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गिव इट अप कहीं ‘बीजेपी छोड़ें’ अभियान में न तब्दील हो जाये

सद्गुरुजी
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“गिव इट अप” कहीं “बीजेपी छोड़ें” अभियान में न बदल जाये
कई महीने पहले प्रधानमंत्री ने सक्षम एवं सुविधासंपन्न लोगों को सब्सिडी वाला गैस सिलेंडर छोड़ने के लिए ‘गिव इट अप’ (इसे छोड़ें) अभियान शुरू किया था। मोदी सरकार की इस मुहिम से जुड़कर अबतक लाखों सक्षम लोगों ने गरीबों के खातिर अपनी गैस सब्सिडी छोड़ दी है। पीएम मोदी द्वारा चलाई गई इस मुहिम का असर देशभर में बहुत तेज रफ्तार से हुआ है। इस मुहिम के चलने का बहुत अच्छा परिणाम निकला है और लाखों गरीब लोगों के घरों में गैस चुल्हे जले हैं। एलपीजी सिलेंडर पर सब्सिडी छोड़ने के लिए अभियान चलाने के पीछे सरकार का मकसद सब्सिडी बिल में बचत कर खजाना भरना नहीं है, बल्कि सरकार ऐसा कर उन गरीबों को स्वच्छ ऊर्जा उपलब्ध कराना चाहती है जो खाना पकाने के लिये लकड़ी जलाते हैं। मोदी सरकार की इस कल्याणकारी मुहिम से देशभर की सभी गैस एजेंसियां, नेता और जानी मानी हस्तियां जुड़ चुकी हैं। इसे अभियान की सफलता ही कहेंगे कि लाखों लोंगो के साथ साथ फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्‍चन से लेकर मोदी विरोधी नेता असदुद्दीन ओवैसी तक ‘गिव इट अप’ अभियान से जुड़कर अपनी LPG सब्सिडी छोड़ चुके हैं।
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‘गिव इट अप’ (इसे छोड़ें) मुहीम गरीबों के लिए हितकारी है, इसमें कोई संदेह नहीं। मोई सरकार यह वादा कर रही है कि इस प्रयास से बचाए गए धन का उपयोग सरकार गरीबों को एलपीजी कनेक्‍शन देने में करेगी। राष्ट्र हित में यह मुहीम जारी रहनी चाहिए, किन्तु ये मुहीम स्वेच्छिक होनी चाहिए। पिछले एक महीने में कई परेशान लोंगो से चर्चा के बाद मैंने महसूस किया कि स्वेच्छा से गैस की सब्सिडी छोड़ने की एक अच्छी योजना योजना मध्यम और गरीब वर्ग के गैस उपभोक्ताओं के लिए जी का जंजाल बनती जा रही है। बहुत से लोग मोदी सरकार से बेहद नाराज हैं और उसे कोसते हुए गैस एजेंसियों के चक्कर लगा रहे हैं। इसका कारण यह है कि गैस एजेंसियों द्वारा उपभोक्ताओं को गलत तरीके से जबरदस्ती इस मुहीम से जोड़ा जा रहा है। पहले जब उपभोक्ता अपने मोबाइल से गैस सिलेंडर की बुकिंग करवाते थे तो उनको गैस सब्सिडी छोड़ने का मैसेज सुनाई देने के बाद गैस बुकिंग कराने के लिए एक नम्बर बटन दबाने का मैसेज सुनाई देता था।

उस समय गैस सब्सिडी छोड़ने के लिए “जीरो” बटन दबाने का ऑप्शन नहीं था। लेकिन अब उपभोक्ता अपने मोबाइल से गैस सिलेंडर की बुकिंग करवाते हैं, तो उनको गैस सब्सिडी छोड़ने का मैसेज सुनाई देने के बाद गैस सब्सिडी छोड़ने के लिए “जीरो” बटन दबाने को कहा जाता है, फिर उसके बाद गैस बुकिंग की चर्चा और एक नंबर बटन दबाने की बात होती है। बहुत से लोगों से हड़बड़ाहट में गैस बुकिंग कराने के लिए “जीरो” का बटन दब जाने से उपभोक्ता की रिक्वेस्ट सब्सिडी छोड़ने वाले की लिस्ट में पहुंच जा रही है। बहुत से लोग ये आरोप लगा रहे हैं कि मोबाइल पर कंपनी की ओर से फोन कर सब्सिडी त्यागने के नाम पर उपभोक्ताओं को गुमराह किया जा रहा है और उनकी मर्जी के बगैर सब्सिडी बंद कर दी जा रही है। इंडेन ने अपने सॉफ्टवेयर में सब्सिडी छोड़ने का ऑप्शन गलत दिया है। यह बहुतों के लिए बेहद दुखद और गुस्सा दिलाने वाली बात है कि जा रहे हैं मोबाईल से गैस बुक करने और गैस पर मिलने वाली सब्सिडी से ही हाथ धो बैठ रहे हैं। गैस बुकिंग करने के बाद ही गैस सब्सिडी छोड़ने की बात होनी चाहिए, जबकि हो इसके उलट रहा है।

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यही वजह है कि गरीब और मध्यम वर्ग के लोग तेल कम्पनियों के बड़ी चालाकी से बिछाए गए सब्सिडी छुडवाने के सॉफ्टवेयर के जाल में फंस जा रहे हैं। लगभग एक महीने पहले मोबाइल से गैस बुकिंग कराने वाले सॉफ्टवेयर में सब्सिडी छोड़ने का ऑप्शन जोड़ा गया है। सिलेंडर बुक करने के दौरान वॉइस सिस्टम में हिंदी/अंग्रेजी भाषा में सब्सिडी छोड़ने के लिए जीरो दबाने को कहा जाता है। गरीब और मध्यम वर्ग के बहुत से ऐसे ग्राहक जो इसे ध्यान से नहीं सुन या समझ पाते हैं, उनके जीरो बटन दबाने के कुछ देर बाद उनके मोबाइल पर इंडेन की तरफ से सब्सिडी छोड़ने पर धन्यवाद का मैसेज आता है। जब गैस बुकिंग की बजाय गैस सब्सिडी छूटने की बात उन्हें पता चलती है तो उनका माथा ठनक जाता है। उनकी गैस सब्सिडी न चाहते हुए भी बंद हो जा रही है। अमीर लोगों पर दो सौ रूपये की गैस सब्सिडी छोड़ने का कोई असर नहीं पडेगा, किन्तु गरीब और मध्यम वर्ग के ब्यक्ति के लिए दो सौ रूपये बहुत मायने रखते हैं। इसलिए ये सब्सिडी खोने वाले बहुत से परेशान ग्राहक अपनी गैस एजेंसी के चक्कर लगा रहे हैं। उन्हें न्याय नहीं मिला तो मामला कोर्ट तक भी जा सकता है।

ऐसे पीड़ित ग्राहकों को एजेंसी वाले भी परेशान कर रहे हैं.. कुछ फोन नंबर देकर वे कहते हैं.. यहाँ फोन करो.. वहां फोन करो.. अब फिर से नया गैस कनेक्शन लो.. या फिर.. अब अगले साल तक इन्तजार करो.. जैसे टरकाउ जुमले परेशान ग्राहक को सुनाने को मिल रहे हैं। मुझे लगता है कि ये उपभोक्ताओं के साथ छल है। उपभोक्ताओं की मर्जी के बगैर गैस सब्सिडी बंद करने पर बहुत से उपभोक्ता कोर्ट जाने तक का मन बना लिए हैं। ऐसे पीड़ित उपभोक्ताओं का तीव्र विरोध देख अब तेल कंपनियां पैंतरा बदलते हुए ये बात कह रही हैं कि अब धोखे से यदि किसी ग्राहक से जीरो दबेगा तो इंडेन से यह संदेश एजेंसी पर ट्रांसफर होगा। इसके बाद एजेंसी द्वारा ग्राहक से पूछा जाएगा कि क्या वे सब्सिडी छोड़ना चाहते हैं? ग्राहक हां कहता है तो ठीक है, यदि वह भूलवश जीरो बटन दबने की बात कहता है, तो उसकी रिक्वेस्ट रिजेक्ट कर दी जाएगी। मोदी सरकार को इस गलती की ओर तुरंत ध्यान देना चाहिए। उनका गैस सब्सिडी छोङने का अभियान ‘गिव इट अप’ (इसे छोड़ें) कही नाराज उपभोक्ताओं द्वारा “बीजेपी छोड़ें” अभियान में न तब्दील हो जाये।
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देश में करीब 15.3 करोड़ एलपीजी उपभोक्ता हैं। प्रधानमंत्री जी की ये अच्छी सोच है कि यदि एक करोड़ लोग सब्सिडी छोड़ते हैं तो इतनी ही संख्या में गरीब परिवारों को इस स्वच्छ ऊर्जा का फायदा मिलेगा। इसके लिए मोदी सरकार अपने सांसदों, विधायकों, सरकारी कर्मचारियों, और औद्योगिक घरानों को सब्सिडीयुक्त गैस सिलेंडर छोड़ने के लिए प्रेरित करे, क्योंकि सक्षम एवं सुविधासंपन्न लोग तो वही हैं। कर्ज के बोझ तले दबा और किसी तरह जी खा रहा गरीब और मध्यम वर्ग भला उसकी क्या मदद करेगा? उन्हें परेशान करना छोड़ें। यही बीजेपी के हित में है। केन्द्र सरकार सब्सिडी छोड़ने के लिये स्लोगन और विज्ञापन के जरिये देशभर में मुहीम चलाने के साथ ही मंहगाई और सब्सिडी पर मंथन करने वाली संसद के सदस्यों को भी सब्सिडी और सुविधाएँ छोड़ने को कहे। वो संसद की कैंटीन की सब्सिडी खत्म कर यह पहल शुरू करे। लाखों परिवारों ने अपनी गैस सब्‍सिडी छोड़ दी है। अब देश के नेताओं को भी चाहिए सिर्फ जनता को ही त्याग का उपदेश देने की बजाय अब वो खुद भी सुख सुविधाएँ और सब्सिडी त्याग करने का आदर्श प्रस्तुत करें।

(केंद्र सरकार के एक महत्वपूर्ण अभियान ‘गिव इट अप’ (गैस सब्सिडी छोड़ें) पर देश की मीडिया में काफी चर्चा हो चुकी है। मीडिया में फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन के ‘गिव इट अप’ अभियान से जुड़ने की चर्चा हुई तो वहीँ दूसरी तरफ देश के सांसदों से भी सवाल पूछा गया कि क्या सांसदों को सब्सिडी वाला भोजन करना शोभा देता है? ‘गिव इट अप’ (गैस सब्सिडी छोड़ें) अभियान को लेकर मीडिया में व्यंग्यात्मक कार्टून भी खूब छपे। एक कार्टून साभार प्रस्तुत किया गया है, जिसमे कुछ गरीब व्यक्ति प्रधानमंत्री से निवेदन कर रहे हैं कि हम अपनी एलपीजी सब्सिडी छोड़ने को तैयार हैं, बस हमें संसद की कैंटीन में सस्ता भोजन करने की अनुमति दी जाये।)

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