Menu
blogid : 15204 postid : 1119511

सूफीमत हिन्दू मुस्लिम को जोड़ने का मन्त्र-जागरण जंक्शन मंच

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
  • 534 Posts
  • 5673 Comments

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
सूफी मत हिन्दू मुस्लिम को जोड़ने का मन्त्र-जागरण जंक्शन मंच

मंगलवार को राज्य सभा में प्रधानमंत्री नरेन्द्रमोदी ने शीतकालीन सत्र के दौरान संविधान पर हुई दो दिवसीय चर्चा का जवाब का जबाब देते हुए कहा, “बिखरने के तो कई बहाने हैं पर, लोगों को जोडऩे के लिए अवसर खोजने पड़ते हैं। जोडऩे का मंत्र सभी तक पंहुचाना ही हमारा दायित्व है।” प्रधानमंत्री ने कहा कि देश तू-तू मै-मै से नहीं चलेगा, इसे छोड़ ‘हम’ को अपनाना होगा। ‘हम’ के ‘ह’ से हिन्दू और ‘म’ से मुस्लिम भी कहा जाता है। हिन्दुस्तान में हिन्दू मुस्लिम सदियों से साथ रहते आये हैं और आगे भी सदा साथ रहेंगे, इसलिए हमें दोनों को आपस में जोड़ने वाला मंत्र तलाशना ही होगा। बिना इसके न तो सबका साथ संभव है और न ही सबका विकास।

ajmer-dargahgfgf
प्रधानमंत्री जी की बात सुनकर मुझे ख्याल आया कि ‘सूफी मत’ हिन्दू मुस्लिम दोनों को जोड़ने का एक अच्छा मंत्र साबित हो सकता है। भारत में जो हिन्दू मुस्लिम एकता है, उसमे ‘सूफी मत’ का एक अहम रोल रहा है। पिछले महीने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ब्रिटेन के वेम्बले स्टेडियम में मुस्लिम समुदाय समेत सभी समुदायों के करीब 60 हजार की संख्या में भारतीय मूल के लोगों को संबोधित करते हुए कहा था, “इस्लाम में सूफी परंपरा बलवान हो गई रहती और जिसने भी सूफी परंपरा को समझा होता तब वह हाथ में बंदूक लेने का विचार नहीं करता।” प्रधानमंत्री जी ने सूफी परम्परा को समझने की बात की थी, इसलिए आइये आज ‘सूफी मत’ पर चर्चा करें।

जब लगी विरह न होई तन,हिए न उपजइ प्रेम,
तब लगी हाथ न आव तप करम धरम सतनेम।

सूफी संत इस्लाम को मानते हुए भी एक स्वतंत्र और उदार विचारधारा का समर्थन करते हैं। सूफियों ने सभी धर्मो का आदर किया है और सभी धर्मों से कुछ न कुछ ग्रहण भी किया है। बौद्ध धर्म से माला जपना. जैन धर्म से अहिंसा का पालन करना, और योगियों से ध्यान करना सीखा। सूफियों की सबसे बड़ी विशेषता एक ईश्वर में विश्वास करना और हिन्दू मुस्लमान दोनों को एक ही ईश्वर की संतान बताना है। सूफियों ने हिन्दू धर्म की मूर्ति-पूजा से प्रभावित होकर समाधि पर दिया जलाना और पीरों की पूजा करना शुरू किया। सूफी संतों ने सभी धर्मों से कोई न कोई अच्छाई ग्रहण किया है। सूफियों ने सभी धर्मों के बाहरी आडम्बर का विरोध किया है।

सूफियों की दृष्टि में परमतत्व निर्गुण और निराकार है। ईश्वर और संसार का सम्बन्ध समुन्द्र और उसकी लहर के जैसा है। ईश्वर समुन्द्र के समान है और संसार उसकी लहर के जैसा है। परमात्मा और इंसान का सम्बन्ध फूल और उसकी गंध, पानी और उसमे उठा बुलबुला जैसा है। मृग की नाभि में जैसे कस्तूरी छुपी रहती है, उसी प्रकार से ब्रह्म शरीर रूपी घट के भीतर छिपा रहता है। सूफियों का मूल मंत्र प्रेम है. उनकी दृष्टि में प्रेम दो तरह का है. पहला- इश्के मजाजी यानि सांसारिक प्रेम और दूसरा इश्के हकीकी यानि अलौकिक अथवा आध्यात्मिक प्रेम। सांसारिक प्रेम धीरे-धीरे ईश्वरीय प्रेम में बदल जाये, यही सूफियों की नज़र में मानव जीवन की पूर्णता है। इश्के मिजाजी या सांसारिक प्रेम स्वार्थ और संकीर्णता से परे होना चाहिए, तभी वो दोष रहित है।

amitabh-bachchan-visit-ajmer-sharif-dargah
साधक व्यक्तिगत सुख-दुःख, लाभ-हानि और यश-अपयश से ऊपर उठते हुए इश्के हकीकी या ईश्वरीय प्रेम की सिद्ध अवस्था में पहुंचता है। ईश्वर की आराधना करना सफियों के जीवन का मुख्य ध्येय रहा है और प्रेम उनकी साधना का मूल आधार रहा है। प्रेम के द्वारा अपने प्रियतम परमात्मा को रिझाना सूफियों के जीवन का एकमात्र लक्ष्य रहा है। सूफियों के अनुसार ह्रदय में प्रेम तीन तरह से प्रस्फुटित होता है। पहला-चित्र में दर्शन करके, दूसरा-स्वपन में दर्शन करके और तीसरा-साक्षात् दर्शन करके। इन तीनो में से किसी तरह का दर्शन करके प्रेमी अपने प्रियतम को ढूंढने निकल पड़ता है। सूफी दर्शन का मूल तत्व प्रेम है।

सूफी ये मानते हैं कि लौकिक यानि सांसारिक प्रेम व्यक्ति को वासना से बांधता है और अलौकिक यानि ईश्वर से प्रेम मन को शुद्ध करता है। सूफियों का मत है कि उनकी साधना में तीन तरह की अनुभूतियाँ होती हैं। पहला- प्राकृत यानि परिवर्तनशील संसार की अनुभूतियाँ, दूसरा- द्रष्टा अथवा साक्षीभाव की अनुभूतियाँ और तीसरा- परमात्मा के साथ एकत्व की। प्रमुख सूफी कवियों में पद्मावत के रचयिता मलिक मुहम्मद जायसी, मंझन, उस्मान, इब्नुल फरीद आदि हुए हैं। सबने यही सन्देश दिया है कि मानव तन और संसार का सदुपयोग करते हुए मनुष्य को सृष्टि के रचयिता का चितन हमेशा करते रहना चाहिए। सूफी संतों ने हिन्दू मुस्लिम एकता पर बहुत जोर दिया है। सूफी संत जायसी इस्लाम धर्म के अनुयायी होते हुए भी कहते हैं-
मातु के रक्त पिता कै बिंदू,
अपने दूनौ तुरुक और हिन्दू।

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कंदवा, जिला- वाराणसी. पिन- २२११०६)
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh