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आतंकवाद से लड़ने को एकजुट हुआ विश्व- जागरण जंक्शन मंच

सद्गुरुजी
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आतंकवाद से लड़ने को एकजुट हुआ विश्व- जागरण जंक्शन मंच

“जाके पैर न फटे बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई” वाली कहावत चरितार्थ हुई। शुक्रवार13 नवंबर को पेरिस में इस्लामिक स्टेट के हमलों में लगभग 130 लोग मारे गए थे। पेरिस में मुंबई जैसे हमले हुए और भारत को शान्ति का उपदेश देने वाले फ़्रांस और अमेरिका सहित विश्व के कई बड़े देश आतंक से लड़ने को एकजुट हो गए। आतंकवाद के खिलाफ पीएम मोदी की आवाज अब बुलंद हुई है और अच्छे और बुरे आतंक में कोई फर्क नहीं करने की उनकी नसीहत भी अब बड़े देशों को माननी पड़ रही है। फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसुआ ओलांद ने पेरिस में हुए इन हमलों को आईएस की तरफ से जंग का एलान बताते हुए कहा था, ”हमें पता है कि पेरिस पर हमला करने वाले कौन हैं? हम उनसे बदला लेंगे। उन्हें हम बेरहमी से मारेंगे।” अपने संकल्प के अनुसार ही फ्रांस ने जबाबी कार्यवाही करते हुए सीरिया में आईएसआईएस के ठिकानों पर हमले शुरू कर दिए हैं। रविवार रात फ्रांस के फाइटर जेट्स ने अमेरिकन इंटेलिजेंस की मदद से सीरिया के रक्का शहर में 20 से ज्यादा बम गिराए। रक्का शहर आईएसआईएस आतंकियों का गढ़ माना जाता है। यहीं पर आईएसआईएस का हेडक्वार्टर्स माना जाता है।

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मीडिया पर प्रकाशित ख़बरों के अनुसार फ्रांस के फाइटर जेट्स ने आईएस के कमांड सेंटर, गोला-बारूद के एक डिपो और लड़ाकों के कैंप पर बम गिरा रहे हैं। अमेरिका और फ्रांस की जवाबी कार्रवाई के बाद आईएसआईएस ने धमकीभरा नया वीडियो जारी किया है। इस वीडियो में सीरिया में कार्रवाई करने वाले देशों पर जवाबी हमले की धमकी दी गई है। ख़बरों के मुताबिक वीडियो में कहा गया है कि फ्रांस की तरह अन्य देशों को भी ऐसे ही हमले भुगतने पड़ेंगे। वॉशिंगटन में हम पेरिस जैसे हमले करेंगे। आईएसआईएस की धमकियों से लग रहा है कि ये युद्ध लंबा खींचने वाला है और उसने इसकी पूरी तैयारी कर रखी है। इसे तृतीय विश्वयुद्ध की शुरुआत भी कही जा सकती है। कहने को तो यह युद्ध आतंकवाद के खिलाफ लड़ा जा रहा है, किन्तु आईएसआईएस के लोग अपने को पवित्र धर्मग्रन्थ कुरआन और शरीयत के अनुसार जीवन जीने वाला सच्चा मुसलमान मानते हैं और उनका एकमात्र स्वप्न यही है कि एक दिन पूरी दुनिया में इस्लाम यानि ‘ख़लीफ़ाई शासन’ का एकछत्र राज्य हो।

उसी के लिए वो ‘जिहाद’ यानी धार्मिक युद्ध लड़ रहे हैं। अपने इस स्वप्न को पूरा करने के लिए आईएसआईएस ने शांतिपूर्ण ढंग से धर्मप्रचार करने की जगह हिंसा, खून और क़त्ल करने का निर्मम और हिंसक रास्ता अख्तियार कर रखा है। कई सालों से ये एक रहस्य ही बना हुआ था कि बहुत से शक्तिशाली देशों से भीषण युद्ध लड़ने के वावजूद भी आईएसआईएस का वजूद खत्म होने की बजाय दिनोंदिन और बढ़ता ही क्यों जा रहा है? उनका हिंसक और क्रूर अस्तित्व बरकरार रखने के लिए कौन उन्हें पैसा और हथियार दे रहा है? अब इस रहस्य का उद्घाटन भी हो गया है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने दावा किया है कि आईएस को 40 देशों से फंडिंग मिलती है और इस आतंकी संगठन को आर्थिक मदद पहुंचाने वालों में जी-20 के कुछ सदस्य देश भी शामिल हैं। उन्होंने कहा कि आईएस तेल का गैरकानूनी कारोबार करता है और उसके इस कारोबार को तुरंत प्रभाव से खत्म करने की जरूरत है। जाहिर सी बात है कि इसी गैरकानूनी तेल के कारोबार से उसने अथाह सम्पदा और भारी मात्रा में हथियार इकट्ठे कर रखें हैं।

व्लादिमीर पुतिन ने अपनी बात को सत्य साबित करने के लिए उन्होंने जी-20 के अपने साथी देशों को अंतरिक्ष से ली हुई तस्वीरें भी सौंपी। इन तस्वीरों में साफ दिख रहा था कि आईएस बड़े पैमाने पर पर पेट्रोलियम उत्पादों का कारोबार कर रहा है। तस्वीरों में कई किलोमीटर तक लगा गाड़ियों का काफिया दिखाई दे रहा था, जो आईएसआईएस से तेल खरीदने के लिए लाइन में लगे थे। इसमें जी-20 के कुछ सदस्य देश भी शामिल थे। व्लादिमीर पुतिन का यह रहस्योद्घाटन आतंकवाद ख़त्म करने के मुद्दे पर कई देशों की दोहरी नीति दर्शाता है। एक तरफ वो आईएसआईएस के विरोध का दिखावा करते हैं तो दूसरी तरफ आईएसआईएस से सांठगांठकर कारोबार भी कर रहे हैं। आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठन को इसलिए पैसे और हथियार की कमी नहीं हो रही है, बल्कि इसके ठीक उलट दिन पर दिन वो पैसे और हथियार के मामले में मजबूत ही होता जा रहा है। सीरिया के राजनीतिक हालात इतने खराब और अजीब हैं कि वहां पर मदद के लिए आने वाले सभी देश एकजुट होकर आईएसआईएस के खिलाफ नहीं लड़ पा रहे हैं। एक तरफ सीरिया, रूस, और ईरान हैं, जो सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद के समर्थन में उनकी ओर आईएसआईएस से लड़ रहे हैं, दूसरी तरफ अमरीकी नेतृत्व वाले गठबंधन हैं, जो सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद के विरोध में हैं और ये भी आईएसआईएस से लड़ने का दावा या दिखावा कर रहे हैं।

यही वजह है कि सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद अमरीकी नेतृत्व वाले गठबंधन पर आईएसआईएस को मदद ओर बढ़ावा देने का आरोप अक्सर लगाते रहे हैं। सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद ये बात कईबार कह चुके हैं कि अगर आतंकवाद को ख़त्म करना है तो सीरिया, रूस, और ईरान वाले गठबंधन को सफल होना पड़ेगा। उनकी बातों में कुछ सच्चाई नजर आती है। सभी जानते हैं कि फ्रांस ने सीरिया और इराक में वर्षों से चल रहे आतंकी संगठनों से युद्ध में अमेरिकी फौज का साथ दिया है। आज भी कई देशों में अमेरिकी अगुआई वाले गठबंधन के साथ मिलकर फ्रांस की फौज भी आईएसआईएस और उसके जैसे अन्य आतंकवादी संगठनों के खिलाफ लड़ाई लड़ रही है। यही कारण है कि आईएसआईएस उसे निशाना बना रहा है। आईएसआईएस का नेटवर्क फ्रांस में सबसे ज्यादा मजबूत है, क्योंकि पूरे यूरोप में फ्रांस में ही सबसे ज्यादा मुस्लिम रहते हैं। दुनिया के सारे मुस्लिम देश और मुस्लिम भाई यही कहते हैं कि उनका आईएसआईएस से कोई लेना देना नहीं है, किन्तु कोई उस संगठन को काफिर घोषित करने को तैयार नहीं है और उन आयतों को भी अपने पवित्र धर्मग्रन्थ से हटाने को तैयार नहीं हैं, जो जिहाद से संबंधित हैं और जिसका भरपूर दुरूपयोग आईएसआईएस और उसके जैसे अन्य आतंकी संगठन कर रहे हैं।

दुर्भाग्य से, आईएसआईएस से एक आंतरिक सहानुभूति भी बहुत से मुस्लिम देशों में नजर आती है। यह आंतरिक सहानुभूति भारत में भी कुछ लोंगो में नजर आती है। आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठन पर दिए गए दो भारतीय नेताओं के बयान पढ़ लीजिये। पेरिस के हमलों पर टिप्पणी करते हुए आज़म ख़ान जी ने कहा था, ‘ये रिएक्शन है, सुपरपॉवर को इस बारे में सोचना चाहिए कि ये कहां का रिएक्शन है।’ यही नहीं बल्कि दुनिया के सभी ताक़तवर देशों को नसीहत देते हुए उन्होंने कहा था, “उस रिएक्शन में जो एक्शन हुआ था वो होना चाहिए था या नहीं होना चाहिए था, ये सुपरपॉवर्स को सोचना चाहिए। अगर वो लोग नहीं सोचेंगे तो हालात बनने के बजाए और बिगड़ने का अंदेशा है।” इसे आप क्या कहेंगे, आईएसआईएस का विरोध या सहानुभूति? यदि इस पर आप गहराई से विचार करें तो ये एक तरह से तीसरे विश्वयुद्ध की ओर संकेत भी है। इसमें आईएसआईएस का विरोध कहाँ है? एक तरह से सहानुभूति ही जाहिर होती है। ऐसे एकतरफा और विवादित बयान माननीय नेताओं को नहीं देना चाहिए। पेरिस में हुए आतंकी हमलों पर यूपी के मंत्री आजम खान जी के बयान के बाद यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे मणिशंकर अय्यर ने भी एक विवादित बयान दिया।

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वरिष्ठ कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर जी ने कहा, ‘9/11 के बाद से बिना यह सोचे कि कौन मासूम मुसलमान है और कौन गुनहगार है, मुसलमानों को इतनी बड़ी तादाद में मारोगे, उनका घर खत्म करोगे, जैसा कि अमेरिका ने इराक और अफगानिस्तान में किया तो इसका तो रिऐक्शन होगा ही। यह लाजिमी है।’ उन्होंने कहा कि अब लगता है कि अमेरिका सीरिया में भी ऐसा ही करने वाला है। इस पर फ्रांस को विचार करना चाहिए कि इसको कैसे रोकें। उन्होंने कहा, ‘फ्रांस में कहते हैं कि हिजाब नहीं पहना जा सकता है। इसका मुसलमानों की सोच पर कुछ तो असर होगा।’ मणिशंकर अय्यर साहब आप यह भूल गए कि जरुरत पड़ने पर हिजाब पर पाबंदी भारत में भी लगाई जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई २०१५ में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) की ओर से आयोजित होने वाली ऑल इंडिया प्री मेडिकल टेस्ट (AIPMT) के लिए तय ड्रेस कोड में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया था, जिसके बाद मुस्लिम अभ्यर्थी कक्षा में पूरी आस्तीन की कमीज, हिजाब या बुर्का पहनकर नहीं जा सके। आतंकी संगठनों से सहानुभूति नहीं, बल्कि आज जरुरत इस बात की है कि सॉरी दुनिया मिलकर उनका विरोध करे, तभी संसार से आतंकवाद मिटेगा, नहीं तो संभावी विनाश तय है।

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आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कन्द्वा, जिला- वाराणसी. पिन- २२११०६.
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