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महिलाओं के प्रति भेदभाव वाली सोच कब बदलेगी? -जागरण मंच
औरत संसार की किस्मत है,
फिर भी तकदीर की हेटी है।
अवतार पयम्बर जनती है,
फिर भी शैतान की बेटी है।
दोहरा चरित्र और रूढ़िवादी सोच वाला जीवन जीने वाले समाज के एक बड़े धार्मिक वर्ग द्वारा आज भी अपवित्र, तिरष्कृत और दोयम दर्जे की समझी जाने वाली स्त्री के लिए साहिर लुधियानवी साहब ने बहुत सही कहा है। महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के शिंगणापुर गांव स्थित प्रसिद्ध शनि मंदिर में शनिवार को एक महिला श्रद्धालु द्वारा शनि महाराज को तेल चढाने से बवाल मच गया। महिलाओं को शनि प्रतिमा की पूजा करने से रोकने वाली 400 साल पुरानी प्रथा टूट गई। आनन फानन में मंदिर समिति ने सात सुरक्षा कर्मियों को लापरवाही बरतने के आरोप में निलंबित कर दिया। ग्रामीणों ने रविवार को मूर्ति का दूध से अभिषेक कर शनि महाराज की मूर्ति को शुद्ध किया। इस घटना के विरोध में उन्होंने सोमवार को बंद का आह्वान भी किया है। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि सूर्यपुत्र शनिदेव बाल ब्रह्मचारी हैं, इसलिए महिलाओं को उनके पास जाकर पूजा करने की इजाजत नहीं है। इसके पीछे तर्क यह दिया जाता है कि शनि प्रतिमा पर पुरुषों द्वारा तेल चढ़ाया जाना शुभ और उन्नतिप्रद है, किन्तु यदि महिलाएं शनि भगवान को तेल चढ़ाएँगी तो इसका उल्टा असर होगा और उनके परिवार पर मुसीबत आएगी। जिस महिला ने शनि महाराज की प्रतिमा पर तेल चढाने का साहस किया है, उसे महाराष्ट्र की अंधश्रद्धा निरमूलन समिति स्त्री अधिकारों और लैंगिक समानता के लिए लड़ने वाली एक क्रन्तिकारी महिला बता रही है।
पंद्रह साल पहले भी रंगकर्मियों द्वारा शनि मंदिर में महिलाओं को पूजा करने का अधिकार दिलाये जाने के लिए आंदोलन किया था, किन्तु वह सफल नहीं हुआ था। भारत में ऐसी कई जगहे हैं, जहाँ पर ये मान्यता है कि महिलाओं के आने से यह स्थान अपवित्र हो जाएगा। मुंबई के वर्ली समुद्र तट पर स्थित मशहूर हाजी अली शाह बुखारी की दरगाह में महिलाओं के प्रवेश पर कुछ दिनों पहले ही रोक लगी है। यहाँ के ट्रस्ट के मुताबिक, मजार के करीब महिलाओं का जाना महापाप है, इसलिए शरीयत किसी भी पवित्र कब्र के आसपास महिलाओं के जाने की अनुमति नहीं देती है। राजस्थान के पुष्कर शहर में स्थित ब्रह्मचारी कार्तिकेय के मंदिर में महिलाऐं नहीं जा सकती हैं पुजारियों का कहना है कि यदि महिलाएं मंदिर में जाएँगी तो कार्तिकेय भगवान नाराज हो जायेंगे। केरल के तिरुअनंतपुरम में स्थित पद्मनाभस्वामी मंदिर में भी महिलाओं के प्रवेश पर रोक है। यहाँ के पुजारियों का तर्क बेहद हास्यास्पद है। वे मानते हैं कि इस मंदिर के तहखाने में यदि महिलाएं जाएँगी तो खजाने को बुरी नज़र लग जाएगी और इससे पद्मनाभस्वामी यानि भगवान विष्णु नाराज हो जायेंगे। दक्षिणी दिल्ली में स्थित हजरत निज़ामुद्दीन औलिया का मकबरा सूफी काल का एक पवित्र दरगाह है। इस दरगाह में भी औरतों का प्रवेश निषेध है।
भारत की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक जामा मस्जिद में भी सूर्यास्त के बाद महिलाओं का प्रवेश निषेध है। कुछ मंदिरों में प्रवेश करने के लिए वहां पर तय की गई पोशाक पहननी जरुरी है। मध्यप्रदेश राज्य के गुना शहर में स्थित जैनों के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल मुक्तागिरी जैन मंदिर में कोई भी महिला पाश्चात्य परिधान पहनकर प्रवेश नहीं कर सकती हैै। काशी विश्वनाथ मंदिर में भी अब नया ड्रेस कोड लागू हो गया है। अब विदेशी महिला श्रद्धालुओं को बिना साड़ी पहने मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया जाएगा। मंदिर में किसी भी लड़की के हाफ पैंट, कैप्री या मिनी स्कर्ट पहनकर अंदर जाने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया गया है। सबसे ज्यादा शर्मिंदगी आपको ये जानकर होगी कि केरल के सबसे प्राचीन और भव्य मंदिरों में शामिल सबरीमाला श्री अयप्पा में 10 से लेकर 50 साल की महिलाएं प्रवेश नहीं कर सकतीं हैं, क्योंकि इस मंदिर की मान्यता के अनुसार महिलाऐं तबतक शुद्ध नहीं मानी जाएँगी, जबतक उन्हें मासिक धर्म होगा। मंदिर के बोर्ड ने कुछ दिनों पहले अपने एक बयान में कहा था कि जब तक महिलाओं की शुद्धता यानि मासिक धर्म की जांच करने वाली कोई मशीन नहीं बन जाती है, तबतक मंदिर में सभी महिलाओं के प्रवेश की अनुमति खुले तौर पर नहीं दी जा सकती है।
महिलाओं को जिन मंदिरों, मस्जिदों या दरगाहों में प्रवेश की अनुमति नहीं है, यदि आप उसके मूल कारण पर विचार करें तो यही पाएंगे कि उनके विचार से महिलाओं को मासिक धर्म होता है, वो बच्चे पैदा करती हैं, इसलिए पवित्र नहीं हैं और उन्हें तथाकथित पवित्र स्थानों पर प्रवेश कि अनुमति नहीं है। उन्हें भय है कि उनके प्रवेश करने से पवित्र स्थान अपवित्र हो जाएगा। आइये पहले इसी बात पर विचार करें कि जो मासिक रक्तस्राव मनुष्यों की उतपत्ति का मार्ग प्रशस्त करता है, क्या वो वास्तव में गंदा और अपवित्र है? आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के अनुसार मासिक धर्म, शरीर के गर्भावस्था के लिए तैयार होने की प्रक्रिया का एक हिस्सा है। मासिक रक्तस्राव के दौरान शरीर से गंदा या दूषित रक्त निकलने की बात सत्य नहीं है और न ही यह बात सत्य है कि ऐसी स्त्री स्कूल या किसी धार्मिक स्थल में नहीं जा सकती हैं या फिर व्यायाम नहीं कर सकती हैं। बहुत से पुरुषों की सोच ही रूढ़िवादी और महिलाओं का शोषण करने वाली है। केरल के सुन्नी नेता कनथापुरम एपी अबूबकर मुस्लीयर ने लैंगिक समानता की बात को ‘गैर-इस्लामी’ करार दिया और कहा कि महिलाएं कभी पुरुषों के बराबर नहीं हो सकतीं, क्योंकि वे केवल बच्चे पैदा करने के लिए होती हैं।
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आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कन्द्वा, जिला- वाराणसी. पिन- २२११०६.
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