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मुस्लिम कट्टरपंथ को लेकर दोहरा मापदंड क्यों अपनाया जा रहा?

सद्गुरुजी
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मुस्लिम कट्टरपंथ को लेकर दोहरा मापदंड क्यों अपनाया जा रहा?

हिंदू महासभा के नेता कमलेश तिवारी द्वारा पैगंबर मोहम्मद साहब के बारे में की गई कथित आपत्तिजनक टिप्पणी के विरोध में विगत रविवार को मुसलमानों की भारी भीड़ ने मालदा के शुजापुर इलाके में विरोध रैली निकाली थी। मिडिया में प्रकाशित ख़बरों के अनुसार कमलेश तिवारी को फांसी दिए जाने की मांग कर रही लोगों की बेकाबू और हिंसक भीड़ ने एक बस पर हमला किया, पुलिस की गाड़ियों समेत दो दर्जन से ज्यादा गाड़ियों को फूंक दिया, पुलिस स्टेशन पर हमला किया और करीब 25 घरों में लूटपाट भी की, जिसके बाद पूरे इलाके में धारा 144 लगानी पड़ी थी। उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री आजम खान ने 29 नवंबर 2015 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में अशोभनीय और बेहद आपत्तिजनक टिप्पणी की थी, जिसकी प्रतिक्रिया के रूप में पैगंबर मोहम्मद साहब के प्रति हिंदू महासभा के नेता कमलेश तिवारी की निंदनीय टिप्पणी सोशल मीडिया में प्रकाशित हुई थी, जिसकी कटु आलोचना भी हुई थी। मुसमानों के गुस्से को देखते हुए और प्रदेश में शान्ति रखने की खातिर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस पर त्वरित और प्रशंसनीय कार्यवाही भी की थी। दो संप्रदायों के बीच नफरत फैलाने के आरोप में कमलेश तिवारी को 2 दिसंबर को ही गिरफ्तार कर लिया गया था और फिलहाल वो इस समय नेशनल सेक्युरिटी एक्ट यानी एनएसए के तहत लखनऊ जेल में बंद हैं।
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अब सवाल यह पैदा होता है कि कमलेश तिवारी के गिरफ्तार होने के एक महीने बाद यानी 3 जनवरी 2016 को पश्चिम बंगाल के मालदा ज़िले में विरोध रैली क्यों निकली गई? जिससे धार्मिक उन्माद में आकर कट्टरपंथियों की भारी भीड़ ने हिंसा की सारी हदें पार कर दीं? सवाल यह भी है कि इस गंभीर मामले पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अब तक खामोश क्यों हैं? यह भी पता नहीं कि यह सुनियोजित साज़िश है या फिर पश्चिम बंगाल में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव से इसका कोई संबंध है? यह बेहद गंभीर मामला है और गहन जांच का विषय है कि पश्चिम बंगाल में मुसलामानों के दिलों में नफरत की आग किसने लगाईं? इस मामले का एक दूसरा भी पहलू है और वो ये कि पश्चिम बंगाल में बहुत चिंताजनक रूप से मुस्लिम कट्टरवाद बढ़ रहा है और यह ये राष्ट्रीय हितों को भारी क्षति पहुंचा रहा है। धार्मिक कट्टरपंथ की एक दूसरी घटना पर गौर कीजिए। कोलकाता में 9 महीने पहले एक मदरसा शिक्षक काजी मासूम अख्तर की कुछ मुस्लिम कट्टरपंथियों ने पिटाई कर दी थी, क्योंकि उन्होंने मदरसे के बच्चों को राष्ट्रगान सिखाने की कोशिश की थी। इस पूरे मसले पर काजी मासूम अख्तर ने कहा, ”मैंने यहां राष्ट्रगान की शुरूआत की तो इस इलाके के कुछ कट्टरपंथियों और प्रबंधन के कुछ लोगों ने इसका विरोध किया और कहा कि ये गलत है। उन्होने कहा कि राष्ट्रगान इस्लाम विरोधी है।”
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मीडिया में प्रकाशित ख़बरों के अनुसार काजी मासूम अख्तर के खिलाफ जो फतवा जारी हुआ है उसमें उन्हें दाढ़ी बढ़ाने और कुर्ता पायजामा पहनने के लिए भी कहा गया है, जबकि वो शर्ट पैंट पहनना पसंद करते हैं। दिलचप बात ये है कि अख्तर साहब को दाढ़ी की लंबाई कितनी है, ये भी फतवा जारी करने वाले मौलाना ही तय करेंगे। ख़बरों से पता चला है कि काजी मासूम अख्तर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से लेकर राज्यपाल और अल्पसंख्यक आयोग तक गुहार लगा चुके हैं, लेकिन अभी तक न उनकी सुरक्षा को लेकर कोई भरोसा मिला है और न ही न वो दोबारा मदरसे में जा पाए हैं। पश्चिम बंगाल में मुस्लिम कट्टरवाद इस हद तक बढ़ चूका है और हैरत की बात है कि न सिर्फ देश के सेक्युलर नेता, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, बल्कि असहिष्णुता पर बड़ी बड़ी बातें करने वाले तथा सम्मान व पुरस्कार वापस करने वाले देश के बुद्धिजीवी, साहित्यकार और फिल्मकार भी इस संजीदा मसले पर यूँ खामोश हैं मानों सांप सूंघ गया हो। हर देशभक्त हिन्दुस्तानी के मन में आज ये सवाल उठ रहा है कि देश के कई भागों में बेहद खतरनाक स्तर तक पहुँच चुके मुस्लिम कट्टरपंथ को नजरअंदाज क्यों किया जा रहा है? इस देश को सुरक्षित रखना है और विकास के पथ पर आगे बढ़ाना है तो चाहे मुस्लिम हो, ईसाई हो, सिख हो या फिर हिन्दू हो, हर तरह के धार्मिक कट्टरवाद पर हमें रोक लगानी ही होगी। जयहिंद!!

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(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कंदवा, जिला- वाराणसी. पिन- २२११०६)
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