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शनि शिंगणापुर की गर्वमय आध्यात्मिक शक्ति पर सवाल क्यों?

सद्गुरुजी
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शनि शिंगणापुर की गर्वमय आध्यात्मिक शक्ति पर सवाल क्यों?

महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित शनि शिंगणापुर में 1500 महिलाओं ने गणतंत्र दिवस के मौके पर मंदिर के चबूतरे पर जाकर तेल चढ़ाने का एलान किया था. भूमाता रणरागिनी ब्रिगेड के झंडे तले विरोध प्रदर्शन करने वाली इन महिलाओं का यहाँ तक कहना था कि अगर उन्हें मैदान से मंदिर में नहीं जाने दिया गया तो वो हेलिकॉप्टर से मंदिर में जाएंगी और हेलीकॉप्टर के जरिये सीढ़ी से मंदिर में उतरेंगी. मीडिया में छपी ख़बरों के अनुसार उन्होंने एक हेलीकॉप्टर बुक भी करा लिया था. गणतंत्र दिवस के मौके पर जब रणरागिनी ब्रिगेड की लगभग 450 महिलाएं मंदिर परिसर में जबरदस्ती पूजा करने के लिए जा रही थीं तो पुलिस ने उन्हें शनि मंदिर से करीब 70 किलोमीटर पहले ही हिरासत में ले लिया. इन महिलाओं ने पुलिस वालों से धक्कामुक्की की और भगदड़ जैसे हालात पैदा किये. उन महिलाओं का कहना था कि वो शनि मंदिर के चबूतरे पर जाकर शनि की मूर्ति पर तेल चढ़ा कर ही रहेंगी, जबकि मंदिर की समीति इसका विरोध कर रही है, क्योंकि वो शनि मंदिर में महिलाओं का चबूतरे पर जाना मंदिर की 400 साल पुरानी परंपरा के खिलाफ मानती है.
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कुछ दिनों पहले एक युवती ने 400 साल पुरानी शनि शिंगणापुर मंदिर की इस परंपरा को तोड़ते हुए शनि की मूर्ति पर तेल चढ़या था, जिसके बाद मंदिर के पुजारियों व गांव वालों ने मिलकर मंदिर का शुद्धिकरण किया था. इस घटना के बाद से ही पुणे की संस्था रणरागिनी भूमाता ब्रिगेड शनि चबूतरे पर जाकर पूजा करने का अधिकार मांग रही है. मंदिर की परंपरा को तोड़ने की योजना के विफल होने के बाद संस्था ने इसे महिलाओं और भारतीय लोकतंत्र के लिए “काला दिवस” बताया. एक तरफ जहाँ रणरागिनी भूमाता ब्रिगेड शनि चबूतरे पर जाकर पूजा करने का अधिकार मांग रही है वहीँ दूसरी तरफ मंदिर ट्रस्ट के सदस्यों का कहना है कि वो महिलाओं का पूरा आदर सम्मान करते हैं, लेकिन वो सदियों पुरानी परम्परा को बदल नहीं सकते. दिलचस्प बात ये है कि मंदिर समिति के सर्वोच्च पद यानी न्यास की अध्यक्ष भी इस समय महिला ही हैं, किन्तु फिर भी नई अध्यक्ष अनीता शेट्ये का मानना है कि मंदिर में 400 वर्षों से चली रही परंपराओं से छेड़छाड़ करने का अधिकार किसी को नहीं दिया जाएगा. शनि शिंगणापुर मंदिर में एक अन्य महिला ट्रस्टी भी हैं, उनके भी यही विचार हैं.

जिन महिलाओं ने मंदिर की परंपरा तोड़ने की मन में ठान ली है, उनकी जिद समझ से परे है. उनका यह कहना कि यह महिलाओं के अधिकार का मामला है और हम किसी भी सुरक्षा इंतजाम से नहीं डरते, यह भक्ति नहीं बल्कि एक तरह की अराजकता ही कही जाएगी. खासकर तब, जब यह मामला कोर्ट के विचाराधीन हो. उन्हें कोर्ट के फैसले का इन्तजार करना चाहिए. महिला अधिकारों के हनन की बात की जाये तो घर से लेकर बाहर तक बहुत से महिला अधिकारों के हनन के मुद्दे हैं, जिन पर उन्हें संघर्ष करना चाहिए. केवल मीडिया में प्रसिद्धि पाने के लिए इस तरह के संघर्ष का दिखावा करना जायज नहीं है. सबसे बड़ी बात यह है कि शनि को न्याय का देवता कहा गया है, फिर भला वो किसी से अन्याय क्यों करेंगे? यह बात भी विचारणीय है कि शिंगणापुर या सोनाई गांव के बीचोबीच में स्थित शनि मंदिर में कोई छत और दीवारें नहीं हैं. शनि की मूर्ति खुले चबूतरे पर है, जहां शनिदेव की प्रतिमा स्वरूप करीब पांच फीट ऊंचा काला पत्थर लगा है, जिसका कोई भी दूर से दर्शन कर सकता है. इस पत्थर पर सरसों का तेल चढ़ाकर पूजा करने की परंपरा है. पुजारियों को छोड़कर किसी को भी नौ सीढ़ियां चढ़कर चबूतरे पर स्थित मूर्ति तक जाने की इजाजत नहीं है.

इस मंदिर में आम श्रद्धालुओं के मूर्ति तक पहुँचने की एकमात्र व्यवस्था यह है कि दिन में दो बार होने वाली आरती के समय मंदिर को 11,111 रुपए का दान देकर कोई भी पुरुष मूर्ति तक पहुँच सकता है. चूँकि आरती का समय निश्चित है, इसलिए देश-विदेश से आने वाले हजारों-लाखों श्रद्धालु भक्तों को चबूतरे के नीचे से ही प्रार्थना करनी पड़ती है. आप गहनता से विचार करें तो पाएंगे कि शनि चबूतरे पर वस्तुतः पुरुष और महिला दोनों का ही प्रवेश वर्जित है. इसके पीछे एकमात्र कारण मंदिर की आध्यात्मिक शक्ति को बनाये रखना है. ये शनि मंदिर की दिव्य आध्यात्मिक शक्ति ही तो है जिसके कारण शिंगणापुर या सोनाई गांव में चोरी नहीं होती है और वहां पर शनिदेव का भय ऐसा है कि गलत कार्य भी नहीं होते हैं. यह दुनिया का एकमात्र ऐसा गांव है जहां घरों में दरवाजे नहीं हैं, जहाँ घरों में ताले नहीं लगते हैं. क्या आप विश्वास करेंगे कि यहाँ स्थित बैंक के दरवाजे पर भी ताला नहीं लगता है. यहाँ पर रहने वाले हजारों लोग इस सच्चाई का अनुभव करते हैं कि जो भी चोरी का प्रयास करता है या सोचता है, उसे शनिदेव द्वारा दैवीय सजा दी जाती है.

शनि शिंगणापुर दुनिया का एकमात्र ऐसा आध्यात्मिक गांव है जहां पर अदभुद दैवीय शक्ति का प्राकट्य है. जिस पर भारत को गर्व है. हमें अपनी इस आध्यात्मिक थाती को सहेजे रखना है और इसे अक्षुण्य बनाये रखना है. यदि हम शनिदेव के सच्चे भक्त हैं तो मंदिर की सदियों पुरानी परम्परा को तोड़कर मूर्ति को छूने या तेल चढाने की जिद क्यों? भक्ति के नाम पर शक्ति, विरोध, दिखावे और अहंकार का प्रदर्शन क्यों? यदि हम शनि को देवता मानते हैं तो फिर उनसे लड़ाई क्यों कर रहे हैं? ये सब संघर्ष प्रसद्धि पाने के लिए किया जा रहा पाखंड और अपने अहंकार का तुष्टिकरण मात्र ही तो है. अरे भक्त तो वो है जो यह सोचता है कि मेरे प्रभु को कष्ट न हो. उसकी ख़ुशी में ही मेरी ख़ुशी है. मेरे जैसा भक्त तो यहीं काशी से ही शनि शिंगणापुर की आध्यात्मिक थाती को नमन करना पसंद करेगा और सदैव ह्रदय से यही कामना करेगा कि शनि शिंगणापुर की आध्यात्मिक ऊर्जा कभी कम न हो. मेरे लिए तो वहां की आध्यात्मिक ऊर्जा बड़े ही गर्व, आनंद और रिसर्च करने का विषय है. चोरी पर अंकुश लगाने और गरीबों को न्याय देने जैसा कानून व्यवस्था से जुड़ा अहम कार्य जो पुलिस, सरकार और न्यायालय ठीक से नहीं कर पा रहे हैं, वो शिंगणापुर में स्वतः हो रहा है. क्या ये एक बहुत बड़ा दैवीय चमत्कार नहीं है? किन्तु शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जी ने तो शिंगणापुर की आध्यात्मिक ऊर्जा यानी शनि देवता के देवत्व पर ही सवाल उठा दिया है.
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शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जी का कहना है कि शनि देवता नहीं वो तो ग्रह हैं और शनि की पूजा उन्हें भगाने के लिए होती है न कि बुलाने के लिए. मुझे लगता है कि इस मामले को लेकर वो न सिर्फ भ्रमित हैं, दोहरेपन वाली घटिया कांग्रेसी राजनीति से प्रेरित हैं, बल्कि उन लाखों-करोड़ों गरीबों और दलितों के विरोधी भी प्रतीत होते हैं, जो न्याय प्राप्ति की मनोकामना लिए शनि शिंगणापुर में प्रार्थना करने जाते है. शंकराचार्य जी को मालूम होना चाहिए कि शिंगणापुर की आध्यात्मिक ऊर्जा अपने देवत्व का परिचय स्वयं दे रही है. देश के अनगिनत मंदिरों और तीर्थों में चोरियां होती हैं, श्रद्धालु भक्तों से असभ्य व्यवहार, मारपीट और लूटपाट होती है, वहां के देवता क्या कर लेते हैं? उस दृष्टि से देंखे तो शनि शिंगणापुर में स्पष्ट रूप से दैवीय शक्ति के होने का न सिर्फ एहसास होता है, बल्कि प्रमाण भी मिलता है. ऐसे दिव्य और जागृत आध्यात्मिक स्थल की महत्ता को बनाये रखने की जिम्मेदारी श्रद्धालु भक्तों के साथ साथ हमारे देश के धर्मगुरुओं की भी है. अंत में सबसे अहम बात कहना चाहूंगा कि मंदिरों की कमाई पर बहुतों की गिद्ध दृष्टि रहती है, अक्सर उसे लेकर धर्मगुरुओं और पुजारियों के बीच संघर्ष, मारपीट और अदालती वाद-विवाद होते ही रहते हैं, इसलिए सरकार को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि मंदिरों में श्रद्धालुओं के द्वारा चढ़ाये गए धन का उपयोग धर्मगुरुओं और पुजारियों के भोग-विलास और दिखावटी शान-शौकत के लिए नहीं, बल्कि सिर्फ सामाजिक सेवा कार्यों के लिए ही हो. जयहिंद !

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(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कंदवा, जिला- वाराणसी. पिन- २२११०६)
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