई है, पार्टी को काफी नुकसान पहुंचाया। कई नेताओं ने टिकटों के बंटवारे में भाई-भतीजावाद का भी आरोप लगा। अब ऐसे बागी नेताओं पर पार्टी से भीतरघात करने का आरोप लग रहा है।

बिहार के चुनाव में तन, मन और धन तीनों से पूरी ताकत झोंकने के वावजूद भी बिहार की जनता ने भाजपा और उसके साथियों को पूरी तरह से नकार दिया है। भाजपा “ज्यादा जोगी, मठ उजाड़” वाली कहावत का शिकार हो गई है। दादरी कांड और फरीदाबाद में जलाए गए दलित बच्चों के मामले में दिए गए भाजपा के सीनियर नेताओं के उटपटांग बयानों से पार्टी को सर्वाधिक क्षति पहुंची है। बिहार के मुसलामानों का बिधानसभा चुनाव में पूरी तरह से गोलबंद होकर बीजेपी के खिलाफ जमकर वोटिंग करने का प्रमुख कारण भाजपा नेताओं के उलजुलूल बयान और दादरी कांड पर पीएम मोदी का बहुत दिनों तक चुप रहना रहा है। उन्होंने अपनी पार्टी के सीनियर नेताओं को न तो उटपटांग बयान देने से रोका और न ही मुसलामानों के जख्मों पर मरहम लगाने की कोशिश की। मुसलमानों के बीच उनकी छवि मुसलमान विरोधी और एक अहंकारी पीएम की बनी। मुसलमानों को खुश करने के लिए ही चुनाव परिणाम आने बाद लालू यादव ने मोदी सरकार को उखाड़ फँकने की बात की। सभी जानते हैं कि ये उनके बस की बाहर की बात है। फ़िलहाल उन्हें चुनाव जितने की बधाई। अब सपरिवार पांच साल सत्ता सुख भोंगे। लालूजी दिल के मरीज हैं। पिछले साल उनके दिल की सर्जरी हुई थी। इसलिए उन्हें अधिक ख़ुशी और अधिक गम दोनों मनाने से दूर रहना चाहिए।

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पीएम मोदी के खिलाफ अतिशय नफरत भी उनके दिल के लिए घातक है। विकास के मुड़े पर मोदी जी की तरह ही नीतीश कुमार जी का भी मैं बहुत प्रशंसक हूँ। बिहार चुनाव में मिली ऐतिहासिक जीत के लिए उन्हें बहुत बहुत बधाई। पूर्व बीजेपी नेता सुधींद्र कुलकर्णी ने बिहार के चुनाव परिणाम आने के बाद कहा कि बीजेपी को सही झटका लगा है। हिंदू वोट बैंक की राजनीति नहीं चलेगी। मुझे भी लगता है कि सुधींद्र कुलकर्णी ने सही कहा है। हिन्दू जाति से लेकर विचार तक इतने मत- मतांतरों में विभाजित हैं कि उन्हें एकजुट करना नामुमकिन है। बिहार के चुनाव तो यही कहते हैं कि लोकसभा चुनाव के दौरान मोदी के पक्ष में जो करोड़ों हिन्दू एकजुट हुए थे वो भी अब मोदी से निराश होकर इधर उधर भागने लगे हैं। हिन्दू और मुसलमान दोनों को अपनी और आकर्षित करने के लिए अब पीएम मोदी के पास एक ही रास्ता बचा है कि वो जनता और विरोधी नेताओं के बीच संवेदनहीन और अहंकारी होने की बन रही अपनी नकारात्मक छवि को तोड़े तथा विकास व धर्मनिरपेक्षता के सही और सटीक रास्ते पर चलें। वो अपने साथ साथ अपने मंत्रियों को भी संवेदनशील और विनम्र बनने के लिए समझाएं। सत्ता के नशे और अहंकार में यह मत भूलिए कि आपको ईश्वर और देश की जनता ने नया इतिहास रचने का स्वर्णिम अवसर प्रदान किया है, उसे अपने दम्भी आचरण और भटकी हुई कार्यशैली से व्यर्थ मत गंवाइये।

किसी भी साम्प्रदायिक या संवेदलशील घटना के घटित होने पर न सिर्फ तुरंत उसका विरोध करें, बल्कि शीघ्र से शीघ्र उसपर समुचित कार्यवाही भी करें। दलित और मुसलमान विरोधी बयानबाजी करने वाले नेताओं को पीएम मोदी फटकार लगाएं और वो फिर भी न माने तो पार्टी अध्यक्ष अमित शाह उन्हें पार्टी से बाहर जाने का रास्ता दिखाए। संवदेनशील मुद्दे पर बहुत जल्दी एकजुट होने और मनमाफिक काम न होने पर बहुत जल्दी निराश होकर बिखरने वाले हिन्दू वोटों के सहारे ही भाजपा न रहे, बल्कि वो विकास के अच्छे कार्य कर मुसलमानों को भी अपना मुरीद बनाये। अंत में एक बात और कहूँगा कि चुनाव आयोग को भी चुनाव में और पारदर्शिता लाने के लिए और मेहनत करनी पड़ेगी, क्योंकि चुनाव में वोटरों को दारू-शराब व रुपये-पैसे का लालच देकर मतदान को प्रभावित करने की बिमारी ख़त्म नहीं हुई है, बल्कि बहुत ही चिंताजनक रूप से और बढ़ी है। बिहार के चुनाव को भी इस बिमारी ने बुरी तरह से प्रभावित किया है। भाजपा के हारने की ये भी एक वजह है। अंत में हसरत जयपुरी के शब्दों में भाजपा के लिए यह सन्देश कि वो देश के दलितों और मुस्लिम व ईसाई आदि अल्पसंख्यकों से प्रेम करे और अपने समर्थकों को भी उनसे प्रेम करना सिखाये। वो सबकी बेहतरी के लिए कार्य करे। वो यदि मोदी के मुरीद बनते हैं तो यह बहुत बड़ी बात होगी, देश के लिए, भाजपा के लिए और खुद मोदी के लिए भी। शायद बिहार चुनाव हारने के बाद भाजपा भी यही सोच रही होगी।

इब्तिदा-ए-इश्क़ में हम सारी रात जागे
अल्ला जाने क्या होगा आगे
मौला जाने क्या होगा आगे
दिल में तेरी उलफ़त के बंधने लगे धागे..

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(आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कन्द्वा, जिला- वाराणसी. पिन- २२११०६)
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