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एक वास्तविक प्रेम कहानी का सुखद अंत- जागरण जंक्शन मंच

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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एक वास्तविक प्रेम कहानी का सुखद अंत

प्रेम और प्रेमियों के बारे में जब भी मैं सोचता हूँ, निशब्द हो जाता हूँ. ह्रदय में प्रेम नहीं तो सांसारिक सुख या आध्यात्मिक आनंद दोनों मे से कोई भी प्राप्त करना सम्भव नहीं है. प्रेम सांसारिक और शारीरिक सुख पाने की मंजिल है और आध्यात्मिक आनंद पाने की सीढ़ी भी है. मेरे जीवन में एक अजीब संयोग रहा कि बहुत से प्रेमियों से मुलाकात हुई. एक से बढ़कर एक आध्यात्मिक और सांसारिक प्रेमी मिले. जो भी मिले, उनमे से अधिकतर सांसारिक थे. मैं यथासंभव कुछ की मदद कर सका और कुछ की नहीं. मेरे दिल के भीतर एक तरफ जहाँ कई प्रेमी जोड़ों के लिए कुछ मदद कर पाने की ख़ुशी है तो वहीँ दूसरी तरफ बहुतों के लिए कुछ न कर पाने का अफ़सोस भी है. चाहे सांसारिक हो या आध्यात्मिक, दुनिया के सभी प्रेमियों का आदर करते हुए कुछ ब्लॉग मैं उन्हें समर्पित करने जा रहा हूँ.

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मिलते ही आँखे दिल हुआ दीवाना किसी का
अफ़साना मेरा बन गया अफ़साना किसी का.

ये प्रेम कहानी लिखने बैठा तो गीतकार शकील बदायुंनी का लिखा हुआ फिल्म ‘बाबुल’ का ये याद आ गया. तलत साहब की नर्म मख़मली आवाज़ और शमशाद बेग़म जी की किसी नवविवाहिता के चूड़ियों सी खनकती हुई मधुर गूंज कानों में लाजबाब गीत संगीत का आनंद रस घोलने लगी. फ़िल्म ‘बाबुल’ का यह गीत उस जमाने में भी एक बेहद सुपरहिट युगलगीत था और आज भी है. बहुत से लोंगो को याद होगा कि परदे पर इस गीत के फ़िल्मांकन में फिल्म के हीरो दिलीप कुमार साहब पियानो पर बैठ कर गीत गा रहे हैं और फिल्म की हीरोइन मुनव्वर सुल्ताना हर लाइन में उनका साथ दे रहीं हैं. गीत का फिल्मांकन इतना बढियां और अविस्मरणीय है कि इसे बार बार देखने और सुनने की इच्छा होती है. अपनी कहानी में प्रेम का रस घोलने के लिए मैंने इस गीत को चुना है.

मेरी कहानी के नायक और नायिका दोनों ही मेरे नजदीकी रिश्तेदार हैं. उनकी प्रेम कहानी तब शुरू हुई, जब आज से तीन साल पहले दोनों मेरे घर पर आये थे. दोनों ही लगभग तेईस-चौबीस साल के हमउम्र थे. वो न सिर्फ एक दूसरे से दूर-दूर रहते थे बल्कि आमना-सामना होने पर बहुत शर्माते भी थे. मैंने उन्हें अपने घर में न कभी मिलते और न ही आपस में बातें करते देखा. एक दिन बाबा विश्वनाथ के मंदिर में वो दोनों भी हमारे साथ गए. अगले दिन लड़का दिल्ली चला गया. कुछ दिन बाद पता चला कि वो एक कम्पनी में बतौर जूनियर इंजीनियर नियुक्त होकर विदेश चला गया है. लड़की हमारे घर पर थी. दिनभर हंसती बोलती थी और घर के कामों में सहयोग भी करती थी. मेरी माता जी के कमरे में वो सोती थी. वो कार्य और व्यवहार में सामान्य लगती थी, लेकिन एक दिन मेरी माताजी कहने लगीं कि ये लड़की आधी रात को कई दिनों से सोते हुए न जाने क्या क्या बड़बड़ाती है. न जाने इसे कोई बिमारी है या फिर कोई भूत-प्रेत पकड़ा है. माता जी कि बात सुनकर मैं हंसकर टाल दिया था. किन्तु एक दिन आधी रात को जब मैं बाथरूम जाने लगा तो माता जी के कमरे से धीमी आवाज में बात करने की आवाज सुनाई दी. मैं समझ गया कि लड़की मोबाईल से किसी से बात कर रही है. माता जी की बात पर मुझे विश्वास नहीं हुआ था, लेकिन जब अपने कानों से सूना तो अगले दिन बहुत गंभीर होकर अपनी श्रीमती जी से इस विषय पर बात किया. वो भी ये सब जानकार बहुत हैरान परेशान हुईं.

पूछो न मुहब्बत का असर
हाय न पूछो – हाय न पूछो
दम भर में कोई हो गया परवाना किसी का.

श्रीमतीजी ने जब एकांत में लड़की से पूछताछ कि तो पता चला कि लड़का-लड़की दोनों आधी रात को घंटों एक दूसरे से बतियाते हैं. एक दूसरे से प्रेम करते हैं और बाबा विश्वनाथ के मंदिर में शादी करने का संकल्प ले चुके हैं. सच्चाई जानकर हमलोग बहुत हैरान परेशान हुए. एक तो ये रिश्ता संभव नहीं था और दूसरे लड़की के साथ साथ हमें अपनी बदनामी का भी भय था, क्योंकि लड़की हमारे घर पर ठहरी हुई थी. लड़की बहुत गरीब घर की और लड़का खाते पीते एक अच्छे घर का. मैंने लड़के से बात की और बहुत सी जरुरी बातों के साथ साथ लड़की वालों की ख़राब आर्थिक स्थिति का भी जिक्र किया. मेरी बात सुनकर लड़के ने कहा कि मैं उसी लड़की से शादी करूंगा नही तो आजीवन शादी ही नहीं करूंगा. उसने मुझसे कहा कि उसे दहेज़ का कोई लालच नहीं है और वो मंदिर में दहेज़ रहित आदर्श विवाह करने को भी तैयार है. मैंने लड़के से कहा कि उस लड़की से शादी करने का वादा किये हो तो फिर अब अपने वादे से मुकरना मत. मैंने लड़का और लड़की के परिवार वालों से बात की तो दोनों के ही परिवार वाले इस शादी से इंकार कर दिए. वो लोग हम लोंगो पर लड़का-लड़की को मिलाने और उन्हें प्रेम-प्रपंच में फंसाने की झूठी तोहमत लगाने लगे. उधर लड़का लड़की पर मुहब्बत का ऐसा असर हुआ कि एक दूसरे के प्रेम, विरह वेदना के दर्द और शादी की चिंता में डूबकर सूखने लगे. उनकी दशा देख आँखे भर आती थीं.

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हँसते ही न आ जाएं कहीं
आँखों में आंसू – आँखों में आंसू
भरते ही छलक जाए न पैमाना किसी का.

लड़की की यही दशा थी. न जाने कहाँ और किस दुनिया में खोई रहती थी. न जाने क्या क्या सोचती रहती थी. उसे बुलाओ तो चौक जाती थी. अकेले में अक्सर कुछ यादकर कभी हंसती थी तो कभी अपनी आँखों के आंसू छुपाने की असफल कोशिश करने लगती थी. तीन साल तक उसने ये विरह वेदना झेली. एक दिन मुझे पता चला कि यदि उस लड़के से विवाह न हुआ तो लड़की आत्महत्या कर लेगी. ये सुनकर मेरी रूह काँप गई. लड़की को बचाने की चिंता सताने लगी. उधर लड़के का स्वदेश आना तय हो गया और भारी भरकम दहेज़ देने का लालच देने वाले लोग अपनी-अपनी विवाह योग्य लड़कियों के लिए उसके घर पर दौड़ने लगे. लड़के और लड़की का एक दूसरे के लिए अटूट प्रेम देख दोनों के परिवार वालों को मैंने समझाना-मनाना शुरू किया. काफी मशक्क़त के बाद लड़के की जिद और दोनों परिवारों को समझाने-बुझाने की मेरी कोशिश रंग लाई. दोनों के परिवार वाले शादी के लिए मान गए. अगले महीने मार्च में दोनों की शादी होने जा रही है. शादी का निमंत्रण-पत्र मेरे सामने है. एक प्रेमी जोड़े के मिलन और एक वास्तविक प्रेम कहानी का सुखद अंत होने की ख़ुशी है. मेरा आशीर्वाद और मेरी शुभकामनाएं सदा उनके साथ हैं. अंत में उनके लिए बस इतना ही कहूँगा, ‘दूधो नहाओ पूतो फलो’.

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(आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कंदवा, जिला- वाराणसी. पिन- २२११०६)
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