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“भयादोहन” यानि “ब्लैकमेल” की शिकार हो रही है मोदी सरकार

सद्गुरुजी
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‘भयादोहन’ यानि ‘ब्लैकमेल’ की शिकार हो रही है मोदी सरकार
अंग्रेजी के ‘ब्लैकमेल’ शब्द का हिंदी में अर्थ है ‘भयादोहन’। इसका अर्थ हुआ कि भयभीत होने का दिखावा करो और दूसरों पर दबाब डालकर अपना उल्लू सीधा करो। हमारे देश में आजकल कुछ जानी मानी हस्तियां अपने निजी फायदे के लिए इसका भरपूर उपयोग कर रही हैं। उनका मकसद है, मोदी सरकार और सेंसर बोर्ड पर दबाब डालने की राजनीति करना, जिससे उनकी वो फ़िल्में अधर में न लटकें, जिनमे ‘पीके’ फिल्म की तरह जानबूझकर हिंदुओं के देवी-देवताओं का मजाक उड़ाया गया हो या फिर हिन्दुओं में कुछ कथित संत, महात्मा जो लोगों को बेवक़ूफ़ बना रहे हैं उनके बारे में बात कहनी हो। इस बात को मैं मानता हूँ कि हिंदी फ़िल्में समाज को अच्छा संदेश देने का एक बहुत सशक्त माध्यम हैं। धर्म और जात-पात के नाम पर समाज में सदियों से जो भेदभाव होता चला आ है, समय समय पर बनने वालीं कुछ फिल्मे उन्हें चुनौती देती रही हैं और भविष्य में भी देती रहेंगी।

इसी तरह से भगवान और देवी-देवताओं के नाम पर देशभर में हो रही लूट-खसोट, हिन्दू धर्म के कर्मकांड रूपी मकड़जाल में उलझकर ठगाते और परेशान होते लोग, मन में विभिन्न तरह के अंधविश्वास पालने के दुष्परिणाम झेलती आम जनता और पाखंडी व बहुरपिये बाबाओं द्वारा भोले भाले लोंगो, खासकर महिलाओं का तन, मन और धन से शोषण, यह सभी बातें हमने एक नहीं, बल्कि अनेक फिल्मों में देखी हैं और भविष्य में भी देखने को मिलती रहेंगी। हिन्दुओं ने इन सब सामाजिक बुराइयों को दिखाने का समय समय पर स्वागत भी किया है और कुछ हद तक विरोध भी। विरोध तभी किया, जब उसके देवी-देवताओं का मजाक उड़ाया गया। पिछले साल दिसम्बर में रिलीज हुई आमिर खान की फिल्म ‘पीके’ भी ऐसी ही एक फिल्म थी, जिसमे देवी-देवताओं का मजाक उड़ाया गया था, इसलिए उसका हिन्दू संगठनों द्वारा काफी विरोध किया गया।

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नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से हिन्दू संगठन ज्यादा संगठित और सक्रीय हुए हैं। यही वजह है कि ‘पीके’ जैसी फिल्मों का भविष्य में न सिर्फ भारी विरोध होगा, बल्कि वो सेंसर बोर्ड में जा के भी अटक सकती हैं। हिन्दू संगठनों का ये आरोप बहुत हद तक जायज है कि सामाजिक बुराइयां सिर्फ हिन्दू धर्म में ही नहीं हैं, मुस्लिम धर्म में भी अनेकों सामाजिक रूढ़ियाँ और खामियां हैं, आप उसका विरोध क्यों नहीं करते हैं? यही वजह है कि हिन्दू संगठन बार-बार आमिर खान सहित अन्य मुस्लिम कलाकारों और फिल्मकारों को चुनौती देते हैं कि उनमें हिम्मत है तो वो अपने धर्म की खामियों को उजागर करने वाली फ़िल्में बना के दिखाएँ। मोदी सरकार से फिल्मकारों और कलाकारों को यही सबसे बड़ी परेशानी हो रही है और वो अपनी इस परेशानी को छुपाने के लिए ही ये झूठा बयान दे रहे हैं कि देश में असहनशीलता बढ़ रही है। वे (आमिर खान) देश के कुछ बुद्धिजीवी वैज्ञानिकों, लेखकों, कवियों, कलाकारों तथा फिल्म निर्माताओं द्वारा अपने पुरस्कार लौटाने तथा देश में बढ़ती हुई तथाकथित असहिष्णुता के माहौल के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराने के कदमों का समर्थन करते हैं।

खूब समर्थन का नाटक कीजिये जनाब, पर कांग्रेस के शासन में और १९८४ के भयावह सिख दंगो के समय आप क्यों सो रहे थे? बिहार चुनाव में भाजपा को हराने का झूठा दम्भ भरने के बाद मोदी विरोधी बुद्धिजीवी शांत और संतुष्ट हो चले थे, किन्तु अभी बहुत से छुपे रुस्तम लोंगो के नापाक मंसूबे पूरे नहीं हुए थे। जिन्हे अपने निजी फायदे के लिए मोदी सरकार का ‘भयादोहन’ यानि ‘ब्लैकमेल’ करना था, वे भला कहाँ चुप बैठने वाले थे। उनका एक ही मकसद है कि मोदी सरकार पर दबाब बनाकर सेंसर बोर्ड को आजाद करा दो, ताकि वो उनकी किसी भी फिल्म पर अपनी आपत्तिजनक रूपी कैंची न चलाये। देश में असहिष्णुता पर दिनोदिन खत्म होती जा चर्चा को बॉलीवुड अभिनेता आमिर खान ने अपने निजी फायदे के लिए फिर से हवा दे दी है। कल पत्रकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए रामनाथ गोयनका पुरस्कार वितरण कार्यक्रम के दौरान आमिर खान ने फरमाया कि वे भारत में असुरक्षा और भय महसूस करते हैं। इस देश में सुरक्षा और न्याय नहीं है।

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उन्होंने कहा, “मैं जब घर पर किरण के साथ बात करता हूं, वह कहती हैं कि क्या हमें भारत से बाहर चले जाना चाहिए? उन्हें अपने बच्चे की चिंता है। उन्हें भय है कि हमारे आसपास कैसा माहौल होगा? उन्हें हर दिन समाचार पत्र खोलने में डर लगता है।” आप और आपकी पत्नी दोनों धन्य हैं आमिर खान जी। महलनुमा बंगले में आप तगड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच रहते हुए भी इतना बड़ा झूठ बोलते हैं। देश के लाखों करोड़ों गरीब मुसलमान भाई अपनी झोपडी, मकान या दूकान के बाहर रातभर चैन से सोते हैं। उन्होंने तो कभी ऐसा दुखद और निंदनीय बयान नहीं दिया। अपने देश और मातृभूमि के लिए वो मर मिटने वाले गरीब लोग हैं और गरीब और गुमनाम होते हुए भी आपसे लाखों गुना बेहतर हैं। वो असली हीरो हैं। उन्हें मैं नमन करता हूँ। आपने अपने साथ साथ उन्हें भी बदनाम कर दिया। एक व्यक्ति गलती करता है और समाज उसकी समूची जाति और कौम को गाली देता है।

आज यही हो रहा है। मातृभूमि और जनता जनार्दन ने जो बेशुमार दौलत और शोहरत आपको दी है, उसका एहसान मानिये और यदि नहीं मानना है तो गद्दारी का तमगा लगाकर किसी भी देश में चले जाइये, किन्तु पूरी कौम को बदनाम मत कीजिये। हम सबको मिलजुल के इसी हिन्दुस्तान में रहने दीजिये। हम सब लोग गरीब हैं, किन्तु देश के लिए मर मिटने वालें हैं। हमें यहीं जीना है और यहीं मरना है। आप अब आमिर नहीं अमीर हैं, जाइये, किसी भी मुल्क में बसिये। हम यही सोच के सब्र कर लेंगे कि एक अहसानफरामोश अब हमारे बीच नहीं है। आपने इस मुल्क में दो शादियां की, वो भी हिन्दू लड़कियों से, किसने आपको रोका? आपने बेशुमार दौलत और लोकप्रियता हासिल की, किसकी बदौलत, हिन्दुस्तान के अवाम की बदौलत। उसे छोड़कर आपको जहाँ भी जाना है, जाइए। देश की जनता को ऐसे अहसानफरामोश लोंगो की फिल्मों का बॉयकाट करना चाहिए।

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